NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
वे हमें कातिलों का बाराती बना रहे हैं, वे हमें कातिल बनने की कला सिखा रहे हैं
हम खुश हैं कि परिवर्तन की लडाई अब बेमानी और बेअसर हो गयी है। हम खुश हैं कि हमारा पीएम लिखा भाषण नहीं पढ़ता, हिन्दी में बोलता है, दहाड़ता है, हम खुश हैं कि उसका सीना 56 इंच का है।...
जगदीश्वर चतुर्वेदी
16 Jun 2018
rss
हस्तक्षेप

वे नशे की दुनिया में ले जा रहे हैं। वे हमें मनोरंजन-ज्ञान-राजनीति आदि कुछ इस तरह खिला-पिला रहे हैं कि हम चटखोर हो गए हैं ,उनके दिए को पाने को तरसते हैं। वे हमें जालिम बना रहे हैं, और हमें समझा रहे हैं कि वे आदमी बना रहे हैं। जबकि वे हमें निठल्ला बना रहे हैं, उपभोक्ता बना रहे हैं। कह रहे हैं हुनरमंद, कौशलपूर्ण, तकनीकी गुरों में मास्टर बना रहे हैं।

हम खुश हैं कि हम हुनरमंद बन रहे हैं, कंज्यूमर बन रहे हैं, हम खुश हैं कि हम किसी संगठन में नहीं हैं, हम खुश हैं कि हमने मार्क्सवाद से पल्ला झाड़ लिया है, मजदूरों के संगठनों और नेताओं से दूरी बना ली है। हम खुश हैं कि हमारे देश में कम्युनिस्ट खत्म होते जा रहे हैं। हम खुश हैं कि परिवर्तन की लड़ाई अब बेमानी और बेअसर हो गयी है। हम खुश हैं कि हमने विकासदर के लक्ष्य हासिल करने शुरु कर दिए हैं। हम खुश हैं सेंसेक्स उछल रहा है लुढ़क रहा है। हम खुश हैं कि हमारा पीएम लिखा भाषण नहीं पढ़ता, हिन्दी में बोलता है, दहाड़ता है, हम खुश हैं कि उसका सीना 56 इंच का है।

कातिलों के बाराती

लेकिन हम भूलते जा रहे हैं कि वे हमें कातिलों का बाराती बना रहे हैं। वे हमें कातिल बनने की कला सिखा रहे हैं। जी हां, सच मानिए हम-आप सब कातिल बनने की कला सीख रहे हैं और कातिलों के कातिबों के चेले बन गए हैं।

मेरी बात को आप हँसकर मत उडाइए। वे बहुत सुनियोजित ढ़ंग से हमें संगठन मात्र से घृणा करना सिखा रहे हैं। वे हमें संगठित होकर प्रतिवाद करने की मनोदशा से दूर ले जा रहे हैं। मेरा मानना है संगठन बनाने की प्रक्रिया से दूर ले जाने के सारे प्रयास अंततः कातिल बनाने की साजिश का हिस्सा हैं।

कभी कल्याण नहीं कर सकते कातिलों के बाराती

हममें से अधिकांश लोग बहुत ही सहज भाव से लोकतांत्रिक संगठनों के प्रति अपनी घृणा और बेरुखी का इजहार कर रहे हैं। मजदूरों, किसानों, दलितों, आदिवासियों के संगठनों और उनके संघर्षों के खिलाफ कही गई बातों को बड़ी आसानी से मान लेते हैं, उन बातों पर यकीन करने लगते हैं, इस सबका परिणाम यह निकला है कि हम कातिलों के बाराती बनकर रह गए हैं। कातिलों के बाराती कभी कल्याण नहीं कर सकते। कातिलों के बाराती तो कत्ल ही करेंगे और कत्ल करने का ही हुनर सिखाएंगे। कत्ल होने पर ताली बजाएंगे या फिर दर्शक की तरह आनंद लेंगे।

हमें कोई बैचैनी नहीं हुई कि नर्मदा बाँध की ऊँचाई बढ़ाने से लाखों लोग उजड़ जाएंगे ? हमें कहीं कोई टीवी बाइटस नजर नहीं आई इसके खिलाफ? असल में हमें अच्छा कातिल बनाया जा रहा है, पहले से बेहतर कातिल बनाया जा रहा है।

हमने कातिल को ही अपना संरक्षक बना लिया

दुख इस बात का है हमने कातिल को ही अपना संरक्षक बना लिया है। हम पर कोई विपत्ति आती है तो हम अपने लोकतांत्रिक संगठनों के पास नहीं जाते प्रतिवाद संगठित नहीं करते अपितु कातिलों के दरवाजों पर गुहार लगाने जाते हैं।

कातिलों से दया की गुहार लगाकर आप देश नहीं बदल सकते। कातिलों से खैरात लेकर अपना सामाजिक दर्जा ऊँचा नहीं बना सकते। कातिलों की सिफारिश से आप न्याय के मानक नहीं बना सकते। कातिल के पास जाने का अर्थ सिर्फ स्वार्थ सिद्धि ही नहीं है बल्कि कातिल बनना भी है। आप ही सोचें कि आपने अपने जीवन में कातिलों से मेल-मोहब्बत-मुलाकात कितनी की है और जनता के संगठनकर्ताओं के साथ कितनीबार मिले हैं। तकलीफ तब होती है जब ईमानदार को भी आप कातिलों का बाराती बनाने का काम करने लगते हैं।

यह सच है आपको वर्गसंघर्ष से नफरत है, मार्क्सवाद से नफरत है और आपके पास इनलोगों से नफरत के हजारों किस्से-कहानियां हैं। यह भी सच है इनमें से अनेक किस्से सच भी हैं लेकिन इससे भी बड़ा सच है कि हमें इस समाज को कातिलों से बचाना है और यह काम कातिलों का बाराती बनकर संभव नहीं है। यह काम संगठन करने वालों से नफरत करके संभव नहीं है।

देश का मतलब क्या है

जो लोग समाज में संगठन बनाने का काम कर रहे हैं और खासकर लोकतांत्रिक संगठन बनाने का काम कर रहे हैं वे ही असल में देश निर्माण का काम कर रहे हैं। देश का मतलब है जनता को संगठित करो, लोकतांत्रिक चेतना से लैस करो। अधिकारों के प्रति उसे सचेत करो। देश का मतलब सड़कें-भवन,ताकतवर नेता नहीं है। देश का मतलब है जनता की उन्नत चेतना। जनता की एकता और सामाजिक-राजनीतिक उसूलों की रक्षा करने की त्याग भावना। हमने ऐसा समाज बनाया है जिसमें त्याग करके जीने वाले को बेबकूफ और तिकड़मी-धूर्त-जालसाज को अक्लमंद माना जाता है। हमारे समाज में ईमानदार आदर्श नहीं हैबल्कि येन-केन-प्रकारण अपना काम साधने वाला अक्लमंद माना जाता है उसे ही हम सफल व्यक्ति मानते हैं। जो सफल है वही महान है। असल में यह धारणा बुनियादी तौर पर गलत है। यह धारणा मानवता विरोधी है।

Courtesy: हस्तक्षेप
BJP-RSS
Indian media
fake news
Modi
Fascism

Related Stories

मोदी का ‘सिख प्रेम’, मुसलमानों के ख़िलाफ़ सिखों को उपयोग करने का पुराना एजेंडा है!

कटाक्ष: महंगाई, बेकारी भुलाओ, मस्जिद से मंदिर निकलवाओ! 

लखनऊ विश्वविद्यालय: दलित प्रोफ़ेसर के ख़िलाफ़ मुक़दमा, हमलावरों पर कोई कार्रवाई नहीं!

कविता का प्रतिरोध: ...ग़ौर से देखिये हिंदुत्व फ़ासीवादी बुलडोज़र

भारत में सामाजिक सुधार और महिलाओं का बौद्धिक विद्रोह

2023 विधानसभा चुनावों के मद्देनज़र तेज़ हुए सांप्रदायिक हमले, लाउडस्पीकर विवाद पर दिल्ली सरकार ने किए हाथ खड़े

किधर जाएगा भारत— फ़ासीवाद या लोकतंत्र : रोज़गार-संकट से जूझते युवाओं की भूमिका अहम

कोलकाता : वामपंथी दलों ने जहांगीरपुरी में बुलडोज़र चलने और बढ़ती सांप्रदायिकता के ख़िलाफ़ निकाला मार्च

बात बोलेगी: मुंह को लगा नफ़रत का ख़ून

फ़ासीवादी व्यवस्था से टक्कर लेतीं  अजय सिंह की कविताएं


बाकी खबरें

  • भाषा
    ईडी ने फ़ारूक़ अब्दुल्ला को धनशोधन मामले में पूछताछ के लिए तलब किया
    27 May 2022
    माना जाता है कि फ़ारूक़ अब्दुल्ला से यह पूछताछ जम्मू-कश्मीर क्रिकेट एसोसिएशन (जेकेसीए) में कथित वित्तीय अनिमियतता के मामले में की जाएगी। संघीय एजेंसी इस मामले की जांच कर रही है।
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    एनसीबी ने क्रूज़ ड्रग्स मामले में आर्यन ख़ान को दी क्लीनचिट
    27 May 2022
    मेनस्ट्रीम मीडिया ने आर्यन और शाहरुख़ ख़ान को 'विलेन' बनाते हुए मीडिया ट्रायल किए थे। आर्यन को पूर्णतः दोषी दिखाने में मीडिया ने कोई क़सर नहीं छोड़ी थी।
  • जितेन्द्र कुमार
    कांग्रेस के चिंतन शिविर का क्या असर रहा? 3 मुख्य नेताओं ने छोड़ा पार्टी का साथ
    27 May 2022
    कांग्रेस नेतृत्व ख़ासकर राहुल गांधी और उनके सिपहसलारों को यह क़तई नहीं भूलना चाहिए कि सामाजिक न्याय और धर्मनिरपेक्षता की लड़ाई कई मजबूरियों के बावजूद सबसे मज़बूती से वामपंथी दलों के बाद क्षेत्रीय दलों…
  • भाषा
    वर्ष 1991 फ़र्ज़ी मुठभेड़ : उच्च न्यायालय का पीएसी के 34 पूर्व सिपाहियों को ज़मानत देने से इंकार
    27 May 2022
    यह आदेश न्यायमूर्ति रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति बृजराज सिंह की पीठ ने देवेंद्र पांडेय व अन्य की ओर से दाखिल अपील के साथ अलग से दी गई जमानत अर्जी खारिज करते हुए पारित किया।
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    “रेत समाधि/ Tomb of sand एक शोकगीत है, उस दुनिया का जिसमें हम रहते हैं”
    27 May 2022
    ‘रेत समाधि’ अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार जीतने वाला पहला हिंदी उपन्यास है। इस पर गीतांजलि श्री ने कहा कि हिंदी भाषा के किसी उपन्यास को पहला अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार दिलाने का जरिया बनकर उन्हें बहुत…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License