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भारत
राजनीति
विडंबना : स्कूल में यौन शोषण की शिकार लड़कियों का पढ़ाई जारी रखना मुश्किल
छात्रा की मां स्कूल में बच्ची का रजिस्ट्रेशन नंबर लेने के लिए भटक रही है। सीबीएसई कार्यालय से पता चला कि स्कूल प्रबंधन ने दाखिले के बावजूद बच्ची का सीबीएसई में रजिस्ट्रेशन ही नहीं कराया।
वर्षा सिंह
15 Jan 2019
सांकेतिक तस्वीर
सांकेतिक तस्वीर। साभार : गूगल

स्कूल में यौन शोषण की शिकार हुई नौवीं की छात्रा का इस साल प्री बोर्ड इग्ज़ाम होना था। उसकी मां लगभग रुआंसे स्वर में, एक पल को कहती है कि वो तो कमरे से बाहर ही नहीं निकलना चाहती है, और दूसरे पल को कहती है कि लेकिन उसका मन स्कूल जाने को करता है। अभी वो इस हादसे से उबर नहीं पायी है। उसकी मनस्थिति भी संतुलन में नहीं। हम दूसरा स्कूल ढूंढ़ेंगे। अब उस स्कूल में बच्ची को नहीं पढ़ाएंगे। स्कूल वाले पूरी कोशिश में जुटे रहे कि किसी तरह मामले की एफआईआर दर्ज न हो। उन्होंने हमें 25 लाख रुपये देकर मामले को रफा-दफा करने को भी कहा। उन्हें स्कूल की बदनामी की चिंता है, जबकि उन्हें हमारे साथ खड़ा होना चाहिए था।

छात्रा की मां स्कूल में बच्ची का रजिस्ट्रेशन नंबर (पंजीकरण संख्या) लेने के लिए भटक रही है। सीबीएसई कार्यालय से पता चला कि स्कूल प्रबंधन ने दाखिले के बावजूद बच्ची का सीबीएसई में रजिस्ट्रेशन ही नहीं कराया। जिससे उसकी पढ़ाई का पूरा साल बिगड़ सकता है।

ये मामला देहरादून के पेस्टलवीड स्कूल का है। जहां छात्रा और उसके भाई का बीच सत्र में इसी वर्ष दाखिला कराया गया था। दोनों बच्चों के दाखिले के लिए मां-बाप ने स्कूल को मोटी रकम भी अदा की। दिसंबर के पहले हफ्ते में स्कूल के स्वीमिंग पूल कोच ने बच्ची के साथ छेड़छाड़ की। घरवालों की शिकायत पर 13 दिसंबर को पुलिस ने मामला दर्ज किया।

पीड़ित छात्रा की मां कहती हैं कि जिस कोच पर छेड़छाड़ के आरोप लगे और उसे 14 दिसंबर को स्कूल से गिरफ़्तार किया गया, स्कूल ने कागजों में फेरबदल कर 6 दिसंबर को उसे रिलीज करने का पत्र दिखाया है। मां कहती हैं कि मेरी बेटी के बारे में भी उनकी सोच अच्छी नहीं है। हम पंजाब से यहां आए। पेस्टल वीड स्कूल पिछले स्कूल में भी फोन कर लड़की के बारे में पड़ताल कर रहा था। हमने उन्हें एडमिशन के समय सारे मूल दस्तावेज दिखाये। अब वे कह रहे हैं कि मूल दस्तावेज लेकर फिर स्कूल आओ। मां कहती है कि जब मामला पुलिस में दर्ज है, तो स्कूल कोई भी सवाल हमसे सीधे न करके, विवेचना अधिकारी के ज़रिये ही करे।

सवाल है कि पहले ही शारीरिक और मानसिक रूप से पीड़ित नौवीं की छात्रा की पढ़ाई का क्या होगा?

पिछले वर्ष देहरादून के जीआरडी बोर्डिंग स्कूल में पढ़ने वाली छात्रा के साथ बलात्कार हुआ। स्कूल प्रबंधन ने मामले को छिपाते हुए लड़की का गर्भपात तक करा दिया। जब ये मामला खुला और बच्ची के मां-बाप ने उसे दूसरे स्कूल में दाखिला दिलाने की कोशिश की तो आरोप लगे कि कई स्कूलों ने रेप-पीड़ित बच्ची को एडमिशन देने से इंकार किया।

हालांकि उस मामले की जांच कर रही तत्कालीन एसपी ग्रामीण सरिता डोभाल का कहना है कि जांच में ये बात पुष्ट नहीं हुई। स्कूल वालों ने अभिवावकों से कुछ कागजात मांगे, जिसे अभिवावक दिखा नहीं पाए, इसलिए एडमिशन में दिक्कत आई।

देहरादून स्थित नेशनल एसोसिएशन फॉर पेरेंट्स एंड स्टूडेंट्स राइट्स के अध्यक्ष आरिफ ख़ान बताते हैं की जीआरडी स्कूल के मामले में दून के कई स्कूलों ने एडमिशन देने से इंकार किया था। फिर हमने मुख्य शिक्षा अधिकारी से बात की थी। तब सीईओ ने कहा था कि यदि कोई स्कूल एडमिशन नहीं देता है तो उसकी एनओसी रद्द करने की कार्रवाई की जाएगी। इसके बाद काफी सारे स्कूल एडमिशन के लिए आगे आए। उनका कहना है कि इस तरह के मामलों में पीड़ित छात्रा को पढ़ाई जारी रखने में काफी मुश्किल होती है। ऊपर बताए गये दोनों ही मामलों में एसोसिएशन सक्रिय रहा है।

एनएपीएसआर के अध्यक्ष आरिफ ऐसे ही एक और मामले में बताते हैं कि पिछले वर्ष देहरादून के इंडियन एकेडमी स्कूल में भी छात्राओं के साथ यौन शोषण का मामला सामने आया था। जिसके विरोध में अभिवावकों ने कैंडल मार्च निकाला था। उस मामले की सुनवाई में एक साल बाद पीड़ित बच्चियों ने अपने बयान बदल दिये और कहा कि उन्हें अब कुछ भी याद नहीं।

आरिफ कहते हैं कि ऐसे मामले कोर्ट में इतने लंबे खिंचते हैं कि बच्चियां उस मानसिक शोषण से मुक्त नहीं हो पातीं। उनकी पढ़ाई भी बाधित होती है। इसलिए वे इस तरह के मामलो को फास्ट ट्रैक कोर्ट में जल्द से जल्द निपटाने की वकालत करते हैं।

देहरादून के महंत इंद्रेश अस्पताल में मनोवैज्ञानिक डॉ. प्रीति मिश्रा कहती हैं कि यौन शोषण के मामलों में बच्चा शारीरिक तौर पर ही नहीं बल्कि मानसिक तौर पर भी दबाव में आ जाता है। वो अंदर ही अंदर बहुत सी दिक्कतों से गुजरता है। जिसका असर उसकी पढ़ाई पर पड़ना लाजिमी है।

डॉ. प्रीति कहती हैं कि ऐसे मामलों में सबसे अहम भूमिका परिवार की होती है। घरवालों को बच्चे को लगातार समझाना होता है कि जो कुछ भी हुआ है उसमें तुम्हारी कोई गलती नहीं है। क्योंकि अक्सर ऐसे मामलों में बच्चे खुद को गलत मानने लग जाते हैं, जैसे कि हमने कुछ गलती की, हमने सही कपड़े नहीं पहने, हमारी बॉडी लैंग्वेज सही नहीं थी, इस वजह से मेरे साथ ऐसी घिनौनी घटना हुई।

मनोवैज्ञानिक डॉ. प्रीति कहती हैं कि मेरे पास आए इस तरह के मामलों में मैंने ऐसा ही पाया कि बच्चे खुद को उस घटना का जिम्मेदार मानने लगते हैं। घरवाले भी सामाजिक भय से मामले को दबाने की कोशिश करते हैं। उनका कहना है कि अब भी यौन शोषण के मामलों के बाद बच्ची को मानसिक दबाव से मुक्त करने के लिए किसी मनोवैज्ञानिक के पास नहीं लाया जाता। उसे किसी और दिक्कत की वजह से लाया जाता है। पूछताछ में पता चलता है कि उसकी इस मानसिक स्थिति के पीछे ऐसी ही कोई घटना जिम्मेदार है। परिवार बच्ची का साथ देने के बजाय सामाजिक भय से मामले को दबाने में जुट जाता है।

आखिर में 17 साल की एक अन्य लड़की की भी बात। बलात्कार पीड़ित इस बच्ची ने देहरादून के एक अस्पताल में 14 जनवरी को बच्ची को जन्म दिया है। जब तक उसे गर्भ में पलते शिशु का पता चला, गर्भपात कराना जानलेवा हो चुका था। बलात्कार की बात पता चलने पर उसके मां-बाप ने भी साथ छोड़ दिया। गोद में एक नन्ही बच्ची लिए ये युवती अब अजनबियों के भरोसे है। क्या वो वापस अपने स्कूल में, अपनी सामान्य ज़िंदगी में लौट सकेगी?

यौन शोषण की शिकार लड़कियों की जंग दोहरी हो जाती है। एक तो उन्हें आरोपियों के खिलाफ कानूनी लड़ाई लड़नी होती है। फिर एक लड़ाई अंदर ही अंदर खुद से चल रही होती है। शारीरिक चोट से एक बार उबर भी जाएं, लेकिन मानसिक आघात ज्यादा मुश्किल पैदा करता है। ज़िंदगी सामान्य होने में समय लगता है। जबकि उस समय उन्हें अपनी किताबों के सबक याद करने होते हैं। जरूरी सवाल हल करने होते हैं। परीक्षाएं देनी होती हैं।

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