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भारत
राजनीति
विरोध प्रदर्शनों के विभिन्न रंगों से सजी दिल्ली की सड़कें
हिंसा, बेरोज़गारी और भूखमरी के ख़िलाफ़ अपनी मांग को लेकर 23 राज्यों से क़रीब 5,000 से अधिक महिलाओं ने एआईडीडब्ल्यूए के आह्वान पर संसद की ओर पैदल मार्च किया।
सुमेधा पॉल
05 Sep 2018
ऐडवा

विशाल रैली में शामिल होने के लिए बड़ी संख्या में महिलाएं अपनी मांगों को लेकर देश के विभिन्न स्थानों से राजधानी दिल्ली पहुंची। देशव्यापी इस रैली का आह्वान ऑल इंडिया डेमोक्रेटिक वीमेंस एसोसिएशन(एआईडीडब्ल्यूए) की ओर से किया गया था।

विरोध प्रदर्शन में शामिल महिलाओं का जोश बारिश होने के बावजूद नहीं थमा। सुबह से लगातार हो रही बारिश में भी उन्होंने अपना विरोध जारी रखा और पैदल मार्च किया। जिन महिलाओं के पास छाता नहीं था उन्होंने बैनर से अपने सिर को बचाने की कोशिश की और संसद की तरफ मार्च किया। इस दौरान वे विरोध के गीत गा रही थीं और सोयी हुई मोदी सरकार को जगाने के लिए वे "मोदी योगी होश में आओ, गुंडागर्दी नहीं चलेगी" के नारे लगा रहीं थीं। विरोध में शामिल महिलाओं ने कहा कि उनकी लड़ाई अभी शुरू ही हुई है और इस विरोध को आगे ले जाने का यह मात्र पहली आवाज़ है। नारे के शब्द कुछ इस तरह हैंः

आवाज़ दो, हम एक है

महंगई पे हल्ला बोल

हल्ला बोल हल्ला बोल

हर ज़ोर ज़ुल्म की टक्कर में

संघर्ष हमारा नारा है

महिला हिंसा पे

रोक लागाओ रोक लागाओ

बोल महिला हल्ला बोल

हल्ला बोल हल्ला बोल

इंक़लाब ज़िंदाबाद

ऐडवा

 

इस विरोध के लिए आह्वान का एक प्रमुख कारण देश में महिलाओं के ख़िलाफ हिंसा की बढ़ती संस्कृति और इस हिंसा पर वर्तमान सरकार की चुप्पी है।

एआईडीडब्ल्यूए की महासचिव मरियम धवाले के अनुसार, महिलाओं के ख़िलाफ़ हिंसा में 82% की वृद्धि हुई है। हालिया कठुआ और उन्नाव बलात्कार के मामलों में आरोपियों की रक्षा ने पूरे देश में महिलाओं के बीच क्रोध पैदा कर दिया है। इसके अलाव, निम्न दोष दर और प्रधानमंत्री की चुप्पी महिलाओं के ख़िलाफ़ हिंसा की संस्कृति में योगदान देने वाले प्रमुख कारक थे।

महिलाओं ने कम मज़दूरी और बेरोज़गारी को लेकर भी मांग उठाई। न्यूज़क्लिक से बात करते हुए महाराष्ट्र की एक आंगनवाड़ी कार्यकर्ता ने कहा, "हम दो दिनों से अधिक समय से सफर कर रहे हैं, हमें कुछ भी भुगतान नहीं मिलता है, हमें केवल 33 रुपए प्रति दिन मिलता है। हम इससे क्या कर सकते हैं? पिछले कुछ महीनों से हमें कोई भुगतान नहीं किया गया है। 5-6 महीने के बाद भुगतान किया जाता है। अगर हमें अनियमित भुगतान किया जाता है, तो हम क्या खाएंगे? पिछले कई सालों से मज़दूरी में वृद्धि नहीं हुई है। हमें सुबह 10 बजे से शाम 6 बजे तक काम करना पड़ता है और पैसा कमाने के लिए कहीं और काम करने का समय भी नहीं मिलता है। इन सबके कारण, मुझपर काफी क़र्ज़ हो गया है। जब मेरे पति पूछते हैं तो हर रोज़ बहस होती है कि जब तुम्हें भुगतान नहीं होता है तो दिन भर क्या काम करती रहती हो? लेकिन हम पिछले कई सालों से काम कर रहे हैं, इसलिए अब छोड़ना मुश्किल है।"

राज्य में बीजेपी सरकार के वादे के बावजूद इन महिलाओं को कोई पेंशन या हेल्थकेयर फंड नहीं मिला है।

महिला संघर्ष

भारत में वर्तमान समय में कृषि संकट गहराया हुआ है। इसको लेकर बड़ी संख्या में किसानों ने आत्महत्या की। पति की मृत्यु के बाद मुआवज़े का दावा करना महिलाओं के लिए बहुत ही जटिल कार्य है। विरोध करने वाली कई महिलाओं ने कहा कि पति के आत्महत्या करने के बाद उन्हें मुआवजा नहीं दिया गया था और उन्हें उस भूमि का किसान या उत्तराधिकारी के रूप में मान्यता नहीं दी गई थी।

कोई नौकरी नहीं

इस विरोध में मध्य प्रदेश के मंदसौर ज़िले से भी क़रीब 150 से ज़्यादा महिलाएं शामिल हुईं उन्होंने महिलाओं के लिए नौकरियों की चिंताजनकस्थिति को लेकर बात की। एक आशा (यूएसएयए) कार्यकर्ता ने न्यूज़़क्लिक को बताया कि "श्रमिकों को अस्पताल में सेवाएं देने के बावजूदपिछले सात महीनों से 1000 रुपए का मासिक वेतन भी नहीं मिल पा रहा है, वे प्रसव कराने या टीबी रोगियों के लिए काम करती हैं।"

स्कूलों में मीड-डे-मील बनाने वाली महिला श्रमिकों की भी ऐसी ही स्थिति थी। एक श्रमिक ने कहा, "हमें हर रोज़ मीड-डे-मील बनाने के लिए कहा जाता है, लेकिन हमें जो अनाज मिलता है वह बेहद ही ख़राब गुणवत्ता का होता है। लाल मिर्च में ईंट की धूल मिले हुए आते है, हल्दी मेंपीले रंग का मिश्रिण होता है। दाल अच्छी तरह से पकाया नहीं जाता है। हमारे पास हमारे लिए कोई खाना नहीं है, भले ही हम दूसरों के लिए पकाते हैं।"

महिला संघर्ष

देश में महिलाएं लंबे समय से इन मांगों को लेकर आवाज़ उठाती रही हैं। कुछ महिलाओं ने कहा कि इस ऐतिहासिक विरोध में हिस्सा लेने के लिए उन्होंने धन जुटाया ताकि वे दिल्ली पहुंच सकें। इस दिन की तैयारी में, विभिन्न ज़िलों में हजारों बैठकें की गईं। संदेश को हर किसी के लिए सरल और स्पष्ट बनाने के लिए नाटकों का प्रदर्शन किया गया था।

ये रैली ऐतिहासिक मज़दूर किसान संघर्ष रैली से ठीक एक दिन पहले की गई। मोदी सरकार की नवउदार नीतियों, सांप्रदायिक एजेंडों और लोगों के मौलिक अधिकारों पर हमला करने के ख़िलाफ एकजुटता दिखाने के लिए इस रैली का आयोजन किया गया।

वी. अरुण कुमार द्वारा ली गई तस्वीर (सौजन्य: पीपुल्स डिस्पैच)

 


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