NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
पुस्तकें
साहित्य-संस्कृति
भारत
विश्व पुस्तक मेले पर गहरा होता भगवा रंग !
पुस्तक मेले के नाम पर कथित साधु-संतों का जमावड़ा बढ़ता जा रहा है। धार्मिक व अंधविश्वासी पुस्तकों का बोलबाला बढ़ रहा है। विश्लेषणात्मक सोच व दूसरों के विचारों के प्रति सम्मान की भावना रखने वाले पुस्तक प्रकाशक मेले में कम दिख रहे हैं।
शिव इंदर सिंह
11 Jan 2020
book fair

“आज जरूरत हिन्दू एकता की है, हिन्दूओं पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं। अगर हम पहले से ही एक होकर मुसलमानों को अपने इलाकों में ज़मीनें न खरीदने देते तो ये दिन न देखने पड़ते.....हमें अपनी बच्चियों को मुसलमानों से बचाना चाहिए कि वे किसी मुसलमान लड़के से प्यार न करें। शुरु से ही उनके मन में मुसलमानों के प्रति नफरत पैदा करनी चाहिए....उन्हें बताना चाहिए कि ये चार विवाह करते हैं, ये खतना करते हैं। इसी तरह ही हमारी लड़कियां ‘लव ज़िहाद’ से बच सकती हैं।” ये नफरत भरे बोल किसी कट्टरवादी संस्था में नहीं बल्कि भारत सरकार के संस्थान नेशनल बुक ट्रस्ट द्वारा प्रगति मैदान में चल रहे विश्व पुस्तक मेले में सनातन संस्था के स्टॉल से सुनने को मिले। इस बुक स्टॉल के कार्यकर्त्ता जहां एक तरफ ऐसा नफरत भरा प्रचार कर रहे थे, वहीं वे हिन्दू राष्ट्रवाद संबंधी एवं मुस्लिम विरोधी साहित्य बेच रहे थे। पुस्तकों के अलावा यहां गौमूत्र, धूपबत्ती, साबुन, तेल, लोकेट, कपूर आदि वस्तुएं आत्मिक शुद्धि के नाम पर बेची जा रही थी। 

सन् 1972 से दिल्ली में विश्व पुस्तक मेला का आयोजन किया जा रहा है। इसी कड़ी में यह 28वां मेला है। इस बार 4 जनवरी से 12 जनवरी तक चलने वाले इस पुस्तक मेले का थीम “महात्मा गांधीः लेखकों के लेखक” रखा गया है। मेले में 600 के करीब देशी-विदेशी प्रकाशक आए हुए हैं। लेकिन इसके बावजूद पुस्तक प्रेमियों का उत्साह कम है। साहित्य प्रेमियों का मानना है कि आए वर्ष पुस्तक मेले का कथित भगवा रंग गहरा होता जा रहा है। पुस्तक मेले के नाम पर साधु-संतों का जमावड़ा बढ़ता जा रहा है। धार्मिक व अंधविश्वासी पुस्तकों का बोलबाला बढ़ रहा है। विश्लेषणात्मक सोच व दूसरों के विचारों के प्रति सम्मान की भावना रखने वाले पुस्तक प्रकाशक मेले में कम दिख रहे हैं।
 
छोटे प्रकाशकों का आरोप है कि मेले के प्रबंधकों ने बुक स्टाल की फीस बढ़ा दी है जिस कारण प्रगतिशील व वैज्ञानिक सोच वाले छोटे प्रकाशकों को बड़ा नुकसान हुआ है। पिछले साल तो ‘फिलहाल’ व ‘समयांतर’ जैसे इदारे भी अपना स्टाल नहीं लगा सके थे। इस बार भी ‘मास मीडिया’ /‘जन मीडिया’ जैसे इदारे को मेले से बाहर रहना पड़ा। छोटे प्रकाशकों के लिए स्टॉल की जो फीस 6000 रूपये थी, वह बढ़ा कर 15,000 रूपये कर दी गई। हिन्दी व क्षेत्रीय भाषाओं की बुक स्टाल की फीस 45,000 रूपये कर दी गई व अंग्रेज़ी स्टाल की फीस 65,000 रूपये कर दी गई है। ऐसे हालातों में रूढ़िवादी व अमीर प्रकाशकों का मेले में प्रभुत्व हो गया है। 

विश्व पुस्तक मेले के बदले हुए स्वरूप के बारे में प्रसिद्ध मीडिया विश्लेषक अनिल चमड़िया का कहना है कि नेशनल बुक ट्रस्ट का उद्देश्य छोटे प्रकाशकों के हितों की रक्षा करने की बजाय बड़े प्रकाशकों को फायदा पहुंचाना है। भारतीय भाषाओं वाले हाल में हिन्दी की ज़्यादा प्रधानता है जबकि अन्य प्रादेशिक भाषाओं की कमी है। हिन्दी साहित्य में भी रूढ़िवादी व धार्मिक साहित्य छाया हुआ है। अनिल चमड़िया एक अह्म नुक्ते पर ध्यान दिलवाते हुए कहते हैं कि कुछ साल पहले यहां राजनैतिक विचार-विमर्श होता था जोकि अब गायब है। वे जेएनयू में नकाबपोश गुंडों द्वारा की गई हिंसा की घटना का हवाला देते हुए बोलते हैं कि यह घटना मेला शुरु होने के एक दिन बाद की है लेकिन मेले में इसका कोई ज़िक्र तक नहीं हो रहा है। पुस्तक मेले की दीवारें इतनी मजबूत कर दी गईं हैं कि कोई बाहरी आवाज़ या चीख़ अंदर न सुनाई दे। इसलिए मेले से यह उम्मीद करना बेकार है कि यह कोई राजनैतिक चेतना पैदा करेगा। 

विश्व पुस्तक मेले में मिले पत्रकार अभिषेक श्रीवास्तव अपने विचार प्रकट करते हुए बताते हैं, “मेले में पाठक घट गए हैं और उपभोक्ता बढ़ गए हैं। पाठकों की जगह उपभोक्तावादियों ने ले ली है। लोग यहां पुस्तकें खरीदने की बजाय प्रोडक्ट खरीदने आ रहे हैं। इसीलिए कोई अपने बच्चे की अंग्रेज़ी बढ़िया करने वाली किताब खरीद रहा है और कोई पेट घटाने के लिए किताब या चूर्ण खरीद रहा है। इसी कारण ही उपभोक्तावादी साहित्य बढ़ा है और फिक्शन, नाॅन-फिक्शन एवं जीवन मूल्यों से सम्बंधित साहित्य की मांग घटी है। पिछले पांच सालों से मेले का रूप रंग काफी बदल चुका है। अब पहले जैसी सार्थक बहसें नहीं होती।”

मेले में दक्षिणपंथी साहित्य के बढ़ते रूझान पर वरिष्ठ पत्रकार आनंद स्वरूप वर्मा कहते हैं कि इसका सीधा कारण यह है कि जो सरकार सत्ता में है वह हिन्दुत्व सोच वाली है, वह तमाम सरकारी संस्थानों को अपने रंग में रंगे जा रही है।मेले में एक चीज़ और भी नोट करने योग्य है। मेले में ‘नक्षत्र 2020’ के नाम तले एक पूरा हाल बना हुआ है जिसमें हाथ देखकर भविष्यवाणी बताने वाले पंडे बैठे हैं, ग्रहों-नक्षत्रों के नाम पर नग, अंगूठियां बेची जा रही हैं और लोगों का वहां जमावड़ा भी देखने को मिलता है। एन.बी.टी. के अधिकारियों के गले में लटके पहचान पत्रों का रंग भी भगवा हो चुका है। 

मेले में कट्टरपंथियों द्वारा दूसरे प्रकाशकों को धमकी दिए जाने के मामले भी सामने आने लगे हैं लेकिन मेले के प्रबंधक ऐसी किसी बात को झुठला रहे हैं। एक प्रगतिशील प्रकाशन के कार्यकत्ता सनी का कहना है, “पिछले साल और इस बार भी भगवा सोच वाले लोग हमारे साथ फालतू की बहसबाजी और लड़ने के लिए तैयार रहते हैं। वे कहते हैं कि हमारी किताबें उन्हें ठेस पहुंचाती हैं इसलिए इन्हें यहां से उठा दो। वे हमारे ऊपर भगतसिंह की छवि खराब करने का भी दोष लगाते हैं। उन्होंने हमें धमकी भी दी थी कि भगतसिंह की रचना ‘मैं नास्तिक क्यों हूं’ को हटा दिया जाए। जब हमने इस बात की शिकायत मेले के प्रबंधकों को की तो उन्होंने बात को अनसुनी कर दिया।“ सनी का कहना है कि साधु-संत हाल में ऊंची आवाज़ में कीर्तन करते रहते हैं लेकिन अगर कोई प्रगतिशील संगठन हॉल  के बाहर भी इंकलाबी गीत गाए तो मेले के प्रबंधक इस पर ऐतराज़ करते हैं। पिछले साल कुछ हिन्दुत्ववादी संगठनों ने एक मुस्लिम स्टॉल की तोड़-फोड़ करने की कोशिश की। इस बार भी ऐसे ही दो धार्मिक बुक स्टॉल के बीच झगड़ा होने से बचा। 

इस बार मेले में महात्मा गांधी को भी भगवा रंग में रंगने की कोशिश की गई। 9 जनवरी को गांधी जी की विचारधारा के ऊपर थीम मंडप में हुए सेमिनार में एक संघी विचारक ने बोलते हुए कहा कि गांधी जी स्वराज से भी ज्यादा अहमियत गौ-रक्षा को देते थे और वे गौरक्षा के लिए संगठन बनाने के पक्ष में थे।
 
नेशनल बुक ट्रस्ट के सीनियर अधिकारी व हिन्दी सेक्शन के मुख्य संपादक पंकज चतुर्वेदी तमाम बातों को झुठलाते हुए कहते हैं कि मेले में हर तरह की सोच वाले प्रकाशकों को जगह दी गई है। उनका कहना है कि निर्माण का कार्य चल रहा है जिसके कारण पहले जितनी खुली जगह नहीं है शायद इस कारण कुछ प्रकाशकों को नाराज़गी हुई होगी। छोटे प्रकाशकों के साथ किसी प्रकार का कोई भेदभाव नहीं किया गया है। 

मेले की डायरेक्टर नीरा जैन से बातचीत इस वजह से दिलचस्प रही कि पहले तो वे मेले पर छाये भगवे रंग की बात को झुठलाती रहीं और कहती रहीं कि तुम मीडिया वाले अपनी तरफ से बाते बना रहे हो। जब मैंने हल्के मूड में उनसे पूछा कि आपने मेले से कौन सी किताब खरीदी है तो मोहतरमा ने कहाः “योगी आदित्यनाथ की जीवनी”!

world book fair
saffronisation of book fair
hindi book stall
world book fair and hindutva

Related Stories

विश्व पुस्तक मेला पर छाए भगवा राजनीति के काले बादल!


बाकी खबरें

  • Modi
    अनिल जैन
    PM की इतनी बेअदबी क्यों कर रहे हैं CM? आख़िर कौन है ज़िम्मेदार?
    01 Jun 2022
    प्रधानमंत्री ने तमाम विपक्षी दलों को अपने, अपनी पार्टी और देश के दुश्मन के तौर पर प्रचारित किया और उन्हें खत्म करने का खुला ऐलान किया है। वे हर जगह डबल इंजन की सरकार का ऐसा प्रचार करते हैं, जैसे…
  • covid
    न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    कोरोना अपडेट: देश में पिछले 24 घंटों में 2,745 नए मामले, 6 लोगों की मौत
    01 Jun 2022
    महाराष्ट्र में एक बार फिर कोरोना के मामलों में तेजी से वृद्धि देखी जा रही है। महाराष्ट्र में आज तीन महीने बाद कोरोना के 700 से ज्यादा 711 नए मामले दर्ज़ किए गए हैं।
  • संदीपन तालुकदार
    चीन अपने स्पेस स्टेशन में तीन अंतरिक्ष यात्रियों को भेजने की योजना बना रहा है
    01 Jun 2022
    अप्रैल 2021 में पहला मिशन भेजे जाने के बाद, यह तीसरा मिशन होगा।
  • अब्दुल अलीम जाफ़री
    यूपी : मेरठ के 186 स्वास्थ्य कर्मचारियों की बिना नोटिस के छंटनी, दी व्यापक विरोध की चेतावनी
    01 Jun 2022
    प्रदर्शन कर रहे स्वास्थ्य कर्मचारियों ने बिना नोटिस के उन्हें निकाले जाने पर सरकार की निंदा की है।
  • EU
    पीपल्स डिस्पैच
    रूसी तेल आयात पर प्रतिबंध लगाने के समझौते पर पहुंचा यूरोपीय संघ
    01 Jun 2022
    ये प्रतिबंध जल्द ही उस दो-तिहाई रूसी कच्चे तेल के आयात को प्रभावित करेंगे, जो समुद्र के रास्ते ले जाये जाते हैं। हंगरी के विरोध के बाद, जो बाक़ी बचे एक तिहाई भाग ड्रुज़बा पाइपलाइन से आपूर्ति की जाती…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License