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भारत
राजनीति
वृंदा ने जावड़ेकर को लिखा पत्र, सरकार पर आदिवासियों के अधिकार कुचलने का आरोप
माकपा नेता वृंदा करात ने कहा, ‘‘आपने कानून में प्रस्तावित अत्यंत दमनकारी कदमों को कमतर करके देखने की कोशिश की है और खासकर जनजातीय समुदायों के अधिकारों को कुचले जाने को पूरी तरह नजरअंदाज किया।’’
न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
10 Jul 2019
माकपा नेता वृंदा करात
Image Courtesy: sabrangindia

भारत की कम्युनिस्ट पार्टी-मार्क्सवादी (माकपा) की पोलित ब्यूरो सदस्य वृंदा करात ने केंद्रीय पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर को पत्र लिखकर केंद्र पर भारतीय वन कानून, 1927 के संशोधनों में प्रस्तावित ‘‘दमनकारी’’ कदमों को कमतर करके दिखाने का आरोप लगाया है।

वृंदा ने कहा कि भारतीय वन कानून, 1927 के जरिये ब्रितानी उपनिवेशवादियों ने जंगलों पर सरकारी स्वामित्व स्थापित किया और जनजातीय समुदायों को कब्जा करने वाले करार दिया और इस तरह इसने जनजातीय समुदायों के खिलाफ ऐतिहासिक अन्यायों को कानूनी मंजूरी दे दी।

वृंदा ने कहा, ‘‘आपने कानून में प्रस्तावित अत्यंत दमनकारी कदमों को कमतर करके देखने की कोशिश की है और खासकर जनजातीय समुदायों के अधिकारों को कुचले जाने को पूरी तरह नजरअंदाज किया।’’

इसे भी पढ़ें : भारतीय वन अधिनियम-2019 नाइंसाफ़ी का नया दस्तावेज़!

उन्होंने कहा कि ये संशोधन जनजातीय जीवन के हर पक्ष का अपराधीकरण करते हैं और वन नौकरशाहों को कानून लागू के लिए बिना वारंट के गिरफ्तार करने और हथियारों का इस्तेमाल करने की ‘‘अनियंत्रित शक्तियां’’ देते हैं।

करात ने प्रस्तावित संशोधन के बारे में कहा कि सेना प्रमुख को प्रस्तावित राष्ट्रीय वानिकी बोर्ड के सदस्य के तौर पर शामिल किए जाने का यह अर्थ हुआ कि सेना प्रमुख के पास अब सीमाओं नहीं, वनों की ‘‘रक्षा’’ पर चर्चा करने का समय होगा।

इसे भी पढ़ें : वन अधिकार अधिनियम बनाम भारतीय वन अधिनियम : संरक्षण या संरक्षणवाद

आपको बता दें केंद्र सरकार ने भारतीय वन अधिनियम-1927 में संशोधन का मसौदा तैयार कर मार्च महीने में सभी राज्यों को विचार के लिए भेजा था और जून तक इस पर राय मांगी थी। आमतौर पर जानकारों को मानना है कि नया कानून यदि लागू होता है तो वो लोगों के जंगल पर अधिकार को खत्म करने की दिशा में कार्य करेगा और जंगल पर लोगों की निर्भरता को अपराध में बदलने का कार्य करेगा।

(भाषा के इनपुट के साथ)

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Forest Rights Act
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CPI(M)
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