NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
वसुंधरा राजे ने कहा 'मीडिया राजस्थान को बदनाम करने की कोशिश कर रही है’, लेकिन वास्तविकता कुछ और ही बयां करती हैं
राजे के बयान से इतर दिसंबर 2013 में भारी बहुमत के साथ बीजेपी के सत्ता में आने के बाद कई बेजा कारणों से राजस्थान सुर्खियों में बनी रही।
ऋतांश आज़ाद
14 Dec 2017
Vasundhara Raje

राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने एक अंग्रेजी दैनिक को साक्षात्कार देते हुए कहा था कि दिल्ली में बैठी मीडिया राजस्थान को बुरा बताने में लगी है और ऐसा इसलिए किया जा रहा है क्योंकि राजस्थान का चुनाव नज़दीक आ रहा है। लेकिन राजे के बयान से इतर दिसंबर 2013 में भारी बहुमत के साथ बीजेपी के सत्ता में आने के बाद कई बेजा कारणों से राजस्थान सुर्खियों में बनी रही। "गौरक्षा" और "लव जिहाद" के नाम पर नृशंस हत्याओं तथा शिक्षा के भगवाकरण के हालिया विवाद के अलावा राजस्थान सरकार राज्य में निरर्थक नीतियों को लागू करने के लिए भी सुर्ख़ियों में रही है।

जब से राजे सरकार ने सत्ता हासिल किया है तब से सरकारी स्कूलों पर गाज गिरने लगा। स्थानीय रिपोर्टों के अनुसार सरकार ने पूरे राज्य में कम से कम 36000 स्कूलों को बंद करने की कोशिश की लेकिन लोगों के भारी प्रतिरोध के चलते लगभग 17000 स्कूलों पर ही गाज गिरी। हाल ही के दिनों में किसी भी राज्य द्वारा सरकारी स्कूलों को बड़ी संख्या में बंद करने का ये मामला सबसे ज़्यादा था। यह 'स्कूल प्रणाली के केंद्रीकरण' के नाम पर किया गया था जिसका मतलब है प्राथमिक तथा माध्यमिक स्तर के स्कूलों को विलय करना। इसके परिणामस्वरूप स्कूली बच्चों के समग्र नामांकन में नकारात्मक वृद्धि हुई। 2012 -13 आँकड़ों के अनुसार क़रीब 1.33 करोड़ छात्रों ने स्कूलों में दाख़िला लिया जबकि 2013-14 के दौरान छात्रों की संख्या 1.32 करोड़ के आसपास पहुंच गई। इस कदम से सीधे तौर पर वर्ष 2013-14 में सरकारी स्कूलों में दाख़िला लेने वाले छात्रों की संख्या में कमी आई है, जो 2012-13 में 72 लाख से घटकर 2013–14 में 68 लाख हो गया। शिक्षा के क्षेत्र में काम करने वाले कार्यकर्ताओं का कहना है कि यह निजी मुनाफे में वृद्धि में मदद करने और 'कल्याणकारी राज्य' के विचार को पीछे करने के लिए किया गया था।

जो छात्र ग़रीब पृष्ठभूमि से आते हैं, विशेषकर अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों से, उनके पास दूर दराज़ स्कूल जाने या निजी शिक्षा के लिए खर्च उठाने के पर्याप्त संसाधन नहीं होते हैं। इस कदम के बाद बच्चों के स्कूल छोड़ने के उच्च दर होने का यह मुख्य कारण था। स्कूलों के विलय के बाद जयपुर में दाख़िला लिए 3,417 विद्यार्थियों में से 917 छात्रों ने स्कूलों में जाना बंद कर दिया।

इसके अलावा राजस्थान सरकार ने श्रम कानूनों में भी चिंताजनक संशोधन किया। औद्योगिक विवाद अधिनियम, कारखाना अधिनियम, अनुबंध श्रम अधिनियम में संशोधन से राजस्थान में मजदूर वर्ग के लोगों के जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ा।

औद्योगिक विवाद अधिनियम में किए गए संशोधनों का उद्देश्य नियोक्ता को मजदूरों को छंटनी करने के लिए सशक्त बनाना था। सरकार की अनुमति के बिना श्रमिकों की छंटनी और किसी उद्योग के समाप्ति की उच्चतम सीम 100 से बढ़कर 300 श्रमिक हो गई थी। इससे उद्योगों के कृत्रिम बंदी और कार्य बल को बाहर करने में मदद मिली। इसके अलावा कारखाने या कार्यस्थल में एक संघ बनाने की सीमा श्रमिकों के 15% से बढ़ाकर 30% कर दी गई थी। इसका मतलब यह है कि अब एक ट्रेड यूनियन को कारखाने में कम से कम 30% सदस्यता की आवश्यकता है, इससे कम होने पर कर्मचारी एकजुट नहीं हो सकते हैं। यह एक कठोर संशोधन है जो कि विपरीत श्रमिक वातावरण में उनके अधिकारों की पूरज़ोर माँग के लिए श्रमिक संघ श्रमिकों के लिए एकमात्र आशा थी। वास्तव में, मौजूदा प्रावधान पहले से ही दोषपूर्ण थे क्योंकि उन पेपर ट्रेड यूनियनों को लाभ पहुंचाया था जिनके बेहतर रिकॉर्ड थे।

फैक्ट्री अधिनियम में संशोधनों ने फैक्ट्रियों में मुलाज़मत की सीमा बढ़ा दी है। अधिनियम के तहत कवर किए जाने के उद्देश्य के लिए शक्ति के बिना कार्य करने वाले कारखानों के लिए यह 20 से बढ़कर 40 तक जबकि शक्ति से चल रहे कारख़ानों के लिए ये 10 से बढ़कर 20 तक हो गया है। इसका अर्थ यह है कि फैक्ट्री अधिनियम तथा अनुबंध श्रम कानून के तहत मज़दूरों को दी जाने वाली सभी सुविधाएं निरर्थक हो गई हैं। इसके अलावा इन संशोधनों ने अनुबंध श्रमिकों को दिए गए सभी अधिकारों को निरस्त कर दिया है। इस साल सितंबर में राजस्थान सरकार ने एक अध्यादेश पारित किया था जो भ्रष्ट सरकारी अधिकारियों को कानूनी दण्ड से मुक्ति दिला दिया है।। इस विधेयक ने सरकारी अनुमति के बिना किसी भी सरकारी अधिकारी के ख़िलाफ केस दर्ज करने या भ्रष्टाचार के आरोपों की रिपोर्ट करने को बहुत मुश्किल बना दिया। अदालत में चुनौती के बाद राजस्थान उच्च न्यायालय ने राज्य और केंद्र सरकार को विधेयक पर नोटिस भेजा था।

पिछले कुछ सालों में राजस्थान में सांप्रदायिक तनाव बढ़ी है जो सभी को अच्छी तरह मालूम है। राजस्थान में काम कर रहे एक्टिविस्टों का दावा है कि इस सांप्रदायिक उन्माद को सरकार और दक्षिणपंथी संगठनों द्वारा उत्पन्न किया जा रहा है जो इसके साथ जुड़े हुए हैं । इस वर्ष अप्रैल से 7 दिसंबर तक राज्य में गोरक्षकों तथा हिंदुत्ववादी कट्टरपंथियों द्वारा 5 लोगों की हत्या कर दी गई। सबसे पहले अप्रैल महीने में पहलू खान की हत्या की गई जिनके मामले में मुख्य 7 अभियुक्तों को जमानत पर रिहा कर दिया गया साथ ही आरोप है कि सरकार उन्हें मदद कर रही है और मामले को जान-बूझकर कमज़ोर बना रही है। उसके बाद ज़फर खान, उमैर खान और 6 दिसंबर को मोहम्मद अफ़़राज़ुल जो एक मुस्लिम मजदूर थे। अफ़राजुल को "लव जिहाद" के नाम पर बुरी तरह मार दिया गया। हाल ही में 7 दिसंबर को हरियाणा के मूह में तालीम हुसैन नाम के शख़्स को गोतस्करी के नाम पर मार दिया गया। यहां यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि राजस्थान देश का एकमात्र ऐसा राज्य है जहां गाय कल्याण मंत्रालय भी है।

Vasundhara Raje
Rajesthan
BJP
love jihad

Related Stories

भाजपा के इस्लामोफ़ोबिया ने भारत को कहां पहुंचा दिया?

कश्मीर में हिंसा का दौर: कुछ ज़रूरी सवाल

सम्राट पृथ्वीराज: संघ द्वारा इतिहास के साथ खिलवाड़ की एक और कोशिश

हैदराबाद : मर्सिडीज़ गैंगरेप को क्या राजनीतिक कारणों से दबाया जा रहा है?

ग्राउंड रिपोर्टः पीएम मोदी का ‘क्योटो’, जहां कब्रिस्तान में सिसक रहीं कई फटेहाल ज़िंदगियां

धारा 370 को हटाना : केंद्र की रणनीति हर बार उल्टी पड़ती रहती है

मोहन भागवत का बयान, कश्मीर में जारी हमले और आर्यन खान को क्लीनचिट

मंडल राजनीति का तीसरा अवतार जाति आधारित गणना, कमंडल की राजनीति पर लग सकती है लगाम 

बॉलीवुड को हथियार की तरह इस्तेमाल कर रही है बीजेपी !

गुजरात: भाजपा के हुए हार्दिक पटेल… पाटीदार किसके होंगे?


बाकी खबरें

  • विकास भदौरिया
    एक्सप्लेनर: क्या है संविधान का अनुच्छेद 142, उसके दायरे और सीमाएं, जिसके तहत पेरारिवलन रिहा हुआ
    20 May 2022
    “प्राकृतिक न्याय सभी कानून से ऊपर है, और सर्वोच्च न्यायालय भी कानून से ऊपर रहना चाहिये ताकि उसे कोई भी आदेश पारित करने का पूरा अधिकार हो जिसे वह न्यायसंगत मानता है।”
  • रवि शंकर दुबे
    27 महीने बाद जेल से बाहर आए आज़म खान अब किसके साथ?
    20 May 2022
    सपा के वरिष्ठ नेता आज़म खान अंतरिम ज़मानत मिलने पर जेल से रिहा हो गए हैं। अब देखना होगा कि उनकी राजनीतिक पारी किस ओर बढ़ती है।
  • डी डब्ल्यू स्टाफ़
    क्या श्रीलंका जैसे आर्थिक संकट की तरफ़ बढ़ रहा है बांग्लादेश?
    20 May 2022
    श्रीलंका की तरह बांग्लादेश ने भी बेहद ख़र्चीली योजनाओं को पूरा करने के लिए बड़े स्तर पर विदेशी क़र्ज़ लिए हैं, जिनसे मुनाफ़ा ना के बराबर है। विशेषज्ञों का कहना है कि श्रीलंका में जारी आर्थिक उथल-पुथल…
  • आज का कार्टून
    कार्टून क्लिक: पर उपदेस कुसल बहुतेरे...
    20 May 2022
    आज देश के सामने सबसे बड़ी समस्याएं महंगाई और बेरोज़गारी है। और सत्तारूढ़ दल भाजपा और उसके पितृ संगठन आरएसएस पर सबसे ज़्यादा गैर ज़रूरी और सांप्रदायिक मुद्दों को हवा देने का आरोप है, लेकिन…
  • राज वाल्मीकि
    मुद्दा: आख़िर कब तक मरते रहेंगे सीवरों में हम सफ़ाई कर्मचारी?
    20 May 2022
    अभी 11 से 17 मई 2022 तक का सफ़ाई कर्मचारी आंदोलन का “हमें मारना बंद करो” #StopKillingUs का दिल्ली कैंपेन संपन्न हुआ। अब ये कैंपेन 18 मई से उत्तराखंड में शुरू हो गया है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License