NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
कृषि
भारत
राजनीति
कृषि क़ानूनों और उनसे पड़ने वाले प्रभावों के बारे में ढांड अनाज मंडी हमें क्या बताती है 
‘क्या होगा जब वर्तमान में स्थापित एक दो लाख मीट्रिक टन की क्षमता वाले विशालकाय साइलोज की तरह ही राज्य भर के विभिन्न स्थानों पर अचानक से नजर आने लगेंगे?’
रवि कौशल
24 Apr 2021
कृषि क़ानूनों और उनसे पड़ने वाले प्रभावों के बारे में ढांड अनाज मंडी हमें क्या बताती है 
फोटो साभार: डाउन टू अर्थ 

खण्डहर। यह पहला शब्द है जो हर उस शख्स के मन में कौंधेगा, जो कोई भी ढांड अनाज मंडी की तस्वीरों पर नजर दौड़ायेगा, जो हरियाणा के कैथल जिले के एक प्रमुख एपीएमसी (कृषि उपज बाजार समिति) बाजार में से एक है। यह बाजार परिसर 40 एकड़ में फैला हुआ है, जिसमें भारी संख्या में किसान फसल कटाई के मौसम में अपनी-अपनी उपज को बेचने के लिए आया करते थे। हालाँकि इस सीजन में कुछ ऐसा नजारा देखने को मिल रहा है, जिसकी किसी भी कमीशन एजेंट, श्रमिक या किसान ने उम्मीद नहीं की थी।

नियमों में बदलाव ने उन सभी को किंकर्तव्यविमूढ़ की स्थिति में ला खड़ा कर दिया है, क्योंकि राज्य की एजेंसियों के द्वारा कैथल में किसानों को एक प्रमुख गुजराती कृषि कंपनी के साइलो के बाहर लाइन में लगकर अपनी उपज को डंप करने के लिए कहा जा रहा है। किसानों और आढ़तियों (बिचोलियों या सेवा प्रदाताओं) का आरोप है कि नई प्रक्रिया न सिर्फ अत्यंत कठोर है, बल्कि इसने उन श्रमिकों को भी विस्थापित करने का काम किया है, जो बिहार और उत्तरप्रदेश से यहाँ पर भारी संख्या में काम की तलाश के लिए प्रवासन करते रहे हैं।

मोनू कुमार जो कि एक साइलो में जा चुके हैं, ने फोन पर न्यूज़क्लिक को बताया कि इसके अधिकारियों ने उनकी फसल को एक झटके में ही ख़ारिज कर दिया, इसके बावजूद कि यह भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) के द्वारा निर्धारित किये हुए मानकों को पूरा करता है। खरीद से इंकार के पीछे का उनका तर्क यह था कि उनका अनाज काफी काला था। वे पूछते हैं, इसमें मेरी क्या गलती है अगर हमारे इलाके में गरज के साथ बारिश आई थी?

कुमार ने बताया कि उनके जैसे हजारों किसानों को अपनी उपज को बेचने के लिए साइलो के बाहर अपने ट्रैक्टरों के साथ 16 से लेकर 20 घंटे तक लाइन में खड़े रहना पड़ रहा है। उनका कहना था “मेरे पास दिन भर के लिए किराए पर ट्रैक्टर लेने के सिवाय कोई चारा नहीं बचा था। डीजल की खपत के आधार पर मुझे इसकी लागत 4,000 रूपये से लेकर 5,500 रूपये के बीच बैठेगी। पहले यह लागत मात्र 500 रूपये की ही बैठती थी। हम अपनी उपज को बाजार में अनलोड कर दिया करते थे। लेकिन वर्तमान प्रक्रिया में तो सार्वजनिक सुविधाओं तक का कोई विकल्प नहीं रखा गया है। मंडियों में टिन शेड्स बने हुए थे, जिसके नीचे कोई भी आसानी से आराम करने के साथ-साथ बेमौसम बारिश से अपनी उपज को बचा सकने में समर्थ था।”

न्यूज़क्लिक से बातचीत करने वाले आढ़तियों का कहना था कि सिर्फ कमीशन एजेंट के सामने ही अपने अस्तित्व का संकट नहीं है, बल्कि स्थानीय मंडी अर्थव्यवस्था को भी पूरी तरह से ध्वस्त कर दिया गया है। अपनी उपज की कटाई के बाद किसान इसे एपीएमसी मंडी में ले जाते थे, जहाँ पर स्थानीय आढ़तिया माल की अनलोडिंग और सफाई के लिए मजदूर मुहैय्या करा दिया करता था। इसके बाद वह खाद्य आपूर्ति विभाग द्वारा नियुक्त एजेंसी को उपज बेचने की व्यवस्था कराता था। बड़ी मंडियों में यदि दो एजेंसियों को बिक्री की प्रक्रिया में शामिल किया जाता था, तो प्रत्येक निकाय को वैकल्पिक दिनों पर उपज की खरीद का काम सौंपा जाता था। आमतौर पर जब तक बिक्री की प्रक्रिया समाप्त नहीं हो जाती थी, किसान मंडी में ही बना रहता था। 

एक कमीशन एजेंट विनोद कुमार ने बताया कि सीजन के दौरान वे श्रमिकों को रोजगार पर रखते थे। बड़े साइलोज में जहाँ सभी कुछ स्वचालित प्रक्रिया के तहत काम हो रहा है - जिसमें बड़ी-बड़ी कॉर्पोरेट कंपनियों का स्वामित्व है, उन्होंने इस दफा श्रमिकों को काम पर तैनात नहीं किया है। “सबसे पहली बात तो यह है कि, इस बार खाद्य आपूर्ति विभाग और हैफेड ने बोरे भरने की सुविधा नहीं मुहैय्या कराई। इसलिए हमारे पास किसानों को सीधे साइलोज में भेजने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा था। दूसरा, हम आमतौर पर एक अकाउंटेंट या मुनीम को नौकरी पर रखते थे, जो हमारे द्वारा नौकरी पर नियुक्त श्रमिकों के काम का ब्यौरा रखा करता था। अब जब मजदूर ही नहीं रहे, तो अब भला कोई मुनीम को रोजगार पर क्यों रखे? कुमार ने विस्तार से बताया कि किस प्रकार से मंडी की स्थानीय अर्थव्यवस्था, जो रेहड़ी-पटरी विक्रेताओं और स्थानीय रेस्तराओं को रोजगार मुहैय्या कराने का काम करती थी, वह व्यवस्था भी धराशायी हो चुकी है।

एक कामगार, कुलदीप सिंह, जो अभी तक एक पल्लेदार या अनलोडर के तौर पर काम कर रहे थे, ने बताया कि इस प्रकिया ने श्रमिकों का कम से कम पांच महीनों का रोजगार छीनने का काम किया है। उनका कहना था “अभी में पेहोवा मंडी में काम कर रहा हूँ, क्योंकि यहाँ पर बारदाना (बोरा) आसानी से उपलब्ध है। हालाँकि यह मंडी मेरे घर से 12 किलोमीटर की दूरी पर है। ढांड मंडी में काम करने वाले हजारों श्रमिक आज बेरोजगार हो चुके हैं। सीजन के दौरान मंडी में काम करने के बाद हम साल के चार महीने रेलवे स्टेशनों पर बोरियों से भरे हुए उपज को लोड करने का काम किया करते थे। अब यह काम भी हमारे हाथ से छिन गया है, क्योंकि साइलोज के पास अपनी स्वचालित मशीने हैं, जो कुछ ही मिनटों में सैकड़ों मीट्रिक टन वजन का माल सीधे ट्रेन की बोगियों में आसानी से अनलोड कर सकती हैं।” 

अखिल भारतीय कृषक कामगार संघ, हरियाणा के उपाध्यक्ष, प्रेम चंद का कहना था कि खाद्य एवं आपूर्ति विभाग द्वारा इस बार एपीएमसी मंडियों को अनाज भरने के लिए बोरे उपलब्ध नहीं कराने के फैसले को अपवाद के तौर पर नहीं देखा जाना चाहिए। चंद किसानों और श्रमिकों के एक समूह के हिस्से के तौर पर उन्होंने इस नई स्थिति का जायजा लेने के लिए मंडी का दौरा किया था। उन्होंने आरोप लगाया कि यह नए कृषि कानूनों का ही एक विस्तार मात्र है, जिसने मंडियों को अपना “प्रमुख निशाना” बना रखा है।”

 “क्या होगा जब वर्तमान में स्थापित एक दो लाख मीट्रिक टन की क्षमता वाले विशालकाय साइलोज की तरह ही सारे राज्य के विभिन्न स्थानों पर अचानक से नजर आने लगेंगे? राज्य में पहले से ही आठ स्थानों पर साइलोज के निर्माण के खिलाफ विरोध प्रदर्शन चल रहे हैं, जिनमें पानीपत और पलवल में विरोध प्रमुखता से जारी है।

उनका कहना था कि “एक बार यदि मंडियां समाप्त हो गईं तो किसानों के पास अपनी उपज को बेचने के लिए खुले बाजार में जाने के सिवाय कोई विकल्प नहीं बचेगा। अभी तक एफसीआई सिर्फ गेंहूँ और चावल की उपज को ही न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर खरीद कर रहा है। हमें इस बीच एफसीआई के निजीकरण किये जाने के बारे में भी शोर सुनने को मिल रहा है। इसके अलावा किसान अपनी दूसरी फसलों को भी बेचने के लिए मंडियों में आया करते थे। अगर मंडी ही न रही तो समूचा खाद्य बाजार ही बड़े व्यापारियों के चंगुल में चले जाने वाला है। मार्किट बोर्ड से प्राप्त होने वाले कर राजस्व के बल पर हमारे ग्रामीण बुनियादी ढांचे और संपर्क मार्गों का निर्माण कार्य किया जाता था। इस पूरी व्यवस्था को वर्षों के कठिन श्रम के बल पर खड़ा किया जा सका था। यह सब जल्द ही ध्वस्त हो जाने वाला है, और सबसे दुःखद पहलू यह है कि हमारी सरकारें इस लूट में एक पक्ष के तौर पर शामिल हैं।”

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें

What the Dhand Anaj Mandi Tells us about Farm Laws and their Implications

Farm Laws
Farmers Protests
APMC Mandis
Agriculture Silos
Agriculture
Haryana
FCI
MSP
apmc

Related Stories

किसानों और सत्ता-प्रतिष्ठान के बीच जंग जारी है

अगर फ़्लाइट, कैब और ट्रेन का किराया डायनामिक हो सकता है, तो फिर खेती की एमएसपी डायनामिक क्यों नहीं हो सकती?

युद्ध, खाद्यान्न और औपनिवेशीकरण

बिहार : गेहूं की धीमी सरकारी ख़रीद से किसान परेशान, कम क़ीमत में बिचौलियों को बेचने पर मजबूर

किसान-आंदोलन के पुनर्जीवन की तैयारियां तेज़

MSP पर लड़ने के सिवा किसानों के पास रास्ता ही क्या है?

किसान आंदोलन: मुस्तैदी से करनी होगी अपनी 'जीत' की रक्षा

सावधान: यूं ही नहीं जारी की है अनिल घनवट ने 'कृषि सुधार' के लिए 'सुप्रीम कमेटी' की रिपोर्ट 

ग़ौरतलब: किसानों को आंदोलन और परिवर्तनकामी राजनीति दोनों को ही साधना होगा

राजस्थान: अलग कृषि बजट किसानों के संघर्ष की जीत है या फिर चुनावी हथियार?


बाकी खबरें

  • itihas ke panne
    न्यूज़क्लिक टीम
    मलियाना नरसंहार के 35 साल, क्या मिल पाया पीड़ितों को इंसाफ?
    22 May 2022
    न्यूज़क्लिक की इस ख़ास पेशकश में वरिष्ठ पत्रकार नीलांजन मुखोपाध्याय ने पत्रकार और मेरठ दंगो को करीब से देख चुके कुर्बान अली से बात की | 35 साल पहले उत्तर प्रदेश में मेरठ के पास हुए बर्बर मलियाना-…
  • Modi
    अनिल जैन
    ख़बरों के आगे-पीछे: मोदी और शी जिनपिंग के “निज़ी” रिश्तों से लेकर विदेशी कंपनियों के भारत छोड़ने तक
    22 May 2022
    हर बार की तरह इस हफ़्ते भी, इस सप्ताह की ज़रूरी ख़बरों को लेकर आए हैं लेखक अनिल जैन..
  • न्यूज़क्लिक डेस्क
    इतवार की कविता : 'कल शब मौसम की पहली बारिश थी...'
    22 May 2022
    बदलते मौसम को उर्दू शायरी में कई तरीक़ों से ढाला गया है, ये मौसम कभी दोस्त है तो कभी दुश्मन। बदलते मौसम के बीच पढ़िये परवीन शाकिर की एक नज़्म और इदरीस बाबर की एक ग़ज़ल।
  • diwakar
    अनिल अंशुमन
    बिहार : जन संघर्षों से जुड़े कलाकार राकेश दिवाकर की आकस्मिक मौत से सांस्कृतिक धारा को बड़ा झटका
    22 May 2022
    बिहार के चर्चित क्रन्तिकारी किसान आन्दोलन की धरती कही जानेवाली भोजपुर की धरती से जुड़े आरा के युवा जन संस्कृतिकर्मी व आला दर्जे के प्रयोगधर्मी चित्रकार राकेश कुमार दिवाकर को एक जीवंत मिसाल माना जा…
  • उपेंद्र स्वामी
    ऑस्ट्रेलिया: नौ साल बाद लिबरल पार्टी सत्ता से बेदख़ल, लेबर नेता अल्बानीज होंगे नए प्रधानमंत्री
    22 May 2022
    ऑस्ट्रेलिया में नतीजों के गहरे निहितार्थ हैं। यह भी कि क्या अब पर्यावरण व जलवायु परिवर्तन बन गए हैं चुनावी मुद्दे!
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License