NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
अयोध्या के साझे इतिहास के क्या मायने हैं?
राम मंदिर के नाम पर भड़की हिंसा के लिए माफ़ीनामे से कुछ भी कम अतिवादियों को ही प्रोत्साहित करेगा।
वलय सिंह
08 Aug 2020
अयोध्या
फ़ोटो, साभार: डॉन

आरएसएस सुप्रीमो, और बाबरी मस्जिद के विध्वंस के आरोपियों की मौजूदगी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंदिर की पहली ईंट उसी स्थान पर रखी है,जहां 6 दिसंबर,1992 तक बाबरी मस्जिद खड़ी थी। उन्होंने ऐसा उस समय किया है, जब महामारी ख़त्म नहीं हो पा रही है, देश का समृद्ध सामाजिक ताना-बाना बिखरने की स्थिति में है, देश की सीमाओं पर ख़तरा है और अर्थव्यवस्था आईसीयू में है।

अयोध्या में बाबरी मस्जिद के विध्वंस के बाद हुए दंगों ने राम मंदिर आंदोलन को विध्वंसक चरमोत्कर्ष पर पहुंचा दिया। तब से ठहरव के हवाले रहे मंदिर निर्माण में मोदी के पहले कार्यकाल में एक बार फिर रफ़्तार पकड़ी और 2019 में उनकी सत्ता में फिर से ज़बरदस्त वापसी के बाद तो मंदिर निर्माण बहुत हद तक तय ही हो गया। भगवा पार्टी और उसके मूल संगठन, आरएसएस के लिए प्रतीकवाद एक शक्तिशाली हथियार रहा है। 5 अगस्त वही तारीख़ है,जो पिछले साल जम्मू और कश्मीर के विशेष दर्जे को हटाने की तारीख़ थी, इस तारीख़ को चुना ही इसलिए गया, ताकि वैचारिक शुद्धता और मक़सद का एक साफ़ संदेश दिया जा सके। इस हिंदुत्ववाद से प्रेरित राष्ट्रवादी उत्साह के सामने विपक्ष एकदम से फ़ीका पड़ गया।

मुख्य नारे और डर पैदा करने वाले "जय श्री राम" के नारे के बजाय अयोध्या के अपने भाषण में प्रधानमंत्री की तरफ़ से "जय सिया राम" के नारे का चुना जाना भी बहुत कुछ संकेत देता है। क्या इसका मतलब यह है कि मोदी चाहते हैं कि उनके अनुयायी अपनी आक्रामकता को छोड़ दें? शायद ऐसा हो। लेकिन, इस बात की संभावना ज़्यादा है कि इस मौक़े पर दुनिया की नज़र होने के साथ-साथ अपनी मज़बूत स्थिति को देखते हुए मोदी ने सिर्फ़ कुछ समय के लिए ग़ैर-हिंदुओं, ख़ासकर मुसलमानों के लिए आतंक पैदा करने वाले इस आक्रामक नारे से ख़ुद को दूर कर लिया हो; हालांकि शांतिप्रिय ज़्यादातर हिंदू भी इस नारे से परेशान 0ही रहते रहे हैं।

हालांकि, न तो इस नये नारे के हमेशा लगने और न ही “राष्ट्र के दुश्मनों” पर आक्रामक हिंदुत्व से दूर होने की कोई संभावना है, क्योंकि प्रधानमंत्री ने अयोध्या में इस तरह की कोई बात नहीं कही है। उनका भाषण पूरा होने के कुछ ही घंटे बाद, हिंदुत्व के कार्यकर्ता राम की पौड़ी इलाक़े में इकट्ठा हुए और गौ-हत्या पर प्रतिबंध लगाने वाले एक राष्ट्रीय कानून की मांग की, जबकि उत्तर प्रदेश में वाराणसी और मथुरा स्थित अन्य "विवादित स्थलों" को लेकर संकेत देते हुए अन्य लोगों ने चेतावनी दी कि यह तो महज़ शुरुआत है।

पिछले एक दशक के दौरान राम मंदिर आंदोलन को लेकर की जा रही लफ़्फ़ाज़ी में सूक्ष्म बदलाव देखे गये हैं। मंदिर समर्थक रणनीतिकारों ने अब बदले को लेकर शोर मचाने और बाबर के हाथों पीडि़त होने की जगह राम के प्रति सभी भारतीयों की श्रद्धा और सम्मान जैसे नरम तर्क देने शुरू कर दिये हैं। इसका सुबूत अक्सर उद्धृत किये जानी वाली अल्लामा इकबाल की कविता का वह शेर है,जिसमें उन्होंने राम को "इमाम-ए-हिंद" या भारत का आध्यात्मिक नेता कहा है।

प्रधानमंत्री का का भाषण तब आकर्षक लगा, जब उन्होंने रामायण परंपरा की बहुलता और राम के प्रीतिकर गुणों का वर्णन किया। लेकिन, दशरथ जातक की चूक, या विभिन्न जैन प्रसंग, जो कि वाल्मीकि रामायण की आलोचना करते हैं, रामायण परंपरा की एक चुनिंदा समझ को ही दर्शाते हैं। इसके अलावा, इक़बाल के "इमाम-ए-हिंद" के संदर्भ की ग़ैर-मौजूदगी इस बात की पुष्टि करती है कि मोदी किसी भी क़ीमत पर ख़ुद को तुष्टीकरण करने वाली कांग्रेस की तरह नहीं दिखना चाहेंगे।

हालांकि प्रधानमंत्री ने दिलचस्प तौर पर अपने सरकार का आदर्श वाक्य-सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास को ज़रूर बनाया है, लेकिन वह 18वीं और 19वीं शताब्दी में अयोध्या को हिंदू तीर्थस्थल बनाने वाले मुस्लिम शासकों के योगदान को स्वीकार करने में नाकाम रहे। अयोध्या के ज़्यादातर मंदिरों की तरह, हनुमानगढ़ी मंदिर भी अवध नवाब की तरफ़ से दान की गयी ज़मीन पर ही बनाया गया है। सांप्रदायिकता के साथ-साथ आधुनिक भारत के सबसे विनाशकारी प्रयासों वाले इस ग्राउंड ज़ीरो से बोलते हुए अगर प्रधानमंत्री ने इसका ख़ास ज़िक़्र किया होता, तो भारत के अल्पसंख्यकों में भरोसा पैदा हुआ होता। उस शख़्स के लिए यह व्यापकता किसी आश्चर्य से कम नहीं है, जिसे वैश्विक स्तर पर एक ख़ास तरह के रुझान वाली पहचान रही हो। शायद प्रधानमंत्री इस हक़ीक़त से रू-ब-रू नहीं हैं कि इस तरह का पाखंड भारत के लोकतांत्रिक और प्रगतिशील वर्गों के बीच एक विनाशकारी हिंदुत्व के बहुलतावाद का भय पैदा करता है।

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ सहित इस ख़ास समारोह में शामिल लोगों ने रामायण से प्रधानमंत्री द्वारा उद्धृत की गयी एक चौपाई या कविता की सराहना की, जिसमें कहा गया है-"भय बिनु होइ न प्रीति"। इसका मतलब है, "बिना किसी डर के प्रीति नहीं होती।" रामायण में इस विशेषे दोहे का अपना एक संदर्भ है। तीन दिनों तक समुद्र देव से लगातार याचना करने के बाद भी जब राम रास्ता पाने में नाकाम रहे, तब राम को हथियार उठाने के लिए मजबूर होना पड़ा, ताकि उनकी सेना समुद्र पार करके लंका जा सके। मोदी ने इस बात पर ज़ोर दिया कि राम की “राष्ट्र प्रेम के लिए भय” की नीति राष्ट्र को मज़बूत बनाने और इस प्रकार,शांति स्थापित करने के लिए ज़रूरी है। लेकिन, जिस राष्ट्र का यहां संदर्भ दिया जा रहा है, उन्होंने इसका ज़िक़्र इस बात पर ध्यान दिये बिना किया कि यह राष्ट्र, हिंदूराष्ट्र है या एक धर्मनिरपेक्ष भारत है? अगर यह बात भारत के पड़ोसी देशों के संदर्भ में थी, तो यह बहुत ही नामसझी और बेतुकी बात थी। इस बात की ज़्यादा संभावना है कि प्रधानमंत्री का यह संदर्भ उन भारतीयों के लिए रहा हो, जिन्होंने सरकार की बढ़ती कठोरता को देखा है,चाहे वह महामारी से सम्बन्धित लॉकडाउन के दौरान की बरती गयी कठोरता रही हो, सीएए विरोधियों के ख़िलाफ़ कठोर कार्रवाई हो या फिर राजस्थान सरकार को गिराने के लिए जारी बोली सहित असहमति जताने वालों और विरोधियों पर कठोर शिकंजा कसना रहा हो।

अयोध्या के साझे इतिहास के मायने क्या हैं?

अयोध्या और भारत में प्रचलति विभिन्न मतों के बीच मतभेद दूर करके एकता स्थापित करने की परंपरा को खारिज करने के लिए ही राम मंदिर आंदोलन को आधार को मज़बूती दी गयी। ज़्यादातर हिंदी दैनिक समाचार पत्रों ने दशकों के दौरान केवल अयोध्या के उस नक़ली इतिहास को ही आगे बढ़ाया है, जो विश्व हिंदू परिषद जैसे समूहों द्वारा दुष्प्रचारित किया जाता रहा है। मंदिर के लिए इस जश्न के पल में भी ज़्यादातर भारतीय मीडिया संस्थान इसी बात को बताते नज़र आये कि 500 साल पुरानी की गयी ग़लती को सुधारा जा रहा है। हालांकि अयोध्या में बाबरी मस्जिद का विध्वंस राष्ट्रीय शर्म का क्षण था, लेकिन आज भारतीय मीडिया उसे एक गौरवशाली पल बताने में लगा हुआ है। यह पछतावे के बजाय समर्थन, अफ़सोस के बजाय विजयोल्लास, और इस नये अध्याय को बंद करने के अवसर के रूप में देखने के बजाय, भारत के अतीत से मुसलमानों को मिटा दिये जाने का नये सिरे से प्रयास बन गया है।

भारत जैसे विविधता वाले देश के प्रधानमंत्री के तौर पर नरेंद्र मोदी की ज़िम्मेदारी होगी कि वह अयोध्या में सच्चे मेल-मिलाप के एक नये अध्याय की शुरुआत करें, और इसके लिए ज़रूरी होगी कि राम मंदिर के नाम पर भड़की हिंसा के लिए माफ़ी मांगी जाये और साथ ही साथ यह वादा भी किया जाये कि अयोध्या के इतिहास और भविष्य की योजना में हिंदू और मुस्लिम दोनों पर समान ध्यान दिया जाये। इन बातों से कुछ भी कम उनके अनुयायियों के भीतर चरमपंथियों को अल्पसंख्यकों के ख़िलाफ़ सांप्रदायिक हिंसा को जारी रखने के लिए प्रोत्साहित करेगा।

वलय सिंह एक पत्रकार हैं और ‘अयोध्या: सिटी ऑफ़ फेथ, सिटी ऑफ़ डिसकॉर्ड’ के लेखक हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।

इस लेख को मूल अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें।

What Lies in Store for Ayodhya’s Shared History?

Narendra modi
ram temple
ayodhya
Modi Speech
Special Status
Kashmir

Related Stories

तिरछी नज़र: सरकार जी के आठ वर्ष

कटाक्ष: मोदी जी का राज और कश्मीरी पंडित

ग्राउंड रिपोर्टः पीएम मोदी का ‘क्योटो’, जहां कब्रिस्तान में सिसक रहीं कई फटेहाल ज़िंदगियां

धारा 370 को हटाना : केंद्र की रणनीति हर बार उल्टी पड़ती रहती है

भारत के निर्यात प्रतिबंध को लेकर चल रही राजनीति

गैर-लोकतांत्रिक शिक्षानीति का बढ़ता विरोध: कर्नाटक के बुद्धिजीवियों ने रास्ता दिखाया

बॉलीवुड को हथियार की तरह इस्तेमाल कर रही है बीजेपी !

PM की इतनी बेअदबी क्यों कर रहे हैं CM? आख़िर कौन है ज़िम्मेदार?

छात्र संसद: "नई शिक्षा नीति आधुनिक युग में एकलव्य बनाने वाला दस्तावेज़"

भाजपा के लिए सिर्फ़ वोट बैंक है मुसलमान?... संसद भेजने से करती है परहेज़


बाकी खबरें

  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    छत्तीसगढ़ः 60 दिनों से हड़ताल कर रहे 15 हज़ार मनरेगा कर्मी इस्तीफ़ा देने को तैयार
    03 Jun 2022
    मनरेगा महासंघ के बैनर तले क़रीब 15 हज़ार मनरेगा कर्मी पिछले 60 दिनों से हड़ताल कर रहे हैं फिर भी सरकार उनकी मांग को सुन नहीं रही है।
  • ऋचा चिंतन
    वृद्धावस्था पेंशन: राशि में ठहराव की स्थिति एवं लैंगिक आधार पर भेद
    03 Jun 2022
    2007 से केंद्र सरकार की ओर से बुजुर्गों को प्रतिदिन के हिसाब से मात्र 7 रूपये से लेकर 16 रूपये दिए जा रहे हैं।
  • भाषा
    मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने चंपावत उपचुनाव में दर्ज की रिकार्ड जीत
    03 Jun 2022
    चंपावत जिला निर्वाचन कार्यालय से मिली जानकारी के अनुसार, मुख्यमंत्री को 13 चक्रों में हुई मतगणना में कुल 57,268 मत मिले और उनके खिलाफ चुनाव लड़ने वाल़ कांग्रेस समेत सभी प्रत्याशियों की जमानत जब्त हो…
  • अखिलेश अखिल
    मंडल राजनीति का तीसरा अवतार जाति आधारित गणना, कमंडल की राजनीति पर लग सकती है लगाम 
    03 Jun 2022
    बिहार सरकार की ओर से जाति आधारित जनगणना के एलान के बाद अब भाजपा भले बैकफुट पर दिख रही हो, लेकिन नीतीश का ये एलान उसकी कमंडल राजनीति पर लगाम का डर भी दर्शा रही है।
  • लाल बहादुर सिंह
    गैर-लोकतांत्रिक शिक्षानीति का बढ़ता विरोध: कर्नाटक के बुद्धिजीवियों ने रास्ता दिखाया
    03 Jun 2022
    मोदी सरकार पिछले 8 साल से भारतीय राज और समाज में जिन बड़े और ख़तरनाक बदलावों के रास्ते पर चल रही है, उसके आईने में ही NEP-2020 की बड़ी बड़ी घोषणाओं के पीछे छुपे सच को decode किया जाना चाहिए।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License