NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
जब महामारी में ‘बेल’ की जगह ‘जेल’ बन गया नियम
नाज़ुक स्वास्थ्य और उम्रदराज़ विचारधीन क़ैदियों को ज़मानत देने के दिशानिर्देश जारी होने के बावजूद, कोर्ट ने भीमा कोरेगांव के मामले में फंसे कार्यकर्ताओं को ज़मानत देने से इनकार कर दिया है।
नीलिमा दत्ता, सुज़ान अबरहा
04 Jul 2020
Translated by महेश कुमार
भीमा कोरेगांव

महामारी के समय हमारी जेलों में क़ैद विचारधीन क़ैदियों के साथ अच्छा व्यवहार नहीं किया जा रहा है।  गिरता स्वास्थ्य और उम्रदराज़ क़ैदियों को ज़मानत देने के दिशानिर्देश देने के बावजूद, कोर्ट ने भीमा कोरेगांव के मामले में फंसे कार्यकर्ताओं को ज़मानत देने से इनकार कर दिया है। लेखक, यहाँ ज़मानत से इंकार करने वाले न्यायालय के आदेशों में स्पष्ट अंधापन नोट करते हैं, साथ ही वे जेल में क़ैद श्री वरवारा राव और सुश्री शोमा सेन के स्वास्थ्य के प्रति खतरे और कानून के स्थापित सिद्धांतों की अवहेलना पर रोशनी डाल रहे हैं।

____

एक पल के लिए इस बात की कल्पना कीजिए, कि आपको तब कैसा लगेगा जब आपको आपके परिवार से दूर वर्षों तक जेल में रखा जाता है, जहां आपको बोलने की इजाजत, कहीं आने-जाने पर रोक और काम करने के अधिकार पर पाबंदी लगाकर केवल संदेह के घेरे में क़ैद करके रखा जाता है तो आप के दिल पर क्या गुज़रेगी। हम में से अधिकांश के लिए यह एक भयानक खवाब की तरह है, लेकिन प्रमुख मानवाधिकार कार्यकर्ताओं/अधिवक्ताओं (जिनमें वकील, प्रोफ़ेसर, रिसर्च फ़ेलो, एक कवि और एक संपादक शामिल हैं) के लिए एक गंभीर वास्तविकता है, जिनमें से 5 लोगों को 6 जून 2018 को गिरफ्तार किया गया था और 4 लोगों को 28 अगस्त 2018 को हिरासत में लिया था, जिसे अब दुनिया भर में भीमा कोरेगांव (बीके) केस के नाम से जाना जाता है। 14 अप्रैल 2020 को इसी मामले में दो अन्य प्रतिष्ठित मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने गिरफ्तार कर लिया था।

कैसे इस केस को भीमा कोरेगांव नाम मिला

31 दिसंबर, 2017 को भीमा कोरेगांव शौर्य दिवस प्रेरणा अभियान के तहत लगभग 250 संगठनों के गठबंधन ने एल्गार परिषद की बैठक आयोजित की थी। इस बैठक का आयोजन सुप्रीम कोर्ट के सेवानिर्वत जस्टिस पी.बी. सावंत और बॉम्बे हाईकोर्ट के सेवानिवृत्त जस्टिस कोलसे पाटिल ने पुणे शहर के भीरवाडा में किया था, जो भीमा कोरेगांव से लगभग 30 कि.मी. दूरी पर है।   अगले दिन, 1 जनवरी, 2018 को, 1818 के भीमा कोरेगाँव युद्ध की सौहार्दपूर्ण यादगार के लिए लाखों लोग भीमा कोरेगाँव स्मारक पर एकत्रित हुए, जिस युद्ध में दलित सैनिकों ने पेशवाओं के खिलाफ बड़ी बहादुरी से युद्ध लड़ा था। जब लोग समूहों में जा रहे थे तो कथित तौर पर, भगवा झंडा लहराने वाले समूहों ने नीले झंडे वाले समूहों पर और उनके वाहनों पर हमला किया और कई लोगों को घायल कर दिया था।

2 जनवरी 2018 को, संभाजी भिडे और मिलिंद एकबोटे के खिलाफ भीमा कोरेगांव में हुई हिंसा के मामले में प्राथमिकी दर्ज की गई, लेकिन पुलिस ने उनके खिलाफ कोई ठोस कार्रवाई नहीं की।

8 जनवरी, 2018 को, एफआईआर नंबर 4 दर्ज़ हुई, जिसमें सुधीर ढ़्वले और कुछ अन्य लोगों के नाम दर्ज़ किए गए, उनके खिलाफ यह एफआईआर एल्गर परिषद की बैठक में भाषण देने और गाने गाने के लिए की गई थी, इस शिकायत को विश्रंबग पुलिस स्टेशन, पुणे सिटी में आईपीसी की धारा 153-ए, 505 (1) (बी), 117 और 34 के तहत दर्ज़ किया गया था। उल्लेखनीय रूप से, हालांकि, भीमा कोरेगांव मामले में जिन 10 अन्य व्यक्तियों पर मुकदमा चलाया जा रहा है, उन्हें 2018 की एफआईआर नंबर 4 में अभियुक्त नहीं बनाया गया था।

17 मई, 2018 को रोना विल्सन, एडवोकेट सुरेंद्र गडलिंग, प्रो शोमा सेन, महेश राउत के खिलाफ यूएपीए की धारा 13, 16, 17, 18, 18-बी, 20, 38, 39, 40 के तहत गैरकानूनी गतिविधी करने के आरोप में मुक़दमा दर्ज़ किया गया और इसे एफआईआर नंबर 4 कहा गया। उन्हें 6 जून 2018 को गिरफ्तार किया गया था।

तारीख 28 अगस्त 2018 को, 2018 की सीआर 4 के तहत, वर्नोन गोंसाल्वेस, अरुण फरेरा, सुधा भारद्वाज को फरीदाबाद में गिरफ्तार किया गया और वी.वी. राव को हैदराबाद से गिरफ्तार किया गया। अगले दिन 29 अगस्त, 2018 को रोमिला थापर और अन्य बनाम यूनियन ऑफ इंडिया ने सुप्रीम कोर्ट में डब्ल्यू.पी. (Cri) नंबर 260/2018 दाखिल की, और सुनवाई के बाद कोर्ट ने 8 सप्ताह की अवधि के लिए उपरोक्त 9 अभियुक्तों को घर पर नज़रबंद करने का आदेश दिया। इसके बाद वे उन्हे अतिरिक्त सेशन जज की निगरानी में पुणे की यरवडा जेल में भेज दिया गया। इस साल की शुरुआत में, मामले को एनआईए अधिनियम के तहत मुंबई की विशेष अदालत में भेज दिया गया था।

इस वर्ष 14 अप्रैल को, महामारी के बीच, श्री गौतम नवलखा और प्रोफेसर आनंद तेलतुम्बडे, जो सह-रुग्णता जैसी बीमारियों से ग्रसित है और जो अपनी उम्र के 70 के पड़ाव में हैं, उन्हे एनआईए ने तब आत्म समर्पण करने के लिए मजबूर कर दिया जब सुप्रीम कोर्ट ने गिरफ्तारी से राहत देने से इंकार कर दिया था।

वर्तमान में, नौ पुरुष मुम्बई की तलोजा जेल में बंद हैं, जबकि 2 महिलाएं मुंबई की बायकुला जेल में बंद हैं।

महामारी और जेल में भीड़ कम करने की अनिवार्यता

सार्स-कोव-2 से फैली महामारी ने क़ैदियों के स्वास्थ्य और सुरक्षा के मामले में नागरिक समाज के लोगों के भीतर चिंता पैदा कर दी है, जिनहे जेल में भीड़ और विषम परिस्थितियों के कारण  संक्रमण का बड़ा खतरा हैं। सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के अनुसार, उच्चाधिकार प्राप्त समिति (एचपीसी) की स्थापना की गई थी। महाराष्ट्र की संबंधित एचपीसी ने 11 मई की अपनी अधिसूचना में सलाह दी कि ऐसे क़ैदियों की अस्थायी रिहाई की जाए जो “60 वर्ष से अधिक उम्र के हैं और जिनका स्वास्थ्य काफी खराब है क्योंकि इससे उन्हे कोविड-19 के संक्रमण का खतरा अधिक हैं।"

उपरोक्त एचपीसी की सिफारिश के मद्देनज़र श्री वरवारा राव और सुश्री शोमा सेन की अस्थाई ज़मानत के लिए 15 मई को याचिका दायर की गई थीं। दोनों आवेदनों में आवेदकों की उम्रदराज़ी और कई स्वास्थ्य संबंधी बीमारियों के बारे में बताया गया, जो उन्हें कोविड-19 से संक्रमण होने के ऊंचे जोखिम में डालती हैं।

अप्रैल-मई 2020 में सुनवाई की लगातार पांच तारीखें लगी, बचाव पक्ष के वकील ने श्री राव की स्वास्थ्य रिपोर्ट को लेकर कोर्ट पर दबाव बनाया क्योंकि वे बीमार थे और उस वक़्त जेल के अस्पताल में भर्ती थे। न्यायालय ने जेल अधीक्षक को जो निर्देश दिए उनका अनुपालन नहीं हुआ और श्री राव की स्वास्थ्य संबंधी रिपोर्ट को कोर्ट में पेश नहीं किया गया। 28 मई को, माननीय न्यायालय ने अधिवक्ता नीलेश उके को निर्देशित दिया कि वे खुद दो जून को श्री राव की स्वास्थ्य रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिए व्यक्तिगत रूप से अधीक्षक, तलोजा सेंट्रल जेल को नोटिस दें। सुश्री शोमा सेन की रिपोर्ट भी प्रस्तुत नहीं की गई थी, बावजूद इसके कि जेल अधीक्षक, बाइकुला जेल को इस बाबत निर्देश दिए गए थे।

27 मई की शाम को, श्री राव, जिसके बारे में उनके वकीलों और परिवार को नहीं पता चला, को तलोजा जेल से जे.जे. अस्पताल, मुंबई ले गए क्योंकि वह जेल के अस्पताल बेहोश हो आगे थे। इस तथ्य को 28 मई को कोर्ट में बचाव पक्ष के वकीलों ने या एनआईए ने पेश नहीं किया था। हैदराबाद में श्री राव के परिवार को एनआईए के बजाय पुणे पुलिस ने 28 मई की रात को सूचित किया था। श्री राव अस्पताल में भर्ती के दौरान बेहद कमज़ोर और काफी अस्त-व्यस्त दिखे।

2 जून को, जे॰जे॰ अस्पताल से एक मेडिकल रिपोर्ट अदालत में दाखिल की गई थी कि श्री राव का इलाज किया गया है, और वे स्थिर हैं, इसलिए उन्हे 1 जून को छुट्टी दे दी गई और वापस जेल भेज दिया। हालांकि, तलोजा जेल के अधीक्षक की मेडिकल रिपोर्ट दर्ज़ नहीं हुई है। 

एनआईए को संबोधित एक पत्र में बचाव पक्ष के वकील ने श्री राव के अस्पताल में भर्ती के बारे में सूचना देने की खामियों को दर्ज किया। 5 जून को बचाव पक्ष के वकीलों के खिलाफ अनुशासनात्मक सज़ा की मांग करते हुए एनआईए ने शिकायत दर्ज कर दी, जिससे ज़मानत के आवेदनों पर बेशकीमती सुनवाई का समय बर्बाद हो गया था।

19 जून को, श्री राव की ज़मानत याचिका पर बचाव पक्ष के वकीलों ने तर्क दिया कि महामारी के दौरान मानवीय आधार पर उनकी अस्थायी रिहाई की जानी चाहिए। अभियोजन पक्ष ने अपने विपरीत तर्कों को पेश करने के लिए समय मांगा और मामले को 26 जून तक के लिए स्थगित कर दिया गया।

26 जून को, सुश्री सेन की ज़मानत याचिका पर उनके वकीलों ने दलील दी, जिसमें उनके खराब होते स्वास्थ्य के आधार पर और अन्य आधारों के साथ एचपीसी की सिफारिश के आधार पर उनकी रिहाई की मांग की गई।

अभियोजन पक्ष के तर्कों को निम्नानुसार संक्षेप में पेश किया जा सकता है: - i) कि यूएपीए (UAPA) ज़मानत का समर्थन नहीं करता है, (ii) पहले की ज़मानत अर्जी को न्यायालय ने इस आधार पर खारिज कर दिया था कि अभियुक्त के खिलाफ एक प्रथम दृष्टया मामला बनाया गया था (iii) परिस्थितियों में कोई बदलाव नहीं हुआ था (iv) इसलिए रिहाई के लिए चिकित्सा आधार पर मजबूर नहीं किया जा सकता है। उम्रदराज़ी और सह-रुग्णता के शिकार क़ैदियों की अस्थायी रिहाई के मामले में सिर्फ एचपीसी की दी गई सिफारिश को अभियोजन पक्ष ने खारिज कर दिया।

25 जून को, सुश्री रोमिला थापर और उनके सह-याचिकाकर्ताओं ने 29 अगस्त, 2018 को भीमा कोरेगांव मामले में सुप्रीम कोर्ट की निगरानी की जाँच करने की मांग की थी, उन्होने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री को लिखा और मांग की कि, महामारी के मद्देनज़र भीमा कोरेगांव मामले के आरोपियों को घर पर नज़रबंद किया जाए। इससे पहले, 500 कलाकारों और बुद्धिजीवियों और 14 संसद सदस्यों ने मिलकर एक ज्ञापन सौंपा, और राज्य और केंद्र सरकारों दोनों को लिखा कि महामारी के दौरान श्री राव और बीके मामले में गिरफ्तार अन्य लोगों की अस्थायी रिहाई की जाए।

ज़मानत की अर्ज़ी पर कोर्ट का फैंसला  

26 जून को एक आदेश में, माननीय विशेष अदालत के न्यायाधीश ने अभियोजन पक्ष द्वारा लगाई गई सभी आपत्तियों और तर्कों के आधार पर श्री राव और सुश्री सेन की ज़मानत अर्जी खारिज कर दी।

कोर्ट का आदेश बचाव पक्ष की उन चिंताओं को स्वीकार करने में नाकामयाब रहा जिनमें महामारी के दौरान सह-रुगनता वाले वरिष्ठ नागरिकों की अस्थायी रिहाई के लिए एचपीसी की सिफारिश के आधार पर ज़मानत की अर्ज़ी दायर की थी। यहां कोर्ट ने नाजुक स्वास्थ्य के चलते व्यक्तियों के भीतर घातक वायरस के संपर्क का दैनिक तौर पर बढ़ते जोखिम को नजरअंदाज कर दिया। विडंबना यह है कि यूएपीए की धारा 43 डी (5) में दिए गए ज़मानत के प्रावधानों का हवाला देते हुए, न्यायालय ने इस तथ्य पर ध्यान नहीं दिया कि पहले न्यायाधीश द्वारा  ज़मानत को खारिज किए जाने वाली बात यहां अप्रासंगिक है, क्योंकि धारा 43 (डी) (5) के अनुसार मौजूदा न्यायाधीश को ज़मानत के लिए पेश की गई सामग्री की स्वतंत्र जांच के बाद ही तय करना चाहिए।

निष्कर्ष

न्याय के पक्ष में, न्यायमूर्ति कृष्ण अय्यर का यह उद्बोधन कि "ज़मानत नियम है और जेल अपवाद है" के सिद्धान्त को आपराधिक न्याय प्रणाली के सभी हितधारकों के लिए मार्गदर्शक का काम करना चाहिए।

व्यक्त विचार व्यक्तिगत हैं।

Courtesy: The Leaflet

इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें।

When Jail, Not Bail, Rules in a Pandemic

Bhima Koregaon activists
bail
Jail
National Investigative Agency
Bhima Koregaon
Supreme Court

Related Stories

ज्ञानवापी मस्जिद के ख़िलाफ़ दाख़िल सभी याचिकाएं एक दूसरे की कॉपी-पेस्ट!

आर्य समाज द्वारा जारी विवाह प्रमाणपत्र क़ानूनी मान्य नहीं: सुप्रीम कोर्ट

समलैंगिक साथ रहने के लिए 'आज़ाद’, केरल हाई कोर्ट का फैसला एक मिसाल

मायके और ससुराल दोनों घरों में महिलाओं को रहने का पूरा अधिकार

जब "आतंक" पर क्लीनचिट, तो उमर खालिद जेल में क्यों ?

इतवार की कविता: भीमा कोरेगाँव

विचार: सांप्रदायिकता से संघर्ष को स्थगित रखना घातक

सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक आदेश : सेक्स वर्कर्स भी सम्मान की हकदार, सेक्स वर्क भी एक पेशा

तेलंगाना एनकाउंटर की गुत्थी तो सुलझ गई लेकिन अब दोषियों पर कार्रवाई कब होगी?

मलियाना कांडः 72 मौतें, क्रूर व्यवस्था से न्याय की आस हारते 35 साल


बाकी खबरें

  • blast
    न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    हापुड़ अग्निकांड: कम से कम 13 लोगों की मौत, किसान-मजदूर संघ ने किया प्रदर्शन
    05 Jun 2022
    हापुड़ में एक ब्लायलर फैक्ट्री में ब्लास्ट के कारण करीब 13 मज़दूरों की मौत हो गई, जिसके बाद से लगातार किसान और मज़दूर संघ ग़ैर कानूनी फैक्ट्रियों को बंद कराने के लिए सरकार के खिलाफ प्रदर्शन कर रही…
  • Adhar
    अनिल जैन
    ख़बरों के आगे-पीछे: आधार पर अब खुली सरकार की नींद
    05 Jun 2022
    हर हफ़्ते की तरह इस सप्ताह की जरूरी ख़बरों को लेकर फिर हाज़िर हैं लेखक अनिल जैन
  • डॉ. द्रोण कुमार शर्मा
    तिरछी नज़र: सरकार जी के आठ वर्ष
    05 Jun 2022
    हमारे वर्तमान सरकार जी पिछले आठ वर्षों से हमारे सरकार जी हैं। ऐसा नहीं है कि सरकार जी भविष्य में सिर्फ अपने पहनावे और खान-पान को लेकर ही जाने जाएंगे। वे तो अपने कथनों (quotes) के लिए भी याद किए…
  • न्यूज़क्लिक डेस्क
    इतवार की कविता : एरिन हेंसन की कविता 'नॉट' का तर्जुमा
    05 Jun 2022
    इतवार की कविता में आज पढ़िये ऑस्ट्रेलियाई कवयित्री एरिन हेंसन की कविता 'नॉट' जिसका हिंदी तर्जुमा किया है योगेंद्र दत्त त्यागी ने।
  • राजेंद्र शर्मा
    कटाक्ष: मोदी जी का राज और कश्मीरी पंडित
    04 Jun 2022
    देशभक्तों ने कहां सोचा था कि कश्मीरी पंडित इतने स्वार्थी हो जाएंगे। मोदी जी के डाइरेक्ट राज में भी कश्मीर में असुरक्षा का शोर मचाएंगे।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License