NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
अंतरराष्ट्रीय
कहाँ खड़े हैं भारत-रूस के संबंध?
यह ऐसा दुर्लभ मौक़ा है जब एक रूसी विदेश मंत्री के हवाई अड्डे पर स्वागत के लिए भारतीय प्रधानमंत्री नहीं जा रहे हैं। इस तरह भारत ने संकेत दिया है कि हाल में भारत-रूस के संबंधों में दूरी आई है।
एम. के. भद्रकुमार
09 Apr 2021
कहाँ खड़े हैं भारत-रूस के संबंध?

सोमवार को मॉस्को के प्रमुख अख़बार कॉमरसेंट ने टिप्पणी करते हुए कहा कि रूसी विदेश मंत्री सर्जी लावरोव की 5-6 अप्रैल को होने वाली नई दिल्ली यात्रा आसान नहीं होने वाली है, क्योंकि दोनों देशों के संबंधों में कई तरह के जोख़िम आ रहे हैं। खासकर चीन को लेकर।"

बल्कि अख़बार ने विनम्र ढंग से रूस-भारत और रूस-चीन संबंधों के बीच अंतर बताते हुए कहा कि मॉस्को और बीजिंग के बीच करीबी संबंध अमेरिका के साथ "दोनों देशों के नकारात्मक एजेंडे" से बने हैं। लेकिन मॉस्को के दिल्ली के साथ संबंधों में ना तो नकारात्मक एजेंडा है और ना ही कोई आपसी नुकसान है।"

फिर सोमवार को एक और अख़बार नेज़ाविसिमाया गेजेटा ने एक रूसी विश्लेषक मॉस्को स्टेट इंस्टीट्यूट ऑफ इंटरनेशनल रिलेशन्स के प्रोफ़ेसर सर्जी लुनेव के हवाले से लिखा, "पिछले 10 साल से दोनों देशों के संबंध थम गए हैं। आर्थिक संबंध खास प्रभावित हुए हैं। सोवियत रूस भारत के सबसे बड़े तीन आर्थिक साझेदारों में हुआ करता था, लेकिन रूस बड़ी मुश्किल से ही शुरुआती बीस में जगह बना पाता है।"

प्रोफ़ेसर आगे कहते हैं, "लेकिन यहां कुछ सकारात्मक पहलू भी हैं। उदाहरण के लिए स्पुतनिक V वैक्सीन पर सहयोग जारी है। भारत इसका उत्पादन खुद रूस से भी ज़्यादा बड़ी मात्रा में करेगा। रक्षा सहयोग आपसी संबंधों का बड़ा आधार है और इसमें सभी मोर्चों पर विकास हो रहा है, जिसमें S 400 सिस्टम से लेकर छोटे हथियार शामिल हैं। रूस भारत के आधे से ज़्यादा हथियार आयात का हिस्सेदार है।"

लेकिन भारत और रूस के बीच हाल में कुछ दूरियां बढ़ी हैं। यह पहली बार हो रहा है जब कोई रूसी विदेश मंत्री पहली बार भारत और पाकिस्तान का एक साथ क्षेत्रीय दौरा कर रहा है। सबसे अहम बात है कि यह ऐसा दुर्लभ मौका है जब एक रूसी विदेश मंत्री की हवाईअड्डे पर आगवानी के लिए भारतीय प्रधानमंत्री नहीं जा रहे हैं।

प्रधानमंत्री मोदी माइक पॉम्पियो या एंटोनियो ब्लिंकेन के लिए निश्चित वक़्त निकाल लेते और वे उनके साथ कूटनीतिक चर्चाओं का हिस्सा बनने में आनंद भी लेते हैं। (यहां तक कि मोदी ने ब्रिटेन के विदेश सचिव डोमिनिक राब के लिए भी वक़्त निकाल लिया था।) यह रूस के अब प्राथमिकता ना होने का संकेत है।

लेकिन यह सिर्फ़ कूटनीतिक संकेत के बारे में नहीं है। दिल्ली की सामंती दरबार संस्कृति में यह पूरी सरकारी मशीनरी- अफ़सर, राजनेता, नागरिक और सेना के लिए भी एक संकेत है। जबकि मोदी के पहले कार्यकाल में लगता था कि वे रूस-भारत के संबंधों को प्राथमिकता देते हैं और इसके लिए व्यक्तिगत तौर पर समय और ऊर्जा निकालते रहे।

वाशिंगटन में राजनीतिक प्रतिष्ठानों ने भी इसे एक झटके के तौर पर देखा है। मार्क रूबियो फ्लोरिडा के सीनेटर हैं और यूएस सीनेट इंटेलीजेंस कमेटी के चेयरमैन हैं, रूबियो अमेरिकी कांग्रेस की चीन पर कार्यकारी समिति समेत कई दूसरी राज्य समितियों के सदस्य भी हैं। वाशिंगटन के ऑनलाइन जर्नल निक्केई एशियन रिव्यू में रूबियो ने पिछले अगस्त में एक लेख लिखा था। इस लेख मे रूबियो ने व्यक्तिगत तौर पर मोदी के ऊपर जमकर निशाना साधा था। रूबियो ने लिखा था कि मोदी ऐसे काम करते हैं, जैसे पुतिन ने उनपर कोई जादू कर रखा हो।

अगर रूबियो की बात करें, तो वो खुद दुनिया के नक्शे में भारत को नहीं खोज पाएंगे, फिर भी उन्होंने भारत पर इस तरह की टिप्पणी की। साफ़ था कि पूर्व राष्ट्रपति ट्रंप और पॉम्पियो के पसंदीदा रूबियो ने भारत को इशारों में चेतावनी देते हुए कहा था कि अब वक़्त आ गया है जब भारत-रूस संबंधों से मोदी को दूर होना जाना चाहिए।

इसलिए आज जब मोदी के रूस में रुझान ख़त्म होने का कोई इशारा होता है, तो दरअसल वह कायराना व्यवहार है, जो भारत-रूस संबंधों के लिए घातक हो सकता है। मोदी के इस कदम से अमेरिकी विदेश नीति के प्रतिष्ठानों और खुद राष्ट्रपति जो बाइडेन को शांति मिल सकती है, जो "हत्यारे" पुतिन को लेकर आशंकाएं रखते हैं। उनका मानना है कि जब तक रूस भारत की रणनीतिक स्वायत्ता का आधार बना रहेगा, तब तक भारत को पूरी तरह अमेरिकी पाले में लाना मुश्किल रहेगा।  

रूस या पुतिन के साथ भारत के संबंधों को तेज करने के लिए मोदी जो भी कोशिश करते हैं, उस पर अमेरिका की पूरी नज़र रहती है। अमेरिका की भू-रणनीति काफ़ी भारी है और यह अच्छे परिणाम भी देती दिखाई दे रही है- भारत ने रूस की ऊर्जा का अपना आकर्षण ख़त्म कर दिया है और बदले में अमेरिकी तेल का समझौता कर लिया है; भारत के सबसे बड़े रक्षा उपकरण आपूर्तिकर्ता रूस से यह दर्जा अमेरिका तेजी से छीन रहा है।

बल्कि सोमवार को जब लावरोव का विमान दिल्ली में उतरा, तब गृह सचिव ब्लिंकेन वाशिंगटन में उन तुर्की अधिकारियों और संस्थानों के नामों की घोषणा कर रहे थे, जिनके ऊपर प्रतिबंध आगे भी जारी रहेगा। यह प्रतिबंध तुर्की द्वारा रूस की S-400 रूसी हवाई रक्षा प्रणाली को खरीदने के चलते लगाए गए हैं। विदेशमंत्री एस जयशंकर के लिए भी यह सही वक़्त पर दी गई एक चेतावनी है!

लावरोव से S-400 समझौते में भारत पर अमेरिकी दबाव के बारे में सवाल पूछा गया था। उन्होंने जवाब में कहा, "अमेरिका ने सार्वजनिक तौर पर बिना झिझक के इसकी घोषणा की है। हर कोई यह जानता है। हम भी भारत की प्रतिक्रिया के बारे में अच्छी तरह जानते हैं।" लावरोव ने आगे कहा, "अमेरिकी की टिप्णियों पर चर्चा नहीं हुई। हमें हमारे भारतीय दोस्तों और साझेदारों की तरफ से इसमें कोई झिझक महसूस नहीं होती।" जयशंकर ने यहां चुप्पी साधे रखी।

लावरोव ने अपने चिर-परिचित अंदाज में एशियन नाटो (क्वाड पढ़िए) पर भी टिप्पणी की। उन्होंने कहा, "आज हमने इस मामले पर भी बात की। हम और हमारे भारतीय दोस्तों का साझा तौर पर मानना है कि यह सैन्य संगठन के तौर पर प्रतिगामी साबित होगा। हम समावेशी सहयोग में दिलचस्पी रखते हैं और उद्देश्य के लिए काम करने की मंशा रखते हैं, ना कि किसी के खिलाफ़ जाना चाहते हैं।" लेकिन यहां भी जयशंकर ने प्रतिक्रिया नहीं दी।

भारत के पास एक बेहद दुर्लभ वातावरण है, जहां वह अपनी कूटनीतिक स्वायत्ता को मजबूत कर सकता है और उसका लाभ ले सकता है। लेकिन नए मौकों की खोज करने के लिए भारत को राजनीतिक इच्छाशक्ति की जरूरत है। इसके उलट मोदी की सरकार ने बाइडेन के साथ जुड़ने को प्राथमिकता बना दिया।

चीन को अंदाजा हो चुका है कि भारत को उसके द्वारा चुने हुए रास्ते पर जाने और बाद में रास्ते की कार्यकुशलता पर आत्म परीक्षण के लिए मुक्त छोड़ देना चाहिए। इसलिए लद्दाख में सेना को पीछे हटाए जाने की कोशिशें पर विराम लग गया है। लावरोव ने भी बताया कि मॉस्को भी भारत को बड़ा स्थान देने की पेशकश कर रहा है। जयशंकर के साथ साझा प्रेस कॉन्फ्रेंस में लावरोव ने शुरुआती वक्तव्य में कहा, "परंपरा के मुताबिक़ हमारे संबंध आपसी सम्मान पर टिके हुए हैं। यह सहज रूप से मूल्यवान हैं और इन पर मौकापरस्ती वाले उतार-चढ़ाव का असर नहीं पड़ता।"

जब एक दिग्गज कूटनीतिज्ञ ने कुछ चीजें याद दिलाने की कोशिश की, तो उन्होंने इसके लिए सीधे शब्दों का चुनाव किया। लावरोव की छवि खुलकर बोलने वाली रही है। पश्चिम में लावरोव और सोवियत काल के दिग्गज एंड्रे ग्रोमिको के बीच तुलना की जाती है। दिसंबर, 2019 में ग्रोमिको की 110 वी जयंती पर मॉस्को में अपने भाषण में लावरोव ने कहा था, "रूसी कूटनीतिज्ञों के लिए ग्रोमिको घराना (स्कूल) देशभक्ति, पेशेवर रवैये, आत्म अनुशासन, अपने देश के हितों के लिए किसी भी मामले की तह तक जाने, तार्किक ढंग से उन हितों को प्रोत्साहन देने और सबसे जटिल स्थितियों में सबसे प्रभावी समाधान खोजने के बारे में है।" संक्षिप्त में कहें तो लावरोव का दिल्ली आगमन इसी उद्देश्य को लेकर है। अब गेंद मोदी के पाले में है।

इस लेख को मूल अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें।

Whither India-Russia Ties?

Russia
Putin
India Russia Relations
MEA

Related Stories

रूस की नए बाज़ारों की तलाश, भारत और चीन को दे सकती  है सबसे अधिक लाभ

गुटनिरपेक्षता आर्थिक रूप से कम विकसित देशों की एक फ़ौरी ज़रूरत

रूस पर बाइडेन के युद्ध की एशियाई दोष रेखाएं

पश्चिम बनाम रूस मसले पर भारत की दुविधा

रूस पर लगे आर्थिक प्रतिबंध का भारत के आम लोगों पर क्या असर पड़ेगा?

यूक्रेन संकट : वतन वापसी की जद्दोजहद करते छात्र की आपबीती

यूक्रेन संकट, भारतीय छात्र और मानवीय सहायता

यूक्रेन में फंसे बच्चों के नाम पर PM कर रहे चुनावी प्रचार, वरुण गांधी बोले- हर आपदा में ‘अवसर’ नहीं खोजना चाहिए

काश! अब तक सारे भारतीय छात्र सुरक्षित लौट आते

खोज ख़बर, युद्ध और दांवः Ukraine पर हमला और UP का आवारा पशु से गरमाया चुनाव


बाकी खबरें

  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    छत्तीसगढ़ः 60 दिनों से हड़ताल कर रहे 15 हज़ार मनरेगा कर्मी इस्तीफ़ा देने को तैयार
    03 Jun 2022
    मनरेगा महासंघ के बैनर तले क़रीब 15 हज़ार मनरेगा कर्मी पिछले 60 दिनों से हड़ताल कर रहे हैं फिर भी सरकार उनकी मांग को सुन नहीं रही है।
  • ऋचा चिंतन
    वृद्धावस्था पेंशन: राशि में ठहराव की स्थिति एवं लैंगिक आधार पर भेद
    03 Jun 2022
    2007 से केंद्र सरकार की ओर से बुजुर्गों को प्रतिदिन के हिसाब से मात्र 7 रूपये से लेकर 16 रूपये दिए जा रहे हैं।
  • भाषा
    मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने चंपावत उपचुनाव में दर्ज की रिकार्ड जीत
    03 Jun 2022
    चंपावत जिला निर्वाचन कार्यालय से मिली जानकारी के अनुसार, मुख्यमंत्री को 13 चक्रों में हुई मतगणना में कुल 57,268 मत मिले और उनके खिलाफ चुनाव लड़ने वाल़ कांग्रेस समेत सभी प्रत्याशियों की जमानत जब्त हो…
  • अखिलेश अखिल
    मंडल राजनीति का तीसरा अवतार जाति आधारित गणना, कमंडल की राजनीति पर लग सकती है लगाम 
    03 Jun 2022
    बिहार सरकार की ओर से जाति आधारित जनगणना के एलान के बाद अब भाजपा भले बैकफुट पर दिख रही हो, लेकिन नीतीश का ये एलान उसकी कमंडल राजनीति पर लगाम का डर भी दर्शा रही है।
  • लाल बहादुर सिंह
    गैर-लोकतांत्रिक शिक्षानीति का बढ़ता विरोध: कर्नाटक के बुद्धिजीवियों ने रास्ता दिखाया
    03 Jun 2022
    मोदी सरकार पिछले 8 साल से भारतीय राज और समाज में जिन बड़े और ख़तरनाक बदलावों के रास्ते पर चल रही है, उसके आईने में ही NEP-2020 की बड़ी बड़ी घोषणाओं के पीछे छुपे सच को decode किया जाना चाहिए।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License