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CAA-NRC : यूपी में विरोध प्रदर्शनों में मारे जाने वाले वे 23 लोग कौन थे?
मरने वालों में से ज़्यादातर दिहाड़ी पर काम करने वाले मुसलमान थे जिन्हें कथित तौर पर पुलिस की गोलियों का शिकार बनना पड़ा। सामाजिक कार्यकर्ताओं के अनुसार इन हत्याओं के करीब एक महीने बाद भी, सिर्फ तीन परिवार ऐसे हैं जिन्हें पोस्टमार्टम रिपोर्ट प्राप्त हुई है।
अब्दुल अलीम जाफ़री
19 Jan 2020
23 People Killed in UP

दिल्ली: उत्तर प्रदेश में नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2019 (सीएए) और संभावित या प्रस्तावित राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) के विरोध के दौरान क्रूर दमन की कार्रवाई में 23 लोग मारे गए। राज्य की ओर से दमन किस प्रकार का ढाया गया है, इसके दिल दहला देने वाले वाकये अब निकल कर सामने आ रहे हैं जिसमें कई सवाल अनुत्तरित हैं।

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इस कार्रवाई में सबसे ज्यादा मौतें फिरोजाबाद जिले में होने की खबरें मिली हैं। यहां सात लोग मारे गए और उसके बाद मेरठ में पाँच लोगों की मौत हुई है। कानपुर में तीन, बिजनौर और संभल से दो-दो लोग और लखनऊ,, मुजफ्फरनगर, रामपुर सहित प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदी क्षेत्र वाराणसी से एक-एक मौत हुई है।

मौतों की वजह

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, गोली लगने की वजह से 21 लोग मारे गए, जबकि एक बच्चे की मौत लाठीचार्ज के दौरान मची भगदड़ में कुचल जाने से हुई थी, और एक व्यक्ति की पत्थर से सिर में चोट लगने से मौत हो गई। हालाँकि कई राजनीतिक पार्टियों और विभिन्न फैक्ट-फाइंडिंग कमेटियों ने आरोप लगाये हैं कि इनमें से अधिकतर मौतें पुलिस की गोलियों के चलते हुई हैं।

विडंबना यह है कि मृतकों के सिर्फ तीन परिवारों को ही पोस्टमार्टम की रिपोर्टें मिल पाई हैं, जबकि बाकी के बचे 20 परिवारों को अभी भी इसका इंतजार है। सीपीआई (एम) की पोलित ब्यूरो सदस्य सुभाषिनी अली ने मेरठ, बिजनौर और कानपुर का दौरा किया है, और हिंसा में मारे गए लोगों के परिवारों और रिश्तेदारों से मुलाकात की, और दावा किया है कि सभी मौतें गोली लगने की वजह से हुईं, और पीड़ितों की कमर से ऊपर गोलियाँ लगी हैं।

न्यूज़क्लिक से बात करते हुए सुभाषिनी अली ने बताया “अभी तक, तीन दिन पहले फिरोजाबाद से एक युवक की मौत के साथ अब यह आँकड़ा 22 तक पहुँच चुका है। यह बेहद दुःखद है, लेकिन अधिकतर मारे गए लोग अभी अपनी नौजवानी के दौर में थे, बेहद गरीब परिवारों से सम्बद्ध थे, सभी अल्पसंख्यक समुदाय से आते थे और सभी की मौतें पुलिसिया गोलीबारी के दौरान हुईं हैं। 23 परिवारों में से केवल तीन को ही पोस्टमार्टम रिपोर्ट मिल सकी है। जिन तीन परिवारों को यह रिपोर्ट मिली हैं उनमें अनस और सुलेमान का परिवार शामिल है, जो बिजनौर जिले के नहटौर इलाके में मारे गए थे। ऑटोप्सी रिपोर्ट में इस बात की पुष्टि हुई है कि दोनों की मौत गोली लगने से हुई थी।

लखनऊ में मारे गए मोहम्मद वकील की पोस्टमार्टम रिपोर्ट भी उसके परिवार को दे दी गई है, और मेरा मानना है कि उसकी मौत की वजह भी पुलिस की गोली लगना ही होगी। अन्य पीड़ितों के परिवारों को, जिनकी मौतें गोली लगने की वजह से हुईं थीं, को अभी भी पोस्टमार्टम रिपोर्ट नहीं मिल पाई है। न तो इन परिवारों की ओर से पुलिस के खिलाफ कोई एफआईआर दर्ज की गई है, और न ही उन्हें कोई मुआवजा मिलने जा रहा है। यूपी सरकार ने जो किया है, यह बेहद अन्यायपूर्ण और गैरकानूनी है।

जब उनसे पूछा गया कि यूपी प्रशासन पीड़ितों के परिवारों को पोस्टमार्टम रिपोर्ट क्यों नहीं सौंप रही है, तो सुभाषिनी ने बताया “इसकी वजह यह है कि सरकार इस तथ्य को छुपाने में लगी है, कि असल में इन युवाओं को गोलियों से मार डालने में पुलिस का हाथ है। इन सभी को कमर से ऊपर गोली मारी गई है। कुछ के सिर में, कुछ की आंख में, कुछ के पेट में, कुछ को छाती में और बाकियों को पीठ में गोली लगी है। सरकार नहीं चाहती कि ये तथ्य सार्वजानिक हों। शुरू में उनका कहना था कि एक भी गोली नहीं चलाई गई थी, लेकिन अब उन्हें अपने बयान को बदलना पड़ जायेगा। ”

कथित पुलिसिया बर्बरता की करतूत के नमूने और मुस्लिम इलाकों में छाई बदहवासी के बारे में बताते हुए कानपुर की पूर्व सांसद ने इसमें जोड़ते हुए कहा  "हमें इस बात को नहीं भूलना चाहिए कि जो भी गोलीबारी और भगदड़ मचने की घटनाएं हुई हैं वे सब मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के इस बयान के बाद घटित हुई हैं, जिसमें उन्होंने बदला लेने की बात कही थी और पुलिस के अधिकारियों ने उसी के अनुसार इसे अंजाम दिया।"

मृतकों के परिवार वालों से न्यूज़क्लिक की बातचीत में पता चला है कि पोस्टमार्टम रिपोर्ट नहीं मिलने के कारण वे लोग पुलिस के खिलाफ शिकायत दर्ज नहीं करा सके हैं। इसके अलावा कई परिवार ऐसे भी हैं जो अपनी शिकायत ही दर्ज कराना नहीं चाहते, क्योंकि उन्हें इस बात का डर है कि कहीं बदले की कार्रवाई में पुलिस उन्हें झूठे मामलों में न फँसा दे।

इससे पहले आदित्यनाथ ने चेतावनी दी थी कि जो लोग राज्य में विरोध प्रदर्शन के दौरान हिंसक गतिविधियों में शामिल थे, उन लोगों की संपत्तियों को जब्त कर लिया जायेगा। उन्होंने घोषणा की थी “मैंने इस विषय पर एक बैठक बुलाई है। विरोध के नाम पर कोई भी हिंसा का सहारा नहीं ले सकता है। ऐसे तत्वों के खिलाफ हम कड़ी कार्रवाई करेंगे। जो लोग दोषी पाए जायेंगे, उनकी संपत्ति जब्त कर ली जायेगी और उससे सावर्जनिक संपत्ति को हुए नुकसान की भरपाई की जायेगी।"

कई एक्टविस्ट का आरोप है कि संपत्तियों के जब्त किये जाने के डर के चलते, कई परिवार दहशत में हैं और पुलिस से किसी प्रकार का पंगा नहीं लेना चाहते।

इस बात पर विशेष ध्यान दिए जाने की ज़रूरत है कि 19 जनवरी को आदित्यनाथ के ‘बदला” लेने वाले विवादास्पद बयान के बाद से ही पूरे राज्य में प्रदर्शनकारियों पर पुलिस की सख्ती तेज हो गई थी।

अपने बयान में उन्होंने कहा था, "उन्हें (प्रदर्शनकारियों) वीडियो और सीसीटीवी फुटेज में कैद कर लिया गया है। हम उनसे ‘बदला’ लेकर रहेंगे। लखनऊ और संभल में हिंसा की घटनाएं देखने को मिली हैं, और हम इससे सख्ती से निपटेंगे। जो भी लोग सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान के आरोप में संलिप्त पाए जायेंगे, उनकी संपत्तियों को जब्त कर लिया जाएगा और नुकसान की भरपाई के लिए उसकी नीलामी की जाएगी।”

हिंसा के दौरान मारे गए अधिकांश प्रदर्शनकारी आर्थिक तौर पर कमजोर पृष्ठभूमि वाले परिवारों से थे। और पीड़ितों में से अधिकतर दिहाड़ी मजदूर थे।

मेरठ में, जो पाँच लोग गोली लगने से मारे गए थे, वे मोहम्मद आसिफ (20), अलीम अंसारी (24), जहीर अहमद (45), आसिफ (33), मोहसिन (28) थे।

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इसके अलावा मृतकों में मोहम्मद अनस (22), मोहम्मद सुलेमान (20) बिजनौर जिले के नहटौर से थे। मोहम्मद शफीक (40), अरमान उर्फ कल्लू (24), मुकीम (20), मोहम्मद हारून (36), नबी जान (22), राशिद (27), मोहम्मद अबरार (26) फिरोज़ाबाद के थे। मोहम्मद सगीर (8) वाराणसी से, जबकि  मोहम्मद सैफ (25), रईस खान (30), आफताब आलम (23) कानपुर से थे। फ़ैज़ ख़ान (25) रामपुर,  जबकि मोहम्मद नूर उर्फ नूरा (30) मुज़फ़्फ़रनगर के निवासी थे। शाहरोज उस्मानी (22) और बिलाल पाशा (31) संभल और मोहम्मद वकील (25) लखनऊ के थे।

इस बीच न्यूज़क्लिक ने अनस और मोहम्मद सुलेमान के परिवारों से बात की जिन्होंने बिजनौर जिले के नहटौर में पुलिस की गोलीबारी में अपनी जान गंवा दी थी। सुलेमान सिविल सेवा की तैयारी कर रहा था जबकि अनस दिल्ली में दिहाड़ी मजदूरी करता था। अनस के पिता अरशद हुसैन ने न्यूज़क्लिक को बताया “वह अपने बच्चे के लिए दूध लेने घर से बाहर निकला था। विरोध प्रदर्शन से उसका कोई लेना-देना नहीं था।”

फिरोज़ाबाद के रशीद, 28 वर्षीय एचआईवी मरीज थे, जिन्हें सिर पर चोटें आई थीं, और कानपुर में शुक्रवार (20 दिसंबर) को हुए विरोध प्रदर्शनों के दौरान गोलीबारी में जख्मी होने कारण मौत हो गई।

रामपुर के फैज़ खान के बारे में ख़बर है कि उसे गले में गोली मारी गई थी, जबकि ज़हीर, अलीम, मोहसिन और आसिफ ने 20 दिसंबर को हुए विरोध प्रदर्शन के दौरान कथित तौर पर गोली चलाए जाने के कारण ज़ख़्मी होकर दम तोड़ दिया था।

उत्तर प्रदेश में सीएए विरोधी प्रदर्शनों का जिस प्रकार से निर्दयतापूर्ण दमन किया गया है और जिसके चलते 23 लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा है, जिनमें से अधिकतर कथित पुलिस फायरिंग में मारे गए बताये जा रहे हैं, इस बात का स्पष्ट संकेत देते हैं कि राज्य सरकार मानवीय तौर पर इन विरोध प्रदर्शनों को संभाल पाने में विफल रही है।

यूपी में पुलिस की बर्बरता का संज्ञान लेते हुए कई नागरिक संगठनों ने 16 जनवरी को नई दिल्ली में ‘पीपल्स ट्रिब्यूनल’ का गठन किया। 19-20 दिसंबर को पुलिस की पक्षपातपूर्ण कार्रवाई को लेकर पीड़ितों के परिवारों और फैक्ट-फाइंडिंग कमेटियों की ओर से प्राप्त कई रिपोर्टों के आधार पर जूरी ने यूपी पुलिस के अधिकरियों की कार्यशैली पर बेहद तीखी टिप्पणियाँ की हैं।

जूरी में शामिल जस्टिस ए पी शाह और सुदर्शन रेड्डी सहित अन्य सदस्यों ने एकमत स्वर में कहा, "हम इस बात से पूरी तरह  आश्वस्त हैं कि सम्पूर्ण राज्य मशीनरी ने राज्य की मुस्लिम आबादी और आंदोलन का नेतृत्व कर रहे सामाजिक कार्यकर्ताओं को अपना निशाना बनाते हुए घोर पूर्वाग्रह और आपराधिक कृत्य के तौर पर काम किया है।"

‘अनुचित’ और जल्दबादी में दफ़नाया जाना

हर मौत में एक सामान्य सूत्र जान पड़ता है- शीघ्रता से दफनाये जाने को लेकर जोर देना। न कोई जनाज़ा का जुलूस, न ढंग से अंतिम संस्कार की रस्में निभाया जाना और सभी परिवारों को सूर्योदय से पहले ही अंतिम संस्कार के रीति-रिवाजों और दफ़नाने की प्रक्रिया को संपन्न करने के लिए मजबूर करना शामिल है। कई परिवारों ने इस बात का दावा किया कि वे पुलिस से हाथ जोड़कर गिड़गिड़ाते रहे कि उन्हें अपने प्रियजनों को स्थानीय कब्रिस्तान में दफ़नाने की अनुमति दी जाये, लेकिन पुलिस की ओर से यह कहते हुए इस बात की इजाज़त नहीं दी गई कि ऐसा करने से सांप्रदायिक हिंसा भडकने की आशंका है।

न्यूज़क्लिक ने मेरठ में मारे गए पाँच लोगों के परिवारों और बिजनौर के दो परिवारों से मुलाक़ात की और फिरोजाबाद और कानपुर के कई परिवारों से फोन पर बात की। सभी ने एक समान आपबीती ही सुनाई - कि न केवल पुलिस ने शहर से कहीं दूर ले जाकर दफ़नाने को मजबूर किया, बल्कि शव के साथ दफ़नाने वाली जगह तक साथ आये। और कुछ मामलों में तो पुलिस ने परिवार वालों को मृत शरीर को नहलाने-धुलाने की प्रक्रिया भी नहीं करने दी, जबकि इस्लाम समेत अन्य धर्मों में ऐसा करना निहायत ज़रूरी समझा जाता है।

बिजनौर में अनस और सुलेमान को उनके 'ननिहाल' (नाना के गाँव) में ले जाकर दफ़नाया गया था। इसी प्रकार से मेरठ में भी, जब पुलिस ने दबाव डाला तो सभी पाँच लोगों को आनन फानन में दफ़ना दिया गया था।

मेरठ में मारे गए पांचों लोग मुसलमान थे, वे या तो दिहाड़ी मजदूरी करते थे, ई-रिक्शा चालक या श्रमिक थे। फिरोजाबाद में मारे गए सात लोगों में से ज्यादातर स्थानीय चूड़ी कारखानों में काम करने वाले मजदूर थे, जिसके लिए इस शहर को जाना जाता है। चमड़ा उद्योग के लिए याद किये जाने वाले शहर कानपुर में जिन तीन लोगों की मौत हुई थी, वे टेनरी में दिहाड़ी मजदूरी करते थे।

संभल में जिन दो लोगों की मौत हुई है, उनमें से एक ट्रक ड्राइवर और दूसरा दिहाड़ी मजदूर था। मुज़फ़्फ़रनगर में भी मारा जाने वाला दिहाड़ी मजदूर ही था। लखनऊ में मारे जाने वाले एक युवक की पहचान ऑटो-रिक्शा चालक के रूप में हुई, और बिजनौर में जो दो लोग मारे गए उनमें से एक दिल्ली में दिहाड़ी मजदूर था और दूसरा प्रशासनिक सेवा की परीक्षा की तैयारी कर रहा था।

अंग्रेजी में लिखी गई मूल ख़बर आप नीचे दिए लिंक पर क्लिक करके पढ़ सकते हैं-

Who Were 23 People Killed in UP During Anti-CAA-NRC Protests?

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