NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
भाजपा राज्यों के चुनाव लगातार क्यों हार रही है?
इस साल मई में लोकसभा चुनाव जीतने के बावजूद पिछले साल से अब तक बीजेपी छठे राज्य में हुए चुनावों को हार गई है। यह साफ तौर पर दर्शाता है कि वह अपने बहुप्रचारित 'सुशासन' और 'विकास' को अमली ज़ामा पहनाने में पूरी तरह से नाकाम रही है।
सुबोध वर्मा
24 Dec 2019
Translated by महेश कुमार
jharkhand election

झारखंड के निवर्तमान मुख्यमंत्री रघुवर दास की बुरी हार के साथ भाजपा विधानसभा चुनाव भी हार गई है। 81 सदस्यीय इस विधानसभा में भाजपा पिछली बार के मुक़ाबले 37 में से कुल 25 सीट ही हासिल करने में कामयाब रही है। झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम), कांग्रेस और राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के चुनाव पूर्व गठबंधन ने 47 सीटों पर जीत दर्ज की है। इस तरह भारतीय जनता पार्टी के विरोधी दल स्पष्ट बहुमत के साथ इस बड़ी आबादी वाले आदिवासी राज्य में एक गैर-भाजपा सरकार बनाएंगे।

कुछ महीने पहले भाजपा के हाथ से महाराष्ट्र निकल गया था, वह भी सत्ता में बने रहने के लिए कुटिल चाल चलने के बावजूद ऐसा हुआ। इसकी पूर्व सहयोगी शिवसेना, अब कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) के साथ सरकार की बागडोर संभाल रही है।

हरियाणा में भाजपा अपना बहुमत खो चुकी है लेकिन एक स्थानीय पार्टी, जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) के कंधे पर खड़ी होकर वह सत्ता में आने में कामयाब हो गई है। पिछले साल दिसंबर में उसके हाथ से राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ निकाल गए थे।

table_1.JPG

इन राज्यों में भाजपा की यह गिरावट एक निश्चित प्रवृत्ति है। यह कोई संयोग नहीं है कि तीन दौर में इन पांच राज्यों ने एक साल में इस तरह का फैसला सुनाया है। इसलिए इन राज्यों में इनकी हार का कोई न कोई सामान्य कारक होना चाहिए।

यह ट्रेंड हैरान करने वाला है क्योंकि इन राज्यों में आ रही इस गिरावट के दौरान ही बीजेपी ने इस साल मई के महीने में लोकसभा चुनाव जीते हैं और प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में केंद्र में लगातार दूसरी बार सरकार बनाई गई है। तो आखिर चल क्या रहा है?

ज़मीन पर 'विकास' विफल हो रहा है

राज्य स्तर पर भाजपा का मोहभंग होने का एक मुख्य कारण तो यह है कि लोगों के सामने आ रही बड़ी आर्थिक समस्याओं को हल करने में वह बुरी तरह असफल रही है। इसके असर से बेरोज़गारी, कम होती आमदनी, मूल्य वृद्धि, कृषि संकट, भूमि से संबंधित मुद्दे आदि सभी देश भर में असहनीय अनुपात से बढ़ गए हैं। यदि आप इन पांच राज्यों को ही लें तो इस चुनाव के समय सीएमआईई के मुताबिक औसतन लगभग 7 प्रतिशत की बेरोज़गारी दर दर्ज की गई है जबकि झारखंड में यह दर लगभग 10 प्रतिशत पर है। जो अपने आप में बहुत ख़राब स्थिति की ओर इशारा करती है।

मोदी सरकार ने न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) में कुल लागत+50 प्रतिशत लाभ के फोर्मूले को लागू करने की किसानों की मांग को ठुकरा दिया, इसी के चलते इन सभी राज्यों में किसानों की आय में भारी गिरावट आई है। आप कई मामलों को गहराई से देख सकते हैं, जैसे अनाज का भंडारण ही काफी कम रहा और इसलिए ख़रीद के लिए घोषित की गई एमएसपी भी मज़़ाक बन कर रह गई। हरियाणा को छोड़कर सभी राज्यों में, कॉर्पोरेटों के जरिए भूमि अधिग्रहण के कारण किसानों में भारी असंतोष है क्योंकि वे अपनी आजीविका के एकमात्र साधन के खोने से नाराज़ हैं।

औद्योगिक नीतियां जो मज़दूरों के प्रति शत्रुतापूर्ण है, इसने उनके जीवन के स्तर को सभी मानकों से नीचे गिरा दिया है (स्पष्ट शब्दों में कहें) तो उनके काम के बोझ को बढ़ा दिया है। ठेकेदारी प्रथा को बढ़ावा देने से नौकरी की सुरक्षा पूरी तरह से ख़त्म हो गई है और इसे लागू करने के लिए नए निर्धारित श्रम क़ानूनों के तहत इसे संस्थागत रूप दिया जा रहा है।

इन नीतियों के कारण लोगों की क्रय शक्ति कम हुई है जिसने आम जन पर भारी प्रभाव डाला है। इनमें औद्योगिक मंदी, छंटनी और अधिक नौकरियों का नुकसान, मज़दूरी में अधिक कटौती आदि शामिल हैं। यह सब भाजपा के प्रति बढ़ते असंतोष को हवा दे रहा है।

तो, केंद्र सरकार क्यों नहीं?

ये अघोषित आर्थिक संकट मुख्य रूप से नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार के चलते हुआ है। लेकिन क्रोध और अस्वीकृति राज्य स्तर पर पहली बार दिखाई दे रही है क्योंकि यह ऐसी सरकारें हैं जो भेड़-बकरियों की तरह ऐसे नेता के पीछे चली है और लोगों को अब इसका एहसास हो गया।

मोदी और उनकी सरकार अभी भी अधिकांश लोगों के लिए एक दूर की चीज है। वे शायद अभी भी 'स्वच्छ' छवि, ग़रीबों के लिए उनकी योजनाओं और देश के सम्मान को बनाए रखने की अपनी प्रतिबद्धता के मामले में कुछ गुमराह दिख रहे हैं।

अपनी ओर से मोदी ने यह भी सुनिश्चित किया हुआ है कि हर योजना "प्रधानमंत्री" के नाम से ही किसी तरह होनी चाहिए। मीडिया की सारी चकाचौंध उन्हीं को लेकर है। रघुबर दास और देवेंद्र फड़नवीस और पहले शिवराज चौहान और रमन सिंह को केवल डाकिया या डिलीवरी मैन के रूप में देखा जाता है। मोदी की उपस्थिति में वे केवल दरबारियों की तरह सिर झुकाते और दौड़ते-भागते हैं।

यह दोधारी तलवार है। यह मोदी को ऊपर उठाती है लेकिन वह सूबेदारों को बदनाम भी करती है। यह सभी उपलब्धियों को मोदी की झोली में डालती है लेकिन साथ ही वह सभी संकटों, भ्रष्टाचार और भाई-भतीजावाद की जिम्मेदारी भी सभी सूबेदारों के कंधों पर डाल देती है।

आमतौर पर देखा जाए तो राज्य सरकारें मोदी सरकार के दौरान केंद्र सरकार पर अधिक निर्भर हो गई है, जबकि आर्थिक संकट का एक बड़ा हिस्सा उन पर स्थानांतरित हो गया है और माल तथा सेवा कर के माध्यम से संसाधनों को केंद्र सरकार चूस रही है। केंद्र की विनाशकारी नीतियों से बंधे रहने के सिवाय राज्यों के पास कोई रास्ता नहीं है, न ही उन्हें किसी अलग रास्ते पर चलने की कोई स्वतंत्रता है।

यह सभी राज्यों पर लागू होता है। लेकिन भाजपा शासित राज्यों के हालात बहुत ही बदतर हैं। वे न केवल राजकोषीय संरचना से बंधे हैं बल्कि मोदी सरकार के सकल नव-उदारवादी दृष्टिकोण के बंधनों से भी बंधे हुए हैं जिसमें सार्वजनिक क्षेत्र की बिक्री, विदेशी पूंजी के लिए बाज़़ार को खोलना, सार्वजनिक ख़र्च को कम करना आदि शामिल हैं। कई लोग मानते हैं कि इसमें क्रोनिज्म और भ्रष्टाचार भी केंद्रीकृत हो गया है।

इसके अलावा राज्य-स्तर पर गठबंधन के विकल्प केंद्र की तुलना में अधिक दृश्यमान और व्यवहार्य हैं। यह विपक्षी एकता अपनी खुद की ताकत और गति को पैदा करती है। बेशक, ये एकता बीजेपी की सत्ता को ख़ारिज करने के लिए ज़मीनी दबाव से प्रोत्साहित होती है।

नतीजतन, जब राज्य विधानसभा चुनाव होते हैं तो लोग जल्दी से निकम्मी और भ्रष्ट सरकारों से छुटकारा पा लेते हैं। लेकिन यह मोदी की अगुवाई वाली केंद्र सरकार के लिए भी एक गंभीर चुनौती है। क्योंकि इसका जन आधार तेज़ी से खिसक रहा है। इस व्यापक असंतोष को केंद्र सरकार के दरवाजों पर भी दस्तक देने में ज़़रा भी देर नहीं लगेगी।

अंग्रेजी में लिखा मूल आलेख आप नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं।

Why is BJP Losing State After State?

Jharkhand Assembly Elections 2019
Jharkhand Assembly Elections
BJP
JMM
Hemant Soren

Related Stories

भाजपा के इस्लामोफ़ोबिया ने भारत को कहां पहुंचा दिया?

कश्मीर में हिंसा का दौर: कुछ ज़रूरी सवाल

सम्राट पृथ्वीराज: संघ द्वारा इतिहास के साथ खिलवाड़ की एक और कोशिश

हैदराबाद : मर्सिडीज़ गैंगरेप को क्या राजनीतिक कारणों से दबाया जा रहा है?

ग्राउंड रिपोर्टः पीएम मोदी का ‘क्योटो’, जहां कब्रिस्तान में सिसक रहीं कई फटेहाल ज़िंदगियां

धारा 370 को हटाना : केंद्र की रणनीति हर बार उल्टी पड़ती रहती है

मोहन भागवत का बयान, कश्मीर में जारी हमले और आर्यन खान को क्लीनचिट

मंडल राजनीति का तीसरा अवतार जाति आधारित गणना, कमंडल की राजनीति पर लग सकती है लगाम 

बॉलीवुड को हथियार की तरह इस्तेमाल कर रही है बीजेपी !

गुजरात: भाजपा के हुए हार्दिक पटेल… पाटीदार किसके होंगे?


बाकी खबरें

  • itihas ke panne
    न्यूज़क्लिक टीम
    मलियाना नरसंहार के 35 साल, क्या मिल पाया पीड़ितों को इंसाफ?
    22 May 2022
    न्यूज़क्लिक की इस ख़ास पेशकश में वरिष्ठ पत्रकार नीलांजन मुखोपाध्याय ने पत्रकार और मेरठ दंगो को करीब से देख चुके कुर्बान अली से बात की | 35 साल पहले उत्तर प्रदेश में मेरठ के पास हुए बर्बर मलियाना-…
  • Modi
    अनिल जैन
    ख़बरों के आगे-पीछे: मोदी और शी जिनपिंग के “निज़ी” रिश्तों से लेकर विदेशी कंपनियों के भारत छोड़ने तक
    22 May 2022
    हर बार की तरह इस हफ़्ते भी, इस सप्ताह की ज़रूरी ख़बरों को लेकर आए हैं लेखक अनिल जैन..
  • न्यूज़क्लिक डेस्क
    इतवार की कविता : 'कल शब मौसम की पहली बारिश थी...'
    22 May 2022
    बदलते मौसम को उर्दू शायरी में कई तरीक़ों से ढाला गया है, ये मौसम कभी दोस्त है तो कभी दुश्मन। बदलते मौसम के बीच पढ़िये परवीन शाकिर की एक नज़्म और इदरीस बाबर की एक ग़ज़ल।
  • diwakar
    अनिल अंशुमन
    बिहार : जन संघर्षों से जुड़े कलाकार राकेश दिवाकर की आकस्मिक मौत से सांस्कृतिक धारा को बड़ा झटका
    22 May 2022
    बिहार के चर्चित क्रन्तिकारी किसान आन्दोलन की धरती कही जानेवाली भोजपुर की धरती से जुड़े आरा के युवा जन संस्कृतिकर्मी व आला दर्जे के प्रयोगधर्मी चित्रकार राकेश कुमार दिवाकर को एक जीवंत मिसाल माना जा…
  • उपेंद्र स्वामी
    ऑस्ट्रेलिया: नौ साल बाद लिबरल पार्टी सत्ता से बेदख़ल, लेबर नेता अल्बानीज होंगे नए प्रधानमंत्री
    22 May 2022
    ऑस्ट्रेलिया में नतीजों के गहरे निहितार्थ हैं। यह भी कि क्या अब पर्यावरण व जलवायु परिवर्तन बन गए हैं चुनावी मुद्दे!
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License