NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
अर्थव्यवस्था
कामगारों को निर्धन बनाकर अर्थव्यवस्था में जारी सुधार लंबे वक़्त तक नहीं टिकेगा
लॉकडाउन से पैदा हुई खाई से उबर रही GDP में सुधार के साथ फ़िलहाल बड़ी मात्रा में श्रम का विस्थापन और वेतन-भत्तों में कमी देखी जा रही है। इससे अर्थव्यवस्था की कुल मांग में कमी आएगी।
प्रभात पटनायक
24 Nov 2020
अर्थव्यवस्था

नरेंद्र मोदी से लेकर निर्मला सीतारमण तक, सरकार के कई मंत्री महामारी द्वारा लाए गए संकट से भारतीय अर्थव्यवस्था के उबरने की बात कर रहे हैं। यहां तक कि रिजर्व बैंक भी अक्टूबर में भारतीय अर्थव्यवस्था के उबरने की उम्मीद कर रहा है। जबकि RBI ने दूसरी तिमाही में -8.6 फ़ीसदी विकास दर होने का अनुमान लगाया था।

इतना जरूर है कि जब हालात सामान्य होंगे, तो अर्थव्यवस्था कुछ हद तक लॉकडाउन की खाई से निकलकर बाहर आएगी। लेकिन यह सरकार की बदौलत नहीं है। यहां तक कि दूसरी तिमाही में -8.6% की विकास दर पहली तिमाही की तुलना में सुधार दिखाती है। पहली तिमाही में अर्थव्यवस्था की विकास दर -23.9 फ़ीसदी तक गिर गई थी। दोनों आंकड़े पिछले साल की इन्हीं महीनों की तिमाहियों से तुलना पर आधारित हैं।

अर्थव्यवस्था इन दिनों इस खाई से बाहर निकल रही है, जो बिना किसी अचरज के हो रहा है, लेकिन यह स्वाभाविक तरीके से कितनी ऊपर तक जाएगी। यहां अहम बात यह है कि अर्थव्यवस्था में सुधार का बड़ा हिस्सा श्रम विस्थापन और प्रति घंटे मजदूरी भत्तों को कम करने से पैदा हुआ है, इसके चलते अधिशेष मूल्य बढ़ा है। लेकिन सुधार का यह उभार जल्द खत्म हो जाएगा।

दूसरी तिमाही में अर्थव्यवस्था में 8.6 फीसदी की गिरावट वाला RBI का आंकड़ा “इक्नोमेट्रिक एस्टीमेट” है, ना कि यह सांख्यिकीय अनुमान है। यह सांख्यकीय अनुमान वैसा ही है, जैसा सरकार का राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (NSO) लाता रहता है। इक्नोमेट्रिक एस्टीमेट में एक मॉडलिंग एक्सरसाइज़ की जाती है, जो बेहद सीमित आंकड़ों पर आधारित होती है। यह सांख्यिकीय अनुमान के तरीके से बिलकुल अलग है। फिर भी NSO के अनुमान RBI के आंकड़ों से बहुत अलग नहीं होने की संभावना है।

लेकिन “जुलाई से सितंबर 2020 के बीच की तिमाही” के लिए अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन के अनुमान बताते हैं कि दक्षिण एशिया में ‘श्रम-घंटों’ में 18.2 फ़ीसदी की बड़ी गिरावट आई है। यह गिरावट पिछले साल 2019 के अक्टूबर-दिसंबर के बीच की तिमाही के आंकड़ों से तुलना पर आधारित है। अगर हम जुलाई-सितंबर, 2019 की तिमाही के आंकड़ों से मौजूदा दौर की तुलना करें, तो ऐसी ही गिरावट आई होगी।

जुलाई-सितंबर, 2019 की तुलना में जुलाई-सितंबर, 2020 में GDP में जो गिरावट आई, वह इस GDP को उत्पादित करने वाले श्रम-घंटों में इसी अवधि में आई गिरावट की तुलना में तो कम है। या दूसरे तरीके से कहें, तो लॉकडाउन से जिस खाई में अर्थव्यवस्था गिर गई थी, उससे ज़्यादा बड़े अनुपात में ‘GDP की प्रति यूनिट पर खर्च होने वाले लेबर इनपुट (श्रम निवेश)’ में गिरावट आई है।

जाहिर तौर पर यह गिरावट किसी तरह के तकनीकी विकास से नहीं आई है, जिससे श्रम की बचत हो रही हो। क्योंकि हम यहां उतने वक़्त की बात कर रहे हैं, जो किसी भी तरह की तकनीकी विकास के लिए बहुत कम है। इसलिए इस परिघटना, जिसमे लॉकडाउन के बाद नीचे गई GDP के उभार का स्तर, इसको उत्पादित करने में लगने वाले श्रम-घंटों में आए सुधार से बहुत ज़्यादा है, उसकी केवल दो ही व्याख्याएं हो सकती हैं।

पहली व्याख्या के मुताबिक ऐसा उस श्रम की छंटनी के चलते हो सकता है, जो पहले अप्रत्यक्ष श्रम (ओवरहेड) की श्रेणी में आता था, लेकिन पहले उसकी छंटनी नहीं की गई। इस तरह के अप्रत्यक्ष श्रम में किफायत के लिए लेबर इनपुट को कम किया जा सकता है। 

वेतन कमाने वाले, यहां तक कि भत्ता कमाने वालों का एक हिस्सा, जिनकी वेतन/भत्ता उत्पादन की मात्रा पर निर्भर नहीं करता, लेकिन वे अप्रत्यक्ष श्रम के हिस्सेदार होते हैं, उनसे लॉकडाउन के बाद कांट्रेक्ट वर्कर्स की तरह पेश आया गया। मतलब जब उत्पादन कम हुआ, तो उनकी छंटनी कर दी गई।

उत्पादन में सुधार का दूसरा तरीका “प्रति ईकाई उत्पादन” पर लगने वाले “प्रति ईकाई श्रम” को घटाना है। इसका मतलब हुआ कि अगर अर्थव्यवस्था में सुधार उन क्षेत्रों में केंद्रित है, जहां कम श्रम की जरूरत पड़ती है। इसलिए जिन क्षेत्रों में ज्यादा श्रम की जरूरत पड़ती है, वे पिछड़े रहेंगे।

इस बात की बहुत संभावना है कि इसने काफ़ी प्रभाव डाला होगा, क्योंकि कृषि को छोड़कर, ऐसे अनौपचारिक क्षेत्र जिनमें ज्यादा श्रम की जरूरत पड़ती है, उन्हें अब भी लॉकडाउन से उबरने का इंतज़ार है। इस दौरान जो भी सुधार हुआ है, वह मुख्यत: अर्थव्यवस्था के कॉरपोरेट क्षेत्र तक सीमित है, इसमें सार्वजनिक और निजी दोनों ही क्षेत्र शामिल हैं। कॉरपोरेट क्षेत्र में कम श्रम की जरूरत होती है।

GDP की प्रति यूनिट पर लगने वाले श्रम में स्पष्ट गिरावट के अलावा, भत्तों की मात्रा में भी कमी आई है। RBI की खुद की रिपोर्ट कहती है कि कॉरपोरेट सेक्टर अब अपने लागत मूल्य में कटौती कर रहा है। इस तरह की कटौती का एक अहम तत्व भत्तों और वेतन में कटौती करना है। प्रति यूनिट ऑउटपुट पर लगने वाले श्रम-घंटों और प्रति श्रम घंटे पर होने वाली आय में कटौती, वेतन-भत्तों में कटौती की वज़ह हैं। इसी लागत मूल्य में कटौती के चलते कई महीनों में पहली बार इस क्षेत्र में कुल मुनाफ़ा दर्ज किया गया है। ऐसा इसलिए भी हुआ क्योंकि बिक्री पहले की तुलना में बढ़ गई है, जबकि इस अनुपात में लागत नहीं बढ़ी।

अब अगर अनौपचारिक क्षेत्र लगातार पिछड़ता रहता है, तो इसका मतलब होगा कि रोज़गार में बड़ा नुकसान होगा। इसी तरह अगर वैतनिक कर्मचारियों की छटनी होगी, कर्मचारियों के बड़े हिस्से के भत्तों में कटौती की जाएगी तो इसका मतलब होगा कि प्रति यूनिट GDP पर श्रम आय में गिरावट आएगी। मतलब लॉकडाउन से पैदा हुई खाई से निकलने के क्रम में कर्मचारियों को पूरी तरह डुबो दिया जाएगा।

जीडीपी में सुधार का स्तर अब भी कोरोना से पहले के दौर वाले स्तर से नीचे है, लेकिन इस बीच कामग़ारों का जीवन स्तर कोरोना से पहले के दौर से बहुत नीचे पहुंच चुका है। इसके चलते अर्थव्यवस्था में सुधार के दौरान अधिशेष मूल्य की दर में बढ़ोत्तरी हो रही है।

दो तरह के सबूत इस तस्वीर की पुष्टि करते हैं। पहला, जैसा ऊपर बताया जा चुका है, कॉरपोरेट सेक्टर के संचालन मुनाफ़े (ऑपरेटिंग प्रॉफिट) में तेज उछाल आया है। इसका पता 887 गैर वित्तीय सूचीबद्ध कंपनियों के प्रदर्शन से चलता है। यह सभी सूचीबद्ध गैर-वित्तीय कंपनियों के पूंजीकरण (कैपिटलाइज़ेशन) का चौथा-पाँचवाँ हिस्सा बनाती हैं।

पिछले साल की तिमाही से तुलना करते हुए, RBI का मासिक बुलेटिन कहता है, “सितंबर, 2020 को खत्म होने वाली तिमाही में इन कंपनियों का खर्च, इनकी उत्पाद बिक्री की तुलना में ज़्यादा तेजी के साथ गिरा है। इससे दो तिमाहियों में लगातार हो रही सिकुड़न के बाद संचालन मुनाफ़े में बड़ा उछाल आया है।”

दूसरा सबूत ग्रामीण रोज़गार गारंटी योजना- मनरेगा में बड़ी संख्या में आवेदकों का आना है। अक्तूबर में यह संख्या 91.3 फ़ीसदी बढ़ चुकी है, यह बताती है कि नौकरियों की दूसरी जगह क्या हालत है। लॉकडाउन के दौरान लोग शहरों से वापस प्रवास कर गांवों में गए। अर्थव्यवस्था में जो भी सुधार हो रहा है, उसके बावजूद ग्रामीण रोज़गार बाज़ार में भीड़ की स्थिति कम नहीं हो रही है, जो विपरीत प्रवास के चलते पैदा हुई है। यह चीज इस बात की पुष्टि भी करती है कि शहरी अनौपचारिक क्षेत्र में कोई बड़ा सुधार नहीं हुआ है। क्योंकि यह ज़्यादातर मज़दूर इसी क्षेत्र से प्रवास कर वापस गांव लौटे हैं।

कामग़ारों की स्थितियों के लगातार बदतर होते जाने के बाद भी अगर अर्थव्यवस्था में सुधार हो रहा है, तो इसका मतलब यह हुआ कि खपत की मांग, उधार या एकत्रित की गई नगदी के ज़रिए पूरी हो रही है। लेकिन ऐसा लंबे वक़्त तक नहीं चल सकता।

बेरोज़गारी और कम आय के चलते कामग़ारों की बदतर होती स्थिति जल्द ही खपत मांग को प्रभावित करेगी, जिससे समग्र मांग भी प्रभावित होगी। उस दौरान अर्थव्यवस्था में सुधार रुक जाएगा।

अर्थशास्त्रियों, सामाजिक समूहों और कुछ राजनीतिक दलों, जिसमें सबसे ऊपर वामपंथी पार्टियां शामिल हैं, उनके द्वारा लगातार गुहार लगाए जाने के बावजूद मोदी सरकार ने लोगों की क्रय शक्ति को बढ़ाने के लिए कुछ नहीं किया। क्रय शक्ति को बढ़ाने के लिए अगर कोशिशें नहीं की गईं, तो अर्थव्यवस्था में सुधार रुक जाएगा, इन चेतावनियों पर कोई सुनवाई नहीं की गई।

वक्त-वक्त पर दिए गए राहत पैकेज, जिसमें हालिया पैकेज भी शामिल है, उनमें सरकार ने जो घोषणाएं की हैं, वो ना केवल नाकाफ़ी हैं, बल्कि सिर्फ़ पूंजीपतियों की ज़िंदगी आसान बनाने के लिए हैं। लेकिन इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि पूंजीपतियों के लिए चीजें कितनी आसान बनाई जाती हैं या “ईज़ ऑफ डूइंग बिज़नेस” पैमाने में भारत की तरफ से कितना भी सुधार होता है, जब तक इस देश में कुल मांग नहीं बढ़ेगी, कोई भी पूंजीपति यहाँ निवेश नहीं करेगा।

जिन जगहों पर कोरोना खत्म हो चुका था, उन पर तेजी से इसकी वापसी हुई है। बल्कि कई देशों में तो यह तात्कालिक तौर पर भी खत्म नहीं हुआ, जिनमें सबसे प्रमुख अमेरिका है। ऐसी स्थिति में निर्यात के ज़रिए अर्थव्यवस्था में सुधार लाने का विकल्प भी उपलब्ध नहीं है।

तब अर्थव्यवस्था में सुधार सिर्फ़ घरेलू मांग, खासकर उपभोग मांग बढ़ाकर लाया जा सकता है। यह महामारी की चपेट में फंसे लोगों के कल्याण और अर्थव्यवस्था को उबारने, दोनों के लिए जरूरी है। लेकिन सरकार ने इस मांग को बढ़ाने के लिए कुछ नहीं किया। बल्कि जितना भी सुधार हुआ है, उसमें अधिशेष मूल्य में बढ़ोतरी देखी गई है, जिसके चलते अर्थव्यवस्था का सुधार निश्चित तौर पर रुक जाएगा।

इस लेख को मूल अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें।

Why Recovery at Cost of Worker Immiserisation Won’t Last Long

Economic Recovery
indian economy
India GDP Growth
Retrenchement
Wage Cuts
Job Losses
Stimulus package
Nirmala Sitharaman

Related Stories

डरावना आर्थिक संकट: न तो ख़रीदने की ताक़त, न कोई नौकरी, और उस पर बढ़ती कीमतें

भारत के निर्यात प्रतिबंध को लेकर चल रही राजनीति

आर्थिक रिकवरी के वहम का शिकार है मोदी सरकार

क्या जानबूझकर महंगाई पर चर्चा से आम आदमी से जुड़े मुद्दे बाहर रखे जाते हैं?

जब 'ज्ञानवापी' पर हो चर्चा, तब महंगाई की किसको परवाह?

मज़बूत नेता के राज में डॉलर के मुक़ाबले रुपया अब तक के इतिहास में सबसे कमज़ोर

क्या भारत महामारी के बाद के रोज़गार संकट का सामना कर रहा है?

कन्क्लूसिव लैंड टाईटलिंग की भारत सरकार की बड़ी छलांग

क्या एफटीए की मौजूदा होड़ दर्शाती है कि भारतीय अर्थव्यवस्था परिपक्व हो चली है?

महंगाई के कुचक्र में पिसती आम जनता


बाकी खबरें

  • पुलकित कुमार शर्मा
    आख़िर फ़ायदे में चल रही कंपनियां भी क्यों बेचना चाहती है सरकार?
    30 May 2022
    मोदी सरकार अच्छे ख़ासी प्रॉफिट में चल रही BPCL जैसी सार्वजानिक कंपनी का भी निजीकरण करना चाहती है, जबकि 2020-21 में BPCL के प्रॉफिट में 600 फ़ीसदी से ज्यादा की वृद्धि हुई है। फ़िलहाल तो इस निजीकरण को…
  • भाषा
    रालोद के सम्मेलन में जाति जनगणना कराने, सामाजिक न्याय आयोग के गठन की मांग
    30 May 2022
    रालोद की ओर से रविवार को दिल्ली में ‘सामाजिक न्याय सम्मेलन’ का आयोजन किया जिसमें राजद, जद (यू) और तृणमूल कांग्रेस समेत कई विपक्षी दलों के नेताओं ने भाग लिया। सम्मेलन में देश में जाति आधारित जनगणना…
  • सुबोध वर्मा
    मोदी@8: भाजपा की 'कल्याण' और 'सेवा' की बात
    30 May 2022
    बढ़ती बेरोज़गारी और महंगाई से पैदा हुए असंतोष से निपटने में सरकार की विफलता का मुकाबला करने के लिए भाजपा यह बातें कर रही है।
  • भाषा
    नेपाल विमान हादसे में कोई व्यक्ति जीवित नहीं मिला
    30 May 2022
    नेपाल की सेना ने सोमवार को बताया कि रविवार की सुबह दुर्घटनाग्रस्त हुए यात्री विमान का मलबा नेपाल के मुस्तांग जिले में मिला है। यह विमान करीब 20 घंटे से लापता था।
  • भाषा
    मूसेवाला की हत्या को लेकर ग्रामीणों ने किया प्रदर्शन, कांग्रेस ने इसे ‘राजनीतिक हत्या’ बताया
    30 May 2022
    पंजाब के मानसा जिले में रविवार को अज्ञात हमलावरों ने सिद्धू मूसेवाला (28) की गोली मारकर हत्या कर दी थी। राज्य सरकार द्वारा मूसेवाला की सुरक्षा वापस लिए जाने के एक दिन बाद यह घटना हुई थी। मूसेवाला के…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License