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प्रवासी श्रमिकों के अधिकार और सम्मान के लिए मज़दूर संगठन ने किया देशव्यापी प्रतिवाद
मज़दूर संगठन ऐक्टू ने इस प्रतिवाद का आयोजन प्रवासी श्रमिकों के मुद्दों के प्रति सरकारी की उदासीनता के ख़िलाफ़ 18 और 19 अप्रैल को किया। इसमें देश के ज़्यादातर राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के प्रवासी मज़दूरों व ट्रेड यूनियन कार्यकर्ताओं समेत अन्य लोगों ने हिस्सा लिया।
न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
20 Apr 2020
मज़दूर संगठन

दिल्ली: प्रवासी श्रमिकों के अधिकार और सम्मान के लिए मजदूर संगठन ऐक्टू के साथ, भाकपा माले और ग्रामीण खेत मजदूर सभा ने 18 और 19 अप्रैल को दिल्ली, बिहार सहित देश के कई राज्यों में विरोध किया। इस दौरन लॉकडाउन के नियम का ध्यान रखते हुए कहीं भूख हड़ताल तो कही विरोध दिवस मनाया गया।

इस देशव्यापी विरोध के तहत देश की राजधानी दिल्ली के विभिन्न इलाकों में सोशल डिस्टेंसिंग का पूरी तरह पालन करते हुए प्रवासी मजदूरों की समस्याओं को लेकर ऐक्टू के बैनर तले मजदूरों ने विरोध किया। इसमें भवन निर्माण से लेकर औद्योगिक मजदूरों और रेहड़ी-पटरी-खोमचा मजदूरों, छात्र-कार्यकर्ताओं, वकीलों व अन्य लोगों ने भागीदारी की।

उत्तरी दिल्ली के नरेला, कादीपुर, मुखर्जी नगर, वजीरपुर, संत नगर- बुराड़ी; दक्षिणी दिल्ली के संगम विहार, वसंत कुंज, कापसहेड़ा, आश्रम, गोविन्दपुरी, कालकाजी और पूर्वी दिल्ली के मुस्तफाबाद, शाहदरा, मंडावली, पटपड़गंज आदि इलाकों में प्रवासी मजदूरों ने कार्यक्रम में भारी संख्या में भागीदारी की।

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इस प्रतिवाद का आयोजन प्रवासी मजदूरों के मुद्दों के प्रति सरकारी की उदासीनता के खिलाफ किया गया था। बिहार, झारखंड, प. बंगाल, ओडिशा, तेलंगाना, राजस्थान, तमिलनाडु, महाराष्ट्र, गुजरात, उत्तराखंड, छत्तीसगढ़, उत्तर-प्रदेश, कर्नाटक आदि राज्यों में प्रवासी मजदूरों व ट्रेड यूनियन कार्यकर्ताओं समेत अन्य लोगों ने भी हिस्सा लिया।

इससे पहले तमिलनाडु के कई ट्रेड यूनियन व राजनैतिक कार्यकर्ताओं पर लॉक-डाउन के दौरान मजदूरों की समस्याओं को लेकर विरोध करने के चलते मामला दर्ज किया जा चुका है। सोमवार को भी उत्तर प्रदेश के अयोध्या में इंकलाबी नौजवान सभा के अतीक अहमद को पुलिस द्वारा गिरफ्तार किया गया था। फिलहाल उन्हें पर्सनल-बांड पर छोड़ दिया गया है।

विरोध कर रहे मजदूरों ने कहाकि 'मोदी सरकार द्वारा बिना किसी प्लानिंग के किए गए लॉकडाउन एवं केन्द्र और ज्यादातर राज्य सरकारों के राहत कार्य में विफल रहने की वजह से देश की एक बड़ी आबादी के सामने भुखमरी जैसे हालात पैदा हो गए हैं। मजदूर अपने गृह-राज्यों से दूर अन्य राज्यों में फंसे हुए हैं। खाने और राशन की कमी के चलते आत्महत्या तक कर रहे हैं। सरकारी रवैये से प्रधानमंत्री मोदी और दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल समेत कई राज्यों के मुख्यमंत्रियों के खोखले वादों की कलई खुल रही है। रोजगार, भोजन और पैसा न होने की वजह से, मजदूरों के सामने बहुत बुरे हालात हैं। इन्हीं कारणों से कई मजदूरों ने मुश्किल पैदल यात्राओं पर निकलना शुरू कर दिया।'

वहीं, मजदूर संगठन ऐक्टू का कहना है कि 'एक तरफ भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) के पास कई लाख टन का बफर स्टॉक गोदामों में रखा हुआ है, इसके बावजूद भी मजदूर भूख से मर रहे हैं। सरकारी हेल्पलाइन और ‘खाद्य वितरण केन्द्र’ मजदूर वर्ग और गरीब जनता के छोटे से हिस्से तक को राहत दे पाने में असफल हैं, तो दूसरी तरफ कारखानों, सर्विस सेक्टर, आईटी, मीडिया - हर जगह, हर स्तर पर कर्मचारियों को लॉकडाउन के नाम पर काम से निकाला जा रहा है। और ये तब हो रहा है जबकि प्रधानमंत्री बहुत जोर जोर से अपने विभिन्न मंत्रालयों के जरिए नियोक्ताओं से अपील कर रहे हैं कि वे ऐसा ना करें। विभिन्न राज्यों ने अपने श्रम विभाग के अधिकारियों से कहा कि वे ये सुनिश्चित करें कि लॉकडाउन के दौरान छंटनी या वेतन कटौती न हो; लेकिन हमे लगातार छंटनी, वेतन कटौती, और जबरन छुट्टी पर भेजे जाने की शिकायतें मिल रही हैं।'

'दिल्ली सरकार पूर्ण रूप से विफल'

मजदूर संगठन ऐक्टू ने अपनी प्रेस विज्ञप्तिमें में कहा उप-राज्यपाल और मुख्यमंत्री के नेतृत्व वाली दिल्ली सरकार खाने की कमी से जूझती जनता को खाना तक मुहैया नहीं करवा पा रही है। जो भोजन केन्द्र बनाए गए हैं वो बहुत कम हैं। ये कई बार मजदूर इलाकों से दूर होते हैं, यहां बहुत कम मात्रा में व निम्न क्वालिटी का खाना उपलब्ध करवाया जाता है।

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इस दौरान पुलिस के व्यवहार पर भी गंभीर सवाल उठ रहे हैं। लोगों को इन भोजन वितरण केन्द्रों पर लम्बी कतारों का भी सामना करना पड़ रहा है। दिल्ली पुलिस द्वारा भूखे मजदूरों को मारने-पीटने की भी घटनाएं सामने आ रही हैं। दिल्ली के मुख्यमंत्री के आश्वासनों व घोषणाओं के बावजूद कई मजदूरों को नौकरियों से निकाल दिया गया है। गरीबों-मजदूरों को पुलिस परेशान कर रही है, उन्हें राशन, वेतन या किसी भी अन्य तरह का गुज़ारा भत्ता नहीं दिया जा रहा है।

मजदूर नेताओं ने सरकार आरोप लगाते हुए कहा कि इतने बुरे हालातों में भी दिल्ली के मुख्यमंत्री, उप-राज्यपाल और श्रम मंत्री ने ट्रेड यूनियनों के साथ बातचीत तक करने से मना कर दिया है, जिससे मजदूरों तक पहुंचा व बेहतर राहत कार्य सुनिश्चित किया जा सकता था।

ऐक्टू ने दिल्ली सरकार को कई पत्र लिखे लेकिन दिल्ली सरकार ने उन्हें साफ़ तौर पर अनसुना कर दिया। अस्थायी राशन कार्ड को लेकर टीवी पर चल रही घोषणाओं का खोखलापन तब सामने आ जाता है, जब हर मजदूर से दिल्ली सरकार इन्टरनेट, स्मार्टफोन, आधार कार्ड इत्यादि का इस्तेमाल करके सरकारी वेबसाइट पर रजिस्टर करने की अपेक्षा करती है।

ज्यादातर समय दिल्ली सरकार की ये साइट भी ‘डाउन’ रहती है। सरकार को तुरंत आधार कार्ड, पंजीकरण इत्यादि के चक्करों को छोड़कर सभी मजदूरों-गरीबों को राशन देने की गारंटी करनी चाहिए।

इसके साथ ही पांच हजार रुपये का आर्थिक अनुदान भी सिर्फ उन भवन-निवारण मजदूरों को दिया गया है जो ‘दिल्ली भवन एवं अन्य सन्निर्माण श्रमिक कल्याण बोर्ड’ में पंजीकृत हैं, और वह भी बोर्ड के अपने फंड से। इस घोषणा के लाभार्थियों की कुल संख्या बहुत मुश्किल से दिल्ली की कुल मजदूर आबादी का एक या दो प्रतिशत ही होगी।

‘मरकज़’ मुद्दे पर दिल्ली और केंद्र सरकार द्वारा दिए गए बयानों ने समाज में नफरत की जड़ों को और गहरा कर दिया है। मुस्लिम समुदाय से आने वाले रेहड़ी-खोखा वाले छोटे दुकानदारों को कई जगहों पर हिंसा का सामना भी करना पड़ रहा है।

ऐक्टू ने सरकार से यह मांग किया कि 'मजदूरों और गरीबों के मुद्दों पर केन्द्र और राज्य सरकारों द्वारा केवल बयानबाजी नहीं बल्कि फौरन कार्रवाई की जाए। ट्रेड यूनियनों के साथ बातचीत करके “प्रवासी मजदूर कार्य-योजना” तैयार किया जाए और भारतीय खाद्य निगम (एफ सी आई) के गोदामों को फौरन जनता के लिए खोल दिया जाए। नियोक्ताओं को छंटनी करने व वेतन कटौती से रोकने के लिए सरकार को ठोस कदम उठाने चाहिए। किसी भी तरह के साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण से सख्ती से निपटा जाना चाहिए।

इसके साथ ही देश भर में भूखे लोगों के खिलाफ हर तरह का दमन–खासकर पुलिस द्वारा किए जा रहे मारपीट को फौरन बंद किया जाए। हम गुजरात, महाराष्ट्र व अन्य जगहों पर मजदूरों के खिलाफ दर्ज मामलों को फौरन खारिज करने की भी मांग करते हैं। 

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