NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
राजनीति
अंतरराष्ट्रीय
यातना गृह का भूत
जब तक आपका विरोध जारी हैं, आप हारेंगे नही
विजय प्रसाद
31 Aug 2018
Translated by महेश कुमार
ब्यूनस आयर्स (अर्जेंटीना)

जहाँ राज्य अपने नागरिकों को अत्याचार करने के लिए ले जाता है अक्सर वह सर्वसाधारण का स्थान होता है। ब्यूनस आयर्स (अर्जेंटीना) में एक मध्यम वर्ग के पड़ोस में, सैन्य समूह  ने अपने उत्पीड़न और उन्मूलन केंद्र के लिए नौसेना के स्कूल के अधिकारियों के क्लब की इमारत का चयन किया था। यह 1976 से 1983 तक के सैन्य तानाशाही का दौर था। पांच हजार ट्रेड यूनियन और छात्र कार्यकर्ता यहां उनके चेहरों को हुड के साथ ढक कर लाए गए थे। उन्हें तहखाने में ले जाया गया, जहां उनसे एक साधारण कमरे में पूछताछ की गई, फिर अधिकारियों के कमरे के पीछे वाली सीढ़ियों से अटारी में ले जाया गया, जहाँ उन्हें उनके अगले यातना सत्र तक लेटने के लिए मजबूर किया गया। जब समूह  उनसे थक गए, तो उन्हें एक हवाई अड्डे पर ले जाया गया, एक विमान में बैठाकर और फिर जिंदा - अटलांटिक महासागर में गिरा दिया गया। वे गायब हो गए

यह यातना केंद्र अब एक संग्रहालय बन गया है, जो उस स्याह समय के लिए एक स्मारक बन है। मैदान इस वसंत के दिन में हरे भरे हो गए हैं, सूरज उगा है, इमारत उन लोगों की बड़ी तस्वीरों से ढकी हुई हैं जिनको यहां यातना दी गई और बाद में समुद्र में फेंक दिया गया था।

मेकॅनिका डे ला आर्मडा

एस्कुएला डी मेकॅनिका डे ला आर्मडा का मैदान

कुछ साल पहले, मैंने पुर्तगाल की तानाशाही का लिस्बन के यातना केंद्र का दौरा किया था। वह केंद्र 1928 से 1965 तक चला था, जिसके दौरान हजारों ट्रेड यूनियन और छात्र कार्यकर्ताओ, कम्युनिस्ट और सभी प्रकार के विद्रोहियों को यहां अत्याचार के लिए लाया गया था। बहुत से लोग मारे गए – ज्यादतर को बडी़ ही महान क्रूरता के साथ मारा गया था ।

मसेउ डु अल्जुबे

मसेउ डु अल्जुबे में एक कक्ष

लिस्बन के संग्रहालय में संरक्षित सैकड़ों कहानियों से क्रूरता की औपचारिकता की झलक मिलती है। 31 जुलाई, 1958 को, वेल्डर राउल अल्व्स को उसके कैद्को द्वारा इमारत की तीसरी मंजिल पर ले जाया गया था। उन्होंने उसे ऊपर से मरने के लिए फेंक दिया था। ब्राजील के राजदूत की पत्नी उस पल वहाँ से गुजारी थी । ब्राजील के दूतावास ने गृह मंत्रालय से पूछा कि क्या हुआ था। पुर्तगाली तानाशाही ने जवाब दिया, 'चिंता का कोई कारण नहीं है। यह केवल एक महत्वहीन कम्युनिस्ट है।

इन सैन्य तानाशाहों  द्वारा मारे गए अधिकांश लोग ट्रेड युनियन आंदोलन, छात्र आंदोलन और महिला आंदोलन और मानवाधिकार आंदोलन के लोग थे ,जो वामपंथ से जुड़े हुए कार्यकर्ता थे। अर्जेंटीना में, इस अवधि के दौरान, वाम संगठनों के तीस हजार ऐसे जुझारू कार्यकर्ताओं को मार डाला गया था- ये वामपंथ के कार्यकर्ताओं के बढ़ाने वाला कारक सिद्ध हुआ | वाम को समाप्त कर दिया गया था, जैसे इंडोनेशियाई सेना और चिली सेना ने उनके  संबंधित देशों में पूरे वाम की हत्या कर दी थी। पश्चिम की खुफिया एजेंसियों ने उन लोगों की सूची बनाई जिन्हें वे मारना चाहते थे। येएक बार फिर से - कम्युनिस्ट और ट्रेड यूनियन, छात्र और नागरिक स्वतंत्रता के प्रचारक  थे | जिन्हें  1965 के सैन्य विद्रोह के बाद इंडोनेशिया में दस लाख से अधिक वामपंथी मारे गए थे।

अर्जेंटीना में गायब हो गए लोगों के परिवारों के पास रोने और चिल्लाने के अलावा उनकी इन हत्याओं के बारे में कुछ भी नहीं पता था। इन पुरुषों और महिलाओं की मां गुलाबी हाउस के सामने प्लाजा डी मेयो में इकट्ठा होने लगीं, जहाँ सरकार अपना काम करती है। ये सभी माँ हर हफ्ते उस गोलचक्र का एक चक्र लगाती हैं, जो  आज़ तक जारी है।

बचे हुए लोगों से साक्ष्य जाँचकर्ताओं को उन वर्षों के दौरान जो हुआ उसके साक्ष्य को एकसाथ एकत्रित करने में मदद किया । उनमें से तीन - मारिया एलिसिया मिलिया, एना मारिया मार्टि और सारा सोलारज़ डी ओसातिंस्की – ने इस गुप्त यातना केंद्र के बारे में लिखा, 'उस जगह के भीतर मौत की गंध थी'। अन्य यातना केंद्रों की तरह, ब्यूनस आयर्स में से एक को वास्तविक यातना के लिए तहखाने में कमरे का उपयोग किया गया था । कमरे के बाहर एक लाल रोशनी थी जो दूसरों को चेतावनी देती थी कि यातना जारी है। काबुल (अफगानिस्तान) के बाहर यूएस बेस सहित अन्य केंद्रों में भी इसी प्रकार की वास्तुकला का उपयोग किया जाता है। कैदी को खली सेल में लाते है।फिर ,यातना के साधन लाए जाते हैं साथ ही लाल रोशनी आती है। आमतौर पर कैदियों चिल्लाना निचे गलियारे में सुना जा सकता है। उरुग्वेयन लेखक एडुआर्डो गैलेनो लैटिन अमेरिकी यातना कक्षों के आविष्कार के बारे में महसूस करते हुए लिखते हैं। द कॉन्टिनेंट, उन्होंने लिखा, 'यातना के तरीकों के विकास के लिए सार्वभौमिक योगदान दिया, लोगों और विचारों की हत्या के लिए तकनीक, चुप्पी की खेती, नपुंसकता का विस्तार, और भय को  विकसित करने' के लिए प्रेरित किया।

एंरिक मारिओ फुक्मन

एंरिक मारिओ फुक्मन, जो बच गया था, यातना के बारे में बताता है

सैन्य समूह की समाप्ति के बाद भी, मौन और डर का रहना उसका उद्देश्य था। अर्जेंटीना में, वे इसे 'आखिरी तानाशाही' के रूप में संदर्भित करते हैं, एक वाक्यांश जो स्वीकार करता है कि उस से पहले भी तानाशाही रही है और संभवतः - एक तरह की तानाशाही हो सकती है या बाद में भी रह सकती है। वाम संगठन के कार्यकर्ता और मजदूर जॉर्ज लोपेज़, तानाशाही के दाग से देश को शुद्ध करने के लिए ट्रिब्यूनल में गवाही देते हैं। वह उन विवरणों को देतें है , जो सशस्त्र बलों के लिए खतरनाक था । लोपेज़, जिन्हें उन्होंने एक बार गायब करने की कोशिश की थी, दूसरी बार गायब हो गए थे । वह अब शायद मृत को प्रप्त हो गए है।

जॉर्ज लोपेज़

ब्यूनस आयर्स के यातना केंद्र में जॉर्ज लोपेज़ का दीवार-चित्र

तहखाने के अंदर, जहां यातना हुई थी, वहां फोटो का एक पैनल है उनका जिन्हे हिरासत में लिया गया था और गायब हो गए थे। उन तस्वीरों को विक्टर बास्टररा ने लिया था, जो खुद एक कैदी था ,जिसने इस जेल में चार साल बिताए थे और उन्हें यहां लाया गया था की प्रत्येक व्यक्ति की फोटोग्राफ लेने के लिए मजबूर होना पड़ा था। उन्होंने फोटो के नेगेटीव की तस्करी किया  और हमें उन लोगों का रिकॉर्ड दिया जिन्हें सेना ने मारा था। संवेदनशील आंखें कैमरे की तरफ देखती हैं। ये पुरुष और महिलाएं हैं जो मजदूर वर्ग और किसानों के लिए  समर्पित हैं। उन्हें सैन्य तानाशाही से नफरत थी। हर देश ऐसे लोगों को तैयार करता है, जिनमें से अधिकतर अपने जीवन को इस दुनिया की कुरूपता को सौंदर्य में बदलने की कोशिश कर रहे हैं। अमीर की सरकारें उनसे नफरत करती हैं। वे उनके लिए दुश्मन हैं।

अज्ञात क्रांतिकारी

हवा में अपनी मुट्ठी ताने एक क्रांतिकारी

सभी तस्वीरों में से एक ऊपर की तरफ है। बेसमेंट में एक अज्ञात क्रांतिकारी है। वह चीखें सुन सकती है। वह जानती है कि उसका भाग्य क्या है। वह अनुमान लगा सकती है कि वह इस अनुभव से बच नहीं पाएगी, क्योंकि तीस हजार अन्य नहीं बचे थे। वह कैमरे के सामने है। यह बहादुर, अज्ञात महिला एक क्रांतिकारी सलाम के लिए अपनी मुट्ठी उठाती है। उसकी बहादुरी हम सभी के लिए समय के साथ एक संकेत है। जब तक आप विरोध कर रहे हैं, आप हारेंगे नहीं।

 

Escuela de Mecanica de la Armada
Jorge Lopez
Enrique Mario Fukman

Related Stories


बाकी खबरें

  • left
    अनिल अंशुमन
    झारखंड-बिहार : महंगाई के ख़िलाफ़ सभी वाम दलों ने शुरू किया अभियान
    01 Jun 2022
    बढ़ती महंगाई के ख़िलाफ़ वामपंथी दलों ने दोनों राज्यों में अपना विरोध सप्ताह अभियान शुरू कर दिया है।
  • Changes
    रवि शंकर दुबे
    ध्यान देने वाली बात: 1 जून से आपकी जेब पर अतिरिक्त ख़र्च
    01 Jun 2022
    वाहनों के बीमा समेत कई चीज़ों में बदलाव से एक बार फिर महंगाई की मार पड़ी है। इसके अलावा ग़रीबों के राशन समेत कई चीज़ों में बड़ा बदलाव किया गया है।
  • Denmark
    पीपल्स डिस्पैच
    डेनमार्क: प्रगतिशील ताकतों का आगामी यूरोपीय संघ के सैन्य गठबंधन से बाहर बने रहने पर जनमत संग्रह में ‘न’ के पक्ष में वोट का आह्वान
    01 Jun 2022
    वर्तमान में जारी रूस-यूक्रेन युद्ध की पृष्ठभूमि में, यूरोपीय संघ के समर्थक वर्गों के द्वारा डेनमार्क का सैन्य गठबंधन से बाहर बने रहने की नीति को समाप्त करने और देश को ईयू की रक्षा संरचनाओं और सैन्य…
  • सत्यम् तिवारी
    अलीगढ़ : कॉलेज में नमाज़ पढ़ने वाले शिक्षक को 1 महीने की छुट्टी पर भेजा, प्रिंसिपल ने कहा, "ऐसी गतिविधि बर्दाश्त नहीं"
    01 Jun 2022
    अलीगढ़ के श्री वार्ष्णेय कॉलेज के एस आर ख़ालिद का कॉलेज के पार्क में नमाज़ पढ़ने का वीडियो वायरल होने के बाद एबीवीपी ने उन पर मुकदमा दर्ज कर जेल भेजने की मांग की थी। कॉलेज की जांच कमेटी गुरुवार तक अपनी…
  • भारत में तंबाकू से जुड़ी बीमारियों से हर साल 1.3 मिलियन लोगों की मौत
    न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    भारत में तंबाकू से जुड़ी बीमारियों से हर साल 1.3 मिलियन लोगों की मौत
    01 Jun 2022
    मुंह का कैंसर दुनिया भर में सबसे आम ग़ैर-संचारी रोगों में से एक है। भारत में पुरूषों में सबसे ज़्यादा सामान्य कैंसर मुंह का कैंसर है जो मुख्य रूप से धुआं रहित तंबाकू के इस्तेमाल से होता है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License