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युद्ध को कहें- न...NO
"जो लोग युद्ध का जश्न मनाते हैं वे कभी भी युद्ध नहीं करेंगे। जो युद्ध करते हैं वे कभी जश्न नहीं मनाएंगे।"
उज्ज्वल के. चौधरी
01 Mar 2019
सांकेतिक तस्वीर

"जो लोग युद्ध का जश्न मनाते हैं वे कभी भी युद्ध नहीं करेंगे। जो युद्ध करते हैं वे कभी जश्न नहीं मनाएंगे।" ये बात हाल ही में हमारे व्हाट्सएप ग्रुप में एक सैनिक की पत्नी ने उस वक़्त कही जब ग्रुप के कुछ सदस्य आक्रामक रूप से पाकिस्तान के ख़िलाफ़ युद्ध और इस युद्ध में भारत की निर्णायक जीत को लेकर बातचीत कर रहे थे।

तो ये हालात कुछ ऐसे ही हैं।

जैश-ए-मोहम्मद द्वारा दिए गए आतंक के प्रशिक्षण और आरडीएक्स की तस्करी के कारण कश्मीरी फिदायीन ने आत्मघाती हमला किया जिसके चलते पुलवामा में 40 से अधिक सीआरपीएफ जवान शहीद हो गए। यह निश्चित रूप से आतंक ही का काम है और साथ ही प्रशिक्षण, गोला-बारूद और हमले के संबंध में भारतीय खुफिया की विफलता भी है।

भारत ने पाकिस्तान से एमएफएन (मोस्ट फैवर्ड नेशन) का दर्जा वापस ले लिया और जैश के ठिकाने को निशाना बनाते हुए हवाई हमला किया जिसमें मृतकों की संख्या अभी स्पष्ट नहीं है और सटीक स्थान, प्रभाव, क्षति और हताहतों के बारे में परस्पर विरोधी दावे हैं।

पाकिस्तान ने जवाबी कार्रवाई की जिसमें किसी के हताहत होने की ख़बर नहीं है लेकिन एक भारतीय विंग कमांडर उस समय पाकिस्तान में पकड़ा गया जब वह पाकिस्तान फाइटर प्लेन का मुकाबला कर रहा था। पाकिस्तान ने एक भारतीय विमान को गिरा दिया। भारत ने दावा किया है कि पाकिस्तान के एफ 16 को भी गिराया गया हालांकि पाकिस्तान ने इससे इंकार कर दिया।

अब इन दोनों देशों में बड़ी संख्या में मीडिया और लोगों ने सामान्य रूप से मीडिया और व्हाट्सएप युद्ध शुरू कर दिया है जो एक दूसरे की सिर मांग रहे हैं। एक पाकिस्तानी टीवी एंकर ने यहां तक दावा किया कि पैगंबर मोहम्मद ने इस युद्ध की भविष्यवाणी की थी! कुछ भारतीय एंकर सैनिक वर्दी में न्यूजरूम को वार रूम में बदलते हुए तेज़ आवाज़ में बदला लेने की मांग कर रहे हैं। एक एंकर ने तो दुनिया के नक्शे से पाकिस्तान का सफाया करने तक को कह डाला!

कुछ राजनीतिक प्रभाव भी हैं। आखिर क्यों न हो, क्योंकि भारत में चुनाव का समय है!

इसलिए बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने लोगों से बीजेपी को वोट देने का आह्वान किया क्योंकि मोदी एकमात्र नेता हैं जो पुलवामा घटना का बदला ले सकते हैं। खुद पीएम मोदी ने पुलवामा घटना की छवि पेश करते हुए चुनावी सभा को संबोधित किया। यह राजनीतिक फायदा हासिल करने के लिए सैनिकों की बहादुरी और उनके सर्वोच्च बलिदान का दुरुपयोग है।

21 विपक्षी दलों ने राजनीतिक फायदे के लिए पुलवामा घटना के इस्तेमाल की निंदा की और इस पूरे मामले में उनका अपना विचार है। हालांकि भारत को अब आगे क्या करना चाहिए इस पर थोड़ी उलझन है।

पिछले चार वर्षों में अमेरिकी थिंक-टैंक द्वारा किए गए तीन अलग-अलग अध्ययनों ने भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध के विभिन्न परिदृश्यों की रिपोर्ट पेश की है। उन्होंने सर्वसम्मति से उल्लेख किया है कि बड़े पैमाने पर भारत-पाक युद्ध परमाणु शक्ति के इस्तेमाल को मजबूर करेगा जिसका प्रभाव काफी ख़तरनाक होगा। इससे दोनों देशों के 21 मिलियन लोगों की ज़िंदगियां तबाह हो सकती है। यह दक्षिण एशिया में ओजोन परत को पूरी तरह से बर्बाद कर सकता है जो बड़े पैमाने पर जलवायु परिवर्तन, अकाल और कई घटनाओं का कारण बन सकता है। इसलिए बड़े पैमाने पर युद्ध सवालों से परे है और इसे एक विकल्प भी नहीं माना जाना चाहिए।

अन्य परिदृश्य में परिसीमित युद्ध जहां भारत पाकिस्तान के भीतर आतंकी शिविरों को नष्ट करने गया, पाकिस्तान ने कुछ हद तक इसका खंडन किया और दोनों सीमा पार से एक-दूसरे को उलझाते रहते हैं जो कि यह भी एक व्यवहार्य समाधान नहीं है। ऐसा लगातार हो रहा है। इससे दोनों पक्षों में तनाव बढ़ेगा। इससे कोई समस्या हल नहीं होगी। यह वर्दी वाले या बिना वर्दी वाले दर्जनों लोगों को मारेगा। इससे संपत्ति नष्ट होगी। नियंत्रण रेखा के दोनों तरफ नागरिकों के लिए एक अफरातफरी पैदा होगी। यह स्थिर समाधान के लिए क़दम बढ़ाने के मार्ग को रोकेगा।

भारत ने अपने इरादे को स्पष्ट कर दिया है कि अगर ज़रूरत पड़ी तो आतंकी ठिकानों को नष्ट करने के लिए पाकिस्तान के हवाई क्षेत्र में प्रवेश कर सकता है। वर्ष 1971 के बाद से यह सबसे सख्त संदेश और कार्रवाई है। काल्पनिक तौर पर युद्ध के कैदी के रूप में विंग कमांडर को पकड़ने, प्रतिशोध और हत्या किए बिना हमले का सहारा लेकर पाकिस्तान ने अपने अहंकार को बरकरार रखा है।

अब क्या उन्हें किसी और स्थिति को साबित करने की आवश्यकता है? साबित करने वाली स्थिति से किसका फायदा और नुकसान होगा? निश्चित रूप से यह दोनों तरफ लड़ने वाले लोगों और गोलीबारी से आहत हुए लोगों के हित में नहीं है।

जैसा कि भारतीय विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने कहा है कि मुद्दा आतंकवाद से लड़ने का है न कि एक-दूसरे से लड़ने का।

दिलचस्प बात यह है कि चीन ने आतंकी ठिकानों को लेकर पाकिस्तान को खरी-खोटी सुनाई है, अमेरिका ने पुलवामा आतंकी हमले की आलोचना की है, फ्रांस ने जैश को आतंकवादी संगठन और अज़हर मसूद को वैश्विक आतंकवादी घोषित करने के लिए संयुक्त राष्ट्र का रुख किया है और सऊदी अरब पाकिस्तान का राग नहीं अलाप रहा है जो उसकी अपेक्षाओं के विपरीत है। आतंकवाद को लेकर ईरान पहले से ही पाकिस्तान के ख़िलाफ़ मुखर रहा है। इस तरह वैश्विक कूटनीतिक माहौल भारत के प्रति मजबूत स्थिति में है। और ऐसा जायज़ है।

इसके अलावा जैसा कि पाकिस्तान प्रधानमंत्री इमरान खान ने कहा है कि वह खुद आतंकवाद का शिकार है। कुछ समय पहले आतंकवादियों द्वारा सेना के कई सौ बच्चों को उनके स्कूल में दर्दनाक तरीके से मार दिया गया। पाकिस्तान बड़े पैमाने पर युद्ध के नुकसान को सह नहीं सकता है। इसलिए जैसा कि उम्मीद की जा रही थी कि पाकिस्तान की सेना के दबाव में पाकिस्तान की जनता की सरकार ने पहले अपनी ताक़त दिखाई लेकिन अब उसने पुलवामा में आतंकी हमले की जांच, आतंकवाद को समाप्त करने के लिए चर्चा करने और बातचीत के लिए पेशकश की। पाकिस्तान की सरकार ने यह कहा है कि वह आतंकवाद के चलते कई जानें पहले ही गंवा चुका है।

यह अभी शुरुआती स्थिति ही होनी चाहिए।

विश्व जनमत भारतीय सिद्धांत के प्रति सहानुभूति रखता है, हमें इसे सशक्त रखना चाहिए और व्यापक बातचीत की मांग करनी चाहिए भले ही यह अंतरराष्ट्रीय पर्यवेक्षकों के साथ हो। हमें पुलवामा मामले की जांच करवानी चाहिए और आतंक के लिंक का पर्दाफाश करना चाहिए।

भारत के लाभ के लिए सकारात्मक प्रचार के जरिए कश्मीरी युवकों की कट्टरता से लड़ने की ज़रूरत है। कई विशेषज्ञों ने कहा है कि कश्मीरी युवाओं के एक वर्ग के गुस्से का कारण अनिवार्य रूप से धर्म नहीं है। यह मुख्य रूप से अवरोध के चलते जीवन का अपमान, विकास की कमी, जीवन और काम में आशा की कमी, और कई बार भारत के व्यापक संदर्भ में स्वीकृति की कमी के कारण होता है। पिछले दस दिनों में भारत के विभिन्न हिस्सों में अध्ययन कर रहे निर्दोष कश्मीरी छात्र जिनका भारत के प्रति प्रेम है उन्हें पीटा गया और हज़ारों छात्र अपने इलाक़े में वापस चले गए।

इसलिए वास्तविक आर्थिक विकास के साथ घाटी में आशा और गरिमा के सकारात्मक अभियान को भी शुरू करने की आवश्यकता है। उनकी आवाज़ को सुना जाए, उनको अपनी सरकार के गठन के लिए चुनाव कराए जाएं और भारत में अन्य जगहों पर काम करने या अध्ययन के लिए आने वाले कश्मीरी युवाओं के लिए पूरे भारत में स्वीकृति और इसकी तारीफ की जाए।

शांति कई रास्तों में से एक रास्ता नहीं बल्कि यही एकमात्र रास्ता है। और शांति के लिए पाकिस्तान को अपनी धरती पर आतंकी कैंपों के ख़िलाफ़ निश्चित रूप से सामने आना होगा और हमें चुनाव के समय में युद्ध के उकसावे से दूर रहना है। इस उम्मीद में यह किया जा रहा है कि लोग केवल पाकिस्तान पर ध्यान केंद्रित करें और देश की हर दूसरी समस्या को भूल जाएं जिसका लोगों को सामना करना पड़ रहा है।

(लेखक मीडिया के अध्यापन से जुड़े हैं और स्तंभकार हैं। इस लेख में व्यक्त विचार निजी हैं।)

 

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