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राजनीति
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युक्रेन युद्धविराम: नाटो की योजना का पतन
प्रबीर पुरुकायास्थ
07 Sep 2014

बेलारूस के मिन्स्क में कीव पदाधिकारियों और लुगान्स्क एवं डोनेत्स्क के बीच घोषित किया गया युद्धविराम लागु कर दिया गया है।इसे दोनों पक्षों ने मान लिया है।फिलहाल के लिए पूर्वी युक्रेन में बंदूके शांत हो गई हैं।पांच महीने से चल रहे इस युद्ध में कीव प्रशासन ने अपनी वायु सेना, तोपों और फासीवादी थल सेना की सारी ताकत झोक दी थी। बावजूद इसके उन्हें पिछले दो हफ्ते से भारी विरोध और नुकसान का सामना करना पड़ा । दक्षिण में किया गया अचानक हमले के बाद, जिसके जरिये मरिउपोल और आगे रास्ता खुलता है, कीव सेना दोनों तरफ से फंसा हुआ महसूस कर रही थी।यह साफ़ था की इस कदम के बाद कीव सेना डरा हुआ महसूस कर रही थी न कि दोनेतस्क-लुगान्स्क की सेना। साफ़ तौर पर कीव सेना का इस स्तिथि में आने के कारण उनके बाकी जगह चल रहे सैन्य कार्यवाही पर गहरा और गलत असर पड़ा। .

ये सैन्य कार्यवाहियों की विफलता ही थी जिसने पोरोशेनको को शान्ति का रास्ता अपनाने के लिए मजबूर किया। उन्हें एक तरफ रुसी राष्ट्रपती पुतिन से हाथ मिलाना पड़ा तो दूसरी तरफ दोनों गणराज्यो से।

पश्चिमी मीडिया अपने नेताओं का अनुसरण करते हुए यह कह रही है कि कीव प्रशासन को इसलिए यह कदम उठाना पड़ा क्योंकि रुस की सुसज्जित सेना ने सीमा पार कर उनपर हमला बोल दिया। और इसका “सबूत” यह है कि अगर कीव की सेना पहले जीत रही थी तो अचानक तभी हारेगी जब रुसी सेना उनपर आक्रमण करेगी। एकमात्र सबूत के तौर पर एक धुंधली तस्वीर दिखाई गई जिसमे रुसी सेना की टुकड़ी सीमा के पास कड़ी दिख रही थी।जो आर्गेनाइजेशन फॉर सिक्यूरिटी एंड कोऑपरेशन इन यूरोप के रिपोर्ट के बिलकुल विपरीत है। ओएससीइ के अनुसार उन्होंने पिछले दो हफ्ते से रुस- युक्रेन सीमा के आर पार आते जाते किसी को नहीं देखा है।

यह उन झूठों में से एक है जो अमरीका और उसके नाटो सहयोगी लगातार फैलाते रहते हैं। इसके पीछे उनका मकसद अपनी खुद की जनता को यह विश्वास दिलाना होता है कि वे जो भी कह रहे हैं वह सही है और बाकी सब गलत। यह तो सभी को याद है कि इन्होने इराक में जनसंहार के काबिल हथियार, सीरिया में जैविक हथियार और लीबिया में नरसंहार की अफवाह कैसे फैलाई थी। बाद में यह सभी गलत सिद्ध हुई। .

अब आगे क्या होगा? युद्धविराम की एनी ११ शर्ते अभी बाहर नहीं आई हैं। क्या ये दोनों गणराज्य वापस युक्रेन में मिलेंगे? वैसे डोनेत्स्क और लुगान्स्क प्रशासन ने इसे सिरे से नकार दिया है। उन्होंने कहा है कि इस जीत के पीछे अनेक व्यक्तियों का खून बहा है।और उस हालत में जब युक्रेन की सेना बैकफूट पर है तो इस शर्त को अपने अनुबंध के दस्तावेज में लाना थोड़ा मुश्किल लग रहा है।यह ध्यान देने योग्य है कि मेडेन में हुए पिछले अनुबंध के विपरीत इस अनुबंध में केवल ओएससीइ एवं रूस ही एनी पक्ष हैं। पिछले युद्धविराम के समय सारी पश्चिमी ताकतें भी इसका हिस्सा थी। यह तो साफ़ है कि इस युद्धविराम के पीछे रूस का महत्वपूर्ण योगदान था और पश्चिम ताकतें अभी इस मुद्दे से अलग कर दी गई हैं।

चित्र सौजन्य: wikipedia.org

.रूस इस बात को अमल में लाने की कोशिश करेगा कि ऐसे प्रावधान बान जाए की कीव सेना इन दोनों गणराज्यों से बहार चली जाए और ये कीव से पूरी तरह अलग हो जाएँ।कीव प्रशासन भी इस समय कमज़ोर स्थिति में हैं क्योंकी उसे इस युद्ध में करारे प्रतिरोध का सामना करना पड़ा है। पर इन दोनों राज्यों की सम्पूर्ण स्वतंत्रता की मांग रूस के लिए राजनैतिक मुश्किलें पैदा कर सकती है । पर इसमें जरा भी शक नहीं है की अगर ऐसा होता है तो ये दोनों राज्य रूस के साथ ज्यादा नजदीकी चाहेंगे और इसके लिए प्रयास भी करेंगे।.

क्या यह सच है कि रूस पूर्वी युक्रेन में विद्रोहियों को समर्थन दे रहा है। मुझे आश्चर्य होगा अगर यह सही नहीं हुआ तो। हाँ रूस ने इन दोनों राज्यों की मदद कई तौर पर की है। और इसका विरोध अमरीका और यूरोपियन यूनियन इसलिए नहीं कर सकता क्योंकि उन्होंने खुद ही मेडेन में हुए विरोध को शह दी थी और उसपर भारी खर्च भी क्या था। अमरीका ने “लोकतंत्र” बहाली के नाम पर 5 बिलियन डॉलर से भी अधिक रूपए खर्च किए हैं वहीँ यूरोपियन यूनियन ने आधा बिलियन यूरो खर्च कर यानुकोविच के खिलाफ चल रहे प्रदर्शन को भड़काया था। इसमें अमरीका का दोहरा नैतिक सिधांत साफ़ देखने को मिलता है। एक तरफ वे खुद सीरिया में विदोहियों को हथियार पहुंचा रहे हैं और अगर रूस ऐसा करता है( जैसाकी कीव प्रशासन ने कहा)तो उसका विरोध भी कर रहे।अमरीका मानता है कि सारे अन्तराष्ट्रीय नियम केवल औरो पर लागु होते हैं और वह इन सबके परे है।

मुख्य सवाल यह है कि रुसी सेना युक्रेन में घुसी की नहीं? और अगर उसके सबूत के तौर पर दिए गए चित्र को देखा जाए तो यह मात्र पश्चिमी देशो का एक झूठा प्रचार ही दिखता है।

.रूस ने हमेशा कहा है कि युक्रेन का नाटो से जुड़ना वो रूस पर आने वाले खतरे के समान होगा।उसने यह भी कहा है कि ब्लैक सी में वो अपने एकलौते जल सेना के बेस स्वस्त्पोल को नाटो सेना के हाँथ में नहीं जाने देगा। और यह सोच की यह तभी मुमकिन है जब यूरोपियन यूनियन और कीव मिल जायेंगे(जिसमे युक्रेन और यूरोपियन यूनियन सेना का मिलन भी शामिल है) , से ही युक्रेन में समस्याएँ शुरू हुई। हाँ, शुरुआत में यनुकोविच का तख्तापलट कर अपने नुमाइंदे को कीव में बैठाकर पश्चिमी ताकतें सफल जरुर हुई थी। पर यह साफ़ था कि पूर्वी युक्रेन जहाँ रुसीयों की सँख्या बेहद अधिक है और वे रुसी प्रशासन के काफी करीब भी हैं, इस नई रूस विरोधी सरकार से खुशी नहीं थे। यूक्रेनी राष्ट्रवाद जो दोनेतस्क –लुगान्स्क पर हमले के साथ दिखने लगा था, ने इस नए विविध भाषा और धर्म वाले युक्रेन की जड़ो को उधेड़ना शुरू कर दिया था।

युक्रेन में जो भी घटा , उसके बारे में काफी पहले से ही कई बाते कही गई थी। पर रूस का आक्रामक अंदाज़, जिसमे वह सोवियत साम्राज्य बनाने की बात कर रहा है, तब तक बेमतलब है जब तक पश्चिमी मीडिया में उसकी पकड़ नहीं बनती।

 

डिस्क्लेमर:- उपर्युक्त लेख मे व्यक्त किए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत हैं, और आवश्यक तौर पर न्यूज़क्लिक के विचारो को नहीं दर्शाते ।

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