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यूएनएससी के 'युद्ध क्षेत्र में यौन हिंसा प्रस्ताव' में मानवाधिकार का घोर उल्लंघन!
हाल के यूएनएससी प्रस्ताव से महत्वपूर्ण खंडों का हटाया जाना कई जटिलताओं को जन्म देता है।
उज्ज्वल कृष्णम
22 May 2019
यूएनएससी

सुरक्षा परिषद की 23 अप्रैल को हुई 8514वीं बैठक में संयुक्त राष्ट्र ने युद्ध क्षेत्र में यौन हिंसा को समाप्त करने के उपायों को अपनाने के लिए एक ऐतिहासिक प्रस्ताव [2467:2019] पारित किया। लेकिन संयुक्त राष्ट्र द्वारा पारित प्रस्ताव ने यौन हिंसा के ख़िलाफ़ महत्वपूर्ण खंडों को हटा दिया। इनमें 'यौन हिंसा को समाप्त करने को लेकर हुई प्रगति की समीक्षा के लिए कार्यकारी समूह बनाना' और ‘प्रजनन स्वास्थ्य सेवा’ शामिल थे।

ट्रम्प की रणनीति

अमेरिका ने दरअसल प्रजनन तथा यौन स्वास्थ्य को लेकर इसकी भाषा को लेकर इस प्रस्ताव को वीटो करने की धमकी दी। चीन के साथ अमेरिका और रूस ने यौन हिंसा की निगरानी और इस रिपोर्ट के लिए एक नए कार्यकारी संस्था के गठन का विरोध किया। प्रस्ताव से ये खंड हटा दिए जाने के बाद भी रूस और चीन मतदान करने से दूर रहे।

यहाँ यह समझना महत्वपूर्ण है कि संयुक्त राष्ट्र द्वारा इस प्रारंभिक प्रस्ताव को कमज़ोर करना गर्भपात प्रतिबंध पर ट्रम्प प्रशासन को महज़ ख़ुश करने के लिए था। यूएस स्टेट डिपार्टमेंट ने टिप्पणी करने के लिए विदेश नीति के अनुरोध का जवाब नहीं दिया क्योंकि संयुक्त राष्ट्र के वाद-विवाद और संवाद के भीतर इसकी एक विशेष कहानी है। यह स्पष्ट हो जाता है कि अमेरिकी सरकार संयुक्त राष्ट्र वार्ता और प्रस्तावों के परिणामस्वरूप अपने आंतरिक गर्भपात विरोधी रुख के ख़िलाफ़ कोई वैश्विक बाधा नहीं चाहती थी।

अमेरिकी सरकार ने युद्ध क्षेत्र में यौन हिंसा प्रस्ताव से 'लिंग’ शब्द के इस्तेमाल को हटाने की कोशिश की क्योंकि यह ट्रांसजेंडर के अधिकारों को बढ़ावा दे सकता है। यह मानना बेहद विडंबनापूर्ण है कि यूएनएससी की चर्चा में अमेरिका ने 2013 के प्रस्ताव पर पहले से सहमत होने के बावजूद सहमति देने से इनकार कर दिया [विधिक परिस्थिति: 19 पैरा] जिसने लैंगिक और प्रजनन स्वास्थ्य सहित ग़ैर-भेदभावपूर्ण और व्यापक स्वास्थ्य सेवाएँ प्रदान करने के महत्व को मान्यता दी।

नादिया की पहल

इस प्रस्ताव का श्रेय नादिया मुराद को दिया जा सकता है जो युद्ध और सशस्त्र संघर्ष क्षेत्र में यौन हिंसा को रोकने की निरंतर मांग कर रही थीं। नादिया 2018 की नोबेल शांति पुरस्कार विजेता हैं और नादियाज़ इनिशिएटिव नामक संगठन चलाती हैं जो युद्ध में हिंसा से प्रभावित महिलाओं और बच्चों को मदद करने और उनके जीवन को बेहतर बनाने के लिए समर्पित है।

नादिया मुराद ने कहा कि जैसे ये प्रस्ताव पारित हुआ इराक में इस्लामिक स्टेट एंड लैवेंट (आईएसआईएल/दाइश) ने हज़ारों यज़ीदी लड़कियों और महिलाओं को ग़ुलाम बना लिया। उन्होंने कहा कि लापता हुए या कैद में रखे गए लोगों को बचाने के लिए एक कार्यदल के गठन के उनके बार-बार आह्वान को अनसुना कर दिया गया। उन्होंने कहा कि यज़ीदी लड़कियों और महिलाओं के ख़िलाफ़ हुए यौन दासता अपराधों के लिए किसी ने कोई प्रयास नहीं किया।

शुरू से ही नादिया सक्रिय थीं कि ये प्रस्ताव अपने मूल रूप में पारित नहीं किया जाए। बौद्धिक रूप से प्रगतिशील और आर्थिक रूप से विकसित देशों से प्रभावित इस बाधा ने उजागर किया कि वे लोग जो इन देशों की राष्ट्रीयता नहीं रखते उनके साथ अमानवीय व्यवहार होता रहे।

संयुक्त राष्ट्र: लाचार?

इस ऐतिहासिक प्रस्ताव के एक सप्ताह के भीतर इज़रायल ने हवाई हमले में दो गर्भवती महिलाओं और एक नाबालिग को मार दिया। संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस की शक्ति कड़े शब्दों में मौखिक निंदा करने तक ही सीमित है। संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि हिंसा के चल रहे दुष्चक्र ने एक साल में लगभग 200 फिलिस्तीनियों को लील गया जिनमें 40 से अधिक बच्चे हैं और 1,300 से अधिक घायल हुए हैं।

मध्य पूर्व शांति के लिए संयुक्त राष्ट्र के विशेष दूत निकोले म्लादेनोव ने इज़रायल और फ़िलिस्तीन के बीच हिंसा को समाप्त करने की अपील की है। मिस्र के मध्यस्थ और संयुक्त राष्ट्र समर्थित संघर्ष विराम का उल्लंघन संयुक्त राष्ट्र की महत्वहीन कुटनीतिक स्थिति को दर्शाता है।

ग़ाज़ा पर गिराए गए बम हमले से पता चलता है कि वीटो वाले देशों का समर्थन हानि पहुँचाने वाली हिंसा के बावजूद साफ़-सुथरी भूराजनीतिक छवि बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण है। चूंकि गोलन हाइट्स पर इज़रायल की संप्रभुता को मान्यता देने के लिए अमेरिका तैयार है ऐसे में इज़रायल जैसे देशों का बचाव करते हुए जो अमेरिका के पक्ष में है मध्य पूर्व में बदलती अमेरिकी नीति उथल पुथल पैदा कर सकता है। यह अनिश्चित है कि ये देश संयुक्त राष्ट्र की रेप-इन-वार (युद्ध क्षेत्र में यौन हिंसा) प्रस्ताव पर सहमत होंगे या नहीं।

भविष्य क्या है?

वीटो गुट कोई नया ख़तरा नहीं है। वीटो शक्ति के मेल के पीछे मूल विचार शक्तिशाली देशों के बीच युद्ध जैसी स्थितियों का मुक़ाबला करना था इस प्रकार अगले विश्व युद्ध की संभावना को कम करना था। इसके विपरीत वर्तमान परिदृश्य में संघर्ष शामिल हैं जो स्वरूप में वैश्विक नहीं हैं लेकिन विभिन्न क्षेत्रों में फैला है और आमतौर पर द्विपक्षीय हैं। इस परिस्थिति में वीटो शक्ति की भूमिका ज़्यादा मायने नहीं रखती है। इसके विपरीत इसे व्यापक रूप से वीटो देशों द्वारा एक विवेकहीन साधन के रूप में उपयोग किया गया है। संयुक्त राष्ट्र के ब्लैकलिस्ट में चीन द्वारा मसूद अज़हर को सूचीबद्ध करने से रोकना इसका प्रमाण है।

अमेरिकी प्रशासन का ये द्वेषपूर्ण रुख लोकतांत्रिक सिद्धांतों पर इस विश्व शक्ति के पतन को चिह्नित करता है। यूएस के प्रति यूएन की विनम्रता निराशाजनक है।

इस विश्व संगठन के समुचित कार्य को सुविधाजनक बनाने के लिए संयुक्त राष्ट्र के सदस्यों के पास एकमात्र विकल्प संयुक्त राष्ट्र से वीटो गुट को ग़ैर क़ानूनी घोषित करने का आग्रह करना है। भारत या जापान जैसे देशों को इस गुट में आगे बढ़ाना संयुक्त राष्ट्र के काम को और जटिल करेगा।

यूएनएससी की युद्ध क्षेत्र में यौन हिंसा प्रस्ताव जैसे सशक्त प्रस्तावों सहित संयुक्त राष्ट्र के अधिकार चार्टर को तब तक सफ़लतापूर्वक लागू नहीं किया जा सकता है जब तक कि देशों के बीच शक्ति की असमानता को संयुक्त राष्ट्र में संबोधित नहीं किया जाता है। क्या अमेरिका जैसी वीटो शक्तियाँ कभी नूरेमबर्ग क्षण का सामना करेंगी? यह एक पहेली है।

लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं और Academia.edu में संपादक हैं। वे भारत में सामाजिक असमानता और अधिकारों के विषय पर लिखते हैं। इस लेख में व्यक्त विचार निजी है।

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