NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
योगी आदित्यनाथ ग़लत हैं: भारतीय लोगों की ग़ुलामी की मानसिकता नहीं है
1947 में भारत के लोगों ने वतन को आज़ाद कराने के लिए अंग्रेज़ों को उखाड़ फेंका था। अब उनके प्रतीक प्राचीन समय के राजा नहीं हैं, बल्कि वे हैं जिन्होंने आधुनिक भारत का निर्माण किया था।
राम पुनियानी
01 Oct 2020
Translated by महेश कुमार
योगी

जब सामराजी राजनीतिक सिद्धांतकार जेम्स मिल ने भारतीय इतिहास को "हिंदू", "मुस्लिम" और ब्रिटिश काल में बांटा था तो उन्होंने न केवल अंग्रेजों को बांटो और शासन करो की नीति को बदस्तूर आगे बढ़ाने का एक उपकरण दिया, बल्कि उन्होंने भविष्य के राजनेताओं/एजेंटों को भी एक शक्तिशाली हथियार मुहैया कराया था ताकि सांप्रदायिक राजनीति करने वाले अपनी  विभाजनकारी नीतियों को तेज कर सके या बेहतर ढंग से अंजाम दे सके। मुस्लिम सांप्रदायिकतावादियों ने भी दावा ठोका कि भारत को "मुसलमानों द्वारा शासित" किया गया था, जबकि हिंदू सांप्रदायिक ताकतों ने दावा किया कि भारत में रह रहे मुसलमान "विदेशी" हैं और  उनकी यह भूमि प्राचीन काल से है।

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने घोषणा की कि आगरा में तैयार होने वाले मुगल संग्रहालय को छत्रपति शिवाजी महाराज संग्रहालय के रूप में तब्दील किया जाएगा जो इतिहास में सांप्रदायिक दृष्टिकोण की गहरी पैठ की याद दिलाती है। उनके अनुसार, मुगल साम्राज्य के नाम पर संग्रहालय बनाना और उस अवधि की कलाकृतियों को प्रदर्शित करना गुलामी की  मानसिकता को दर्शाएगा। इसलिए उन्होंने इसे "गुलामी की मानसिकता" कहा। मुगल संग्रहालय की नींव उत्तर प्रदेश के पिछले मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने रखी थी। संग्रहालय को आगरा में ताजमहल के पास बनाया जाना था और उसमें सांस्कृतिक तथ्यों और आंकड़ों और विशेष रूप से मुगल राजाओं की सेनाओं के हथियार आदि को प्रदर्शित करना था। इसका उद्देश्य राज्य में पर्यटन को बढ़ावा देना था।

बेशक, ताजमहल को भी हिंदू सांप्रदायिक ताकतों ने नीचा दिखाया है। किसी पीएन ओक नामक व्यक्ति ने इस बेतुके विचार का प्रचार किया कि किसी समय इस संरचना(ताजमहल) का नाम "तेजोमहालय" था, जो हिंदू भगवान शिव को समर्पित किया गया एक मंदिर था, और जिसे शाहजहाँ ने एक मकबरे में बदल दिया था। उत्तर प्रदेश में योगी के सत्ता में आते ही, राज्य में इतिहास में महत्व के स्थानों के बीच से ताजमहल का नाम हटाने की कवायद शुरू कर दी थी ताकि वह सार्वजनिक स्मृति से बाहर हो जाए। उनकी हाल की कथनी सांप्रदायिक विचारधारा के अनुरूप है जो इस्लाम को एक विदेशी धर्म और मुसलमानों को विदेशी मानते हैं।

तथ्य यह है कि एक फ्रांसीसी यात्री और रत्न व्यापारी जीन-बैप्टिस्ट टवेर्नियर का यात्रा वृत्तांत बताता है कि शाहजहाँ ने अपनी पत्नी मुमताज़ महल की याद में ताजमहल बनवाया था, जिसकी मृत्यु 1631 में हुई थी। स्मारक का नाम उनके नाम का स्पष्ट संक्षिप्त विवरण है और यह बनकर 1648 में पूरा हो गया था। शाहजहाँ के दरबार के खर्चे के खाते हमें इस मकबरे के निर्माण पर किए गए नियमित खर्चों का विस्तृत ब्योरा प्रदान करते हैं, जो हमें इस भूमि की उत्पत्ति की सूचना भी देते हैं जिस पर इसे बनाया गया था। मुआवजे के रूप में इस भूमि को राजा जयसिंह से लिया गया था।

इस भ्रम को दूर करने के लिए, यह ध्यान रखना जरूरी है कि भारत के इतिहास को कैसे देखा जाता है। भारतीय राष्ट्रवादियों का दृष्टिकोण हमेशा सांप्रदायिकों के साथ टकराव की प्रवृत्ति का रहा है, खासकर, पिछली डेढ़ शताब्दी में। इतिहास में भारत की राष्ट्रवादी व्याख्या एक समृद्ध विविधता और विचारों और संस्कृतियों के संगम का देश है। भारत के कुछ हिस्सों पर राज करने वाले मुस्लिम राजा इसी जमीन का हिस्सा बन गए। अधिकांश मुस्लिम राजाओं ने दुनिया के इस हिस्से में प्रचलित विविध धार्मिक और अन्य परंपराओं का सम्मान किया था।

जैसा कि महात्मा गांधी ने कहा था, '' हिंदुओं के अंतर्गत मुसलमान राजा और मुसलमान हिंदू के तहत फले-फूले। प्रत्येक पार्टी ने माना कि आपसी लड़ाई आत्मघाती है और यह कि कोई भी पार्टी हथियारों के बल पर अपना धर्म नहीं छोड़ेगी। इसलिए, दोनों पक्षों ने शांति से रहने का फैसला किया। अंग्रेजों के आगमन से आपसी झगड़े बढ़े।”

इसी तरह देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने अपनी पुस्तक, द डिस्कवरी ऑफ इंडिया में हिंदुओं और मुसलमानों के बीच समृद्ध संबंधों पर ध्यान केंद्रित किया, जिसके कारण वे  खास तौर पर 'गंगा-जमुनी तहज़ीब' के लिए जाने जाते हैं, जिसका एक सुंदर चित्रण देखने को मिलता है। श्याम बेनेगल ने इसे टीवी श्रृंखला 'भारत एक खोज' के नाम से तैयार किया था।

क्या यह अवधि, जिसमें देश के कुछ हिस्सों पर मुस्लिम राजाओं ने शासन (केवल मुग़ल ही नहीं, बल्कि ममलुक, खिलजी, गज़नवी और दक्षिण में, बहमनी, हैदर और टीपू) किया था क्या उन्हे गुलामी की अवधि कहा जाएगा? जबकि महमूद गजनवी, मोहम्मद गोरी, चेंगिज़ खान जैसे कुछ बादशाहाओं ने धन लूटा, लेकिन जिन राजाओं ने यहाँ शासन किया वे अधिकांश इस ज़मीन का हिस्सा बन गए। उन्होंने एक ऐसी प्रणाली की तैयार की जो शोषणकारी थी, लेकिन वह  किसी भी अन्य शासन से अलग नहीं थी, जिसमें उत्पादक यानि किसान सबसे अधिक शोषित थे।

इस अवधि को गुलामी का युग नहीं कहा जा सकता। भारत की गुलामी ब्रिटिश शासन के आगमन के साथ शुरू होती है। जिसने धन को लूटा और किसान का जबरदस्त तरीके से दमन और शोषण किया। जिसके बारे में एन एरा ऑफ़ डार्कनेस पुस्तक में कांग्रेस नेता शशि थरूर ने यह दर्शाने का एक अच्छा काम किया है कि कैसे भारत ने वैश्विक जीडीपी में लगभग 23 प्रतिशत का योगदान दिया था जब तक कि अंग्रेज सर-ज़मीन-ए-हिंदुस्तान नहीं पहुंचे थे और जब वे इसे छोड़ कर गए तब यह गिरकर केवल 3 प्रतिशत रह गई थी। लोकप्रिय इतिहासकार, निक रॉबिंस ने अपनी पुस्तक द कॉरपोरेशन देट चेंज द वर्ल्ड में अपनी रिपोर्ट में कहा है कि सन 1700 में भारतीय अर्थव्यवस्था की जीडीपी 24.4 प्रतिशत थी, जो कि 1870 में 12.25 प्रतिशत तक गिर गई थी, जो ब्रिटिश ताजपोशी के लगभग एक दशक बाद की कहानी थी और अंग्रेजों ने 1858 तक भारत पर सीधा नियंत्रण कर लिया था।

जबकि पूर्व ब्रिटिश काल में सामाजिक संरचना में कोई खास बदलाव नहीं हुआ था, 19 वीं शताब्दी में आधुनिक लोकतांत्रिक प्रणाली के प्रति झुकाव बढ़ा था, और ब्रिटिश काल में भारत में आधुनिक शिक्षा और न्यायिक प्रणाली शुरू की गई थी। फिर भी मुस्लिम और हिंदू सांप्रदायिक ताकतों द्वारा हिंदू और मुस्लिमों के बीच टकराव भारतीय इतिहास का ब्रिटिश संस्करण एकमात्र व्याख्या है। यह वर्तमान भारत के शक्तिशाली वर्गों के हितों का प्रतिनिधित्व करने वालों के लिए खुद की सेवा करने वाला इतिहास का संकरण है। वे अपनी सांप्रदायिक राजनीति की योजनाओं को आगे बढ़ाने के लिए ब्रिटिश लूट और चोरी को कालीन के नीचे छिपा देते हैं।

दूसरे स्तर पर देखें तो देश के सबसे पहले कानून मंत्री डॉ बीआर अंबेडकर जैसे महत्वपूर्ण आधुनिक भारतीय हस्तियों ने भारतीय इतिहास को मुख्य रूप से समानता के मूल्यों के बीच टकराव के रूप में देखा, जैसा कि ब्राह्मणवाद में निहित जाति और लिंग पदानुक्रम के खिलाफ बौद्ध धर्म में सन्निहित है।

इतिहास का कोई भी संस्करण हो सकता है, सभी हिंदू राजा महान नहीं थे और न ही सभी मुस्लिम राजा खलनायक थे। तीसरा मुगल बादशाह, यानि अकबर, जब अपने पिता हुमायूँ की आकस्मिक मृत्यु के बाद फरवरी 1556 में सम्राट के रूप में विराजमान हुआ था, और दारा शुकोह (औरंगज़ेब के भाई और हुमायूँ के पडपोते) ने विभिन्न भारतीय धार्मिक किस्सों का संग्रह किया। और शिवाजी, जिन्होंने मराठा साम्राज्य की नींव रखी थी, ने भारत में बाद के मध्य युग के आदिलशाही युग में गरीब किसानों पर भारी कर को कम किया था।

इसका कारण यह है कि स्वतंत्र भारत के असली नायक वे हैं जिन्होंने एक आधुनिक गणराज्य को बनाने में योगदान दिया था। इसमें तीन प्रमुख धाराएँ शामिल हैं जिसमें एक धारा का प्रतिनिधित्व गांधी करते हैं, जिन्होंने देश को औपनिवेशिक विरोधी संघर्ष में एकजुट किया, दूसरे अंबेडकर, जिन्होंने सामाजिक समानता और लोकतांत्रिक अधिकारों के लिए प्रयास किया, और तीसरे भगत सिंह, जो ब्रिटिश शासन को खारिज कर आर्थिक और सामाजिक समानता को लाना चाहते थे। यह वे मूल्य हैं जिन्हे आधुनिक भारतीयों को प्रेरित करना चाहिए, न कि उन प्राचीन समय के राजाओं और रियासतों द्वारा, जो आज के मानकों के अनुसार, सामाजिक असमानता और भारी कराधान के आधार पर चल रहे थे।

सभी किस्म के सकारात्मक विकास जो समानता के साथ-साथ बहुलवाद और विविधता को मजबूत करने वाले सिद्धांत और मूल्य हैं हमें आने वाले समय में उन पर नज़र रखने की जरूरत है। अगर इस रोशनी में देखा जाए तो मुगल संग्रहालय इतिहास को संरक्षित करने का एक छोटा सा प्रयास है और यह किसी भी तरह से गुलामी या "दास मानसिकता" का प्रतीक नहीं है, जो मानसिलता कम से कम भारतीयों की तो नहीं है। दुर्भाग्य से, भारत के शासक मुख्यतः सामाजिक विभाजन को बढ़ावा देते हैं और यही वह बात हैं जो "मुस्लिम" के अतीत और उनके  सभी प्रतीकों को मिटाने का प्रयास करती है। शहरों (इलाहाबाद, फैजाबाद, मुगल सराय आदि) के नाम बदलने से शुरू हुआ यह किस्सा अब इसे झूठे आधारों पर पूरी तरह से मिटाने की कोशिश में बदल गया है।

 लेखक एक सामाजिक कार्यकर्ता और टिप्पणीकार हैं। व्यक्त विचार व्यक्तिगत हैं।

BJP
RSS
Yogi Adityanath
Yogi Adityanath govt

Related Stories

भाजपा के इस्लामोफ़ोबिया ने भारत को कहां पहुंचा दिया?

कश्मीर में हिंसा का दौर: कुछ ज़रूरी सवाल

सम्राट पृथ्वीराज: संघ द्वारा इतिहास के साथ खिलवाड़ की एक और कोशिश

हैदराबाद : मर्सिडीज़ गैंगरेप को क्या राजनीतिक कारणों से दबाया जा रहा है?

ग्राउंड रिपोर्टः पीएम मोदी का ‘क्योटो’, जहां कब्रिस्तान में सिसक रहीं कई फटेहाल ज़िंदगियां

धारा 370 को हटाना : केंद्र की रणनीति हर बार उल्टी पड़ती रहती है

मोहन भागवत का बयान, कश्मीर में जारी हमले और आर्यन खान को क्लीनचिट

मंडल राजनीति का तीसरा अवतार जाति आधारित गणना, कमंडल की राजनीति पर लग सकती है लगाम 

बॉलीवुड को हथियार की तरह इस्तेमाल कर रही है बीजेपी !

गुजरात: भाजपा के हुए हार्दिक पटेल… पाटीदार किसके होंगे?


बाकी खबरें

  • Ramjas
    न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    दिल्ली: रामजस कॉलेज में हुई हिंसा, SFI ने ABVP पर लगाया मारपीट का आरोप, पुलिसिया कार्रवाई पर भी उठ रहे सवाल
    01 Jun 2022
    वामपंथी छात्र संगठन स्टूडेंट फेडरेशन ऑफ़ इण्डिया(SFI) ने दक्षिणपंथी छात्र संगठन पर हमले का आरोप लगाया है। इस मामले में पुलिस ने भी क़ानूनी कार्रवाई शुरू कर दी है। परन्तु छात्र संगठनों का आरोप है कि…
  • monsoon
    मोहम्मद इमरान खान
    बिहारः नदी के कटाव के डर से मानसून से पहले ही घर तोड़कर भागने लगे गांव के लोग
    01 Jun 2022
    पटना: मानसून अभी आया नहीं है लेकिन इस दौरान होने वाले नदी के कटाव की दहशत गांवों के लोगों में इस कदर है कि वे कड़ी मशक्कत से बनाए अपने घरों को तोड़ने से बाज नहीं आ रहे हैं। गरीबी स
  • Gyanvapi Masjid
    भाषा
    ज्ञानवापी मामले में अधिवक्ताओं हरिशंकर जैन एवं विष्णु जैन को पैरवी करने से हटाया गया
    01 Jun 2022
    उल्लेखनीय है कि अधिवक्ता हरिशंकर जैन और उनके पुत्र विष्णु जैन ज्ञानवापी श्रृंगार गौरी मामले की पैरवी कर रहे थे। इसके साथ ही पिता और पुत्र की जोड़ी हिंदुओं से जुड़े कई मुकदमों की पैरवी कर रही है।
  • sonia gandhi
    भाषा
    ईडी ने कांग्रेस नेता सोनिया गांधी, राहुल गांधी को धन शोधन के मामले में तलब किया
    01 Jun 2022
    ईडी ने कांग्रेस अध्यक्ष को आठ जून को पेश होने को कहा है। यह मामला पार्टी समर्थित ‘यंग इंडियन’ में कथित वित्तीय अनियमितता की जांच के सिलसिले में हाल में दर्ज किया गया था।
  • neoliberalism
    प्रभात पटनायक
    नवउदारवाद और मुद्रास्फीति-विरोधी नीति
    01 Jun 2022
    आम तौर पर नवउदारवादी व्यवस्था को प्रदत्त मानकर चला जाता है और इसी आधार पर खड़े होकर तर्क-वितर्क किए जाते हैं कि बेरोजगारी और मुद्रास्फीति में से किस पर अंकुश लगाने पर ध्यान केंद्रित किया जाना बेहतर…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License