NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
कानून
भारत
आरटीआई अधिनियम का 16वां साल: निष्क्रिय आयोग, नहीं निपटाया जा रहा बकाया काम
​​​​​​​एक रिपोर्ट के मुताबिक़ 26 सूचना आयोगों में 30 जून तक 2,55,602 अपीलें और शिकायतें लम्बित थीं।
न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
13 Oct 2021
RTI

12 अक्टूबर को आरटीआई अधिनियम, 2005 के 16 साल पूरे हो गये हैं। इस क़ानून ने लाखों नागरिकों को जानकारी पाने और सरकार को जवाबदेह ठहराने का अधिकार दिया है। इस अधिनियम की धारा 3 में कहा गया है: "इस अधिनियम के प्रावधानों के तहत सभी नागरिकों को सूचना का अधिकार होगा।"

अधिनियम के तहत, सूचना आयोग (ICs) आख़िरी अपीलीय प्राधिकारण होते हैं और लोगों के सूचना के मौलिक अधिकार की सुरक्षा और सुविधा के लिए ये अनिवार्य हैं। इन सूचना आयोगों की स्थापना केंद्रीय स्तर (केंद्रीय सूचना आयोग) और राज्यों के स्तर(राज्य सूचना आयोग) पर की गयी है।

सरकार में पारदर्शिता और जवाबदेही को बढ़ावा देने को लेकर काम कर रहे एक नागरिक समूह- सतर्क नागरिक संगठन की ओर से तैयार की गयी 'भारत में सूचना आयोगों के प्रदर्शन पर रिपोर्ट कार्ड, 2021' नामक रिपोर्ट में भारत के सभी 29 आयोगों के प्रदर्शन की जांच-पड़ताल की गयी है। इसमें आयोगों की ओर से पंजीकृत और निपटायी गयी अपीलों और शिकायतों की संख्या, लम्बित मामलों की संख्या,हर एक आयोग में दायर अपील/शिकायत के निपटान के लिए अनुमानित इंतज़ार का समय, आयोगों की ओर से दंडित मामलों के अतिक्रमण की आवृत्ति और पारदर्शिता के सिलसिले में उनके काम शामिल हैं।

इस रिपोर्ट में कहा गया है, "महामारी ने स्वास्थ्य सुविधाओं के लिहाज़ से अस्पताल के बिस्तरों, ज़रूरी दवाओं और वेंटिलेटर जैसे चिकित्सा उपकरणों की उपलब्धता पर सटीक और आसानी से उपलब्ध जानकारी की तत्काल ज़रूरत पर रौशनी डाली है। इन हालात ने सरकारों की तरफ़ से घोषित राहत उपायों और जहां जनता का पैसा महामारी से निपटने के प्रयासों में ख़र्च किया जा रहा है, उनसे जुड़ी सूचना के प्रसार की अहमियत को रेखांकित किया गया है।”  

इस रिपोर्ट में पाया गया कि कई सूचना आयोग निष्क्रिय थे या फिर बहुत ही कम कर्मचारियों  के साथ काम कर रहे थे क्योंकि मुख्य सूचना आयुक्त (CIC) सहित आयुक्तों के पद उस अवधि के दौरान ख़ाली पड़े थे, जिस दौरान पड़ताल की जा रही थी।

रिपोर्ट के निष्कर्ष में कहा गया है, "ख़ास तौर पर कोविड-19 महामारी से पैदा होने वाले उस मानवीय संकट को देखते हुए सूचना की ज़रूरत है, जिसने लोगों और विशेष रूप से ग़रीबों और हाशिये पर पड़े लोगों को स्वास्थ्य देखभाल, भोजन और सामाजिक सुरक्षा जैसी ज़रूरी वस्तुओं और सेवाओं के सरकारी प्रावधान पर और भी ज़्यादा निर्भर बना दिया है।”

 इस समूह का कहना था कि प्रासंगिक जानकारी तक पहुंच के बिना नागरिक अपने अधिकार और हक़दारी को हासिल करने में असमर्थ हो गये हैं और भ्रष्टाचार फल-फूल रहा है।

जिस दौरान जांच-पड़ताल की जा रही थी, उस अवधि में चार सूचना आयोग- झारखंड, त्रिपुरा, मेघालय और गोवा कई बार निष्क्रिय इसलिए पाये गये थे क्योंकि वहां आयुक्तों के पद ख़ाली थे। इस रिपोर्ट के प्रकाशित होने तक तीन आयोग निष्क्रिय थे।

रिपोर्ट में कहा गया है कि सक्रिय आयोगों की कमी से आरटीआई आवेदक सूचना तक पहुंच पाने में असमर्थ हैं। झारखंड में राज्य आयोग के मुख्य सूचना आयुक्त ने नवंबर 2019 में ही इस्तीफ़ा दे दिया था। इसके बाद, अधिनियम में ऐसा कोई साफ़-साफ़ प्रावधान नहीं होने की वजह से एकमात्र सूचना आयुक्त को ही कार्यवाहक मुख्य सूचना आयुक्त बना दिया गया था।

8 मई, 2020 को आयुक्त का कार्यकाल पूरा होने के बाद से सूचना आयोग बिना किसी आयुक्त के रहा है और जैसा कि रिपोर्ट में पाया गया है कि इस स्थिति से प्रभावी रूप से सूचना आयोग निष्क्रिय बना हुआ है। पिछले 18 महीनों से झारखंड राज्य सूचना आयोग के अधिकार क्षेत्र के तहत सार्वजनिक प्राधिकरणों से जानकारी मांगने वाले लोगों को इस अधिनियम के तहत निर्धारित स्वतंत्र अपीलीय तंत्र का कोई सहारा नहीं मिला है, लिहाज़ा उनके सूचना के अधिकार का अतिक्रमण हुआ है या अतिक्रमण किया जा रहा है।

त्रिपुरा में भी सूचना आयोग 13 जुलाई को तब निष्क्रिय हो गया था, जब यहां का एकमात्र आयुक्त, जो प्रमुख भी था, उसका कार्यकाल ख़त्म हो गया था। अप्रैल 2019 के बाद से यह तीसरी मर्तबा है, जब यह आयोग निष्क्रिय हुआ है। इस रिपोर्ट के मुताबिक़ इसे अप्रैल 2019 से सितंबर 2019 तक और फिर अप्रैल 2020 से जुलाई 2020 तक बंद कर दिया गया था।

इसी तरह, मेघालय में भी सूचना आयोग 28 फ़रवरी को तब निष्क्रिय हो गया था, जब इसका एकमात्र आयुक्त, जो प्रमुख भी था, उसने अपना कार्यकाल पूरा कर लिया था। पिछले सात महीने से सरकार ने यहां एक भी नियुक्ति नहीं की है। इसी तरह, गोवा का सूचना आयोग एक महीने से ज़्यादा समय से निष्क्रिय था, जब वहां का एकमात्र आयुक्त, जो प्रमुख के रूप में भी कार्य कर रहा था, उसने 31 दिसंबर, 2020 को अपना कार्यकाल पूरा कर दिया था।

रिपोर्ट में यह भी पाया गया कि इन सूचना आयोगों के पास बड़ी संख्या में शिकायतें लम्बित हैं। जिन 26 सूचना आयोगों से आंकड़े हासिल हुए थे, उनमें 30 जून को लम्बित अपीलों और शिकायतों की संख्या 2,55,602 थी। सूचना आयोगों में बिना निपटाये अपीलों/शिकायतों की संख्या लगातार बढ़ती ही जा रही है। 2019 के आकलन में पाया गया कि 31 मार्च, 2019 तक सूचना आयोगों में 2,18,347 अपीलें/शिकायतें लम्बित थीं।

सूचना आयोगों में बिना निपटाये गये मामलों और उनके निपटान की मासिक दर के आंकड़ों का इस्तेमाल करते हुए इस रिपोर्ट ने 1 जुलाई को एक सूचना आयोग के पास दायर एक अपील/शिकायत के निपटारे में लगने वाले समय की गणना की ((यह मानते हुए कि अपीलों और शिकायतों का तारीख़वार निपटारा किया जाता है)।

ओडिशा राज्य सूचना आयोग को अपने मामले को निपटाने में छह साल आठ महीने लगेंगे। 1 जुलाई को दायर मामले का निपटारा अगर मौजूदा मासिक दर से किया जाता है,तो इनका निपटान 2028 में किया जा सकेगा। इस लिहाज़ से गोवा राज्य सूचना आयोग को पांच साल और 11 महीने, केरल को चार साल और 10 महीने और पश्चिम बंगाल को चार साल सात महीने लगेंगे।

इस रिपोर्ट में कहा गया है कि जनता के पैसे से वित्त पोषित राहत और कल्याण कार्यक्रम उन लाखों लोगों की एकमात्र जीवन रेखा हैं, जिनके हाथों से लॉकडाउन के बाद अचानक अपनी आय पाने के मौक़े निकल गये हैं। "अगर सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल से प्रभावित ग़रीबों और हाशिये पर पड़े लोगों को सरकारी योजनाओं को फ़ायदे उठाने की कोई उम्मीद बची है, तो उन्हें प्रासंगिक जानकारी होनी ही चाहिए।"

इस रिपोर्ट का कहना है कि सूचना आयोग की भूमिका "यह सुनिश्चित करने के लिहाज़ से अहम है कि लोग स्वास्थ्य देखभाल सुविधाओं, सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रमों और संकट में पड़े लोगों के लिए ज़रूरी वस्तुओं और सेवाओं के वितरण के बारे में जानकारी हासिल कर सकें।"

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें

https://www.newsclick.in/16-years-RTI-act-defunct-commissions-huge-backlog

RTI
right to information
Odisha
goa
Tripura
Jharkhand

Related Stories

चारा घोटाला: सीबीआई अदालत ने डोरंडा कोषागार मामले में लालू प्रसाद को दोषी ठहराया

भारत में हर दिन क्यों बढ़ रही हैं ‘मॉब लिंचिंग’ की घटनाएं, इसके पीछे क्या है कारण?

झारखंडः मॉब लिंचिंग बिल विधानसभा में पास, तीन साल से लेकर उम्र क़ैद का प्रावधान

झारखण्ड: आदिवासियों का कहना है कि सरना की पूजा वाली भूमि पर पुलिस थाने के लिए अतिक्रमण किया गया

झारखण्ड : फ़ादर स्टेन स्वामी समेत सभी राजनीतिक बंदियों की जीवन रक्षा के लिए नागरिक अभियान शुरू

मोदी राज में सूचना-पारदर्शिता पर तीखा हमला ः अंजलि भारद्वाज

क्या खान मंत्रालय ने खनन सुधारों पर अहम सुझावों की अनदेखी की?

आरटीआई के 15 साल: 31% सूचना आयोगों में कोई प्रमुख नहीं, 2 लाख से अधिक मामले लंबित


बाकी खबरें

  • सोनिया यादव
    समलैंगिक साथ रहने के लिए 'आज़ाद’, केरल हाई कोर्ट का फैसला एक मिसाल
    02 Jun 2022
    साल 2018 में सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले के बाद भी एलजीबीटी कम्युनिटी के लोग देश में भेदभाव का सामना करते हैं, उन्हें एॉब्नार्मल माना जाता है। ऐसे में एक लेस्बियन कपल को एक साथ रहने की अनुमति…
  • समृद्धि साकुनिया
    कैसे चक्रवात 'असानी' ने बरपाया कहर और सालाना बाढ़ ने क्यों तबाह किया असम को
    02 Jun 2022
    'असानी' चक्रवात आने की संभावना आगामी मानसून में बतायी जा रही थी। लेकिन चक्रवात की वजह से खतरनाक किस्म की बाढ़ मानसून से पहले ही आ गयी। तकरीबन पांच लाख इस बाढ़ के शिकार बने। इनमें हरेक पांचवां पीड़ित एक…
  • बिजयानी मिश्रा
    2019 में हुआ हैदराबाद का एनकाउंटर और पुलिसिया ताक़त की मनमानी
    02 Jun 2022
    पुलिस एनकाउंटरों को रोकने के लिए हमें पुलिस द्वारा किए जाने वाले व्यवहार में बदलाव लाना होगा। इस तरह की हत्याएं न्याय और समता के अधिकार को ख़त्म कर सकती हैं और इनसे आपात ढंग से निपटने की ज़रूरत है।
  • रवि शंकर दुबे
    गुजरात: भाजपा के हुए हार्दिक पटेल… पाटीदार किसके होंगे?
    02 Jun 2022
    गुजरात में पाटीदार समाज के बड़े नेता हार्दिक पटेल ने भाजपा का दामन थाम लिया है। अब देखना दिलचस्प होगा कि आने वाले चुनावों में पाटीदार किसका साथ देते हैं।
  • सरोजिनी बिष्ट
    उत्तर प्रदेश: "सरकार हमें नियुक्ति दे या मुक्ति दे"  इच्छामृत्यु की माँग करते हजारों बेरोजगार युवा
    02 Jun 2022
    "अब हमें नियुक्ति दो या मुक्ति दो " ऐसा कहने वाले ये आरक्षित वर्ग के वे 6800 अभ्यर्थी हैं जिनका नाम शिक्षक चयन सूची में आ चुका है, बस अब जरूरी है तो इतना कि इन्हे जिला अवंटित कर इनकी नियुक्ति कर दी…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License