NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
2019 में हुआ हैदराबाद का एनकाउंटर और पुलिसिया ताक़त की मनमानी
पुलिस एनकाउंटरों को रोकने के लिए हमें पुलिस द्वारा किए जाने वाले व्यवहार में बदलाव लाना होगा। इस तरह की हत्याएं न्याय और समता के अधिकार को ख़त्म कर सकती हैं और इनसे आपात ढंग से निपटने की ज़रूरत है।
बिजयानी मिश्रा
02 Jun 2022
hyderabad
Image courtesy : Tribune India

6 दिसंबर 2019 के दिन एक वेटनरी डॉक्टर (पशुचिकित्सक) की रेप और हत्या के चार आरोपियों को पुलिस ने हैदराबाद में एनकाउंटर में मार गिराया था। सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित आयोग ने हाल में अपनी रिपोर्ट में बताया है कि इन लोगों पर "जानबूझकर गोलियां चलाई" गई थीं। आयोग ने इसे अतिरिक्त-न्यायिक हत्या बताया है। भारत में "अतिरिक्त न्यायिक हत्या की कोई सीधी परिभाषा नहीं है। "अतिरिक्त" शब्द यहां इशारा करता है कि कुछ विशेष "एनकाउंटर" या हत्याएं, अनिवार्य न्यायिक गतिविधियों के लिए जरूरी कानूनी कार्रवाई के तहत नहीं आतीं। लेकिन हम कभी-कभार ही इस पर गौर करते हैं कि इस तरह की हत्याओं से वह वैचारिक आधार नष्ट होता है, जिनके ऊपर भारत में कानून-व्यवस्था टिकी हुई है- यह आधार है न्याय और लोकतांत्रिक समता का वादा।

भारत का न्यायतंत्र हर व्यक्ति को उसकी पहचान से परे, किसी भी आपराधिक कार्य में दोषी ठहराए जाने से पहले एक सुनवाई का मौका देता है। अगर कानून के कोर्ट में सुनवाई नहीं होती, तो कानूनी तौर पर यह तय नहीं किया जा सकेगा कि संबंधित व्यक्ति दोषी था या निर्दोष। हैदराबाद मामले में दस पुलिसकर्मियों ने चार लोगों की गोली मारकर हत्या कर दी थी, इसमें तीन अल्पव्यस्क थे और एक वयस्क पुरुष था। आयोग के मुताबिक़, यह हत्याएं उन्हें एक निर्जन जगह पर ले जाकर की गई थीं। अत: हमें महसूस होता है कि हर भारतीय नागरिकों के अधिकारों की सुरक्षा के लिए कुछ बुनियादी अधिकार मौजूद हैं, लेकिन नियमित अतिरिक्त न्यायिक हत्याएं कानूनी तंत्र के साथ-साथ इन अधिकारों का उल्लंघन करती हैं। 

दिक्कत क्या है?

हैदराबाद एनकाउंटर की ख़बर का भारत में व्यापक स्तर पर समर्थन किया गया था। कुछ ही घंटों में लोग एनकाउंटर की जगह पर इकट्ठा हो गए थे और मिठाईयां बांटी व पटाखे चलाए गए थे। हैदराबाद पुलिस को समर्थन देते हुए लोगों ने तीन लाख ट्वीट और हैशटैग भी चलाए थे। जो लोग इन हत्याओं के पक्ष में थे, उन्होंने उन लोगों को जमकर ट्रोल किया, जो आरोपियों को बिना सुनवाई दिए मौत की सजा दिए जाने का विरोध किया था। कुछ लोगों ने ध्यान दिलाया कि पुलिस "गलत ढंग से खुद ही सजा" देने में यकीन रख रही है, जबकि दूसरों ने इसे पुलिसकर्मियों को सिंघम की तरह का बताया। जो लोग इन अतिरिक्त न्यायिक हत्याओं का समर्थन कर रहे थे, उन लोगों ने ऐसा उन्माद पैदा किया, जैसे यह कोई बॉलीवुड फिल्म हो। 

मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के कड़े विरोध के बाद सुप्रीम कोर्ट ने जस्टिस वी एस सिरपुरकर आयोग का गठन किया, ताकि चारों लोगों की हत्याओं की जांच की जा सके। अपनी जांच की 387 पन्नों की रिपोर्ट में आयोग ने बताया है कि एनकाउंटर फर्जी था और आरोपियों की हत्या की गई थी और इसमें शामिल 10 पुलिसकर्मियों पर अपराध के लिए केस चलाया जाए। आयोग ने कई सवाल उठाए थे: क्या एनकाउंटर में शामिल पुलिसकर्मियों के सिवा वहां कोई गवाह था, क्या वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों ने उन्हें कोई चेतावनी दी थी, क्यों एनकाउंटर के बाद ही चारों आरोपियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई थी, वह भी तब जब उन्हें रेप और हत्या के इस मामले में दोषी बताया जाने लगा। आयोग ने आगे पूछा कि आरोपियों के साथ तथाकथित मारपीट में पुलिसकर्मियों को क्या चोटें (बड़ी और छोटी) आईं और क्यों तेलंगाना सरकार ने केस में कोई न्यायिक जांच नहीं बैठाई, जबकि कानून ऐसा प्रबंधन करता है।

पुलिस ने दावा किया कि चारों आरोपी उनके हथियार छीनने की कोशिश कर रहे थे, यही एकमात्र वज़ह थी, जो उन्हें गोली मारने के लिए पुलिस ने बताई थी। लेकिन आयोग ने कहा कि एनकाउंटर स्थल पर कोई उपयोग की गई गोली या कारतूस नहीं पाया गया। ऊपर से पुलिस ने गोलीबारी की भी अधूरी वीडियो फुटेज दिखाई थी। 

यह बेहद चिंता का विषय है कि क्या पुलिस ने वाकई उन चार लोगों को गिरफ़्तार किया था, जिनके बारे में पुलिस का यकीन था कि वे अपराध के लिए जिम्मेदार हैं या फिर एक युवा डॉक्टर की हत्या पर जनता में छाए रोष को दबाने के लिए मनमाफ़िक ढंग से चार लोगों को गिरफ़्तार कर लिया गया था। इस बिंदु पर ध्यान दिलाते हुए आयोग ने सुझाव दिया है कि एनकाउंटर में शामिल दस पुलिसवालों को सजा सुनाई जानी चाहिए। आयोग ने उन्हें सबूतों को छुपाने और उन्हें नष्ट करने का दोषी भी पाया है।

आयोग ने इस केस में कुछ अहम चीजों पर ध्यान केंद्रित करवाया है, जो एनकाउंटर के बारे में पुलिस की व्याख्या को खारिज करते हैं। जैसे सीसीटीव फुटेज, हथियारों पर सुरक्षा के लिए लगाए जाने वाले उपकरण, गोलीबारी के दौरान आरोपी पुलिस से कितने दूर थे, बंदूक पर ऊंगलियों के निशान और जेल से उनके छूटने का वक़्त, साथ ही ऐसी कई बातों पर ध्यान दिलाया गया है।

इसके बावजूद आयोग चिर-परिचित तरीके को खोजने में नाकामयाब रहा, जो आमतौर पर पुलिस "फर्जी" एनकाउंटर में अपनाती है। अगर ऐसा हुआ होता तो हमें पता चलता कि एनकाउंटर के पीछे पुलिसवालों की मंशा क्या थी। 2021 में राष्ट्रीय अपराध ब्यूरो के आंकड़ों से पता चलता है कि रेप और हत्या के मामले में दोष सिद्धी दर सबसे ज़्यादा कम है। आमतौर पर जब कानूनी कार्रवाई लंबी खिंचती है, तो पुलिस को असहाय महसूस होता है, यह बेहद गंभीर मामलों में भी होता है। दूसरे लोगों का विचार है कि आरोपियों को जांच और सुनवाई की खामियों का फायदा मिल जाता है और वे सजा से बच जाते हैं। लेकिन क्या इन समस्याओं का समाधान "एनकाउंटर" करना है? स्वाभाविक तौर पर कतई नहीं। इसके बजाए, पुलिस को गिरफ़्तार किए गए शख़्स को दोषी ठहराने के लिए सुव्यवस्थित जांच करनी चाहिए।

महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश और पंजाब में हिरासत में नक्सलियों और गंभीर अपराधियों की हत्या के अलावा, एनकाउंटर के कई मामले सामने आए हैं। किसी आपराधिक समूह या व्यक्ति के आपराधिक कार्य की बहुत निंदा की जा सकती है, लेकिन यह पुलिस हिरासत में उनकी हत्या को सही नहीं ठहरा सकता। पुलिस कस्टडी एक ऐसा अंधेरा है, जहां सुरक्षाकर्मियों के पास असीमित ताकत होती है। इसी अंधेरे में इन एनकाउंटर की योजना बनती है और उन्हें अंजाम दिया जाता है। रिटायर्ड जज, जस्टिस मार्कंडेय काटजू कहते हैं, "...एनकाउंटर कभी संघर्ष नहीं होता, सभी नृशंस हत्याएं होती हैं।" सुप्रीम कोर्ट ने प्रकाश कदम बनाम् रामप्रसाद विश्वनाथ गुप्ता के मामले में कहा, "... जब एक सुनवाई में पुलिसकर्मियों के खिलाफ़ फर्जी एनकाउंटर साबित हो जाता है, तो उन्हें मौत की सजा दी जानी चाहिए, इसे दुर्लभ से भी दुर्लभ मामले की तरह लिया जाना चाहिए।" कोर्ट ने कहा, "बंदूक चलाने के आदी पुलिसकर्मी, जिन्हें लगता है कि वे एनकाउंटर के नाम पर लोगों को मार सकते हैं, उन्हें पता होना चाहिए कि उनके लिए भी मौत इंतज़ार कर रही है।"

भारत में पुलिस द्वारा किए गए अपराध तभी खत्म हो सकते हैं जब किसी आरोपी को पहले दिन से ही न्यायिक हिरासत दी जाए और पुलिस हिरासत को पूरी तरह खत्म किया जाए। इस तरह की एनकाउंटर की हत्याओं को रोकने के लिए हमें पुलिस द्वारा किए जाने वाले व्यवहार को बदलना होगा।

संविधान का अनुच्छेद 21 कहता है, "किसी भी व्यक्ति को विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अतिरिक्त उसके जीवन और वैयक्तिक स्वतंत्रता के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता है।" दूसरे शब्दों में कहें तो केवल कोर्ट ही न्याय दे सकता है। भारत में न्यायिक मामलों से निपटने के लिए स्वतंत्र न्यायपालिका है। पुलिस का काम जांच करना है, ना कि विध्वंसक कारनामों द्वारा जनता की भावनाओं को संतोष पहुंचाना। अगर पुलिस जज बन जाएगी, तो जजों का काम कौन करेगा? न्याय तभी संभव हो सकता है जब पुलिस अपराध की पीड़ितों की मदद करे और उनके द्वारा बताए गए ब्यौरे की तेज-तर्रार जांच से पुष्टि करे।

सिरपुरकर आयोग ने सुप्रीम कोर्ट की तार्किक और निष्पक्ष ढंग से फ़ैसले लेने की क्षमता में जनता का विश्वास मजबूत किया है। अब न्याय तंत्र को उन लोगों को सजा देनी चाहिए, जो इस राज्य प्रायोजित हत्या में शामिल थे। पुलिस द्वारा किया जाने वाला हर अतिरिक्त न्यायिक कार्य की जांच की जानी चाहिए, ताकि न्याय हो सके।

लेखक दिल्ली यूनिवर्सिटी में असिस्टेंट प्रोफ़ेसर हैं। यह उनके निजी विचार हैं।

इस लेख को मूल अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें।

The 2019 Hyderabad Encounter and Dark Periphery of Police Power

Hyderabad Encounter
Telangana Police
police encounters in India
Fake Encounters
Police killings
Supreme Court fake encounters
Justice Sirpurkar Commission
Criminal Justice
Indian judiciary

Related Stories

तेलंगाना एनकाउंटर की गुत्थी तो सुलझ गई लेकिन अब दोषियों पर कार्रवाई कब होगी?

प्रधानमंत्री जी! पहले 4 करोड़ अंडरट्रायल कैदियों को न्याय जरूरी है! 

मुद्दा: हमारी न्यायपालिका की सख़्ती और उदारता की कसौटी क्या है?

अदालत ने वरवर राव की स्थायी जमानत दिए जाने संबंधी याचिका ख़ारिज की

समझिए कि राष्ट्रीय सुरक्षा क़ानून के तहत सलाहकारी मंडल क्या है?

जजों की भारी कमी के बीच भारतीय अदालतों में 4.5 करोड़ मामले लंबित, कैदियों से खचाखच भरी जेलें

न्याय वितरण प्रणाली का ‘भारतीयकरण’

लिव-इन रिश्तों पर न्यायपालिका की अलग-अलग राय

न्यायपालिका को बेख़ौफ़ सत्ता पर नज़र रखनी होगी

जेंडर के मुद्दे पर न्यायपालिका को संवेदनशील होने की ज़रूरत है!


बाकी खबरें

  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    दिल्ली उच्च न्यायालय ने क़ुतुब मीनार परिसर के पास मस्जिद में नमाज़ रोकने के ख़िलाफ़ याचिका को तत्काल सूचीबद्ध करने से इनकार किया
    06 Jun 2022
    वक्फ की ओर से प्रस्तुत अधिवक्ता ने कोर्ट को बताया कि यह एक जीवंत मस्जिद है, जो कि एक राजपत्रित वक्फ संपत्ति भी है, जहां लोग नियमित रूप से नमाज अदा कर रहे थे। हालांकि, अचानक 15 मई को भारतीय पुरातत्व…
  • भाषा
    उत्तरकाशी हादसा: मध्य प्रदेश के 26 श्रद्धालुओं की मौत,  वायुसेना के विमान से पहुंचाए जाएंगे मृतकों के शव
    06 Jun 2022
    घटनास्थल का निरीक्षण करने के बाद शिवराज ने कहा कि मृतकों के शव जल्दी उनके घर पहुंचाने के लिए उन्होंने रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह से वायुसेना का विमान उपलब्ध कराने का अनुरोध किया था, जो स्वीकार कर लिया…
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    आजमगढ़ उप-चुनाव: भाजपा के निरहुआ के सामने होंगे धर्मेंद्र यादव
    06 Jun 2022
    23 जून को उपचुनाव होने हैं, ऐसे में तमाम नामों की अटकलों के बाद समाजवादी पार्टी ने धर्मेंद्र यादव पर फाइनल मुहर लगा दी है। वहीं धर्मेंद्र के सामने भोजपुरी सुपरस्टार भाजपा के टिकट पर मैदान में हैं।
  • भाषा
    ब्रिटेन के प्रधानमंत्री जॉनसन ‘पार्टीगेट’ मामले को लेकर अविश्वास प्रस्ताव का करेंगे सामना
    06 Jun 2022
    समिति द्वारा प्राप्त अविश्वास संबंधी पत्रों के प्रभारी सर ग्राहम ब्रैडी ने बताया कि ‘टोरी’ संसदीय दल के 54 सांसद (15 प्रतिशत) इसकी मांग कर रहे हैं और सोमवार शाम ‘हाउस ऑफ कॉमन्स’ में इसे रखा जाएगा।
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    कोरोना अपडेट: देश में कोरोना ने फिर पकड़ी रफ़्तार, 24 घंटों में 4,518 दर्ज़ किए गए 
    06 Jun 2022
    देश में कोरोना के मामलों में आज क़रीब 6 फ़ीसदी की बढ़ोतरी हुई है और क़रीब ढाई महीने बाद एक्टिव मामलों की संख्या बढ़कर 25 हज़ार से ज़्यादा 25,782 हो गयी है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License