केंद्रीय मंत्री हर्षवर्धन ने 26 सितंबर बुधवार को 'टीबी हारेगा देश जीतेगा' अभियान का आगाज करते हुए यह ऐलान किया कि भारत वैश्विक लक्ष्य से पांच साल पहले ही टीबी की गंभीर बीमारी से मुक्त हो जाएगा। लेकिन आंकड़ों की हकीकत इस दावे से कोसो दूर नजर आती है।
दरअसल बुधवार को ही जारी केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की एक रिपोर्ट के अनुसार पिछले साल टीबी के मरीजों की संख्या में भारी वृद्धि हुई है। रिपोर्ट के मुताबिक, 2018 में टीबी संक्रमित लोगों की संख्या में 16 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई है।
'इंडिया टीबी रिपोर्ट 2019' के अनुसार वर्ष 2018 में देश में 21.5 लाख टीबी मरीजों की पहचान हुई है। जबकि 2017 में यह 18 लाख था यानी एक साल के भीतर 16 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। इसमें कुल 25 प्रतिशत यानी 5.4 लाख मामले निजी अस्पतालों से सामने आए हैं। करीब 89 फीसदी टीबी मरीजों की आयु 15 से 69 वर्ष के बीच मिली है।
'केयर इंडिया' संस्था में कार्यरत अभिषेक सिंह ने न्यूज़क्लिक से बातचीत में कहा कि टीबी के जो मामले निजी अस्पतालों में रिपोर्ट हुए हैं वो शायद कम हैं। 2016 में लासेंट के सर्वे के अनुसार भारत में करीब 70 फीसदी आबादी निजी अस्पतालों के भरोसे है। ऐसे में अगर रोकथाम में निजी भागीदारी नहीं मिलेगी तो सरकार का 2025 तक टीबी मुक्त भारत की योजना सफल नहीं हो सकती है।
मंत्रालय के अनुसार आबादी के लिहाज से देश के सबसे बड़े राज्य यूपी से करीब 20 फीसदी मरीजों की हिस्सेदारी मिली है। यहां करीब 4.2 लाख टीबी रोगी मिले हैं। इसके अलावा सर्वाधिक टीबी मरीज महाराष्ट्र 10 फीसदी, राजस्थान, मध्यप्रदेश और गुजरात से सात-सात फीसदी एवं तमिलनाडु, बिहार व पश्चिम बंगाल से पांच-पांच फीसदी मरीजों की हिस्सेदारी मिली है।
स्वास्थ्य मंत्रालय के स्पेशल सेक्रटरी संजीव कुमार का कहना है कि सरकार ने इस ओर कई महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं। ड्रग-रेजिस्टेंट टीबी डिटेक्शन सेंटर में 52 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। लोगों को अलग-अलग स्तरों पर जागरूक करने के लिए अभियान चलाया जा रहा है।आरएनटीसीपी के तहत मुफ्त में टीबी का इलाज उपलब्ध है और दवाइयों का स्टॉक भी मौजूद है।
टीबी एसोसिएशन के प्रमोद सचदेवा ने न्यू़ज़क्लिक से बातचीत में कहा, 'स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा जो रिपोर्ट जारी की गई है। उसमें ज्यादा चिंता की बात नहीं है। अक्सर लोगों को टीबी के नाम से ही डर लग जाता है, लेकिन सही इलाज से यह आसानी से ठीक हो सकती है।'
उन्होंने आगे कहा कि सरकार ने जो 2025 तक टीबी के खात्मा का जो लक्ष्य रखा है वो थोड़ा मुश्किल जरूर है लेकिन इसमें कई चीजें समझने की जरूरत है। हो सकता है इस दौरान टीबी का सफाया ना हो सके लेकिन इससे ग्रसित सभी लोगों को इलाज के दायरे में लाया जा सके।अस्पतालों और डॉट्स सेंटरों में इसका फ्री इलाज होता है। मल्टी ड्रग्स रेजिस्टेंट टीबी में थोड़ी समस्या होती है लेकिन सही समय पर इलाज मिलने से वो भी ठीक हो जाती है। सरकार अब तो पोषण अभियान के जरिए प्रत्येक टीबी मरीज को प्रति माह 500 भी देती है।
रिपोर्ट में ये भी बताया गया कि साल 2017 में 79 प्रतिशत टीबी के मरीजों का सफलतापूर्वक इलाज किया गया था, जबकि 49,733 केस ऐक्टिव केस फाइंडिंग कैम्पेन के कारण पता चला। इस दौरान 14.4 करोड़ लोगों की जांच की गई थी।
इस संबंध में यूनिसेफ इंंडिया के राकेश अवस्थी का कहना है कि सरकार इस बीमारी की रोकथाम के लिए कई कदम उठा रही है। लेकिन अभी भी ग्रामीण इलाकों में आम नागरिक के जागरूक होने की आवश्यकता है।
टीबी के बढ़ते मामलों पर राकेश का कहना है कि अब मामले ज्यादा संज्ञान में आ रहे हैं। इसे ऐसे समझा जाना चाहिए की अगर ज्यादा लोग टीबी की शुरुआत में ही इलाज पाने में सफल होंगे तो निश्चित ही उनके ठीक होने की संभावना भी अधिक होगी। मामला तब हाथ से निकल जाता है जब आप को आखिर में इस बीमारी का पता लगता है।
'टीबी हारेगा देश जीतेगा' अभियान में हर्षवर्धन ने कहा, 'पीएम नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में हमने संकल्प लिया है कि टीबी को हराने का जो लक्ष्य सारी दुनिया ने वर्ष 2030 तक का रखा है, उसे हम 2025 तक पूरा करेंगे।' उन्होंने कहा कि यह अभियान प्रधानमंत्री मोदी के उस सपने को मूर्तरूप देगा, जिसमें दुनिया से टीबी के खात्मे से पांच साल पहले ही भारत को इस रोग से मुक्त करने का लक्ष्य है।
कई सालों से टीबी के चिकित्सा के क्षेत्र से जुड़े नई दिल्ली नगर पालिका चेस्ट क्लिनिक के पूर्व निदेशक डॉ रणबीर कुमार ने न्यूज़क्लिक को बताया कि सरकार के इस दावे को हकीकत में बदलने में समय लगेगा। टीबी के मरीजों में जानकारी की भारी कमी होती है। कई मरीज कई बार दवाई का कोर्स भी पूरा नहीं कर पाते हैं। कई स्वास्थ्य केंद्रों में तमाम कोशिशों के बाद भी दवाईयां नहीं उपलब्ध होती। ऐसे इतना आसान नहीं है जितना इसे समझा जा रहा है।
गौरतलब है कि इससे पहले एंड टीबी कार्यक्रम में बोलते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी 2025 तक टीबी मुक्त भारत की बात कही थी। लेकिन अगर इस बीमारी की गंभीरता को देखें तो यह लक्ष्य आसान नहीं लगता।