NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
अर्थव्यवस्था
कहीं लोन मेला के नाम पर अमीरों की क़र्ज़माफ़ी तो नहीं की जायेगी ?
लोन का खेल समझ लेंगे तो आपको दिखेगा कि भाजपा सरकार सच नहीं बोल रही। आइये लोन का खेल समझते हैं? क्यों लोन के मामलें में बैंकों के पास तिकड़म भिड़ाने के अलावा और कोई रास्ता नहीं है?
अजय कुमार
20 May 2020
mn

कोरोना की वजह से भारत की चलती हुई गाड़ी पर ऐसा ब्रेक लगा है कि इसके परखच्चे उड़ते हुए दिख रहे हैं। फाइनेंसियल रेटिंग एजेंसी गोल्डमैन ने कहा कि भारत में इस साल अभूतपूर्व मंदी आएगी। FY21 में जीडीपी बढ़ोतरी दर जैसी कोई बात नहीं होगी। बढ़ोतरी दर -5 फीसदी हो सकती हैं। सरकार में शामिल लोग इसे सबसे अधिक समझते हैं। भारत के प्रधानमंत्री के पास इसकी सबसे अधिक खबर है कि भारत किस हालत से गुजर रहा है।

ऐसे में होना क्या चाहिए? चाहे कोई भी तर्क दें, मदद करने से जुड़ें विषयों पर सोचा जाएगा तो सबसे पहले उन विषयों पर सोचा जाएगा, जो सीधे तौर पर कोरोना से प्रभावित हो रहे हैं। और सबसे पहले इन्हीं लोगों को कोरोना से पड़ने वाले पहाड़ से जैसी परेशनियों से दूर रखने की कोशिश की जाएगी। लेकिन 20 लाख करोड़ रुपये की आर्थिक मदद के एलान से क्या ऐसा हुआ ? तकरीबन सभी जानकारों का कहना है कि ऐसा नहीं हुआ।

जानकार ऐसा क्यों कह रहे हैं इसे ऐसे समझिये। लागतार पांच दिन के तकरीबन 7 घंटे की प्रेस कॉन्फ्रेंस में सरकार की तरफ से 20 लाख 97 हजार 53 रुपये के मदद का एलान किया गया। इसमें से सरकार की जेब से खर्च होने वाला पैसा सिर्फ 1 लाख 78 हजार 800 रुपये है। यानी कोरोना जैसे संकट से लड़ने के लिए भारत की जीडीपी का 1 फीसदी से भी कम। यानी यह साफ़ तौर पर कहा जा सकता है कि कहने के लिए 20 लाख करोड़ तो कह दिया लेकिन दिया कुछ भी नहीं।

अब आप पूछेंगे कि बाकी पैसा कहाँ गया तो आप ही में से कोई जवाब देगा कि बाकी पैसा लोन यानी कर्ज के तौर पर रखा गया है। फिर आप में ही से सवाल भी उठना चाहिए कि कर्ज से जुड़े सहयोग को आर्थिक मदद कैसे कहा जा सकता है। यह बहुत ही जायज सवाल है। सरकार के नुमाइंदे इसका जवाब देते हैं कि इस समय जो कारोबार चलता आ रहा है, उसे बचाना जरूरी है। यह बच पाएं तभी आगे बढ़ जा सकता है। इसलिए उन्हें कर्ज दिया जा रहा है। यह तर्क भी सुनने में जायज लगेगा लेकिन इसमें नाजायज बात यह है कि इसमें केवल वही व्यापारी आते हैं जिनकी कुल सम्पति करोड़ों से ऊपर की होती है। और असलियत यह है कि भारत की तकरीबन 90 फीसदी से अधिक जनता ऐसी है, जिनका करोड़ रुपये की कमाई से कोई लेना देना नहीं। यानी जैसे ही कर्ज के आधार पर सहयोग की बात आती है तो इस जाल से तकरीबन 90 फीसदी जनता सीधे तौर पर बाहर चली जाती है।

बैंकों के लोन का तकरीबन 25 फीसदी हिस्सा पर्सनल लोन के तौर पर जाता है। कोरोना के इस समय में जहां नौकरियां जा रही है। सैलरी बढ़ने का दूर-दूर तक आसार नहीं है। ऐसे में कोई कार या घर खरीदने के लिए लोन क्यों लेगा? बाकी बचा बैंकों का 75 फीसदी हिस्सा यह बिजनेस लोन के तौर पर चला जाता है। यानी बैंकों के लोन का बहुत बड़ा हिस्सा बिजनेस लोन के तौर पर जाता है। किताबों में और अर्थशास्त्र की किताबों में लिखा होता है कि बैंकों में पैसा होने पर ही बिजनेस को लोन मिलता है और जब लोन मिलता है तभी कारोबारी अपने कारोबार को आगे बढ़ाने के लिए सोचता है।

आसान भाषा में समझिये तो यह कि कारोबार करने के लिए पूंजी की जरुरत होती है। पूंजी अपने कारोबार के मुनाफे से भी मिलती है और अधिक पूंजी की जरूरत होती है तो इसे बैंकों से भी लेने की सुविधा होती है। यह तो रही इकोनॉमिक्स के टेक्स्ट बुक की बात। व्यवहारिक बात इससे बिलकुल अलग होती है। आर्थिक मामलों के जानकार वरिष्ठ पत्रकार ऑनिन्द्यो चक्रवर्ती इसे बड़ी आसानी से समझाते हुए कहते हैं कि व्यवहारिक बात यह है कि लोन लेने का हमारे देश में पूरा एक ढाँचा बना हुआ है। जो इसमें फिट होता है, उन्हें ही लोन मिल पाता है। हर सेक्टर में पहले से ही कुछ कंपनियों की हुकूमत चल रही है। इनका नेताओं से कनेक्शन होता है। ये नेताओं की ‘सेवा’ करते हैं, बदले में नेता इन्हें कॉन्ट्रेक्ट दिलवाते हैं और कॉन्ट्रक्ट के दम पर इन्हें बैंकों से पैसा मिल जाता है। इलेक्टोरल बांड से लेकर चुनावों में होने वाले खर्चे का जुगाड़ यहीं से होता है। यह रही प्रोजेक्ट फाइनेंसिंग की बात।

इसमें आगे चलें तो पता चलता है कि बैंक कहता है कि 20 फीसदी आप अपना पैसा लगाइये, बाकी 80 फीसदी पैसा बैंक से मिल जाएग। कारोबारी यह भी नहीं करते। बढ़ा-चढ़ाकर प्रोजेक्ट की रिपोर्ट बैंक को सौंपते हैं और बैंक से पूरा पैसा ले लेते हैं। यानी कारोबारी का एक भी पैसा नहीं लगता है। अगर कम्पनी डूबी तो बैंकों को वही मिल पाता है, जो कम्पनी ने कोलेटरल के तौर पर बैंकों के पास रखा है। लेकिन अब तो सरकार ने इस कोलेटरल को भी खत्म कर दिया है। गारंटी सरकार ने खुद ले ली है। यानी अगर कम्पनी डूबी तो बैंकों को एक पैसा नहीं मिलेगा।

लेकिन बैंक यहां पर एक तिकड़म भी लगा सकता है। हो सकता है कि बहुत सारे बैंक इस तिकड़म का इस्तेमाल करें। चूँकि सरकार लोन की गारंटी दे रही है तो बैंकों को यह पता है कि अगर कारोबारी पैसा नहीं देंगे तो सरकार पैसा दे देगी। इसलिए बैंक से लोन लेने के लिए कहेंगे, जिन्होंने पहले से बैंकों का लोन लिया है, जिनका लोन एनपीए बन चुका है। इन्हें लोन देकर बैंक कहेगा कि ये पहले का अपना लोन दे दे। इस तरह से बैंकों को ख़स्ताहाल स्थिति अकॉउंट के जरिये सही दिखने लगेगी।

लेकिन क्या इसका प्रभाव नहीं पड़ेगा। इसका प्रभाव पड़ेगा क्योंकि सरकार तो अंततः जनता से ही पैसा लेगी। टैक्स बढ़ाएगी, गुड्स एंड सर्विस टैक्स के दर बढ़ाएगी। महंगाई बढ़ेगी जिसे सब सहन कर लेंगे और आवाज कहीं से नहीं उठेगी। कहने का मतलब यह है कि कर्ज के मदद में सरकार का खुद खर्च एक रुपया का नहीं है। फायदा केवल अमीरों का है और बोझ सहन सबको करना है।

बैंक तिकड़मों का ही इस्तेमाल क्यों करेंगे? इसे आंकड़ों के जरिये समझते हैं। बैंक कर्ज की मांग 27 साल के न्यूनतम स्तर पर है। रिजर्व बैंक के पैकेजों का एक-तिहाई इस्तेमाल भी नहीं हुआ। नतीजतन बैंकों ने (4 मई तक) करीब 8.54 लाख करोड़ रुपये रिजर्व बैंक को लौटा (रिवर्स रेपो) दिए हैं और अब रि‍जर्व बैंक को उलटा बैंकों को ब्याज देना होगा। राहत पैकेज से पहले तक बैंक कर्ज वसूली टालने और नए बकाया कर्ज से निबटने में लगे थे, लाभांश भुगतान बंद कर रहे थे। कोरोना से पहले ही बैंकों और कंपनियों की सबसे बड़ी मुसीबत करीब 9.9 लाख करोड़ के फंसे हुए कर्ज हैं। कोरोना के दौरान जो स्थिति बनी है, उससे मांग भी न्यूनतम स्तर पर पहुँच चुकी है।

ऐसे में सरकार की गारंटी पर बैंकों द्वारा दिया जाने वाला लाखों करोड़ के कर्ज का इस्तेमाल कौन करेगा? कोई नहीं। ऐसे में आर्थिक मदद के नाम पर भाजपा सरकार ने लोन का खेल खेला है। सबके सामने लागातर पांच दिनों तक तक झूठ बोला है। जनता के आँखों में आँख डालकर बोला है।

20 lakh Crore
corona package
Narendra modi
loan mela
rich people
nirmla sitaraman
anirag thakur
loan trap
bad debt
NPA
Bank
banking crisis

Related Stories

तिरछी नज़र: सरकार जी के आठ वर्ष

कटाक्ष: मोदी जी का राज और कश्मीरी पंडित

ग्राउंड रिपोर्टः पीएम मोदी का ‘क्योटो’, जहां कब्रिस्तान में सिसक रहीं कई फटेहाल ज़िंदगियां

भारत के निर्यात प्रतिबंध को लेकर चल रही राजनीति

गैर-लोकतांत्रिक शिक्षानीति का बढ़ता विरोध: कर्नाटक के बुद्धिजीवियों ने रास्ता दिखाया

बॉलीवुड को हथियार की तरह इस्तेमाल कर रही है बीजेपी !

PM की इतनी बेअदबी क्यों कर रहे हैं CM? आख़िर कौन है ज़िम्मेदार?

छात्र संसद: "नई शिक्षा नीति आधुनिक युग में एकलव्य बनाने वाला दस्तावेज़"

भाजपा के लिए सिर्फ़ वोट बैंक है मुसलमान?... संसद भेजने से करती है परहेज़

हिमाचल में हाती समूह को आदिवासी समूह घोषित करने की तैयारी, क्या हैं इसके नुक़सान? 


बाकी खबरें

  • संदीपन तालुकदार
    वैज्ञानिकों ने कहा- धरती के 44% हिस्से को बायोडायवर्सिटी और इकोसिस्टम के की सुरक्षा के लिए संरक्षण की आवश्यकता है
    04 Jun 2022
    यह अध्ययन अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि दुनिया भर की सरकारें जैव विविधता संरक्षण के लिए अपने  लक्ष्य निर्धारित करना शुरू कर चुकी हैं, जो विशेषज्ञों को लगता है कि अगले दशक के लिए एजेंडा बनाएगा।
  • सोनिया यादव
    हैदराबाद : मर्सिडीज़ गैंगरेप को क्या राजनीतिक कारणों से दबाया जा रहा है?
    04 Jun 2022
    17 साल की नाबालिग़ से कथित गैंगरेप का मामला हाई-प्रोफ़ाइल होने की वजह से प्रदेश में एक राजनीतिक विवाद का कारण बन गया है।
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    छत्तीसगढ़ : दो सूत्रीय मांगों को लेकर बड़ी संख्या में मनरेगा कर्मियों ने इस्तीफ़ा दिया
    04 Jun 2022
    राज्य में बड़ी संख्या में मनरेगा कर्मियों ने इस्तीफ़ा दे दिया है। दो दिन पहले इन कर्मियों के महासंघ की ओर से मांग न मानने पर सामूहिक इस्तीफ़े का ऐलान किया गया था।
  • bulldozer politics
    न्यूज़क्लिक टीम
    वे डरते हैं...तमाम गोला-बारूद पुलिस-फ़ौज और बुलडोज़र के बावजूद!
    04 Jun 2022
    बुलडोज़र क्या है? सत्ता का यंत्र… ताक़त का नशा, जो कुचल देता है ग़रीबों के आशियाने... और यह कोई यह ऐरा-गैरा बुलडोज़र नहीं यह हिंदुत्व फ़ासीवादी बुलडोज़र है, इस्लामोफ़ोबिया के मंत्र से यह चलता है……
  • आज का कार्टून
    कार्टून क्लिक: उनकी ‘शाखा’, उनके ‘पौधे’
    04 Jun 2022
    यूं तो आरएसएस पौधे नहीं ‘शाखा’ लगाता है, लेकिन उसके छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) ने एक करोड़ पौधे लगाने का ऐलान किया है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License