NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
5 सितम्बर : देश के लोकतांत्रिक आंदोलन के इतिहास में नया अध्याय
सीटू  किसान सभा और खेत मजदूर यूनियन के इस चरणबद्ध संघर्ष ने इन सभी सवालों को जोड़ा है। विनाश की इस धारा को उलटने की ठानी है। 
बादल सरोज
01 Sep 2018
किसान मज़दूर एकता

5 सितम्बर को प्रख्यात अर्थशास्त्री प्रो. प्रभात पटनायक की सदारत में बनी स्वागत समिति के सदस्य के रूप में देश भर के जानपहचाने  बुद्दिजीवी-लेखक-साहित्यकार-रंगकर्मी जब दिल्ली पहुंचे पांच लाख से ज्यादा की संख्या वाले मजदूर और किसानो के ठहरने रुकने के इंतजामों को देख रहे होंगे, उनमे मदद कर रहे होंगे तब भारत का लोकतांत्रिक आंदोलन अपने खुद के संघर्षों के अपेक्षाकृत गौरवशाली  इतिहास में एक नया अध्याय  जोड़ रहा होगा। मौजूदा दौर के हिसाब से एक निहायत जरूरी गोलबन्दी को मुखरता प्रदान कर रहा होगा। 

5 सितम्बर बुधवार को जब दिल्ली में देश के प्रधानमंत्री के सामने जब ये - अंगरेजी  गिनती में कहें तो कोई  आधा मिलियन - मेहनतकश प्रदर्शन करके अपनी मुठ्ठियां उठा रहे होंगे, नारों से दिल्ली गुंजा रहे होंगे, तब वे सिर्फ इस रैली के आह्वानकर्ता संगठनों सीटू, अखिल भारतीय किसान सभा, खेत मजदूर यूनियन, अनेक कर्मचारी संगठनों-फैडरेशनों के दिल्ली कूच के नारे को अमली जामा भर नहीं पहना रहे होंगे। न ही वे सिर्फ इस आंदोलन के समर्थक संगठनों, आदिवासी अधिकार राष्ट्रीय मंच (आर्म), दलित शोषण मुक्ति मंच, भूतपूर्व सैनिकों के संगठन  इत्यादि के कहे को पूरा भर कर रहे होंगे; बल्कि वे देश के लोकतांत्रिक आंदोलन के इतिहास के एक नए चरण की धमाकेदार शुरुआत कर रहे होंगे। पसीने और पूंजी, इंसाफ और लूट की लड़ाई का एक नया रास्ता खोल रहे होंगे। एक बड़ी लामबंदी का आगाज कर रहे होंगे।

वैश्वीकरण और उदारीकरण के गुजरे 27 सालों ने इधर राजनीति में जमूरों और मजमेबाजों की पौबारह कर दी है, कारपोरेट की कठपुतलियों का राज्याभिषेक कर दिया है , उधर मेहनतकशों की जिंदगी पूरी तरह से तबाह करके रख दी है। सामाजिक ताने बाने को हर तरफ से बुरी तरह तार तार कर देने वाली नापाक ताकतों को उभार पर ला दिया है । भारत जैसे देश में इन 27 वर्षों में पहले की तुलना में और ज्यादा पीडि़त-उत्पीडि़त-शोषित हुए आवाम की दो बड़ी बिरादरियां है; मजदूर और किसान; इन दोनों का पहली बार एक साथ मिलकर लड़ाई में उतरना संघर्ष की मजबूती और सफलता दोनों का पर्याय है। 

9 अगस्त के देशव्यापी सत्याग्रह और 5 सितम्बर के दिल्ली कूच के इस आंदोलन की एक बड़ी खासियत है, जिसे रेखांकित करना और समझना दोनों जरुरी है। यह है लोगों को इकठ्ठा करने के लिए - लामबंदी के लिए - सांगठनिक तैयारियों के साथ प्रचारात्मक अभियान पर विशेष जोर। प्रचार का मतलब है गोदी मीडिया द्वारा फैलाये गए कुहासे और धुंधलके को साफ़ करना, झूठे दावों के मुकाबले असलियत सामने लाना, विकल्पहीनता की ठगी को ध्वस्त करके विकल्प की संभाव्यता को तथ्यों और तर्कों सहित आम जानकारी का हिस्सा बनाना।  कहते हैं कि गुलाम होने का एहसास हो जाना ही आधी आजादी दे देता है, बाकी आधी के लिए लडऩा शेष बचा रहता है। बेडिय़ों को जब आभूषण समझना बंद कर दिया जाता है तो बेडिय़ां शिथिल हो जाती है, फिर उन्हें उतारना भर बाकी बचता है। 

अखिल भारतीय किसान सभा  का 10 करोड़ लोगों के हस्ताक्षर जुटाना, उन्हें उनकी समस्याओं के वास्तविक कारणों ओर संभव समाधानों को समझाना, कई तथ्यात्मक पुस्तिकाओं को जारी करना इसी मुहिम का हिस्सा था। सीटू ने इसी असलियत को उजागर करने वाला बेहतरीन पुस्तकाकार प्रकाशन भी किया है, जिसे हिंदी में भी आकर्षक कलेवर में जारी किया गया है। दोनों-चारों-सारे संगठनों का जोर है कि इन तथ्यों को आमजन तक पहुंचाया जाए-उन्हें सजग और जागृत करके दिल्ली लाया जाए। इसी समझ को ध्यान में रखते हुए गाँव-बस्तियों तक पैदल  और वाहन जत्थे निकाले गए हैं। यह हाल के दौर का जितना सघन और धरातल तक जाने का अभियान है उतनी ही इस संघर्ष से जड़े संगठनों के कार्यकर्ता की इसे पूरी ताकत सफल बनाने की जिद है ; विचार, योजना और जिद तीनों के मेल ने हमेशा नयी नयी तामीरें की हैं।  त्रिआयामी सभ्यताएं रची हैं, युगांतरकारी इतिहास भी लिखे हैं। 

गुजरे 27 साल में हुई बर्बादी के अनगिनत आंकड़ों से बात को बोझिल बनाने की बजाय सिर्फ तीन मोटे  तथ्य दर्ज किए जाना काफी है। 

एक: देश की दो तिहाई जनता भूखी है। गरीबी आधार की कैलोरी गणना के हिसाब से ग्रामीण व्यक्ति के लिए प्रतिदिन 2400 और शहरी व्यक्ति के लिए 2100 कैलोरीज जरुरी है। नव उदारीकरण की नीतियों के शुरूआत के वक्त 1993-94 में इससे कम आहार पाने वाले यदि 58 प्रतिशत थे तो 2011-12 में वे 86 प्रतिशत हो गए। शहरी क्षेत्र में ऐसे व्यक्ति 57 प्रतिशत  से 65 प्रतिशत हो गए। 'अच्छे दिनों के राज में ये और बढ़े होंगे। "

दो:  वैल्यू एडिशन और लेबर की हिस्सेदारी को सरल भाषा में देखें तो 1991 में जब मजदूर अपनी मेहनत से 100 रुपए का मूल्य जोड़ता था तो उसे 30 रुपए मिलते थे 2016-17 में यही 100 रुपए जोडऩे पर उसे 10 रुपए या उससे भी कम मिल रहे है। 

तीन: इसके उलट अनुपात में कारपोरेट की संपदा बढ़ी है। मोदी को अपना मुखौटा बनाकर इन मुठ्ठी भर धन कुबेरों ने अपार कमाई की है। ऊपर के एक प्रतिशत के पास 1991 में जहां कुल सम्पत्ति का 11 प्रतिशत था वही 2016 में यह 28 प्रतिशत हो गया। शहरो में ऊपर के 10 प्रतिशत लोग 63 प्रतिशत और गांव में ऊपरी 10 प्रतिशत कुल सम्पत्ति की 48 प्रतिशत सम्पत्ति कब्जाये बैठे है।
उस पर तुर्रा यह कि जीडीपी गिरे या उठे संपत्ति का यह केंद्रीयकरण लगातार बढ़ रहा है। पिछली साल में पैदा हुई देश भर की अतिरिक्त संपदा का 73 प्रतिशत ऊपर के एक प्रतिशत ने हड़प लिया। अकेले जय हिन्द को जिओ हिन्द में बदल कर मुकेश अम्बानी ने इतना मुनाफ़ा ज्यादा (पिछली साल के मुनाफे से अधिक ) कमा लिया जितना कोई सवा दो करोड़ हिन्दुस्तानी मनरेगा में साल भर में बिना ब्रेक 365 दिन काम करके कमा पाते।   

आपदा प्राकृतिक हो या पूँजी-जनित, इसके पहले शिकार वे तबके होते हैं जो पहले से ही वंचितों में शरीक हैं।  नवउदारीकरण की इस महाआपदा ने भी सामाजिक शोषितों - दलित, आदिवासी, महिलाओं, अल्पसंख्यकों को विशेष शिकार बनाया है । 

गुजरे 27 सालों ने हिंदुस्तानी मेहनतकशों के इन दोनों बुनियादी वर्गों और इनके बीच के ही तबकों महिलाओं दलितो, आदिवासियों, अल्पसंख्यकों और युवाओं को अपनी विनाश लीला का प्रमुख निशाना बनाया है। संघ-भाजपा गिरोह का अल्पसंख्यकों को डराना धमकाना और निशाना बनाना इस पूरी प्रक्रिया का आवरण है। बच्चियों समेत महिलाओं पर बढ़ते अत्याचार, मॉब लिंचिंग, दलितों की प्रताड़ना इसी का उदाहरण है ।

उनका असली लक्ष्य भारत को कारपोरेटी पूंजी का गर्भगृह बनाकर उसमे मनुस्मृति वाले  मनु की प्राणप्रतिष्ठा करना है।  भीमा कोरेगांव में संभाजी भिड़े से इसी पीछे की ओर की यात्रा का शंख फुंकवाया गया है। वकीलों-मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारियां इसी हिन्दुत्वी-ठगी के यज्ञ की आहुतियां हैं।   

सीटू  किसान सभा और खेत मजदूर यूनियन के इस चरणबद्ध संघर्ष ने इन सभी सवालों को जोड़ा है। विनाश की इस धारा को उलटने की ठानी है। 

इस लिहाज से 9 अगस्त का जेल भरो आंदोलन और उसके अगले क्रम में 5 सितम्बर की दिल्ली रैली भारत के सामाजिक बदलाव की लड़ाई का एक महत्वपूर्ण चरण है इस घटना विकास का साक्षी बनना काफी नहीं है, इसका भागीदार बनना होगा ।

अखिल भारतीय किसान सभा
सीटू
किसान आंदोलन
खेत मज़दूर
आन्दोलन

Related Stories

किसानों ने बनारसियों से पूछा- तुमने कैसा सांसद चुना है?

किसान आंदोलन के 300 दिन, सरकार किसानों की मांग पर चर्चा को भी तैयार नहीं

देश बचाने की लड़ाई में किसान-आंदोलन आज जनता की सबसे बड़ी आशा है

किसान आंदोलन के नौ महीने: भाजपा के दुष्प्रचार पर भारी पड़े नौजवान लड़के-लड़कियां

आंदोलन कर रहे पंजाब के किसानों की बड़ी जीत, 50 रुपये प्रति क्विंटल बढ़ी गन्ने की कीमत

किसान एकबार फिर मुख्य विपक्ष की भूमिका में, 3 अगस्त को देशव्यापी विरोध प्रदर्शन

चुनाव विशेष : क्या जल, जंगल, जमीन के मुद्दे पर पड़ेंगे वोट?

5 सितंबर मज़दूर-किसान रैली: कृषि मज़दूरों की भूमि सुधार और बेहतर मज़दूरी की माँग

हिमाचल : किसान सभा ने दूध के उचित दाम न मिलने को लेकर किया प्रदर्शन

हिमाचल प्रदेश: एंबुलेंस सेवा पूरी तरह से ठप


बाकी खबरें

  • left
    अनिल अंशुमन
    झारखंड-बिहार : महंगाई के ख़िलाफ़ सभी वाम दलों ने शुरू किया अभियान
    01 Jun 2022
    बढ़ती महंगाई के ख़िलाफ़ वामपंथी दलों ने दोनों राज्यों में अपना विरोध सप्ताह अभियान शुरू कर दिया है।
  • Changes
    रवि शंकर दुबे
    ध्यान देने वाली बात: 1 जून से आपकी जेब पर अतिरिक्त ख़र्च
    01 Jun 2022
    वाहनों के बीमा समेत कई चीज़ों में बदलाव से एक बार फिर महंगाई की मार पड़ी है। इसके अलावा ग़रीबों के राशन समेत कई चीज़ों में बड़ा बदलाव किया गया है।
  • Denmark
    पीपल्स डिस्पैच
    डेनमार्क: प्रगतिशील ताकतों का आगामी यूरोपीय संघ के सैन्य गठबंधन से बाहर बने रहने पर जनमत संग्रह में ‘न’ के पक्ष में वोट का आह्वान
    01 Jun 2022
    वर्तमान में जारी रूस-यूक्रेन युद्ध की पृष्ठभूमि में, यूरोपीय संघ के समर्थक वर्गों के द्वारा डेनमार्क का सैन्य गठबंधन से बाहर बने रहने की नीति को समाप्त करने और देश को ईयू की रक्षा संरचनाओं और सैन्य…
  • सत्यम् तिवारी
    अलीगढ़ : कॉलेज में नमाज़ पढ़ने वाले शिक्षक को 1 महीने की छुट्टी पर भेजा, प्रिंसिपल ने कहा, "ऐसी गतिविधि बर्दाश्त नहीं"
    01 Jun 2022
    अलीगढ़ के श्री वार्ष्णेय कॉलेज के एस आर ख़ालिद का कॉलेज के पार्क में नमाज़ पढ़ने का वीडियो वायरल होने के बाद एबीवीपी ने उन पर मुकदमा दर्ज कर जेल भेजने की मांग की थी। कॉलेज की जांच कमेटी गुरुवार तक अपनी…
  • भारत में तंबाकू से जुड़ी बीमारियों से हर साल 1.3 मिलियन लोगों की मौत
    न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    भारत में तंबाकू से जुड़ी बीमारियों से हर साल 1.3 मिलियन लोगों की मौत
    01 Jun 2022
    मुंह का कैंसर दुनिया भर में सबसे आम ग़ैर-संचारी रोगों में से एक है। भारत में पुरूषों में सबसे ज़्यादा सामान्य कैंसर मुंह का कैंसर है जो मुख्य रूप से धुआं रहित तंबाकू के इस्तेमाल से होता है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License