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चर्चा 5 ग्राम कोकेन पर होनी चाहिए या 30 हज़ार करोड़ के नशीले पदार्थ के कारोबार पर?
भारत में तकरीबन 30 हजार करोड़ का नशीले पदार्थ का कारोबार है। इसे छोड़कर महज 5 ग्राम कोकेन के सेवन पर चर्चा हो रही है। इसका क्या मतलब है? क्या भारत नशीले पदार्थों के कारोबार पर नकेल कसने को लेकर गंभीर है?
अजय कुमार
15 Oct 2021
drug
'प्रतीकात्मक फ़ोटो' साभार: सोशल मीडिया

नशीले पदार्थ पार्चुन की दुकान पर नहीं मिलते। दुनिया अपने नागरिकों को नशेड़ी बनने से बचाने के लिए नशीले पदार्थों पर प्रतिबंध लगाकर चलती है। लेकिन फिर भी पिछले महीने गुजरात के मुंद्रा बंदरगाह से 3 टन अफगानी हीरोइन पकड़ी गई। इसका मतलब है कि इसी दुनिया ढेर सारे कानूनी प्रतिबंध होने के बावजूद  दबे पांव नशे का कारोबार भी भयंकर तरीके से चल रहा   है। नशेड़ियों के नसों में जहर घोल ता रहता है। देह और दिमाग के साथ घर परिवार और देश बर्बाद करता रहता है।

सरकारी एजेंसियों का कहना है कि अब तक हम 30 किलो की खेप पकड़ते थे। अब सीधे एक ही खेप में 3 टन हीरोइन की जब्ती बहुत अधिक चिंता की बात है। यह इतना अधिक है जितना साल भर में हीरोइन पकड़ा जाता है। अगर 3 टन हीरोइन की जब्ती एक बार में हुई है, तो यह भी संभावना बनती है कि धंधा करने वालों ने न जाने कितनी बार 1000 या 2000 किलो हीरोइन की खेप भेजा हो, जिसे हम पकड़ नहीं पाए होंगे। 3 टन हीरोइन इतना अधिक है कि तकरीबन डेढ़ करोड़ आबादी वाले शहर को पूरी तरह से नशे की आग में झोंक सकता है।

यह उस देश के लिए बहुत बुरी खबर है जहां पर तकरीबन 2.06 फीसदी आबादी यानी 5 करोड़ लोग नशीले पदार्थों का सेवन करते हैं। जो दुनिया के औसत 0.7 फीसदी से 3 गुना अधिक है। ( आंकड़े: सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय)

सरकारी एजेंसियों का मानना है कि मुंद्रा बंदरगाह पर मिली इतनी बड़ी मात्रा में हीरोइन अफगानिस्तान से आई थी। उसी अफगानिस्तान से जिसकी अंतहीन लड़ाई में पैसे की खेती की सबसे बड़ी जमीन अफीम है। जो दुनिया में नशीले पदार्थों के उत्पादन के लिए मशहूर गोल्डन क्रिसेंट का अहम हिस्सा है। गोल्डन क्रीसेंट से दुनिया भर की तकरीबन 80 फीसद से अधिक अफीम की सप्लाई होती है।

इसे भी पढ़े : कोरोना समय में शराब पर कुछ होशमंद बातें

अफीम भूरे रंग का चिपचिपा पदार्थ होता है। लैब में ले जाकर इससे हीरोइन बनाई जाती है। दिखने में सफेद रंग के पाउडर की तरह दिखती है। 1 किलो हीरोइन अफगानिस्तान में तकरीबन ₹10 हजार में बिकती है। मुंबई पहुंचने  तक इसकी कीमत 50 लाख हो जाती है। और अमेरिका के बाजारों में पहुंचने पर यह तकरीबन एक करोड़ रुपए प्रति किलो में बिकना शुरू हो जाती है। इस तरह से आप समझ सकते हैं की अफीम के काले धंधे से जुड़े लोग कितनी बड़ी कमाई करते होंगे।

सरकारी एजेंसियों का कहना है कि भारत में इसका कारोबार तकरीबन 30 हजार करोड रुपए का है। सरकारी एजेंसीयां यह मानकर चलती हैं कि जितनी हीरोइन वह पकड़ पा रही हैं, वह देश में घूम रहे कुल हीरोइन का महज 10 फ़ीसदी होगा। इस आधार पर उनका आकलन है कि 3 हजार करोड रुपए की हीरोइन की जब्ती का मतलब है कि 30 हजार करोड रुपए का अवैध कारोबार भारत में चल रहा है। सरकारी एजेंसियों के मुताबिक यह धंधा इतना अधिक मुनाफे वाला है कि लोग मरने मारने के लिए तैयार रहते हैं। भारत पाकिस्तान के बॉर्डर के आसपास हीरोइन की तस्करी होती है। भारत नेपाल के बॉर्डर के आसपास गांजा की तस्करी होती। म्यानमार और पूर्वोत्तर भारत की सीमाओं पर भी कई तरह के नशीले पदार्थों की जमकर तस्करी होती है।

आजकल डार्क नेट के जरिए यह धंधा खूब चल रहा है। दुनिया की ऑनलाइन मौजूदगी होने की वजह से ड्रग्स की खरीद बिक्री आसान हुई है। छोटे छोटे पैकेट बनाकर कूरियर के जरिए भी उपभोक्ताओं तक ड्रग्स पहुंचाया जाता है। बीच समुद्र में जहां पर देश की सीमाएं बाधक के तौर पर मौजूद नहीं होती है, वहां पर ड्रग्स की खरीद बिक्री होती है। जिनके पास प्राइवेट प्लेन है उनकी प्राइवेट प्लेन के जरिए ड्रग्स को एक देश से दूसरे देश में पहुंचाया जाता है। इस तरह से कई सारी निगरानी के बावजूद भी धंधा करने वालों ने ऐसा रास्ता निकाल लिया है, जिसके जरिए वह धंधा कर पाते हैं।

सुशांत सिंह राजपूत और आर्यन खान जैसे लोगों का नाम उछलने के बाद मीडिया ने ऐसा माहौल बना दिया है कि नशा केवल अमीर लोग करते हैं। यह बात सही है कि जिनके पास पैसा है उनकी जिंदगी की गुमराही में नशीले पदार्थ का बड़ा योगदान है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि गरीब लोग नशीले पदार्थों का सेवन नहीं करते हैं। सरकारी एजेंसियों की माने तो दिल्ली और मुंबई जैसे शहरों में हीरोइन का सस्ता रूप स्मैक भी खूब बिकता है। हीरोइन के साथ सोडा पाउडर मिलाकर इसे तैयार कर दिया जाता है। मुंबई जैसे शहर में 1500 रुपए प्रति ग्राम में स्मैक मिल जाती है। दिल्ली में तो यह और भी सस्ती है तकरीबन ₹300 प्रति ग्राम। पिछले कुछ सालों में बड़े-बड़े शहरों में यह आसानी से मिल जा रही है। यानी पिछले कुछ सालों में सरकारी एजेंसियां इसे रोकने में बहुत अधिक नाकाम साबित हुई है।

भारत में उत्तर प्रदेश पंजाब हरियाणा दिल्ली महाराष्ट्र राजस्थान आंध्र प्रदेश गुजरात के कई इलाके में अफीम का नशा भयंकर तौर पर फैला हुआ है। लेकिन इससे भी ज्यादा स्थिति पूर्वोत्तर भारत की खराब है। साल 2015-16 का स्वास्थ्य सर्वे कहता है कि पूर्वोत्तर में नशीले पदार्थों के सेवन की लत बाकी भारत से 20 फ़ीसदी ज्यादा है। भारत के 272 नशीले पदार्थों से प्रभावित जिलों में 41 जिले पूर्वोत्तर भारत के हैं। इसकी सबसे बड़ी वजह है कि पूर्वोत्तर भारत की तकरीबन 1600 किलोमीटर की सीमा म्यानमार से जुड़ती है। म्यानमार में बहुत बड़ी मात्रा में अफीम उगाई जाती है। जानकार कहते हैं कि पूर्वोत्तर के हर झगड़े में कहीं ना कहीं नशीले पदार्थों का कारोबार भी एक बहुत बड़ा कारण होता है। जब भी इस कारोबार पर बहुत बड़े तरीके से हमला किया जाता है तो इस कारोबार से कारोबारी पूर्वोत्तर भारत को दूसरे जगह में फंसा कर अपनी जान बचा लेते हैं।

दुनिया भर में ड्रग्स के कारोबार को रोकने के तीन आधारभूत तरीके हैं। ड्रग्स की सप्लाई चैन को बंद किया जाए, ड्रग्स लेने वालों को ड्रग्स लेने से रोका जाए और ड्रग्स के लत में झुलस रहे लोगों का पुनर्वास किया जाए। इस फ्रंट पर जितना काम करना चाहिए उतना काम नहीं हो पाता है। क्योंकि ड्रग्स के धंधे में वैसे लोग भी शामिल हैं जो कहीं ना कहीं से प्रशासन और सरकार का भी हिस्सा होते हैं। मिल बांट कर कमाई करते हैं।

अंत में आप खुद ही सोचिए कि जिस देश में हीरोइन की 3 टन की खेप की बजाए 5 ग्राम नशीले पदार्थ के सेवन पर मीडिया वाले हर रोज चर्चा कर रहे हैं,वह देश का समाज और सरकार नशीले पदार्थों को लेकर कितना अधिक गंभीर होगी?

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