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इप्टा की सांस्कृतिक यात्रा यूपी में: कबीर और भारतेंदु से लेकर बिस्मिल्लाह तक के आंगन से इकट्ठा की मिट्टी
इप्टा की ढाई आखर प्रेम की सांस्कृतिक यात्रा उत्तर प्रदेश पहुंच चुकी है। प्रदेश के अलग-अलग शहरों में गीतों, नाटकों और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का मंचन किया जा रहा है।
रवि शंकर दुबे
11 May 2022
dhai aakhar prem ke

जब देश में नफरती हथकड़ों का नया ज़खीरा तैयार किया जा रहा है, ग़रीबों, मज़लूमों और पिछड़ा वर्ग की ज़िंदगी को बुलडोज़र से रौंदा जा रहा है। त्याग औऱ बलिदान से संजोय गए हिंदोस्तां के इतिहास को अपने-अपने मुताबिक ऐंठा जा रहा है। ऐसे में इप्टा यानी भारतीय जन नाट्य संघ देश के अलग-अलग राज्यों में घूम-घूम कर लोगों को ढाई आखर प्रेम के सिखा रहा है।

इप्टा की ढाई आखर प्रेम की सांस्कृतिक यात्रा बिहार से होते हुए उत्तर प्रदेश पहुंच गई है। सांस्कृतिक यात्रा का ये जत्था 8 मई शाम को वाराणसी पहुंचा। अगले दिन यानी 9 मई की सुबह साढ़े आठ बजे इप्टा का जत्था बनारस की गलियों में होते हुए मूर्धन्य साहित्यकार भारतेंदु हरिशचंद्र के घर पहुंची। 260 साल पुराने भारतेंदु हरिश्चंद्र के घर में उनके भाई के परिवार की पांचवीं-छठी पीढ़ी रह रही है। घर को इमारत कहना ज्यादा मुफीद होगा और इमारत अभी बुलंद है।

दीपेश चंद्र चौधरी जो कि भारतेन्दु की पांचवीं पीढ़ी के हैं। उन्होंने जत्थे की आवभगत की।

भारतेंदु हरिशचंद्र के घर से निकलने के बाद जत्था बनारस की सकरी गलियों से होता हुआ भारत रत्न शहनाई वादक उस्ताद बिस्मिल्लाह खां के घर पहुंचा। यहां बिस्मिल्लाह खां के पौत्र नासिर अब्बास ने उस्ताद से जुड़ी यादों को दिखाया। तीसरी मंजिल पर मौजूद जिस कमरे में उस्ताद बिस्मिल्लाह खान रहते थे, वहां पर उनकी तस्वीरों के साथ ही, चारपाई, भारत रत्न आदि रखा हूआ है। वहीं पर छत में उस्ताद रियाज करते थे।

इसके बाद पैदल चलते हुए गलियों व सड़क से होते हुए जत्था कामायनी के रचयिता जयशंकर प्रसाद के घर पहुंचा। यहां पर रिनोवेशन का काम हुआ है, फर्श पर टाईल्स लगी है और दीवारों पर किया गया पेंट अभी भी महक रहा है। पर ढांचे की बनावट के साथ छेड़छाड़ नहीं की गई है। परिवार के लोग उसी से जुड़े प्रसाद जी के बाद निर्मित बड़े से घर में रह रहे हैं। यहां पर उनके पोते जो बुजुर्ग ही हैं किरण शंकर प्रसाद ने जत्थे का स्वागत किया। उन्होंने कमायनी से कुछ पंक्तियां पढ़ीं। उन्होंने बताया कि हमारे परिवार में किसी को साहित्य से कोई मतलब नहीं है। जयशंकर प्रसाद की धरोहर के रूप में यहां उनकी एक तस्वीर लगी है और साहित्य के नाम पर किरण शंकर प्रसाद ने कहा कि बाज़ार में खूब उपलब्ध है। घर में प्रसाद जी के लिखे साहित्य के नाम पर एक पन्ना तक उपलब्ध नहीं है।

इस दौरान जत्थे में चल रहीं लखनऊ इप्टा की साथी संध्या दीक्षित ने आंसू महाकाव्य से कुछ छंद सुनाया।

इप्टा के राष्ट्रीय महासचिव राकेश वेदा ने इप्टा की सांस्कृतिक यात्रा के बारे में बताते हुए भारतेन्दु, प्रसाद और बिस्मिल्लाह खान को देश- समाज का धरोहर बताया। उन्होंने कहा ये जगहें हमारे लिए तीर्थ हैं।

प्रोफेसर राजेंद्र ने भारतेन्दु, बिस्मिल्लाह खान, जय शंकर प्रसाद आदि के बारे बात रखी। सभी के आंगन से उनके नाम की मिट्टी पात्र में संग्रहित की गई।

'ढाई आखर प्रेम का' कबीर के संदेश को लेकर आज़ादी के 75 वें वर्ष में देश के नायकों को याद करते हुए इप्टा की 'ढाई आखर प्रेम की सांस्कृतिक यात्रा' वाराणसी में कबीर के मूल स्थान 'कबीर चौरामठ' पहुंची। मठ में इप्टा के साथियों ने ढपली की थाप पर कबीर भजनों को गाकर कबीर को याद किया। यहां से कबीर के नाम की मिट्टी पात्र में संग्रहित की गई।

इस मठ में 1909 में टैगोर और 1934 में गांधी आये थे। गांधी और टैगोर की मूर्ति भी यहां लगी है। कबीर परंपरा के ही कबीर के समकक्ष संत रैदास की प्रतिमा भी यहां परिसर में स्थापित है। संत रैदास यहां आते रहते थे।  कबीर के दोहे दीवारों पर अंकित हैं और मठ के रास्ते पर गली से सटी हुई दीवार पर भी चित्रों के साथ दोहे अंकित हैं।

कबीर मठ के बाद दोपहर 1:30 बजे जत्था उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद की जन्मस्थली लमही पहुंचा। यहां प्रेमचंद की प्रतिमा पर माल्यार्पण कर, उनके नाम की मिट्टी पात्र में संग्रहित की गई।

प्रेमचंद संग्रहालय के बगल में रामलीला मैदान पर प्रेरणा कला मंच के साथियों द्वारा प्रेमचंद की कहानी 'ठाकुर का कुआं' पर आधारित नाटक 'हाय रे पानी' प्रस्तुत किया गया।

सादर आनंद द्वारा निर्देशित यह नाटक सामंतवाद-जातिवाद व असमानता पर प्रहार करते हुए, रूढ़ियों के साथ ही वर्तमान व्यवस्था पर प्रहार करता है।

वाराणसी से होते हुए इप्टा की ढाई आखर प्रेम की सांस्कृतिक यात्रा मऊ ज़िला पहुंची, यहां जत्थे ने भीटी चौक पर पहुंचकर अंबेडकर की मूर्ति पर माल्यार्पण किया।

अंबेडकर की मूर्ति पर माल्यार्पण करने के बाद इप्टा ने मऊ ज़िले के कई इलाके में रैलियां निकाली और देश शाम नाटक, गीत, और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम में वेदा जी ने एक अकेली औरत'' नाटक खेलकर लोगों का दिल जीत लिया।
फोटो--

इप्टा के जत्थे ने मई ज़िले में 100 स्वतंत्रा सेनानियों व शहीदों के आंगन की मिट्टी इकट्ठा की।

दोपहर 2:30 बजे के आस-पास जत्था गाज़ीपुर पहुंचा। स्टेशन रोड, लंका में भारद्वाज भवन पर प्रगतिशील लेखक संघ के आयोजन में इप्टा के साथी ब्रजेश यादव ने जनगीतों की प्रस्तुत दी। शाम 4 बजे जत्था गंगा-जमुनी तहजीब के प्रतीक साहित्यकार व पटकथा लेखक राही मासूम रजा की जन्मस्थली गाज़ीपुर के गंगौली गांव पहुंचा। यहां पर रज़ा के घर से उनके नाम की मिट्टी ली गई। यहां पर जत्थे के साथियों पर ग्रामीणों द्वारा फूल बरसाकर स्वागत किया गया। रज़ा के घर पर जिसका कुछ हिस्सा अभी भी कच्चा है और बाक़ी पक्का है। यहां पर रज़ा की विरासत के नाम पर तस्वीरें हैं। लेकिन यहांउनका लिखा देखने को कुछ नहीं मिलता।

इप्टा के राष्ट्रीय महासचिव राकेश वेदा ने रज़ा को गंगा-जमुनी तहज़ीब का प्रतीक बताते हुए कहा कि इस देश को बनाने में साहित्यकारों व संस्कृति कर्मियों का अतुलनीय योगदान है। इप्टा की यात्रा के उद्देश्यों पर प्रकाश डालते हुए राकेश ने कहा कि इस इस देश की विरासत साझी संस्कृति है और इप्टा इसी संस्कृति का प्रतीक है।

गंगौली होते हुए जत्था स्वतंत्रता सेनानी प्रभु नारायण सिंह की पुण्यतिथि पर पी एन एस पब्लिक स्कूल कसामाबाद गाजीपुर में उनकी प्रतिमा पर माल्यार्पण किया गया।

बहादुरगंज होते हुए जत्था मऊ पहुंचा, जहां जत्थे की अगवानी उत्तर प्रदेश किसान सभा मऊ ने की। चौक पर अंबेडकर प्रतिमा पर माल्यार्पण किया गया।

सांस्कृतिक संध्या का आयोजन राहुल सांकृत्यायन सृजनपीठ भुजौटी, मऊ के शहीद भगत सिंह मंच पर हुआ। सांस्कृतिक संध्या में अभिनव कदम पत्रिका के संपादक व राहुल सांकृत्यायन सृजनपीठ के संस्थापक जय प्रकाश धूमकेतु के नेतृत्व में मऊ जिले व सीमा से लगे गाजीपुर जिले के अब्दुल हमीद, सरजू पांडे सहित 100 स्वतंत्रता सेनानियों व शहीदों के नाम की मिट्टी साझी शहादत-साझी विरासत के प्रतीक पात्र में रखी गई। मिट्टी छोटी-छोटी थैलियों में सबके नाम व पते की चिट के साथ अलग-अलग इकट्ठी की गई थी।

सांस्कृतिक संध्या में इप्टा लखनऊ की साथी रंगकर्मी वेदा राकेश ने 'एक अकेली औरत' व लखनऊ इप्टा के साथियों ने 'लकीर' नाटक का सामूहिक मंचन किया।

इप्टा के राष्ट्रीय महासचिव राकेश वेदा ने यात्रा के उद्देश्यों पर प्रकाश डालते हुए, स्वतंत्रता सेनानियों, शहीदों, साहित्यकारों, कलाकारों की स्थली से साझी शहादत-साझी विरासत पात्र में संग्रहित की जा रही मिट्टी के महत्व को लेकर बात रखी। उन्होंने यात्रा की शुरुआत से लेकर झारखण्ड व बिहार के यात्रा वृत्तांत पर चर्चा की।

मऊ में अगस्त क्रांति 1942 में शहीद दुक्खी राम व कालिका प्रसाद के नाम पर बने शहीद स्मारक पर माल्यार्पण कर श्रद्धांजलि दी गई। लोक गायक ब्रजेश यादव ने जनगीतों की प्रस्तुति दी।

यात्रा के दूसरे पड़ाव बुद्ध विहार मुहम्मदाबाद गोहना (मऊ) में सांस्कृतिक यात्रा की जानकारी देते हुए इप्टा के राष्ट्रीय महासचिव राकेश वेदा ने 10 मई 1857 की क्रांति को याद करते हुए बहादुर शाह ज़फ़र की कुर्बानी व लाखों सिपाहियों की शहादत को याद किया। इस दौरान क्षेत्रीय साथियों ने भी बात रखी। यहीं परिसर में आजमगढ़ इप्टा के संरक्षक द्वारा लाए गए आम्रपाली के पौधे को राकेश वेदा व इप्टा के साथियों के हाथों रोपित किया गया।

इप्टा का ये जत्था उत्तर प्रदेश के चंदौली, बनारस, लमही, गाज़ीपुर, मऊ, गोरखपुर, बस्ती और आज़मगढ़ होते हुए फैज़ाबाद, लखनऊ, रायबरेली, उन्नाव, कानपुर, कालपी, उरई., आगरा, मथुरा और झांसी में सांस्कृतिक कार्यक्रम, नाटक, रंगमंच और गीतों का मंचन करते हुए 15 मई को मध्य प्रदेश पहुंचेगा। इस कार्यक्रम का समापन 22 मई को इंदौर ज़िले में होगा।

इसे भी पढ़ें : नफ़रत के बीच इप्टा के ‘’ढाई आखर प्रेम के’’

आपको बता दें कि इप्टा के “ढाई आखर प्रेम की सांस्कृतिक यात्रा’’ की शुरुआत 9 अप्रैल को छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के नगर निगम गार्डन से हुई थी, जिसे इप्टा के महासचिव राकेश वेदा ने हरी झंडी दिखाकर रवाना किया था। इस दौरान एक सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन भी किया गया। जिसमें राकेश वेदा ने इस यात्रा का प्रमुख उद्देश्य बताया, उन्होंने कहा कि वर्तमान समय में जिस तरह से नफ़रत फैलाई जा रही है उसके प्रतिरोध स्वरूप प्रेम का प्रसार करना है, आज लोगों को नफ़रत की नहीं प्रेम की ज़रूरत है। राकेश वेदा ने कहा कि कला जनता के नाम प्रेम पत्र होता है, कला प्रेम के प्रसार का एक सशक्त माध्यम है।

इप्टा की इस शानदार मुहिम, इस अभियान को लेखकों, सांस्कृतिक संगठनों प्रगतिशील लेखक संघ(प्रलेस), जनवादी लेखक संघ(जलेस), जन संस्कृति मंच(जसम), दलित लेखक संघ(दलेस) और जन नाट्य मंच(जनम) ने भी अपना सहयोग दिया है। इतना ही नहीं इप्टा की इस यात्रा को स्वतंत्र और सच लिखने वाले पत्रकारों समेत देशभर के कलाकारों का बखूबी समर्थन मिला है।

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आज़ादी के 75वर्ष: 9 अप्रैल से इप्टा की ‘‘ढाई आखर प्रेम की सांस्कृतिक यात्रा’’

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