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राजनीति
8 जनवरी हड़ताल : कामगारों की कमाई पर सरकार लगाएगी सट्टा!
"प्रधानमंत्री मोदी अपने दोस्तों के हित साधने के लिए इस तरह का कानून ला रहे हैं जिससे उन्हें ज्यादा से ज्यादा मुनाफा कमवा सकें।"
गौरव गुलमोहर
06 Jan 2020
8 jan strike

केंद्र सरकार 44 श्रम कानून को परिवर्तित कर चार कोड में ला रही है। अब तक दो कोड स्टैंडिग कमेटी में जाने के बाद पास हो चुके हैं। सरकार अन्य दो कोडों को दोनों सदनों से पास कराने की तैयारी में है। मज़दूर एवं मजदूर संगठन इस कानून को मजदूरों के खिलाफ और कॉरपोरेट के हित में बता रहे हैं। सरकार द्वारा लाये जा रहे है चार कोड कानून को मज़दूरों ने सरकार का दोहरा चरित्र माना है। इसके खिलाफ ट्रेड यूनियनों ने 8 जनवरी को देशव्यापी हड़ताल का आवाहन किया है। वहीं सरकार चार कोड कानून को लेकर अडिग है और इसे मजदूर हित में बता रही है।

44 श्रम कानून को चार कोड में लाने के सन्दर्भ में केंद्र सरकार का यह तर्क है कि वह कानूनों को चार कोड में लाकर सरलीकरण कर रही है। सदन के अपने बजट भाषण में निर्मला सीतारमण ने कहा कि 44 श्रम कानून को चार कोड में इसलिए किया जा रहा है जिससे मालिकों को सालाना आयकर (आईटीआर) भरने में आसानी होगी। वहीं मजदूर संगठनों का कहना है कि सरकार पूर्व के श्रम कानूनों के सरलीकरण की आड़ में मज़दूरों के अधिकारों का हनन कर रही है। मज़दूरों पर सरकार चार कोड के माध्यम से प्रहार कर रही है।

सदन में चार कोड बिल पास होने के बाद से देशभर के विभिन्न राज्यों में इस कानून के खिलाफ विरोध प्रदर्शन हुए। संसद भवन के भीतर वामपंथी दलों के साथ-साथ अन्य राजनीतिक दलों के नेता इस बिल का विरोध किया लेकिन सरकार कानून पास करने में सफल रही।

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क्या है चार कोड कानून

केंद्र सरकार 44 श्रम कानूनों को चार कोड में ला रही है-

1- वेतन संहिता अधिनियम, 2019

2- व्‍यावसायिक सुरक्षा, स्‍वास्‍थ्‍य और कार्यस्‍थल स्थिति विधेयक, 2019

3- श्रम संगठनों व औद्योगिक संबंध बिल

4- सामाजिक सुरक्षा बिल

वेतन संहिता अधिनियम, 2019 संसद से पास कर दिया गया है और व्यवसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य और कार्यस्थल स्थिति विधेयक, 2019 संसद में पेश किया जा चुका है। अन्य दोनों बिल को सरकार तैयार कर चुकी है जिसे सरकार जल्द ही संसद से पास करा लेगी। मोदी सरकार अबतक कोई भी बिल पास कराने में असफल नहीं रही क्योंकि संसद में सरकार का भारी बहुमत है। यही एक मात्र कानून रहा जो स्टैंडिग कमेटी में जाने के बाद पास हुआ। इसके अलावा पिछले सात सालों में कोई भी बिल स्टैंडिग कमेटी के पास नहीं गया।

सरकार ने पुराने 44 श्रम कानूनों की जटिलता का सरलीकरण करने के नाम से वेतन संहिता अधिनियम, 2019 बनाया। वेतन संहिता कानून में चार पुराने श्रम कानून पेमेंट ऑफ वेजेज ऐक्ट, 1936, मिनिमम वेजेज ऐक्ट, 1948, पेमेंट ऑफ बोनस ऐक्ट, 1965, समान पारिश्रमिक ऐक्ट, 1976 को सम्मिलित किया है। इस कानून के अंतर्गत यह प्रावधान है कि न्यूनतम मज़दूरी 178 रुपया प्रतिदिन होगी। श्रमिकों को उचित समय पर वेतन मिल सके इसलिए यह भी प्रावधान है कि दिहाड़ी पर काम करने वाले मजदूरों को उसी दिन वेतन मिले, साप्ताहिक आधार पर काम करने वाले मजदूरों को सप्ताह के अंतिम दिन और मासिक वेतन वालों को अगले महीने की सात तारीख तक वेतन प्रदान करने के प्रावधान है।

व्‍यावसायिक सुरक्षा, स्‍वास्‍थ्‍य और कार्यस्‍थल स्थिति विधेयक, 2019 इस कानून में मज़दूरों के बेहतर काम करने की स्थिति और उनके स्वास्थ्य सम्बन्धी महत्वपूर्ण अधिकारों को शामिल करने की बात दर्ज है। ये दोनों संहिता लोकसभा और राज्यसभा से बहुमत से पास किया जा चुका है। अन्य दो बिल को सरकार पास करने की तैयारी में है। सरकार का दावा है कि इन नए श्रमिक कानूनों से संगठित और असंगठित क्षेत्र के मजदूरों का आधिकार सुरक्षित होगा और स्किल डेवलप होगा। वहीं दूसरी ओर मज़दूर और मज़दूर संगठन सरकार द्वारा मज़दूरों के प्रति दोहरे चरित्र अख्तियार करने की बात कह रहे हैं।

क्या कहते हैं श्रमिक संगठनों के नेता

हमने इलाहाबाद के मज़दूर संगठनों के पदाधिकारियों और कार्यकर्ताओं से नए श्रम कानून के सन्दर्भ में जानकारी के लिए मुलाकात की। मज़दूर संगठनों के कार्यकर्ता इस समय ऑफिस पर मौजूद नहीं होते हैं। 8 जनवरी को होने वाले देशव्यापी हड़ताल के लिए जनसमर्थन जुटाने में जुटे हुए हैं। मज़दूर संगठनों में सीआईटीयू के संयोजक अविनाश कुमार मिश्र से सम्पर्क किया मिश्र कहते हैं कि सरकार यह पूरी कोशिश कर रही है कि नए श्रम कानून लागू करने के बाद एक बल्क में जो पैसा आ रहा है जैसे बैंक, बीमा, ट्रेजरी, पोस्ट ऑफिस और प्रोविडेंट फंड पर सरकार की नजर है।

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संगठित और असंगठित क्षेत्र के कर्मचारी ऑनरोल हैं उसमें 13 लाख करोड़ से ज्यादा प्रोविडेंट फंड (PF) में पैसा आ रहा है। जिसे सरकार चाहती है कि इसे भी शेयर मार्केट में डायवर्ट कर दे। जैसे उत्तर-प्रदेश के बिजली विभाग का 26सौ करोड़ रुपया शेयर मार्केट में लगा दिया। आज भी वह रिकवरेबल है कि नहीं इसमें संदेह है। उसी तरह जब 13 लाख करोड़ रुपये पर ख़तरा आ जायेगा तो हमारी जो जमा पूंजी होती है सब चली जायेगी। सरकार श्रम कानूनों को इस तरह से लागू कर रही है कि हमारा पैसा चला भी जाये तो हम लीगली विरोध न कर सकें।

अविनाश कुमार मिश्रा आगे कहते हैं कुल 11 सेंट्रल ट्रेड यूनियन हैं जिसमें आरएसएस-भाजपा का भारतीय मज़दूर संघ जो अपने आपको सबसे बड़ा यूनियन बताता है वह किसी संघर्ष में नहीं है। जबकि 2013 के पहले यह संगठन सड़कों के संघर्षों में दिखाई पड़ता था। 2019 के देशव्यापी हड़ताल में पूरे मान्यता प्राप्त लगभग दस ट्रेड यूनियन शामिल हो रहे हैं जिसमें एचएमएस, एसईडब्ल्यूए, एआईयूटीयूसी, यूटीयूसी, सीआईटीयू, एआइसीसीटीयू, एलपीएफ, एआईटीयूसी, एआईटीयूसी, एआईटीसी, आइएनटीयूसी के अलावा लगभग 50 छात्र संघ, 200 किसान संगठनों का संघ अखिल भारतीय किसान समन्वय समिति और कई छात्र संगठन इस देशव्यापी हड़ताल में शामिल हैं। छात्र संगठन में आइसा, एसएफआई, एनएसयूआई, सीवाईएसएस जैसे अन्य कई छात्र संगठन शामिल है। इस हड़ताल में आरएसएस का छात्र विंग एबीवीपी शामिल नहीं है।

इलाहाबाद विश्वविद्यालय यूनियन गेट के सामने पार्क में सिटीजन अमेंडमेंट बिल और नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजन का विरोध करते हुए छात्रों के साथ डॉ. कमल उसरी और कॉमरेड अनिल कुमार से मुलाकात हुई। श्रम कानून पर बात शुरू करते ही डॉ. कमल चार कोड कानून को सिरे से नकारते हुए कहते हैं कि सरकार कह रही है कि हम यह कानून लोगों के हित में ला रहे हैं लेकिन असल में यह उल्टा है। जहां किसी एक छत के नीचे अगर 20 लोग काम कर रहे हैं तो वहां श्रम कानून लागू होता था। अब उस संख्या को बढ़ा कर सौ कर दिया जा रहा है। उसी तरह यदि किसी कारखाने में 100 लोग भी हैं तो वहां श्रम कानून लागू होता था लेकिन उसे 500 तक बढ़ा दिया गया है। लेकिन इतनी आधुनिकता आ गई है कि एक छत के नीचे 500 लोग इकट्ठा मिलने वाले नहीं। लड़ते-झगड़ते उन्होंने इसे 300 कर दिया गया है।

डॉ. कमल इसी बात को आगे बढ़ाते हुए कहते हैं कि यह कानून बहुत जगह नुकसानदेह होगा जैसे जहां फोटो स्टेट होता है, दुकानों में, मॉल में और ठेके पर काम कर रहे मजदुरों के क्षेत्रों में यही कानून लागू होगा। इसे ऐसे समझिये कि मान लीजिये कोई ठेका लिया वो दस फर्म बना लेगा और दस फर्म में ठेका लेगा। इतने इम्लाई (मज़दूर) होंगे ही नहीं कि जितने में यह कानून लागू हो।

डॉ. कमल सरकार द्वारा लाये जा रहे कानून के बारे में इसी तरह कई पेचिदगियों को बड़ी आसानी से परत दर परत बड़े ही सरल ढंग से खोलते जा रहे थे। सरकार द्वारा लाया जा रहा यह कानून श्रमिकों के हित या उद्योगपतियों के बीच उतना ही उलझा हुआ हुआ है जितना कि पुराने 44 कानूनों के उलझे होने का दावा सरकार कर रही है। नए कानून पर इसलिए भी कई सवाल उठाये जा रहे हैं कि इस नए कानून के आने के बाद श्रम विभाग और श्रमिक इंस्पेक्टर की शक्ति को कम कर दिया गया है। एम्प्लॉयर्स को एक गैप प्राप्त हो गया है जिससे वे कानूनों का उल्लंघन करने के बाद भी बचकर निकल सकते हैं और नियोक्ता द्वारा मज़दूर वर्ग का शोषण पहले की अपेक्षा आसान हो जाएगा।

इस शोषण का रास्ता एम्प्लॉयर्स के लिए कैसे खोला जा रहा है इसे डॉ. कमल कुछ यूं बताते हैं कि पहले श्रम कानून का उल्लंघन होता था तो कार्रवाई करने का अधिकार श्रम विभाग को था अब श्रम विभाग को दंडित करने का अधिकार ही नहीं है। अब श्रम विभाग एक पत्र नियोक्ता को लिखेगा और नियोक्ता द्वारा जवाब में कह दिया जाएगा कि हमारे यहां श्रम कानून का उल्लंघन नहीं हो रहा, उतने में ही श्रम विभाग मान जाएगा। इसी तरह श्रमिक इंस्पेक्टर के भी अधिकार सीमित कर दिए गए हैं वह अब किसी की सूचना पर डायरेक्ट छापा नहीं मार सकता वह पहले जिलाधिकारी से परमीशन लेगा तब छापा मार पायेगा तबतक नियोक्ता सतर्क हो जाएगा और किये गए अपराध की सजा पाने से बच निकलेगा।

मज़दूर संघ के नेता अनिल 8 जनवरी को होने वाले ट्रेड यूनियन की हड़ताल की तैयारी में जुटे हैं। चार कोड बिल के संदर्भ में बात करते हुए अनिल दो लाइन में पुराने और नए कानून का उद्देश्य स्पष्ट कर देते हैं। वे कहते हैं कि लेबर के हित में तो पुराने वाले कानून ही हैं और जो कॉरपोरेट है, व्यापारी है यानी नियोक्ता (इम्पलॉयर) के लिहाज से ये नए कानून अच्छे हैं।

नए चार कोड कानून के उस पक्ष की तरफ अनिल ध्यान दिलाने की कोशिश करते हैं जिसमें मज़दूर वर्ग का वह अधिकार छिन रहा था जो उन्हें पुराने 44 कानून में प्राप्त था। अनिल कहते हैं कि बेसिक जो चेंज सरकार द्वारा कानून में किया गया है यह कि फिक्स्ड टर्म सर्विस कर दिया गया है। पहले जो पर्मानेंसी के राइट थे वो राइट ही खत्म कर दी सरकार। इंडस्ट्रियल डिस्प्यूट की धारा 5 के एक थी जिसमें 240 दिन काम करते हुए कोई श्रमिक तीन साल अगर पूरा कर ले तो उसे परमानेंट करने का राइट था। अब सरकर कह रही फिक्स्ड टर्म सर्विस हो गई। टर्म भी फिक्स होगा और सैलरी भी फिक्स होगी। पहले जो सोशल वेलफेयर की स्कीमें थीं बीमा था, पीएफ था ये सारी चीजें नहीं रहेंगी। इस एक कानून के आने से ये सारी चीजें खत्म हो गईं।

इलाहाबाद में जार्ज टाउन क्षेत्र में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ कार्यालय पर जाकर मैंने उसके भारतीय मज़दूर संघ (बीएमएस) की स्थिति के बारे में जानने की कोशिश की। लेकिन कुछ भी बताने से इंकार कर दिया गया। कार्यालय पर मौजूद क्षेत्र विस्तारक द्वारा एक बार कहा गया कि यहां कोई कार्यालय नहीं है भारतीय मज़दूर संघ का, थोड़ी देर बाद कहा गया भारतीय मज़दूर संघ की यहां सिर्फ एक आलमारी है। भारतीय मज़दूर संघ का पता पूछने के बाद कहा गया इलाहाबाद में उसका कोई कार्यालय है उसकी जानकारी उन्हें नहीं है। एक बात आते-आते उन्होंने कही कि यहां सिर्फ मज़दूर संघ के कार्यकर्ताओं के साथ मीटिंग हो जाया करती है। कोई सम्पर्क सूत्र देने से भी इंकार कर दिया गया।

क्या कहते हैं असंगठित क्षेत्र के मज़दूर

इलाहाबाद में ट्रेड यूनियन के नेताओं और कार्यकर्ताओं ने सरकार पर सवालिया निशान खड़े किए। सभी संगठनों के नेताओं ने सरकार द्वारा पूंजीपतियों को लाभ पहुंचाने की बात कही गयी। सरकार जो बात कह रही है मज़दूर संगठन बिल्कुल उससे विपरीत बात कह रहे हैं। अब मैं इस कानून का प्रभाव इलाहाबाद के आस-पास के जिलों में असंगठित क्षेत्र के कर्मचारियों में देखने के लिए इलाहाबाद से लगभग सौ किलोमीटर दूर सुल्तानपुर की तरफ रोडवेज से निकल पड़ा। बस जैसे ही शहर पार करने वाली थी एक यात्री चढ़ा और आकर मेरे बगल वाली सीट पर बैठ गया। मैं खिड़की के बगल बैठकर सड़क किनारे बड़े-बड़े हरे पेड़ों को आधुनिक आरे से कटते देख रहा था।

तबतक कंडक्टर महोदय टिकट काटने पहुंच गए। मैं एक सौ पन्द्रह रुपया दिया बगल वाले यात्री ने स्टॉफ बताया कंडक्टर आगे बढ़ गया। मैंने बताया कि मैं पत्रकार हूँ, बात-चीत शुरू की और बात करते-करते चार कोड कानून पर आ गया। नाम न छापने की शर्त पर उन्होंने कहा देखिए यह कानून सरकार अपने मित्रों को लाभ पहुंचाने के लिए बना रही है। इस कानून के आने के बाद हम लोग हड़ताल नहीं कर पाएंगे। हमें हड़ताल करने से पंद्रह दिन पहले सूचना देनी होगी और हड़ताल होगी तो वेतन काट लिया जाएगा। किसलिए हम यूनियन बनाये? इसीलिए कि हम अपनी बात भी हड़ताल के माध्यम से न कह पाएं? हम लोग बड़ी संख्या पर 8 जनवरी को हड़ताल पर जा रहे हैं। सरकार को यह कानून वापस लेना ही होगा।

असंगठित क्षेत्र में काम कर रहे मज़दूरों की कहानी सुनते-सुनते कब सुल्तानपुर पहुंच गया पता ही न चला। सुल्तानपुर के सुपरमार्केट में पहुंचा एमआर (मेडिकल प्रतिनिधि) आशीष शुक्ला से सम्पर्क हुआ। आशीष से चार कोड के संदर्भ में बात करने लगा तो वे बोले कि मैं मार्केट के अन्य कर्मचारियों को बुलाता हूँ आप उनसे बात करें इस संदर्भ में हम लोगों की कई दिनों से मीटिंग हो रही है।

संतोष भट्ट सुल्तानपुर में एक इंटरनेशनल कम्पनी में एमआर हैं। इन्होंने मुझसे कहा आप पत्रकार हैं कैसे यहां एमआरों के पास चले आये? आजतक कोई पत्रकार हमें देखने तक नहीं आया। हम लोग पिछले पांच महीने से उत्तर-प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी को ज्ञापन भेज रहे हैं लेकिन उसपर आज तक कोई प्रतिक्रिया नहीं आई। हम बड़ी-बड़ी रैलियां करते हैं लेकिन एक भी पत्रकार नजर नहीं आता। मैं बार-बार पत्रकारिता के विषय में बात करने से बचने की कोशिश करता रहा लेकिन वहां मौजूद एमआर द्वारा पत्रकारों की सार्थक आलोचना सुननी पड़ी। एमआर सामूहिक रूप से एक ही बात भिन्न-भिन्न दृष्टिकोणों से कह रहे थे। जिसका सिर्फ एक मतलब निकल रहा था कि मल्टीनेशनल कम्पनियों द्वारा उनका शोषण किया जा रहा है। एमआर अपनी समस्या एक कथा की तरह से सुनाते चले जाते हैं। उन्हें ही उनका शोषण सामान्य लगने लगा है।

एमआर संतोष भट्ट 44 श्रम कानून को सरकार द्वारा चार कोड में लाने के सन्दर्भ में कहते हैं कि चार कोड कानून लागू होने के बाद देश में अस्थिरता बढ़ेगी, मालिकों की मनमानी बढ़ जाएगी, मज़दूरों का अहित होगा, देश की अर्थव्यवस्था चौपट हो जाएगी अभी तो आर्थिक मंदी का सिर्फ ट्रेलर है। इस कानून के लागू होने के बाद न कोई मज़दूर अपना घर बना पायेगा न ही अपना घर चला पायेगा।

संतोष भट्ट कम्पनियों के शोषण की कहानी सुनाते हुए कहते हैं कि कम्पनी के सेल्स प्रेशर की वजह से हमारे कई साथियों ने जो कि विभिन्न कंपनियों से थे वे आत्महत्या कर चुके हैं। और आने वालाYसमय और भी कठिन होने वाला है। अगर सरकार और कंपनियों की मनमानी इसी तरह चलती रही और मज़दूर विरोधी कानून लाया गया तो मज़दूरों में आत्महत्या का प्रतिशत बढ़ जाएगा।

सुल्तानपुर जिले में ही एक दूसरे एमआर अनुराग तिवारी से मुलाकात हुई अनुराग यूपीएमएसआरए के अध्यक्ष भी हैं। चार कोड कानून के खिलाफ हड़ताल पर जाने के लिए पिछले पांच महीने से समर्थन जुटाने के काम में लगे हैं। उन्होंने कहा यह कानून सरकार की मंशा को साफ-साफ दिखाता है। अनुराग ने कहा कि देखिए अभी हम परमानेंट हैं अभी हमें कोई कम्पनी निकालना चाहेगी तो निकालने से पहले नोटिस जारी करेगी। हमें उसके बाद अपना पक्ष रखने का मौका मिलता था लेकिन अब इस कानून के लागू होने के बाद हम बंधुआ मजदूर होने जा रहे हैं। सरकार के इस कानून के विरोध में सभी श्रमिक संगठन मिलकर देशव्यापी हड़ताल पर जा रहे हैं।

अनुराग के साथ काफी देर से चुप-चाप खड़े एमआर गंगाधर बीच में बोल पड़ते हैं कि देखिए पत्रकार साहब ये एमआर के विषय में तबतक आप नहीं लिख सकते जबतक इनकी दुनिया में कम्पनियों द्वारा खड़ा किया गया ब्लैक मार्केट के बारे में नहीं समझ जाते। कम्पनियों का बड़े स्तर पर ब्लैक मार्केट का खेल है। इधर मार्केट में हमें भी कम्पनियां दवा सेल करने के लिए रखी हैं उधर बैक डोर से सारे टैक्स, ट्रांसपोर्ट, जीएसटी छिपाकर कम दामों में बड़ी मात्रा में दवा मार्केट में भेज रही हैं। अब जरा बताइये जिस डॉक्टर या दुकानदार को 100 का माल 70 में मिल रहा है तो वे हमसे क्यों 100 रुपये दवा लेंगे?

गंगाधर गुस्से में बोलते हैं, "हमने भी भाजपा को वोट दिया था। प्रचार किया था। लेकिन इसलिए नहीं हमें नया-नया कानून लाकर बर्बाद कर दें। अगर इस कानून को वापस नहीं लिया गया तो हमही भाजपा को विपक्ष में भी बैठाएंगे।"

एक अन्य एमआर राहुल चतुर्वेदी ने चार कोड कानून के संदर्भ में कहा कि मामला बिल्कुल साफ है। प्रधानमंत्री मोदी अपने दोस्तों के हित साधने के लिए इस तरह का कानून ला रहे हैं जिससे उन्हें ज्यादा से ज्यादा मुनाफा कमवा सकें। आप सन फार्मा के ओनर को ही देखिये। जो मोदी जी के मित्र हैं। सरकार की तीस विदेश यात्राओं में से 27 में सिंघवी प्रधानमंत्री मोदी के साथ जा चुके हैं पूंजीपतियों से दोस्ती निभाने के लिए यह कानून मोदी सरकार ला रही है।

दिलीप सिंघवी और प्रधानमंत्री मोदी की यात्रा के सम्बंध में एमआर की कही बात एक शोध का विषय है। लेकिन सन फार्मा के ऑनर दिलीप सिंघवी प्रधानमंत्री मोदी से पुरस्कार प्राप्त कर चुके हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका में सिंघवी मोदी सरकार के मेक इन इंडिया को बढ़ावा देने की कसम भी खा चुके हैं।

(मेडिकल प्रतिनिधियों ने जॉब अनसिक्योरिटी की बात कहते हुए अपनी तस्वीर लेने से मना कर दिया)

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं)

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