NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
पर्यावरण
भारत
राजनीति
बनारस में गंगा के बीचो-बीच अप्रैल में ही दिखने लगा रेत का टीला, सरकार बेख़बर
बनारस की गंगा में बालू के टीले पहले जून के महीने में दिखाई देते थे। फिर मई में और अब अप्रैल शुरू होने के पहले ही दिखाई देने लगे हैं, जो चिंता का विषय है।
विजय विनीत
15 Apr 2022
ganga
बनारस में गंगा के बीचो-बीच उभरे बालू के टीले

उत्तर भारत को जिंदगी देने वाली नदी गंगा का जीवन अब ख़तरे में है। खास बात यह है कि खतरे का अलार्म पीएम नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र बनारस में बज रहा है। यहां पहली मर्तबा सामने घाट के पास गंगा के बीचो-बीच रेत का एक बड़ा टीला दिखने लगा है। गंगा के बीच जमी रेत पर नाव लगाकर मछुआरे मछली पकड़ रहे हैं। इसे कोई रेत का टीला बता रहा है तो कोई “मड आईलैंड”। पहले रामनगर किले के पास गंगा में बालू की रेत जमा होती थी। पहली बार सामने घाट पर बालू का टील उभरा है, जो पर्यावरण और नदी विशेषज्ञों के लिए चिंता का सबब बन गया है। वैसे भी बनारस में कई स्थानों पर गंगा सिकुड़ गई है और उसका आकार नाले की तरह हो गया है।

गंगा के टीले पर मछली पकड़ते मछुआरे

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पहली मर्तबा बनारस में चुनाव लड़ने आए थे तो उन्होंने गंगा को चुनावी मुद्दा बनाया था और इस नदी को फिर से नया जीवन देने का ऐलान किया था। उत्तर भारत में 2,500 किलोमीटर क्षेत्र में फैली गंगा की जितनी दुर्गति बनारस में हुई है, उतनी शायद ही कहीं हुई होगी। गंगा में अगाध श्रद्धा रखने और नियमित स्नान करने वाली पर्यटक स्वाति सिंह कहती हैं, "मैं हर महीने बनारस आती हूं। कभी राजघाट, कभी दशाश्वमेध और कभी अस्सी घाट पर स्नान करती हूं। बीते आठ सालों में गंगा में कोई सुधार नहीं है। गंदगी जस की तस है। नदी का आकार छोटा होता जा रहा है। घाटों पर जमा बालू और गंदगी देख अब नहाने का मन नहीं करता है।" बनारस के पत्रकार राजकुमार सोनकर ‘कुंवर’ कहते हैं, "गंगा पवित्र जरूर है, इस नदी के साथ जितना खिलवाड़ हाल के कुछ सालों में हुआ है, उतना शायद कभी नहीं हुआ होगा। सामने घाट के सामने गंगा के बीचो-बीच बालू का जो टीला उभरा है उसे देखकर कोई भी कह सकता है कि गंगा नदी की सेहत ठीक नहीं है। नदी के अपर स्ट्रीम में बांधों का निर्माण और सहायक नदियों के जलस्तर में कमी के चलते नदी का वेग धीमा पड़ता जा रहा है। इसके चलते गंगा बेसिन के भूजल का स्तर कम होने लगा है।"

आईआईटी खड़गपुर के असिस्टेंट प्रोफेसर अभिजीत मुख़र्जी की एक स्टडी का हवाला देते हुए राजकुमार कहते हैं, "साल 1999 से 2013 के बीच गर्मी के दिनों में गंगा जल में −0.5 से −38.1 सेंटीमीटर प्रति वर्ष की कमी आई थी। हाल यह है कि इस साल अप्रैल महीने के पहले पखवाड़े में इस नदी का जल स्तर खिसकर 57 मीटर पहुंच गया। पहले जून महीने में गंगा का जल स्तर 57 मीटर तक पहुंचता था। समझा जा सकता है कि स्थिति अभी इतनी भयावह है तो आगे कैसे होगी?"

चिंतित हैं गंगा से जुड़े वैज्ञानिक

बनारस की गंगा में बीचो-बीच बालू का टीला उभरने पर नदी विशेषज्ञों और पर्यावरणविदों ने गंभीर चिंता जताई है। इनका मानना है कि गंगा का रेत अब पश्चिम के बजाय पूरब की ओर शिफ्ट होने लगा है। इसकी दो बड़ी वजहें बताई जा रही है। पहला, पिछले साल रामनगर से राजघाट तक गंगा की रेत में खोदी गई पांच किमी लंबी मानव निर्मित नहर और दूसरा, रामनगर का वह पुल, जिसे बनाने में गंगा के प्रवाह का ख्याल ही नहीं रखा गया। इस बीच विश्वनाथ कारिडोर के गेट के लिए गायघाट के पास नदी तल में करीब सौ मीटर तक का प्लेटफॉर्म भी कम खतरनाक नहीं है। दोषपूर्ण इंजीनियरिंग के चलते गंगा का आकार और उसकी धारा टेढ़ी-मेढ़ी हो गई है।

काशी हिंदू विश्वविद्यालय में आईआईटी के प्रोफेसर और गंगा लैब के प्रभारी रहे प्रोफेसर यूके चौधरी कहते हैं, "रामनगर में जहां पुल बनाया गया है, वहां गंगा थोड़ी पश्चिम की ओर मुड़ती हैं। उसी जगह पर पुल के पिलर हैं। ये पिलर नदी में पानी के बहाव में रूकावट पैदा कर रहे हैं। यही वजह है कि गंगा द्वारा बहाकर लाया गया बालू सामने घाट के समीप बीच मझधार में इकट्ठा होने लगा है। रामनगर से राजघाट के बीच रेत की नहर जब बनाई जा रही थी तो गड्ढे खोदे गए थे। जहां तल उथला होना चाहिए था, वहां गहरा हो गया। नतीजा, गंगा में आने वाली रेत घाटों की ओर शिफ्ट होने लगी है। पहले रेत रामनगर किले के सामने जमा होता था। गंगा के बीच में रेत का टीला जमा होने से नदी में पानी का वेग लगातार घटता जा रहा है।"

गंगा का पानी जा रहा है दिल्ली

काशी हिंदू विश्वविद्यालय में महामना मालवीय गंगा शोध केंद्र के चेयरमैन और प्रख्यात गंगा विशेषज्ञ प्रो. बीडी त्रिपाठी कहते हैं, "बनारस की गंगा में बालू के टीले पहले जून के महीने में दिखाई देते थे। फिर मई में और अब अप्रैल शुरू होने के पहले ही दिखाई देने लगे हैं जो चिंता का विषय है। बीचो-बीच गंगा में बालू के टीलों का दिखना यह दर्शाता है कि नदी में वाटर फ्लो कम हुआ है। गंगा की सेहत के लिए यह स्थिति बेहद खराब और चिंताजनक है। दरअसल, उत्तराखंड में गंगा का पानी रोका गया है, जिसके चलते पानी का बहाव कम हुआ है। साथ ही सिल्ट्रेशन रेट बढ़ गया है। इस वजह से संकट की स्थिति पैदा हुई है। वहीं गंगा के पानी की कुछ मात्रा हरिद्वार और भीमगौड़ा कैनाल से दिल्ली की तरफ छोड़ा जा रहा है। वहीं काफी हद तक गंगा के पानी को सिंचाई के लिए नहरों में मोड़ दिया गया है। इससे गंगा की मुख्य धारा दिनों-दिन छोटी होती जा रही है। हमें अपनी जल नीति बनानी होगी और ग्राउंड वाटर के दोहन को नियंत्रित करना होगा।"

प्रो.त्रिपाठी कहते हैं, "गंगा में बालू का टीला पहली बार मार्च में ही दिखाई देने लगा था। गंगा में लगातार पानी का प्रवाह काम होने से सिल्ट्रेशन रेट बढ़ता है। यह एक इंडिकेशन है कि गंगा में लगातार पानी कम हो रहा है। गंगा में प्रवाह कम होने की कई वजहें हैं। उत्तराखंड में कई स्थानों पर जल विद्युत परियोजनाएं स्थापित की गई हैं। इसके चलते गंगा पर बांध बनाए गए हैं जिससे नदी का फ्लो रोका गया है। हाइड्रो परियोजनाओं में सिर्फ टरबाइन चलाते समय बहुत कम पानी गंगा की मुख्य धारा में छोड़ा जाता है। इसकी वजह से गंगा की मुख्य धारा में पानी कम आ रहा है।"

गंगा-वरुणा संगम तट पर कूड़े का अंबार

वैज्ञानिकों ने बताई ये वजह

नदी विशेषज्ञ प्रो.बीडी त्रिपाठी के मुताबिक, "हरिद्वार के पास गंगा नदी का पानी खींचकर भीमगौड़ा कैनाल (नहर) में छोड़ा जाता है। गंगा का पानी दिल्ली, हरियाणा समेत कई राज्यों में आपूर्ति की जा रही है। हरिद्वार में मुख्य धारा के पानी को डायवर्ट किया जा रहा है जिससे मेन स्ट्रीम में पानी कम हो रहा है। तीसरा सबसे बड़ा कारण है गंगा के दोनों तरफ शुरू से लेकर अंत तक लिफ्ट कैनाल का निर्माण। बनारस में गंगा जल का इस्तेमाल जहां पीने के पानी के लिए किया जा रहा है वहीं नहरों के जरिये फसलों की सिंचाई के काम में भी लाया जा रहा है। चिंता की सबसे बड़ी वजह यह है कि भारत सरकार की अपनी कोई जल नीति नहीं है। यह तय ही नहीं है कि गंगा से कोई कितना पानी निकाले और कितना न निकाले? गंगा जल के बंटवारे की कोई पॉलिसी तय नहीं है"

"जिस तरह से ग्राउंड वाटर का मनमाने तरीके से दोहन किया जा रह है वही स्थिति गंगा की है। ग्राउंड वाटर लगातार नीचे जा रहा है। ऐसे में गंगा का पानी भूजल को रिचार्ज करने में चला जा रहा है। नतीजा, गंगा में पानी घट रहा है और बीचो-बीच नदी में बालू के टीले उभरते जा रहे हैं। पानी का धरती पर एक ही स्रोत है वर्षा जल संचयन। इसका बहुआयामी इस्तेमाल करने की जरूरत है। हम जिन राज्यों में गंगाजल भेज रहे हैं उन्हें पहले आत्मनिर्भर बनाना पड़ेगा। हमें क्रॉपिंग पैटर्न बदलना होगा। धान गेहूं की प्रजातियां हैं जिसे बहुत पानी की जरूरत पड़ती है। ऐसे प्रजातियों की खेती करानी होगी जिससे पानी का इस्तेमाल कम हो सके।"

जलीय जीवों को खतरा

गंगा निर्मलीकरण मुहिम से जुड़े पर्यावरणविद प्रो. विशंभरनाथ मिश्र कहते हैं, "गंगा का डायनमिक फ्लो प्रभावित हो रहा है। रेत का इतना ऊंचा और बड़ा टीला कभी इस नदी में नहीं दिखा था। अनियोजित विकास के चलते गंगा अपना बालू मेन स्ट्रीम में फेंक रही है। यही वजह है कि बीचो-बीच नदी में कई स्थानों पर बालू के टीले दिखने लगे हैं। यह घातक नतीजे का संकेत है। गंगा में जब पानी का फ्लो कम होगा तो डाइलूशन फैक्टर पर उसका असर पड़ेगा। कम प्रदूषित पानी भी ज्यादा प्रदूषित दिखाई देगा। नदी में टीलों का उभरना सिर्फ इंसान ही नहीं जलीय जीवों के लिए भी खतरनाक है। नेशनल गंगा रिवर बेसिन अथॉरिटी ने तय कर रखा है कि गंगा डॉल्फिन को नेशनल एक्वेटिक एनीमल घोषित किया जाएगा। इसके लिए बनारस में 18 फिट तक का पानी चाहिए। यदि इतना पानी नहीं रहेगा तो डॉल्फिन जिंदा नहीं रह पाएगी। साथ ही दूसरे जलीय जीवों पर भी उसका दुष्प्रभाव पड़ेगा। टीले का उभरना इस बात का संकेत है कि गंगा में लगातार पानी कम हो रहा है।"

प्रो. मिश्र यह भी कहते हैं, "गंगा का फ्लो कम होने से नदी की पाचन क्षमता कम हो जाती है। बनारस में गंगा प्रदूषकों को नहीं पचा पा रही है। हाल यह है कि ट्रीटमेंट प्लांट लगाने के बावजूद गंगा प्रदूषण में कोई खास बदलाव नहीं दिख रहा है। गंगा निर्मलीकरण की मुहिम साल 1986 में शुरू हुई थी, और तब से लेकर अब तक इस पर हजारों करोड़ रुपये ख़र्च किए जा चुके हैं। 14 जनवरी, 1986 में ‘गंगा एक्शन प्लान’ बनाया गया था, जिसका मक़सद गंगा में मिलने वाले सीवेज और औद्योगिक प्रदूषण को रोकना था। उसके बाद साल 2009 में ‘मिशन क्लीन गंगा’ शुरू किया गया। इसके तहत गंगा को साल 2020 तक सीवर और औद्योगिक कचरे से निजात देने का लक्ष्य रखा गया था।

"ताजा स्थिति यह है कि 02 अप्रैल 2022 को बनारस के नगवां में फीकल कॉलिफोर्म बैक्टीरिया का स्तर 24 मिलियन प्रति 100 मिली लीटर था। यह वही स्थान है जहां असी नदी गंगा में मिलती है। तुलसी घाट पर फीकल कॉलिफोर्म 43000 दर्ज किया गया। वरुणा नदी जहां गंगा में मिलती है वहां स्थिति बेहद भयावह और डरावना है। यहां फीकल कॉलिफोर्म 56 मिलियन है। आमतौर पर नहाने योग्य नदी में फीकल कॉलिफोर्म बैक्टिरिया की मात्रा प्रति सौ मिलीलीटर में 500 से ज्यादा नहीं होनी चाहिए। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानकों के अनुसार पीने के पानी में फीकल कॉलिफोर्म बैक्टीरिया की कोई उपस्थिति नहीं होनी चाहिए। गंगा प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए हमें नदी में पानी के फ्लो को बढ़ाना पड़ेगा। इस दिशा में ठोस कदम उठाना पड़ेगा। गंगा प्रदूषण नियंत्रण और नदी के प्रवाह को बढ़ाने की मुहिम हमें एक साथ चलानी होगी। पानी का फ्लो बढ़ जाएगा तो बालू के टीले खुद ही बह जाएंगे और उनका वजूद खत्म हो जाएगा। चिंता की बात यह है कि गंगा की मुख्य धारा दिनों-दिन छोटी होती जा रही है, जिसके चलते नदी का प्रदूषण भी बढ़ रहा है।"

सूखती वरुणा में अब बहता है सीवर का पानी

जल परिवहन घातक

गंगा निर्मलीकरण मुहिम से जुड़े डॉ. अवधेश दीक्षित कहते हैं, "गंगा में जलपोत चलाने के नाम पर मोदी सरकार ने बनारस में बड़ी धनराशि का इंवेस्टमेंट किया है। रेत की नहर की तरह बनारसियों के लिए यह योजना भी घातक साबित होगी। अगर जल परिवहन शुरू होता है तो दुर्घटनाएं बढ़ेगी और गंगा में प्रदूषण का खतरा कई गुना ज्यादा बढ़ जाएगा, जिसका सीधा असर नदी के जंतुओं और आसपास के लोगों पर पड़ेगा। हानिकारक पदार्थों के परिवहन के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले जहाजों की दुर्घटना की स्थिति में ये हानिकारक तत्व और रसायन जैसे फ्लाई ऐश और उर्वरक गंगा के पानी को बड़ी मात्रा और बड़े क्षेत्र में प्रदूषित करेंगे। साथ ही इन जहाजों से निकलने वाला तेल भी पानी को प्रदूषित करेगा।"

डॉ. दीक्षित कहते हैं, "शहरी कचरे को साफ़ करने के लिए बनाए गए सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट तकनीकी रूप से सही नहीं हैं। गंगा नदी इंसान के शरीर की तरह है। इसका ख़ून कम कर इसे विष पिलाया जा रहा है। जब तक सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट में सही तकनीक का इस्तेमाल नहीं होता है और गंगा पर बनाए गए बांधों के डिज़ाइन में ज़रूरी बदलाव नहीं किए जाते, सरकार कितनी ही बैठकें कर ले और कितना ही पैसा लगा ले, कुछ सुधार नहीं होगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आठ साल पहले बनारस की गंगा की सेहत सुधारने का भरोसा दिलाया था और इसी वायदे के बूते उन्होंने पहला चुनाव जीता था, लेकिन स्थिति जस की तस बनी हुई है।"

NORTH INDIA
banaras
ganga
Ganga River
ganga river pollution
Water crisis in Ganga
yogi government
Modi government
Environment
pollution
Water crisis

Related Stories

बिहारः नदी के कटाव के डर से मानसून से पहले ही घर तोड़कर भागने लगे गांव के लोग

जलवायु परिवर्तन : हम मुनाफ़े के लिए ज़िंदगी कुर्बान कर रहे हैं

उत्तराखंड: क्षमता से अधिक पर्यटक, हिमालयी पारिस्थितकीय के लिए ख़तरा!

मध्यप्रदेशः सागर की एग्रो प्रोडक्ट कंपनी से कई गांव प्रभावित, बीमारी और ज़मीन बंजर होने की शिकायत

पानी को तरसता बुंदेलखंडः कपसा गांव में प्यास की गवाही दे रहे ढाई हजार चेहरे, सूख रहे इकलौते कुएं से कैसे बुझेगी प्यास?

बिहारः गर्मी बढ़ने के साथ गहराने लगा जल संकट, ग्राउंड वाटर लेवल में तेज़ी से गिरावट

दिल्ली से देहरादून जल्दी पहुंचने के लिए सैकड़ों वर्ष पुराने साल समेत हज़ारों वृक्षों के काटने का विरोध

जलविद्युत बांध जलवायु संकट का हल नहीं होने के 10 कारण 

समय है कि चार्ल्स कोच अपने जलवायु दुष्प्रचार अभियान के बारे में साक्ष्य प्रस्तुत करें

विश्व जल दिवस : ग्राउंड वाटर की अनदेखी करती दुनिया और भारत


बाकी खबरें

  • blast
    न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    हापुड़ अग्निकांड: कम से कम 13 लोगों की मौत, किसान-मजदूर संघ ने किया प्रदर्शन
    05 Jun 2022
    हापुड़ में एक ब्लायलर फैक्ट्री में ब्लास्ट के कारण करीब 13 मज़दूरों की मौत हो गई, जिसके बाद से लगातार किसान और मज़दूर संघ ग़ैर कानूनी फैक्ट्रियों को बंद कराने के लिए सरकार के खिलाफ प्रदर्शन कर रही…
  • Adhar
    अनिल जैन
    ख़बरों के आगे-पीछे: आधार पर अब खुली सरकार की नींद
    05 Jun 2022
    हर हफ़्ते की तरह इस सप्ताह की जरूरी ख़बरों को लेकर फिर हाज़िर हैं लेखक अनिल जैन
  • डॉ. द्रोण कुमार शर्मा
    तिरछी नज़र: सरकार जी के आठ वर्ष
    05 Jun 2022
    हमारे वर्तमान सरकार जी पिछले आठ वर्षों से हमारे सरकार जी हैं। ऐसा नहीं है कि सरकार जी भविष्य में सिर्फ अपने पहनावे और खान-पान को लेकर ही जाने जाएंगे। वे तो अपने कथनों (quotes) के लिए भी याद किए…
  • न्यूज़क्लिक डेस्क
    इतवार की कविता : एरिन हेंसन की कविता 'नॉट' का तर्जुमा
    05 Jun 2022
    इतवार की कविता में आज पढ़िये ऑस्ट्रेलियाई कवयित्री एरिन हेंसन की कविता 'नॉट' जिसका हिंदी तर्जुमा किया है योगेंद्र दत्त त्यागी ने।
  • राजेंद्र शर्मा
    कटाक्ष: मोदी जी का राज और कश्मीरी पंडित
    04 Jun 2022
    देशभक्तों ने कहां सोचा था कि कश्मीरी पंडित इतने स्वार्थी हो जाएंगे। मोदी जी के डाइरेक्ट राज में भी कश्मीर में असुरक्षा का शोर मचाएंगे।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License