NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
अंतरराष्ट्रीय
अर्थव्यवस्था
क्या दुनिया कोरोना के इलाज की दवा सबको उपलब्ध कराने के लिए एकमत हो पाएगी?
बौद्धिक संपदा प्रतिबंधों पर छूट के मामले में भारत और दक्षिण अफ्रीका द्वारा पेश प्रस्ताव में महामारी के खिलाफ वैश्विक संघर्ष में एक निर्णायक भूमिका निभाने की संभावना मौजूद है।
ज्योत्सना सिंह
21 Nov 2020
कोरोना वायरस

इस अक्टूबर माह में कोरोनावायरस संक्रमण और मौतों के बढ़ते मामलों के बीच भारतीय एवं दक्षिण अफ्रीकी सरकारों ने विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) के टीआरआईपीएस काउंसिल के समक्ष एक साहसिक प्रस्ताव रखा। इसमें सदस्य देशों से कोविड-19 संबंधी मेडिकल उत्पादों के लिए बौद्धिक संपदा आवश्यकताओं में छूट दिए जाने को लेकर समर्थन करने के लिए कहा गया है। डब्ल्यूटीओ के व्यापार संबंधी अग्रीमेंट आन ट्रेड रिलेटेड एस्पेक्ट्स ऑफ़ इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी (टीआरआईपीएस समझौता) एक अंतर्राष्ट्रीय संधि है, जिसमें इसके सदस्य देशों को बौद्धिक संपदा (आईपी) को लेकर कुछ तयशुदा जरूरतों जैसे कि पेटेंट्स, औद्योगिक डिजाइन और कॉपीराइट अधिकारों को अमल में लाना होता है।

इन दोनों देशों ने प्रस्तावित किया है कि कोविड-19 संबंधी मेडिकल उत्पादों जैसे कि दवाइयों, वैक्सीन, मास्क एवं वेंटिलेटर पर लागू आईपी प्रदान करने या लागू करने सम्बंधी आवश्यकताओं पर छूट दी जाये, ताकि जीवन-रक्षक चिकत्सकीय उपकरणों को वृहद स्तर पर अविलंब मुहैय्या कराने को संभव बनाया जा सके। 90 से अधिक देशों ने किसी न किसी रूप में इस प्रस्ताव का स्वागत किया है या इसे अपना समर्थन दिया है, जबकि केन्या और इस्वातिनी इस प्रस्ताव के सह-प्रायोजक के तौर पर हैं।

यूएनएआईडीएस और यूएनआईटीएआईडी सहित कई संयुक्त राष्ट्र संस्थाओं ने इस छूट के प्रस्ताव का स्वागत करते हुए बयान जारी किये हैं। मेडिसिन्स साँस फ्रंटियर्स (एमएसऍफ़) और ड्रग्स फॉर नेग्लेक्टेड डिजीज इनिशिएटिव (डीएनडीआई) जैसे अंतर्राष्ट्रीय मानवतावादी संगठनों ने देशों से इस प्रस्ताव पर अविलंब समर्थन करने का आग्रह किया है।

20 नवंबर को टीआरआईपीएस परिषद की एक अनौपचारिक बैठक में इस प्रस्ताव पर विस्तार के साथ चर्चा की जायेगी। तमाम देश अपने-अपने पक्षों के साथ यहाँ पर होंगे, जिसमें वे अपने हितधारकों से पिछले करीब एक माह से जा रही वार्ता के आधार पर अपने पक्ष को रखेंगे। यह देखना दिलचस्प होगा कि सार्वजनिक हितों के पक्ष में कौन खड़ा है और कौन नहीं।

इससे पूर्व 15-16 अक्टूबर को डब्ल्यूटीओ-टीआरआपएस काउंसिल की बैठक के दौरान इस प्रस्ताव पर चर्चा की गई थी। चर्चा के दौरान इसमें तीन पक्ष निकल कर उभरे थे। अति पिछड़े एवं विकासशील देशों में से अधिसंख्य ने इस प्रस्ताव का या तो स्वागत किया था या इसके पक्ष में अपना समर्थन दिया था कि धनाढ्य देशों की तुलना में उनके लिए आवश्यक चिकित्सा उत्पादों तक पहुँच बना पाना कहीं अधिक दुष्कर कार्य होगा। अमीर देशों ने पहले से ही फाइजर और मोडरना जैसे बहुराष्ट्रीय निगमों से संभावित वैक्सीन के साथ बाजार में इसकी खेप के पहुँचने से पहले ही 80% आपूर्ति पर अपना कब्जा जमा लिया है। इसे देखते हुए विकासशील देशों को वैकल्पिक निर्माताओं से अपने उत्पादन को बढाने पर जोर देने की जरूरत पड़ रही है।

वहीं दूसरी ओर स्विट्जरलैंड, जापान और अमेरिका जैसे देश हैं जो अपने फार्मास्यूटिकल उद्योगों के लिए उत्पन्न आकर्षक मौके को ध्यान में रखते हुए इस प्रस्ताव के विरोध में जा सकते हैं, जो विश्व भर में बाजार में विशिष्टता और बेहद ऊँचे मुनाफे को सुनिश्चित करने के लिए प्रतिस्पर्धा को अवरुद्ध कर दिए जाने के मामले में काफी हद तक आईपी पर निर्भर हैं। वहीं कुछ देश ऐसे भी थे जो सैद्धांतिक तौर पर इस प्रस्ताव से सहमत दिखे लेकिन कुछ बातों पर उन्होंने और स्पष्टीकरण की माँग की है।

प्रक्रिया के अनुसार टीआरआईपीएस काउंसिल के औपचारिक सत्र के दिसंबर के प्रारंभ में किये जाने की उम्मीद है, और 16-17 दिसंबर को जनरल काउंसिल के सत्र में डब्ल्यूटीओ जनरल काउंसिल के समक्ष इस बातचीत की रिपोर्ट प्रस्तुत की जाएगी।

तब तक भारत, दक्षिण अफ्रीका सहित इस प्रस्ताव का समर्थन कर रहे बाकी के देशों के आगे इस ज्वार को अपने पक्ष में करने के लिए एक गुरुतर कार्यभार बना हुआ है। वे इस काम को 2003 में भी कर सकते थे। आज भी उन्हें इसे कर पाने में सक्षम होना चाहिए।

वे कहते हैं कि इतिहास खुद को दोहराता है। आज के दिन भी वैश्विक स्वास्थ्य आंदोलन उसी मोड़ पर है जहां यह 20 साल पहले खड़ा था। 1995 के टीआरआईपीएस समझौते ने उस दौरान अनेकों लाभ थाल में सजाकर बौद्धिक संपदा एकाधिकार के तौर पर विकसित देशों के बहुराष्ट्रीय निगमों को देने का काम किया था। डब्ल्यूटीओ के तत्वावधान में इस अंतरराष्ट्रीय समझौते के नतीजे के तौर पर पेश किए गए पेटेंट के एकाधिकार के चलते बुरी तरह से चोटिल होकर तब विकासशील देशों की ओर से मजबूत चुनौती पेश की जानी शुरू कर दी गई थी। विशेष तौर पर अपने देशवासियों के लिए सस्ती जेनेरिक दवाओं तक पहुंच बना पाने के अधिकार के मामले में संघर्ष तेज होना शुरू हो गया था। इस दौरान बड़ी फर्मास्यूटिकल निगमों द्वारा एचआईवी दवाओं पर पेटेंट के जरिये इसकी आपूर्ति पर एकाधिकार स्थापित कर लिया गया था। प्रति व्यक्ति पर 10,439 डॉलर तक के सालाना खर्च की भारी कीमत तक इसकी दवा के मूल्य निर्धारण के जरिये इसे सरकारों और एचआईवी पीड़ित मरीजों की पहुंच से बाहर कर डाला था।

इन चुनौतियों को देखते हुए 2003 में भारत जैसे देशों ने बाकी की समान सोच रखने वाले विकासशील देशों के साथ मिलकर इस बात के लिए माँग करनी शुरू की कि सरकारें अपने लोगों के लिए सार्वजनिक स्वास्थ्य और दवाओं तक पहुँच बना पाने की रक्षा के मद्देनजर स्वास्थ्य और सार्वजनिक हितों को लेकर सुरक्षा उपायों को उपयोग में ला सकती हैं। अंत में जाकर डब्ल्यूटीओ के सदस्यों ने टीआरआईपीएस समझौते एवं सार्वजनिक स्वास्थ्य पर दोहा घोषणा को अपनाया, जिसे सामान्य बोलचाल में टीआरआईपीएस फ्लेक्सिबिलिटीज के तौर पर भी जाना जाता है।

टीआरआईपीएस फ्लेक्सिबिलिटीज ने सरकारों को इस बात का विकल्प मुहैय्या कराया कि वे स्वास्थ्य के अधिकार की रक्षा एवं स्वास्थ्य संबंधी जरूरतों के मद्देनजर दवाइयों पर कंपनियों के एकाधिकार को दूर करने के उपायों को अपना सकें। इन उपायों में अनिवार्य लाइसेंस को हासिल करना शामिल है जिसके तहत सरकारों को यह अधिकार हासिल हो जाता है कि वे जेनेरिक दवाओं के प्रतिस्पर्धियों को बाजार में उतार सकें, ताकि कि वे स्वास्थ्य प्रणालियों की आपूर्ति को सुचारू रूप से मुहैय्या करा सकें। इसके जरिये उन लोगों तक भी दवाओं तक पहुँच बढ़ जाती है जो आमतौर पर बेहद महँगी पेटेंटेड दवाओं को नहीं खरीद पा रहे थे। भारतीय जेनेरिक कंपनियों द्वारा निर्मित दवाओं ने न सिर्फ भारत में, बल्कि इसकी सबसे बुरी मार झेल रहे अफ्रीकी, एशियाई और लैटिन अमेरिकी देशों तक के लाखों लोगों की जान बचाने में अपना योगदान दिया है।

कोविड-19 महामारी के इस दौर में भी सरकारें और उपचार प्रदाता खुद को कुछ इसी प्रकार की स्थितियों में घिरा पा रहे हैं। महामारी ने नई और संभवतः पहसे से अधिक कठिन चुनौतियों को विश्व के समक्ष ला खड़ा कर दिया है। भारत-दक्षिण अफ्रीका प्रस्ताव के विरोधियों द्वारा इस तर्क को पेश किया जा रहा है कि आईपी नवाचार को बढ़ावा देता है। आईपी संरक्षण के पक्ष में इस तर्क को एक लंबे अर्से से दिया जा रहा है। इसमें और भी अधिक मजबूत और पहले से ज्यादा कड़े कानूनों को बढ़ावा दिए जाने के पक्ष में दलीलें पेश की जाती हैं। लेकिन तथ्य एक अलग ही हकीकत को बयां करते नजर आते हैं।

आज सरकारें कोविड-19 महामारी के चलते दवाओं, डायग्नॉस्टिक्स और वैक्सीन के निर्माण में भारी मात्रा में वित्तपोषण के इंतजाम में लगी हैं। इनमें से कई नवाचारों को फर्मास्यूटिकल निगमों द्वारा व्यवसायीकरण किया जायेगा, जबकि दुनियाभर में वैज्ञानिक सफलताएं मूल तौर पर सार्वजनिक प्रयोगशालाओं और वित्तपोषण की वजह से होने जा रही हैं। सरकारें न सिर्फ अनुसंधान और विकास के मामले में वित्तपोषण में शामिल हैं, बल्कि वे दुनिया भर में विनिर्माण सुविधाओं को बढ़ाए जाने को लेकर भी निवेश कर रही हैं। यह सार्वजनिक नेतृत्व एवं निवेश आईपी के अस्तित्व में बने होने की वजह से प्रेरित नहीं है, बल्कि कहा जाना चाहिए कि - कोविड-19 की रोकथाम और इलाज के लिए चिकित्सा उपकरणों के साथ अपनी स्वास्थ्य प्रणाली को प्रदान करने का यह एक प्रयास है।

छूट और मौजूदा टीआरआईपीएस फ्लेक्सिबिलिटीज आपस में विशिष्ट नहीं हैं। तमाम देशों को सार्वजनिक स्वास्थ्य की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए टीआरआईपीएस फ्लेक्सिबिलिटीज के इस्तेमाल को जारी रखना चाहिए, जिसमें अनिवार्य लाइसेंस को जारी करने और विशिष्ट अधिकारों के लिए एक लिमिट एवं अपवाद तय करना निहित है। हालाँकि टीआरआईपीएस फ्लेक्सिबिलिटीज आईपी से उत्पन्न होने वाले एकाधिकारों की बाधाओं को तोड़ने के लिए उत्पाद-दर-उत्पाद, देश-दर-देश समाधान की अनुमति प्रदान करते हैं जो कि महामारी के दौरान सीमित हो सकते हैं। ये लाभ वैश्विक स्तर पर हासिल नहीं हो सकेंगे बल्कि लचीलेपन का इस्तेमाल कर रहे एक देश तक ही सीमित रहेंगे।

आज के दिन दुनिया को अभूतपूर्व पैमाने पर मास्क, वेंटिलेटर, डायग्नोस्टिक उपकरणों, नई दवाओं एवं वैक्सीन की दरकार है। विश्व के कई हिस्से पहले से ही ऐसे उत्पादों की कमी से जूझ रहे हैं। उदाहरण के तौर पर एन 95 मास्क को ही लें, जो स्वास्थ्य कर्मियों को कोविड​​-19 के खिलाफ लड़ाई में सर्जिकल मास्क की तुलना में काफी बेहतर सुरक्षा प्रदान करने में सक्षम हैं। लेकिन इस पर 3एम जैसी बहुराष्ट्रीय कंपनी एवं अन्य संस्थाओं की ओर से सैकड़ों पेटेंट कराये गए हैं। दुनियाभर से स्वास्थ्य कर्मियों के लिए एन95 मास्क की कमी की खबरें सुनने में आई हैं, जिससे उनका जीवन खतरे में है। मार्च 2020 में संयुक्त राज्य अमेरिका में केंटुकी के गवर्नर ने 3एम से अपने पेटेंट को हटा लेने का आह्वान किया था, ताकि ज्यादा से ज्यादा निर्माता इसका उत्पादन शुरू कर सकें। आईपी ​​बाधाओं को भी इसी प्रकार से मुक्त किये जाने की आवश्यकता है।

कोविड-19 इस तथ्य पर रोशनी डालने का काम कर रहा है कि स्वास्थ्य और फर्मास्यूटिकल को लेकर बाजार से संचालित आमतौर व्यावसायिक दृष्टिकोण में कई खामियां हैं, जिन्हें साहसिक समाधानों के साथ संबोधित किये जाने की दरकार है। यही वह उचित समय है जिसमें आईपी ​​शासन पर पुनर्विचार करने की मांग की जानी चाहिए। आईपी के तहत जीवन रक्षक चिकित्सा उत्पादों के उत्पादन में बढ़ोत्तरी के लिए वैकल्पिक आपूर्तिकर्ताओं को उत्पादन करने की इजाजत नहीं दी जाती, ताकि प्रतिस्पर्धी मार्ग को अवरुद्ध कर बहुराष्ट्रीय निगमों के लिए भारी पैमाने पर मुनाफे को संरक्षित किया जा सके।

इस महामारी ने वैश्विक स्तर पर आर्थिक संकट की स्थिति को उत्पन्न कर दिया है। इसके चलते असंख्य लोगों को अपनी जिन्दगी, आजीविका और आय के स्रोतों से हाथ धोने के लिए मजबूर होना पड़ा है। विभिन्न अनुमानों के आधार पर इस बात का अंदाजा लगता है कि इस मंदी से उबरने में अभी कई साल और लग सकते हैं। यह समय निगमों को कोविड-19 के नाम पर लूट की छूट दिए जाने का नहीं है।

उम्मीद की जानी चाहिए कि इस प्रस्ताव का विरोध कर रहे देश वैश्विक एकजुटता के मामले में अच्छा प्रदर्शन करेंगे और अपने यहाँ के बहुराष्ट्रीय निगमों के निहित स्वार्थों की बजाय लोगों के जीवन को प्राथमिकता देते हुए बौद्धिक संपदा पर छूट दिए जाने की अनुमति प्रदान करने से पीछे नहीं हटेंगे।

लेखिका एमएसएफ़ एक्सेस कैंपेन में एडवोकेसी ऑफिसर के बतौर कार्यरत हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।

अंग्रेजी में प्रकाशित मूल लेख पढ़ने  के लिए इस लिंक पर क्लिक करें

Access to COVID-19 Medical Products: All Eyes on TRIPS Council

TRIPS Council
WTO
Intellectual property
COVID-19
IP Waiver
MSF Campaign
Medical Products
India WTO Proposal

Related Stories

कोरोना अपडेट: देश में कोरोना ने फिर पकड़ी रफ़्तार, 24 घंटों में 4,518 दर्ज़ किए गए 

कोरोना अपडेट: देश में 24 घंटों में 3,962 नए मामले, 26 लोगों की मौत

आर्थिक रिकवरी के वहम का शिकार है मोदी सरकार

कोरोना अपडेट: देश में 84 दिन बाद 4 हज़ार से ज़्यादा नए मामले दर्ज 

कोरोना अपडेट: देश में कोरोना के मामलों में 35 फ़ीसदी की बढ़ोतरी, 24 घंटों में दर्ज हुए 3,712 मामले 

कोरोना अपडेट: देश में नए मामलों में करीब 16 फ़ीसदी की गिरावट

कोरोना अपडेट: देश में 24 घंटों में कोरोना के 2,706 नए मामले, 25 लोगों की मौत

कोरोना अपडेट: देश में 24 घंटों में 2,685 नए मामले दर्ज

कोरोना अपडेट: देश में पिछले 24 घंटों में कोरोना के 2,710 नए मामले, 14 लोगों की मौत

महामारी के दौर में बंपर कमाई करती रहीं फार्मा, ऑयल और टेक्नोलोजी की कंपनियां


बाकी खबरें

  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    दिल्ली उच्च न्यायालय ने क़ुतुब मीनार परिसर के पास मस्जिद में नमाज़ रोकने के ख़िलाफ़ याचिका को तत्काल सूचीबद्ध करने से इनकार किया
    06 Jun 2022
    वक्फ की ओर से प्रस्तुत अधिवक्ता ने कोर्ट को बताया कि यह एक जीवंत मस्जिद है, जो कि एक राजपत्रित वक्फ संपत्ति भी है, जहां लोग नियमित रूप से नमाज अदा कर रहे थे। हालांकि, अचानक 15 मई को भारतीय पुरातत्व…
  • भाषा
    उत्तरकाशी हादसा: मध्य प्रदेश के 26 श्रद्धालुओं की मौत,  वायुसेना के विमान से पहुंचाए जाएंगे मृतकों के शव
    06 Jun 2022
    घटनास्थल का निरीक्षण करने के बाद शिवराज ने कहा कि मृतकों के शव जल्दी उनके घर पहुंचाने के लिए उन्होंने रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह से वायुसेना का विमान उपलब्ध कराने का अनुरोध किया था, जो स्वीकार कर लिया…
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    आजमगढ़ उप-चुनाव: भाजपा के निरहुआ के सामने होंगे धर्मेंद्र यादव
    06 Jun 2022
    23 जून को उपचुनाव होने हैं, ऐसे में तमाम नामों की अटकलों के बाद समाजवादी पार्टी ने धर्मेंद्र यादव पर फाइनल मुहर लगा दी है। वहीं धर्मेंद्र के सामने भोजपुरी सुपरस्टार भाजपा के टिकट पर मैदान में हैं।
  • भाषा
    ब्रिटेन के प्रधानमंत्री जॉनसन ‘पार्टीगेट’ मामले को लेकर अविश्वास प्रस्ताव का करेंगे सामना
    06 Jun 2022
    समिति द्वारा प्राप्त अविश्वास संबंधी पत्रों के प्रभारी सर ग्राहम ब्रैडी ने बताया कि ‘टोरी’ संसदीय दल के 54 सांसद (15 प्रतिशत) इसकी मांग कर रहे हैं और सोमवार शाम ‘हाउस ऑफ कॉमन्स’ में इसे रखा जाएगा।
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    कोरोना अपडेट: देश में कोरोना ने फिर पकड़ी रफ़्तार, 24 घंटों में 4,518 दर्ज़ किए गए 
    06 Jun 2022
    देश में कोरोना के मामलों में आज क़रीब 6 फ़ीसदी की बढ़ोतरी हुई है और क़रीब ढाई महीने बाद एक्टिव मामलों की संख्या बढ़कर 25 हज़ार से ज़्यादा 25,782 हो गयी है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License