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आंदोलन: 27 सितंबर का भारत-बंद ऐतिहासिक होगा, राष्ट्रीय बेरोज़गार दिवस ने दिखाई झलक
यह माहौल संकेत है कि इस बार का भारत-बंद ऐतिहासिक होगा। ऐसी राष्ट्रव्यापी, चौतरफा हलचल पहले शायद ही किसी भारत-बंद के पहले देखी गई हो। यह भी गौरतलब है कि 1 साल के अंदर यह तीसरा भारत बंद है, 25 सितंबर, 8 दिसम्बर और अब 27 सितंबर।
लाल बहादुर सिंह
18 Sep 2021
 Bharat Bandh of September 27

भारत-बंद के ठीक पहले मोदी जी के जन्मदिन को छात्र-युवाओं ने राष्ट्रीय बेरोजगार दिवस/जुमला दिवस के रूप में बम्पर कामयाब बनाकर एक झलक दिखा दी कि अबकी बार का भारत-बंद कैसा होगा।

17 सितंबर को "राष्ट्रीयबेरोजगारदिवस "  "NationalUnemploymentDay ",  "ModiRojgarDo" के हैशटैग  दिन भर टॉप ट्रेंड करते रहे और  "HappyBDayModiji" उसके आगे दूर-दूर

तक कहीं ठहर न सका। बेरोजगारी से सम्बंधित हैशटैग जहां लगभग 40 लाख बार रीट्वीट किये गए, वहीं "HappyBDayModiji" 8 लाख भी पार न कर सका। नौजवानों ने तमाम शहरों में मशाल जुलूस निकालकर, धरना-प्रदर्शन-मार्च आयोजित कर सरकार को चेतावनी दी, हर साल 2 करोड़ नौकरियों का हिसाब मांगा, देश में जगह जगह ताली-थाली बजाकर " जुमला दिवस " मनाया।

इसे पढ़ें:  ‘राष्ट्रीय बेरोज़गार दिवस’ मनाने का मौका देने के लिए थैंक्यू मोदी जी! हैप्पी बर्थडे!!

यह माहौल संकेत है कि इस बार का भारत-बंद ऐतिहासिक होगा। ऐसी राष्ट्रव्यापी, चौतरफा हलचल पहले शायद ही किसी भारत-बंद के पहले देखी गई हो। यह भी गौरतलब है कि 1 साल के अंदर यह तीसरा भारत बंद है, 25 सितंबर, 8 दिसम्बर और अब 27 सितंबर।

मूलतः किसानों द्वारा आहूत इस बंद को तमाम श्रमिक, छात्र-युवा, व्यापारी संगठनों,नागरिक समाज, जनसंगठनों, राजनैतिक ताकतों ने अपना भी कार्यक्रम बना लिया है और वे इसे सफल बनाने में पूरी ताकत से लग गए हैं।

मोदी सरकार द्वारा देश पर थोपी गयी अभूतपूर्व त्रासदी के खिलाफ उमड़ते जनअसंतोष की यह अभिव्यक्ति है। 

दरअसल, UP का चुनाव नजदीक आने के साथ पूरे देश का माहौल सरगर्म हो उठा है। क्योंकि UP महज एक और राज्य नहीं है, इस बार का UP चुनाव तो मिनी आम चुनाव ही होगा, जो 24 के लिए दिल्ली की तकदीर  तय कर देगा। इस चुनाव में हमारे लोकतंत्र का भविष्य दांव पर है।

स्वाभाविक रूप से सभी प्लेयर्स के लिए रंगमंच का केंद्र अब UP बन चुका है।

सर्वोच्च संवैधानिक पदों पर बैठे भाजपा नेता कानून-संविधान की धज्जियां उड़ाते अपने नफरती खेल पर पूरी बेशर्मी, नंगई के साथ उतर आये हैं, जिसका अगर कोई संवैधानिक संस्था संज्ञान लेने की हिम्मत दिखाये तो बड़े बड़े पदधारी सूरमा जेल पहुँच जाय।

योगी ने नफरती जुमलेबाजी के अपने पुराने रेकॉर्ड से भी नीचे उतरते हुए अब्बाजान का नया तराना छेड़ा है तो मोदी ने एक प्रगतिशील, स्वतंत्रता सेनानी को जाट बना कर, एक जाति में reduce कर रख दिया, यह जाटों के सम्मान के नाम पर उस किसान-आंदोलन को कमजोर करने की कवायद थी, जिसमें जाट किसानों की भारी भागेदारी हो रही है, और यह सब किया जा रहा है अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के contrast में, उससे प्रतिद्वंद्विता में और उसे कटघरे में खड़ा करने के लिए। यह सचमुच कितनी बड़ी त्रासदी है जिस राजा महेंद्र प्रताप ने काबुल में आज़ाद हिंदुस्तान की निर्वासित सरकार के राष्ट्रपति के बतौर बरकतुल्लाह खान को अपना प्रधानमंत्री नियुक्त किया था, स्वयं AMU से पढ़ाई की थी और AMU के लिए जमीन दान की थी, समाजवाद के समर्थक थे, सोवियत रूस जाकर कभी लेनिन से मिले थे,  जिन्होंने मथुरा से 1957 में निर्दल चुनाव जीतकर संघ के सबसे लोकप्रिय नेता अटल बिहारी वाजपेयी की जमानत जब्त करवा दी थी, उनके नाम का इस्तेमाल साम्प्रदयिक ध्रुवीकरण के लिए किया जा रहा है, पहले सीधे AMU का नाम ही बदलकर उनके नाम पर करने का शिगूफा छोड़ा गया, अब अलीगढ़ को योगी जी, हरीगढ़ बनाना चाहते हैं!

इसे पढ़ें : राजा महेंद्र प्रतापः इतिहास से मोदी का वही खिलवाड़ 

योगी ने तो अपने नफरती अभियान को सीधे गरीबों को बांटे जाने वाले अनाज से जोड़ दिया, यह गरीबों को अनाज की  चाशनी में नफरत का जहर बांटने का उपक्रम बन गया है !

यह मौजूदा दौर की त्रासदी का ही एक आयाम है कि तमाम विपक्षी दल भी इस विभाजनकारी अभियान का मुंहतोड़ जवाब देने की बजाय, समर्पण की मुद्रा में पहुँच जा रहे हैं और संघ-भाजपा की पिच पर ही उससे मुकाबले की desperate कोशिश कर रहे हैं। अनेक दलों के अभियान अयोध्या मन्दिर दर्शन से शुरू हो रहे हैं और तमाम दलों की ओर से कथित प्रबुद्ध सम्मेलनों की झड़ी लग गयी है।

उनके रणनीतिकार इस बात को समझ पाने में असमर्थ हैं कि संघ-भाजपा ने राष्ट्रवाद के सवाल को पाकिस्तान-तालिबान-आतंकवाद से जोड़कर मुसलमान विरोधी नफरत और बहुसंख्यकवाद के जिस मुकाम पर पहुंचा दिया है, वहां धर्म व संस्कृति के सवाल पर कोई सफाई देकर और उनसे इस मोर्चे पर प्रतिस्पर्धा करके वे उनका मुकाबला नहीं कर सकते, उल्टे उनके गढ़े गए नैरेटिव और एजेंडा को ही वैधता प्रदान कर रहे हैं।

अगर यही विमर्श पूरे चुनावी माहौल में छा जाय तो मंदिर, धारा 370, तीन तलाक कानून की चैंपियन " हिन्दू हृदय सम्राट " मोदी-योगी की भाजपा को आप अयोध्या मन्दिर दर्शन, तिरंगा यात्रा, प्रबुद्ध सम्मेलन, रामराज्य, परशुराम मूर्ति, अपने को पक्का हिन्दू, जनेऊधारी हनुमान-राम-शिव-कृष्ण भक्त साबित करके भी एक खरोंच तक नहीं लगा सकते, उसे हराने की बात तो बहुत दूर है। दरअसल, यह 2014 से 2019 तक के अनेक चुनावों में आजमाया पिटा हुआ नुस्खा है।

सच यह है कि इनसे लड़ने का रास्ता वही है जो किसान आंदोलन ने दिखाया है। जनता के वास्तविक हितों के सवाल पर उनकी जुझारू एकता और संघर्ष के माध्यम से सरकार का समग्र भंडाफोड़-उसकी कारपोरेटपरस्त आर्थिक नीति और विभाजनकारी राजनीति दोनों का। यही वह रास्ता है जो जनता को इनकी कथित सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की विषाक्त विचारधारा की असलियत को समझने में समर्थ बनाएगा और उससे हटाकर जनतांत्रिक विचार और राजनीति की ओर प्रेरित करेगा। 

किसान आंदोलन ने न सिर्फ धर्म, जाति, राज्य-भाषा, लिंग सारी विभाजक रेखाओं के पार किसानों की लड़ाकू एकता कायम की है, बल्कि उन्हें यह समझने में सक्षम बनाया है कि भाजपा-मोदी-योगी उनके नहीं अम्बानी-अडानी के हितैषी हैं और उन्हें धर्म-जाति-क्षेत्र के आधार पर इसीलिए बांट कर, लड़ा कर रखना चाहते हैं ताकि वे अपने हितों के लिए एक होकर लड़ न सकें, उनकी " बांटो और राज करो" की नीति चलती रहे और उसकी आड़ में पूरे देश पर अम्बानी-अडानी का कब्जा होता जाय।

किसान आंदोलन ने सुसंगत लोकतान्त्रिक  दिशा पर बढ़ते हुए न सिर्फ संघ-भाजपा के विभाजनकारी विमर्श को पीछे ढकेल दिया, वरन उसकी असलियत समझा कर किसानों को उसके खिलाफ खड़ा कर दिया, उनके जीवन के वास्तविक सवालों पर लोकतान्त्रिक विमर्श को forefront पर ला दिया और सरकार के किसान विरोधी चरित्र का पूरी तरह पर्दाफाश कर उन्हें भाजपा को हराने के लिए लामबंद कर दिया।

मुजफ्फरनगर की महारैली से " अल्ला-हू-अकबर-हर हर महादेव " का उद्घोष, देश बचाने के लिए भारत बंद का आह्वान तथा भाजपा को हराने के लिए मिशन UP का एलान इसी आत्मविश्वास भरी, साहसिक रणनीति के तीन आयाम हैं, जिसकी परीक्षा बेशक उत्तर प्रदेश के ‘कुरुक्षेत्र’ में होने जा रही है।

NCRB के ताज़ा आंकड़े सोशल मीडिया में वायरल हो रहे हैं, जिनके अनुसार UP अपराध, हत्या, बलात्कार से लेकर महिलाओं, दलितों के खिलाफ होने वाले अत्याचार के मामलों में देश में नम्बर एक पर है, जब कि योगी जी सुरक्षा को ही अपनी सबसे बड़ी उपलब्धि बताते हैं और मोदी जी भी पहले BHU में, और अभी अलीगढ़ में आकर इसके लिए उनकी भूरि भूरि प्रशंसा कर गए। पुलिस-माफिया राज में लोगों के लिए मुंह खोल पाना और सम्मान के साथ जी पाना दूभर हो गया। हाथरस बलात्कार-हत्याकांड की पीड़िता दलित बेटी के परिजन साल भर बाद भी उसके लिए न्याय का इंतज़ार कर रहे हैं। कोविड की तबाही को UP की जनता न भूली है, न कभी भूल पाएगी, जब हर गांव, हर मुहल्ले से लोगों के प्रियजनों की लाशें उठीं। जो जिंदा बचे हैं, महंगाई ने उनका जीना मुहाल कर दिया है। 

किसानों की खेती से होने वाली आमदनी दोगुना करने का वायदा तो नहीं पूरा हुआ, किसानों पर कर्ज जरूर दोगुना हो चला है।  2012 को base year मानकर inflation के साथ adjust किया जाय तो प्रति परिवार कृषि से होने वाली मासिक आय 2013 में 2770 से घटकर 2019 में 2645 रह गयी, अर्थात  6 साल में पहले से भी 5% घट गई, दूसरी ओर इसी दौरान हर परिवार पर कर्ज़ जरूर 6 साल में 47 हजार से बढ़कर 74 हजार हो गया।

बेरोजगारी का आलम यह है कि स्वयं सरकार की संसद में स्वीकारोक्ति के अनुसार 24 लाख सरकारी पड़ खाली हैं, जिनमें 8 लाख केंद्र सरकार के पद हैं। 2 करोड़ प्रति वर्ष रोजगार का वायदा करके मोदी सरकार ने बेकारी को 45 साल के सर्वोच्च स्तर पर पहुंचा दिया है। NCRB के आंकड़ों के अनुसार बेरोजगारी के कारण होने वाली आत्महत्याएं 2016 से 2019 के बीच 24% बढ़ गईं।छात्र-युवा-श्रमिक अपने को छला हुआ महसूस कर रहे हैं।

आज सारी राष्ट्रीय सम्पदा मोदी जी के चहेते कारपोरेट घरानों को सौंपी जा रही है।  प्रो. प्रभात पटनायक कहते हैं, " रेलवे स्टेशनों, बंदरगाहों, हवाई अड्डों से लेकर स्टेडियमों तक, बेशुमार सार्वजनिक परिसंपत्तियों का ‘मुद्रीकरण’ किया जा रहा है यानी उन्हें निजी ऑपरेटरों के हाथों में पकड़ाकर, माल ( commodity ) में तब्दील किया जा रहा है।....वैक्सीन से लेकर जलियाँवाला बाग और मंदिर तक को माल में तब्दील कर दिया गया।"

"चीजों को माल में तब्दील करने का ऐसा हरेक कदम, आम लोगों को इसके उपयोग से वंचित किये जाने का, नागरिकता के दायरे के संकुचित किये जाने का कदम है। इस तरह मौजूदा सरकार, हर चीज को माल में तब्दील करने की ऐसी मुहिम में जुट गयी है, जो नागरिकों के समान जनतांत्रिक अधिकारों की जगह पर, आर्थिक रंगभेद को कायम करने जा रही है।... बुनियादी अर्थ में यह जनतंत्रविरोधी बदलाव है।"

आज इस जनतन्त्रविरोधी सरकार को सबक सिखाने का एक ही रास्ता है किसान आंदोलन की लहर को गांव-गांव तक पहुंचाना, छात्र-युवा आंदोलन के सन्देश को हर कैम्पस-कालेज, हर नौजवान तक ले जाना, अर्थव्यवस्था-व्यापार-कारोबार के ध्वंस, शिक्षा-स्वास्थ्य व्यवस्था की तबाही, गरीबों के मुंह का निवाला छीनती महँगाई के खिलाफ विराट राष्ट्रीय जनान्दोलन। संघ-भाजपा के एजेंडा पर कोई समर्पण, तुष्टिकरण, प्रतिस्पर्धा, चुप्पी इस लड़ाई को कमजोर करेगी।

27 सितंबर शहीदे-आज़म भगत सिंह का जन्मदिन भी है, किसानों-मजदूरों का राज बनाने के जिनके रैडिकल विचारों और सपने का मूर्तिमान स्वरूप है ऐतिहासिक किसान-आंदोलन। उस दिन का भारत-बंद देश बचाने और जनता की आजीविका तथा लोकतन्त्र की रक्षा की निर्णायक लड़ाई में मील का पत्थर साबित होगा।

(लेखक इलाहाबाद विश्वविद्यालय छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

इसे भी देखें: किसानों का भारत बंद सरकार की नींद तोड़ेगा

Bharat Bandh of September 27
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