उत्तर प्रदेश में दादरी के बिसाहड़ा गांव के अख़लाक़ हत्याकांड को आज पूरे 6 बरस हो गए हैं। 28 सितंबर, 2015 को गोमांस की अफ़वाह फैलाकर जुटाई गई एक उग्र भीड़ ने उन्हें घर में घुसकर पीट-पीटकर मार डाला था। आज 6 बरस बाद भी उनके परिवार को इंसाफ़ का इंतज़ार है...। उनके बेटे को एक प्रतीक के तौर पर लेकर उनके परिवार के दुख-दर्द और संघर्ष की कहानी, एक कविता (ग़ज़ल) के तौर पर कहने की कोशिश की गई है।
इस कविता में आप अख़लाक़ का बेटा की जगह पहलू ख़ान का बेटा या बेटी भी रख सकते हैं और तबरेज़ अंसारी की पत्नी या भाई-बहन को भी, या ऐसे किसी और पीड़ित को..उनकी कहानी भी शायद ही इससे अलग हो।
अख़लाक़ का बेटा
ख़ुद अपने आँसू पोंछता अख़लाक़ का बेटा
हम सबसे हँसके बोलता अख़लाक़ का बेटा
हर रोज़ ख़ुद से जूझता अख़लाक़ का बेटा
ख़ामोश रहके चीख़ता अख़लाक़ का बेटा
क्या आ गए हैं मुल्क में सबके ही अच्छे दिन?
सबसे यही है पूछता अख़लाक़ का बेटा
अब साथ औ’ विश्वास का नारा नया मिला
क्या अर्थ है? क्या पूछता! अख़लाक़ का बेटा
हम डर गए, आहत हुए कुछ गालियों से ही
क्या क्या न रोज़ झेलता अख़लाक़ का बेटा
तुम भी कभी मिले हो? मिलना कभी ज़रूर
कैसे है जुड़ता-टूटता अख़लाक़ का बेटा
जिस दिन से हमने उसके पिता छीन लिए हैं
तब से न रोता, रूठता अख़लाक़ का बेटा
लिंचिंग की ख़बर पढ़के बहुत देर से चुप है
किससे भला क्या बोलता अख़लाक़ का बेटा
गायें तो सलामत हैं ‘सरल’ मुल्क के अंदर?
मुझसे यही है पूछता अख़लाक़ का बेटा