NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
आंदोलन
साहित्य-संस्कृति
भारत
राजनीति
अम्बेडकरवादी विरोध गीत और 'काउंटर पब्लिक' का निर्माण
शाहिरी के माध्यम से अम्बेडकर के समय में उनके संघर्ष को प्रसार करने की कोशिश की गई; हालांकि, समय के साथ भेदभाव के रूप बदल गए हैं और इससे निपटने के लिए नई रणनीतियों, नई आवाज़ों और प्रतिरोध के नए रूपों की ज़रूरत है।
प्रशांत इंगोले
14 Oct 2019
Ambedkarite Protest Music

ब्राह्मणचया घरी लिहिना [ब्राह्मण के घर में आप पढ़ते- लिखते हैं]

कुनब्या घरी दाना [किसान के घर में आप कृषि सीखते हैं]

महारा घरी गाना [महारों (दलितों) के घर आप गीत सीखते हैं]

(एक मराठी कहावत)

भले ही कहा जाता है कि 1970 के दलित आंदोलन ने सामाजिक सक्रियता के लिए एक स्थान बनाया है लेकिन इसे बड़े पैमाने पर साहित्यिक आंदोलन के रूप में देखा जाता है। शर्मिला रेगे लिखती हैं, "अभिव्यक्ति की दलित 'सांस्कृतिक' स्वरूपों की अकादमिक और राजनीतिक 'अदृश्यता' रही है जो साहित्य की श्रेणी के तहत 'सामान्य धारणा के रूप' में बनी हुई है।" भारत में सामाजिक विज्ञान ने दलित राजनीति और संस्कृति के बीच की कड़ी को समझने के लिए ज़्यादा ध्यान नहीं दिया है।

आदर्श शिंदे, संभाजी भगत, शीतल साठे और सचिन माली, कडुबाई खरात, गिन्नी माही, सुमित समोस आदि जैसे कलाकारों द्वारा तत्कालीन अम्बेडकरवादी विरोध संगीत में इस कड़ी को कोई भी देख सकता है। इनके संगीत स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व के समाज के भीमराव अम्बेडकर के दृष्टिकोण के बारे में हैं। अम्बेडकर की राजनीति और दर्शन के प्रसार में इनके वास्तविक योगदान के बारे में अभी भी किसी को संदेह हो सकता है। वे बड़े पैमाने पर कुलीन शैक्षणिक स्थान के लिए 'काउंटर पब्लिक' के निर्माण में कैसे मदद करते हैं? अम्बेडकरवादी संगीत मौजूदा सांस्कृतिक प्रभाव से कैसे लड़ता है?

शोषितों के अधिकारों के लिए अम्बेडकर के 1920 के दशक के दावे को समझा जा सकता है। यह महाराष्ट्र के महाड़ में चावदार टैंक सत्याग्रह के उनके संगठन और दलितों को संसाधनों और स्थान तक पहुंच से वंचित करने के ख़िलाफ़ कालाराम मंदिर प्रवेश आंदोलन में दिखाई देता है। इसके अलावा दलितों और महिलाओं के सदियों से चले आ रहे अपमान के विरोध में मनुस्मृति को जलाना भी मूलपाठ में उल्लेखित था। आंदोलनों के अलावा, अम्बेडकर ने मूकनायक (1920), बहिश्रुत भारत (1929), जनता (1930) और प्रबुद्ध भारत जैसे अख़बारों को भी चलाया जिनमें दलितों द्वारा सामना किए जाने वाले मुद्दों के बारे में चर्चा की गई।

जाति के विनाश (एन्निहिलेशन ऑफ़ कास्ट) के माध्यम से सामाजिक समानता के लिए अम्बेडकर के संघर्ष को अभिव्यक्ति के विभिन्न रूपों के माध्यम से अलग अलग तरह से समझा जा सकता है। दलित पैंथर्स मूवमेंट (1972) ने साहित्यिक और राजनीतिक के ज़रिये इस आंदोलन को मज़बूत किया। इसी तरह, 1990 से जाति के सवाल और अम्बेडकर के विचार को मान्यता मिलने लगी जिनके वे हक़दार थे और अब वैश्विक परिघटना बन गए हैं। अम्बेडकरवादी विरोध संगीत ने दलितों की गरिमा को लेकर जागरुकता फैलाने और चेतना जगाने के लिए कई तरीक़ों से योगदान दिया है। संगीत की यह शैली देश में जाति के ख़िलाफ़ अभियान चलाने में सफल रही है। हालांकि संविधान के अनुसार छुआछूत और जाति-आधारित भेदभाव निषिद्ध है लेकिन जाति अभी भी एक वास्तविकता और व्याप्त मुद्दा है जो विभिन्न सामाजिक व्यवस्थाओं में कई तरीक़ों से असमानता पैदा करता है।
image 1_1.PNG

Dalit Panthers Movement (1972)

समाजशास्त्री गेल ओमवेट ने अपनी पुस्तक दलित एंड डेमोक्रैटिक रिवोल्यूशन : डॉ.अम्बेडकर एंड दलित मूवमेंड इन कॉलोनियल इंडिया में इस प्रकार परिभाषित किया है:

"मार्क्सवाद की तरह 'अम्बेडकरवाद' आज भारत में एक क्रियाशील शक्ति है: यह दलित आंदोलन की विचारधारा को परिभाषित करता है और बहुत हद तक यह एक जाति-विरोधी आंदोलन को भी... वास्तव में, भारत में अम्बेडकरवाद के विकास को एक 'लोकतांत्रिक क्रांति' की विशेष अभिव्यक्ति के रूप में देखा जा सकता है, वास्तव में भारतीय परिस्थितियों में संभवतः सबसे अधिक सुसंगत (निश्चित रूप से एक सर्वहारा समाजवाद की तुलना में अधिक सुसंगत जिसने सांस्कृतिक-जाति के मुद्दों की अनदेखी की और 'हरिजन’ और ’हिंदू’ जैसी पहचान को स्वीकार किया), और एक परिस्थिति जो सबसे उत्पीड़ित वर्गों के अनुभवों और परिस्थितियों से उत्पन्न हुई है।"

उन्होंने अंग्रेज़ों के साथ-साथ भारतीय कुलीनों का भी मुक़ाबला किया। श्रम मंत्री (वायसराय की कार्यकारी परिषद: 9 जुलाई 1942) के तौर पर और भारतीय संविधान के निर्माण में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका अविस्मरणीय है। उन्होंने हिंदू कोड बिल पारित नहीं होने पर जवाहरलाल नेहरू की एसेंबली से क़ानून मंत्री के रूप में अपने पद से इस्तीफ़ा दे दिया। अम्बेडकर की शिक्षा के आधार पर सामाजिक रूप से उत्पीड़ितों की लामबंदी और आज की तरह अम्बेडकर के बाद के काल में उनके दर्शन के विकास को “अम्बेडकरवाद” नामक राजनीतिक आंदोलन के रूप में देखा जाना चाहिए। अम्बेडकरवाद शब्द का इस्तेमाल उनके सामाजिक-राजनीतिक मुक्ति के लिए उत्पीड़ितों के प्रतिरोध के तरक़ीब के लिए किया जा सकता है।

यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि भारतीय शैक्षणिक स्थानों में यह असमानता और जाति-आधारित भेदभाव है जिसने दलित 'काउंटर-पब्लिक' को जन्म दिया है। अम्बेडकरवाद को अम्बेडकरवादियों द्वारा विभिन्न माध्यमों में से एक संगीत के रुप में इस्तेमालकिया जाता है। जाति पेशेवर है जो न केवल "श्रम के विभाजन" के माध्यम से बल्कि "मज़दूरों के विभाजन" के माध्यम से काम करती है। इसकी चर्चा अम्बेडकर ने अपने भाषण एनहिलेशन ऑफ़ कास्ट (1936) में की है। जाति के सांस्कृतिक संदर्भ में, ब्राह्मण ज्ञान पर अधिकार रखते हैं जबकि "अछूत" (दलित) उनकी जाति द्वारा दिए गए काम करते हैं।


अम्बेडकरवादी विरोध संगीत अम्बेडकर के बाद की परिघटना के रूप में पोवादास/शाहिरी, लोक भजन से लेकर बड़े पैमाने पर तैयार किए गए कैसेट्स से विकसित हुआ है और अब रैप और पॉप गीतों तक पहुंच गया है। शाहिरी के माध्यम से अम्बेडकर के समय में उनके संघर्ष को प्रसारित करने की कोशिश की गई; हालांकि, समय के साथ भेदभाव के रूप बदल गए हैं और इससे निपटने के लिए नई रणनीतियों, नई आवाज़ों और प्रतिरोध के नए रूपों की ज़रूरत है। समकालीन दलित-अम्बेडकरवादी विरोध के गीतों को विज़ुअल मीडिया में रैप और पॉप-गीत के रूप में विकसित किया गया है।

अगर हम आनंद पटवर्धन की जय भीम कॉमरेड (2012) पर नज़र डालें तो यह मुख्य रूप से जाति आधारित हिंसा की निरंतरता पर आधारित एक डॉक्यूमेंट्री है जो 1997 की रमाबाई नगर हत्याओं पर आधारित थी लेकिन अम्बेडकरवादी विरोध संगीत का इस्तेमाल एक उप जाति के रूप में किया जाता है। इस डॉक्यूमेंट्री में इस्तेमाल किया गया संगीत हाशिए पर मौजूद लोगों की सामाजिक स्थितियों और अम्बेडकरवादी-मार्क्सवादी वैचारिक मैत्री की व्याख्या करता है।
image 2_2.PNG
अम्बेडकरवादी विरोध संगीत ने भी डिजिटलमंच पर अपनी उपस्थिति दर्ज की है। सांस्कृतिक कार्यकर्ता संभाजी भगत द वॉर बीट नामक एक यूट्यूब चैनल चलाते हैं और उनका पहला गीत, ब्लू नेशन, पारंपरिक और आधुनिक उपकरणों के संयोजन के साथ रैप और लोक का एक मिश्रण है। ये गीत जो "आज़ादी के प्रेमियों" का एक आह्वान है, यह जय भीम के महत्व की व्याख्या करता है। जय भीम अम्बेडकरवादियों का लोकप्रिय नारा है, जो दलितों की हर जगह समान हिस्सेदारी के लिए लड़ाई को दर्शाता है।

द वार बीट का दूसरा गीत, डियर डेमोक्रेसी सचिन माली द्वारा लिखा गया था और शीतल साठे व अन्य द्वारा गाया गया था। नवायान महाजलसा एक अन्य लोकप्रिय यूट्यूब चैनल है जो जनता से "लोकतांत्रिक क्षेत्रों" के बारे में चर्चा करता है। जनमत को बढ़ावा देने के लिए संगीत की इस शैली की क्षमता के कारण यह तर्क दिया जा सकता है कि विज़ुअल मीडिया की सहायता से ऐसे गीत अम्बेडकरवादी गायकों को संगठित करने में मदद करते हैं।

नस्लवाद, नस्लीय भेदभाव, जेनोफ़ोबिया और इससे संबंधित असहिष्णुता पर डरबन सम्मेलन(2001) इस मामले में बेहद महत्वपूर्ण था कि यह कैसे एक अंतरराष्ट्रीय मंच पर जातिगत भेदभाव के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने की कोशिश थी। एक वैकल्पिक सांस्कृतिक संवाद करने में विरोध के ये गीत जनता को संगठित करने में मदद करते हैं। यह परिघटना 1990 के दशक में शुरू हुई जब दलित युवाओं ने देश के कुलीन शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश किया।

उनके मामलों को बहुजन महासंघ, रिपब्लिकन पार्टी ऑफ़ इंडिया (आरपीआई) और बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) जैसी समकालीन राजनीतिक संरचनाओं के माध्यम से भी उठाया गया है। 2016 में हैदराबाद विश्वविद्यालय में रोहित वेमुला की आत्महत्या के बाद अम्बेडकरवादी संगीत ने एक नया मोड़ ले लिया। पत्रकार राही गायकवाड़ ने अपने लेख "एन इक्वल म्यूज़िक" में तरन्नुम बौद्ध का हवाला दिया है: "अब तक जो हमारे साथ हुआ उसका ग़म नहीं
लेकिन अब ज़माने को दिखाना है, हम किसी से कम नहीं"

सौजन्य: इंडियन कल्चरल फ़ोरम

Ambedkar
Music Protest
Cultural Resistance
Dalit Cultural Resistance
sambhaji bhagat
Dalit Panthers
Dalit movement
Caste System
caste discrimination
Rohith Vemula
Jai Bhim Comrade

Related Stories

विचारों की लड़ाई: पीतल से बना अंबेडकर सिक्का बनाम लोहे से बना स्टैच्यू ऑफ़ यूनिटी

किसान आंदोलन और दलित आंदोलन के बीच एकता के गहरे राजनीतिक निहितार्थ हैं

एक नज़र इधर भी : अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस और मैला ढोती महिलाएं

शाहीन बाग़ : सीएए विरोध के बीच बच्चों को मिल रही है इंक़लाबी तालीम

आख़िर क्या हो रहा है माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय में?

फ़ातिमा लतीफ़ :दिल्ली में छात्रों ने की जांच की मांग

त्वरित टिप्पणी :  सुप्रीम कोर्ट ने अपनी 'ग़लती' सुधारी

दलित आंदोलन की जीत: सुप्रीम कोर्ट ने मार्च 2018 के फैसले को वापस लिया


बाकी खबरें

  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    दिल्ली उच्च न्यायालय ने क़ुतुब मीनार परिसर के पास मस्जिद में नमाज़ रोकने के ख़िलाफ़ याचिका को तत्काल सूचीबद्ध करने से इनकार किया
    06 Jun 2022
    वक्फ की ओर से प्रस्तुत अधिवक्ता ने कोर्ट को बताया कि यह एक जीवंत मस्जिद है, जो कि एक राजपत्रित वक्फ संपत्ति भी है, जहां लोग नियमित रूप से नमाज अदा कर रहे थे। हालांकि, अचानक 15 मई को भारतीय पुरातत्व…
  • भाषा
    उत्तरकाशी हादसा: मध्य प्रदेश के 26 श्रद्धालुओं की मौत,  वायुसेना के विमान से पहुंचाए जाएंगे मृतकों के शव
    06 Jun 2022
    घटनास्थल का निरीक्षण करने के बाद शिवराज ने कहा कि मृतकों के शव जल्दी उनके घर पहुंचाने के लिए उन्होंने रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह से वायुसेना का विमान उपलब्ध कराने का अनुरोध किया था, जो स्वीकार कर लिया…
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    आजमगढ़ उप-चुनाव: भाजपा के निरहुआ के सामने होंगे धर्मेंद्र यादव
    06 Jun 2022
    23 जून को उपचुनाव होने हैं, ऐसे में तमाम नामों की अटकलों के बाद समाजवादी पार्टी ने धर्मेंद्र यादव पर फाइनल मुहर लगा दी है। वहीं धर्मेंद्र के सामने भोजपुरी सुपरस्टार भाजपा के टिकट पर मैदान में हैं।
  • भाषा
    ब्रिटेन के प्रधानमंत्री जॉनसन ‘पार्टीगेट’ मामले को लेकर अविश्वास प्रस्ताव का करेंगे सामना
    06 Jun 2022
    समिति द्वारा प्राप्त अविश्वास संबंधी पत्रों के प्रभारी सर ग्राहम ब्रैडी ने बताया कि ‘टोरी’ संसदीय दल के 54 सांसद (15 प्रतिशत) इसकी मांग कर रहे हैं और सोमवार शाम ‘हाउस ऑफ कॉमन्स’ में इसे रखा जाएगा।
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    कोरोना अपडेट: देश में कोरोना ने फिर पकड़ी रफ़्तार, 24 घंटों में 4,518 दर्ज़ किए गए 
    06 Jun 2022
    देश में कोरोना के मामलों में आज क़रीब 6 फ़ीसदी की बढ़ोतरी हुई है और क़रीब ढाई महीने बाद एक्टिव मामलों की संख्या बढ़कर 25 हज़ार से ज़्यादा 25,782 हो गयी है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License