NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
अंतरराष्ट्रीय
अमेरिका
विश्लेषण: मोदी की बेचारगी से भरी अमेरिका यात्रा
भारत की कूटनीति की ऐसी पराजय पहली बार हुई है कि दुनिया के किसी देश की नज़र इस ओर नहीं है कि उसकी क्या राय है।
अनिल सिन्हा
27 Sep 2021
modi in america

भारतीय मीडिया में प्रधानमंत्री मोदी की अमेरिकी यात्रा का बुखार उतर चुका है। अमेरिकी मीडिया ने तो इसे जरा भी महत्व नहीं दिया। भारत की कूटनीति की ऐसी पराजय पहली बार हुई है कि दुनिया के किसी देश की नजर इस ओर नहीं है कि उसकी क्या राय है। लेकिन सरकार अपनी गलतियों को सुधारने की कोशिश करती नजर नहीं आ रही है।

मोदी ने बेचारगी से उबरने के लिए कमजोर तरीका अपनाया। उन्होंने बुद्ध और गांधी के देश का प्रतिनिधि बनने के बदले आरएसएस का प्रचारक बनना तय किया और पंडित दीनदयाल उपाध्याय का नाम संयुक्त राष्ट्र के मंच पर ले बैठे।

संघ परिवार के कद्दावर नेता अटल बिहारी वाजपेयी तथा लालकृष्ण आडवाणी को छोटा करने के लिए संघ परिवार की अंदरूनी राजनीति में उपाध्याय की भले ही उपयोगिता हो, वह आजादी के बाद की पीढ़ी को प्रभावित करने वाले डॉ. आंबेडकर, डॉ. लोहिया, आचार्य नरेंद्र देव, जयप्रकाश नारायण, एमएस नंबूदरीपाद जैसी शख्सियतों के सामने कहीं नहीं ठहरते हैं।

अपने एक निष्ठवान कार्यकर्ता और भारतीय जनसंघ के सह-संस्थापक के रूप में उन्हें याद करने का हक संघ परिवार को बेशक है, लेकिन अंतरराष्ट्रीय मंच से उन्हें भारतीय लोकतंत्र को समृद्ध करने वाला बताना देश के इतिहास के साथ अन्याय है। उपाध्याय तो हिंदुत्व और दक्षिणपंथ के सावरकर और गोलवलकर जैसी हस्तियों के मुकाबले भी काफी कम वजन वाले हैं।

असल में, मोदी का बयान लोकतंत्र और सहिष्णुता को लेकर अमेरिकी उपराष्ट्रपति कमला हैरिस और राष्ट्रपति जो बाइडेन की नसीहतों की प्रतिक्रिया के रूप में आया। व्यक्तिगत हताशा और लोकतंत्र में वास्तविक प्रतिबद्धता नहीं होने की वजह से वह आजादी के आंदोलन के विचारों पर आधारित भारतीय लोकतंत्र की समृद्ध परंपरा की वकालत नहीं कर सके।

उन्होंने मौर्य शासन के शिल्पकार चाणक्य को उद्धृत किया जिसके कठोर तथा जनविरोधी चिंतन को खुद उनके शिष्य चंद्रगुप्त मौर्य ने अस्वीकार कर दिया था और जैन धर्म के अनुयायी बन गए थे। मौर्य शासक अशोक महान ने सहिष्णुता और लोक कल्याण की अनोखी मिसाल कायम की और दुनिया के महान सम्राटों की सूची में अपनी जगह बना ली। लोगों के कठोर नियंत्रण, साजिश और विषमता पर आधारित शासन की वकालत करने वाले चाणक्य संघ परिवार के प्रेरणा-पुरूष रहे हैं। विश्व-मंच पर उनके विचारों को रखना किसी भी हालत में उचित नहीं था।

प्राचीन का सब कुछ अच्छा बता कर हम कोई बेहतर संदेश नहीं दे सकते। अगर भारत के पराक्रम को ही रखना है तो अशोक और अकबर बेहतर प्रतीक हैं। प्राचीन काल में ही विवेक और ज्ञान का प्रतीक ढूंढना हो तो बुद्ध से बेहतर कौन हो सकते हैं? 

यह दुर्भाग्य ही है कि अमेरिका ने हमें स्वतंत्रता, मानवाधिकार, सहिष्णुता, विविधता और लोकतांत्रिक संस्थाओं की रक्षा की नसीहत दी और अमेरिकी राष्ट्रपति ने हमारे प्रधानमंत्री को गांधी की याद दिलाई। लेकिन प्रधानमंत्री का जवाब क्या रहा? उन्होंने भारतीय लोकतंत्र की उन खूबियों को गिनाने की कमजोर कोशिश की जिसे मिटाने में उनका संगठन भिड़ा हुआ है। उन्होंने भारत की भाषाई, खानपान तथा रहन-सहन की विविधता का हवाला देकर भारत की सांस्कृतिक बनावट का परिचय देने की कोशिश की और इसे जीवंत लोकतंत्र का सबूत बताया। इसमें भी उन्होंने धार्मिक विविधता का जिक्र छोड़ दिया जिसके बगैर सच्चे लोकतंत्र की कल्पना नहीं की जा सकती। आत्महीनता में उन्हें अपनी व्यक्तिगत हैसियत और तरक्की के कथानक का सहारा लेना पड़ा और कहना पड़ा कि भारत में ऐसा लोकतंत्र है जिसने उनके जैसे बचपन में चाय बेचने वाले को प्रधानमंत्री बनाया। वह यहां तक बोल गए कि वह सबसे लंबे समय तक मुख्यमंत्री रहे, सात साल से प्रधानमंत्री हैं और चौथी बार संयुक्त राष्ट्र महासभा को संबोधित कर रहे हैं। विदेशी धरती को भी आत्मप्रचार और चुनाव-प्रचार के लिए इस्तेमाल करने की कोशिश में प्रधानमंत्री मोदी ने भारतीय विदेश नीति को परिभाषित करने के बदले डिजिटल इंडिया, आवासीय, पेयजल और दूसरी योजनाओें को गिना दिया। उनका भाषण लिखने वाला निश्चित तौर पर कोई खुशामदी व्यक्ति है जिसकी दिलचस्पी भारतीय विदेश नीति के बदले उन्हें महान साबित करने में है।

उनके भाषण में अरब और मध्य पूर्व के बारे में तो क्या दक्षिण एशिया के बारे में भी कुछ नहीं था। ले-देकर आतंकवाद के विरोध की वही बात दोहराई गई है जिसका रोना दुनिया का हर देश अपने-अपने तरीके से रोता रहता। अफगानिस्तान को लेकर भी मोदी ने ऐसा कुछ नहीं कहा है जिसमें कोई दूरदृष्टि दिखाई देती है।  तालिबान के बारे में भी उनकी दुविधा साफ नजर आई। मोदी ने यह भी साफ नहीं किया कि अफगानों को मानवीय सहायता देने को लेकर भारत ने क्या कार्यक्रम बनाया है और अफगानिस्तान के पड़ोसी देशों, रूस और चीन की ओर से चल रहे प्रयासों के बारे में उनकी क्या राय है।

अगर संयुक्त राष्ट्र में दिए गए अन्य राष्ट्राध्यक्षों का भाषण को देखें तो हमें पता चलता है कि भारतीय विदेश नीति कितनी सिकुड़ चुकी है। इसके दायरे में न तो फिलस्तीन है और न अफ्रीका। फिलहाल दुनिया की सबसे बड़ी समस्या जलवायु परिवर्तन की है। लेकिन इसके बारे में भारत की कोई बड़ी भूमिका नहीं रह गई है। एक समय था कि भारत इन वार्ताओं में अहम भूमिका निभाता था। मोदी ने चलते-फिरते ढंग से बता दिया कि भारत अपनी अर्थव्यवस्था और पर्यावरण के बीच संतुलन बनाए है और  रिन्यूएबल एनर्जी का लक्ष्य पाने तथा ग्रीन हाइड्रोजन का हब बनाने में लगा है।

मोदी की अमेरिका यात्रा को लेकर भारतीय मीडिया काफी माहौल बना रहा था। मोदी भी उसे प्रचार का माध्यम बनाना चाहते थे। बाइडेन प्रशासन के ठंडे व्यवहार ने इसे फेल कर दिया। लेकिन मोदी प्रशासन ने अमेरिकी लताड़ को बिना खिसियाहट के सह लिया। अमेरिकी उपराष्ट्रपति तथा राष्ट्रपति के साथ उनकी मुलाकात के बाद जारी संयुक्त बयान में हमारे बिना शर्त पिछलग्गू बनने की बात ही जाहिर होती है। चीन की सामरिक घेराबंदी के उद्देश्य से बने क्वाड का हम एक ऐसे हिस्सेदार बन गए हैं जो इस क्षेत्र में अमेरिका और इंग्लैंड का दबदबा बढ़ाने के लिए है। दक्षिण एशिया, दशिण पूर्व एशिया, मध्य एशिया और अफ्रीका में चीन के बढते प्रभाव को रोकने की कोशिश में विफल होने के बाद हमने अपने को अमेरिकी रहमो-करम पर छोड़ दिया है। हमारी विदेश नीति उस पर इतनी आश्रित हो गई कि हम किसी भी मुद्दे पर अपनी राय खुलकर रखने से बचने लगे हैं। रक्षा सौदों में टेक्नोलॉजी के हस्तांतरण जैसे मुद्दे को उठाना भारत ने पहले से ही छोड़ रखा है, अब उसकी चर्चा करना भी उसके वश का नहीं रहा।

अमेरिकियों को खुश करने के लिए हमने अपने पुराने मित्र ईरान से दूरी बना ली है। अफगानिस्तान में तालिबान के आने के बाद कई तरह के परिवर्तन इस इलाके में हो रहे हैं, लेकिन इसमें हमारी कोई भूमिका नहीं है। संयुक्त राष्ट्र महासभा के दौरान भी भारत की ओर से दिखने वाली कोई कूटनीतिक सक्रियता नहीं थी। भारत-अमेरिका संयुक्त बयान में भी अफगानिस्तान को लेकर हमारी भूमिका आतंक के खिलाफ एक सहयोगी की ही मानी गई है। इसमें भारत की स्वतंत्र भूमिका का कोई संकेत नहीं है। लेकिन अमेरिका के सामने इस आत्म-समर्पण से भी हमें क्या मिलेगा? वह हमें एक नीचे जाता हुआ लोकतंत्र मानने लगा है और उस पर हमारा कोई नैतिक असर नहीं रह गया है।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

Narendra modi
Modi in US
USA
America
Indian Foreign Policy
Kamala Harris
Joe Biden
India-US relations

Related Stories

तिरछी नज़र: सरकार जी के आठ वर्ष

कटाक्ष: मोदी जी का राज और कश्मीरी पंडित

ग्राउंड रिपोर्टः पीएम मोदी का ‘क्योटो’, जहां कब्रिस्तान में सिसक रहीं कई फटेहाल ज़िंदगियां

भारत में धार्मिक असहिष्णुता और पूजा-स्थलों पर हमले को लेकर अमेरिकी रिपोर्ट में फिर उठे सवाल

भारत के निर्यात प्रतिबंध को लेकर चल रही राजनीति

गैर-लोकतांत्रिक शिक्षानीति का बढ़ता विरोध: कर्नाटक के बुद्धिजीवियों ने रास्ता दिखाया

बॉलीवुड को हथियार की तरह इस्तेमाल कर रही है बीजेपी !

PM की इतनी बेअदबी क्यों कर रहे हैं CM? आख़िर कौन है ज़िम्मेदार?

छात्र संसद: "नई शिक्षा नीति आधुनिक युग में एकलव्य बनाने वाला दस्तावेज़"

भाजपा के लिए सिर्फ़ वोट बैंक है मुसलमान?... संसद भेजने से करती है परहेज़


बाकी खबरें

  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    दिल्ली उच्च न्यायालय ने क़ुतुब मीनार परिसर के पास मस्जिद में नमाज़ रोकने के ख़िलाफ़ याचिका को तत्काल सूचीबद्ध करने से इनकार किया
    06 Jun 2022
    वक्फ की ओर से प्रस्तुत अधिवक्ता ने कोर्ट को बताया कि यह एक जीवंत मस्जिद है, जो कि एक राजपत्रित वक्फ संपत्ति भी है, जहां लोग नियमित रूप से नमाज अदा कर रहे थे। हालांकि, अचानक 15 मई को भारतीय पुरातत्व…
  • भाषा
    उत्तरकाशी हादसा: मध्य प्रदेश के 26 श्रद्धालुओं की मौत,  वायुसेना के विमान से पहुंचाए जाएंगे मृतकों के शव
    06 Jun 2022
    घटनास्थल का निरीक्षण करने के बाद शिवराज ने कहा कि मृतकों के शव जल्दी उनके घर पहुंचाने के लिए उन्होंने रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह से वायुसेना का विमान उपलब्ध कराने का अनुरोध किया था, जो स्वीकार कर लिया…
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    आजमगढ़ उप-चुनाव: भाजपा के निरहुआ के सामने होंगे धर्मेंद्र यादव
    06 Jun 2022
    23 जून को उपचुनाव होने हैं, ऐसे में तमाम नामों की अटकलों के बाद समाजवादी पार्टी ने धर्मेंद्र यादव पर फाइनल मुहर लगा दी है। वहीं धर्मेंद्र के सामने भोजपुरी सुपरस्टार भाजपा के टिकट पर मैदान में हैं।
  • भाषा
    ब्रिटेन के प्रधानमंत्री जॉनसन ‘पार्टीगेट’ मामले को लेकर अविश्वास प्रस्ताव का करेंगे सामना
    06 Jun 2022
    समिति द्वारा प्राप्त अविश्वास संबंधी पत्रों के प्रभारी सर ग्राहम ब्रैडी ने बताया कि ‘टोरी’ संसदीय दल के 54 सांसद (15 प्रतिशत) इसकी मांग कर रहे हैं और सोमवार शाम ‘हाउस ऑफ कॉमन्स’ में इसे रखा जाएगा।
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    कोरोना अपडेट: देश में कोरोना ने फिर पकड़ी रफ़्तार, 24 घंटों में 4,518 दर्ज़ किए गए 
    06 Jun 2022
    देश में कोरोना के मामलों में आज क़रीब 6 फ़ीसदी की बढ़ोतरी हुई है और क़रीब ढाई महीने बाद एक्टिव मामलों की संख्या बढ़कर 25 हज़ार से ज़्यादा 25,782 हो गयी है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License