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…और अब हम दिमाग़ से भी बीमार होने लगे
कोरोना की जंग तो हम जीत जाएंगे लेकिन तबाही की यह सुनामी हमारे लोगों के दिमाग़ में नफ़रत और शक का जो वायरस पैदा कर चुकी है उससे निपटना आसान नहीं।
सरोजिनी बिष्ट
07 Apr 2020
मॉब लिंचिंग

अब धीरे धीरे इस कोरोना वायरस ने हमारे शरीर के साथ साथ हमारे दिमाग़ पर भी हमला करना शुरू का दिया है। कोरोना के इस क़हर के बीच हम कब और कैसे इंसानियत से दूर होते जा रहे हैं, इतना भी सोचने का वक्त किसी के पास नहीं। दिल्ली के बवाना से सामने आई मॉब लिंचिंग की घटना ने एक बार फिर यह साबित कर दिया कि अब हमारे सामने चुनौती केवल कोरोना से लड़ने की नहीं बल्कि लोगों के दिमाग में घुल रहे ज़हर को भी खत्म करने की है।

भीड़ हिंसा का शिकार बने दिलाशद अली नाम का यह युवक मध्यप्रदेश के रायसेन से अपने घर दिल्ली स्थित बवाना पहुंचा था। लोगों को शक था कि दिलशाद कोरोना से पीड़ित है और वह जगह-जगह थूककर कोरोना बीमारी को फैलाने की साजिश कर रहा है बस इसी शक के आधार पर लोगों ने उसे बुरी तरह पीटना शुरू कर दिया जबकि युवक पीटने वालों से बार-बार यही गुहार लगाता रहा की उसका चेकअप हो चुका है और वह पूरी तरह स्वस्थ है। बुरी तरह घायल दिलशाद अभी अस्पताल में भर्ती है। 

यह कोई पहली घटना नहीं, इस तरह की हिंसा की घटनाएं अब सामने आने लगी है। अभी कुछ दिन पहले उत्तर प्रदेश के संभल जिले से भी एक युवक को कोरोना होने के शक पर पीटने की खबर सामने आई थी। लॉकडाउन के चलते कामकाज ठप्प होने की वजह से दिल्ली से अपने घर संभल पहुंचे एक युवक को ग्रामीणों ने कोरोना का मरीज होने के शक में पीट डाला।

संवेदनहीनता की हद यहीं खत्म नहीं होती दिल्ली के बाद मुंबई के सांताक्रुज से भी एक परेशान करने वाला मामला सामने आया। जरूरी सामान खरीदने दुकान जा रही एक मणिपुरी युवती पर बाइक सवार ने यह कहते हुए थूक दिया कि तुम कोरोना हो। ज़ाहिर सी बात है चूंकि युवती नॉर्थ ईस्ट (पूर्वोत्तर) की रहने वाली है और हम जानते हैं कि अभी भी हमारे बीच ऐसे लोग मौजूद हैं जो आज भी नॉर्थ ईस्ट के लोगों को विदेशी और खासकर चाईनीज कहकर बुलाना ज्यादा पसंद करते हैं। एक के बाद एक घटित हो रही इस तरह की घटनाएं निश्चित ही गहरी चिंता का विषय है।

कोरोना के भय ने लोगों के दिल और दिमाग को इस कदर बीमार बना दिया है कि अब वे अपने बरसों पुराने पड़ोसी को भी शक की नजर से देखने लगे हैं।

लखनऊ के रहने वाली बबीता पंवार ने बताया कि, चूंकि वह उत्तराखंड (कुमाऊं) के उस क्षेत्र की रहने वाली है जो चीन के बार्डर से लगता है। पहले के माहौल में जब लोग मुझे और मेरे परिवार को यूं ही मज़ाक में चीनी कहते तो हम भी इसे हंसी मज़ाक में लेते लेकिन अब सचमुच डर लगता है। डर इस हद तक बढ़ चुका है कि अपनी सोसाइटी तक में निकलने से डरते हैं कि कहीं कोई हादसा न हो जाए।

शक और नफ़रत का अंत यहीं नहीं हो रहा। इससे भी ज्यादा डरावना मंज़र तो यह है कि इस शक और नफ़रत ने इस हद तक लोगों का दिमाग पैरालाइज कर दिया है कि इसकी आड़ में एक बार फिर सांप्रदायिक सद्भावना को तहस नहस करने की साज़िशें रची जा रही हैं। लिबरल तबके को छोड़ दे तो हर हिन्दू को हर मुसलमान तबलीगी जमात में शामिल होने वाला और जानबूझकर कोरोना फ़ैलाने वाला लग रहा है और हर मुसलमान को हिन्दू उनके ख़िलाफ़ साज़िश रचता नजर आ रहा है। इसलिए कहीं मुस्लिम मुहल्ले में जांच करने गई डॉक्टरों की टीम को पत्थर मारकर भगाया जाता है तो कहीं हिन्दू बहुल मुहल्ले में मुस्लिमों का प्रवेश वर्जित कर दिया गया है। यहां तक की अगर कोई फल या सब्जी विक्रेता मुस्लिम है तो ऐसी ख़बरें भी सामने आ रही हैं कि हिन्दू उन्हें अपने गली मुहल्ले में घुसने नहीं दे रहे हैं।

इसमें दो राय नहीं कि कोरोना के  सुनामी के बीच इस कदर इंसानियत तार तार हो रही है कि क्या सही है और क्या गलत, क्या झूठ है और क्या सही, कोई सोचना नहीं चाहता। हाल ही में एक वीडियो बड़ी तेजी से वायरल हुआ। इस वीडियो में बताया गया कि किस तरह से एक मुस्लिम फल विक्रेता फलों में थूक लगा लगा कर बेचने की तैयारी कर रहा है। संदेश यह था कि इस मुस्लिम फल विक्रेता को कोरोना है और वह इसे फलाने की साज़िश कर रहा है जो भी उसका फल खरीदेगा वह कोरोना से पीड़ित हो जाएगा। लेकिन जब इस वीडियो की सच्चाई सामने आई है तो पता चला यह वीडियो लगभग नौ महीने पुराना है।

उस फल विक्रेता की बेटी ने बताया उसके पिता दिमागी रूप से थोड़ा डिस्टर्ब है। पहले उनका दूध का कारोबार था और रुपये गिनने की आदत के चलते उन्हें ऐसी आदत पड़ी। वह घर पर भी ऐसा ही करते हैं लेकिन थूक लगा कर फल नहीं बेचते यह सरासर गलत है। लेकिन जब तक इस वीडियो की सच्चाई सामने आई तब तक यह कई लोगों के पास पहुंच चुका था और आग में घी डालने का काम कर चुका था। ऐसे ही आग सुलगाने का काम उस फ़र्ज़ी ख़बर ने भी किया जिसमें यह कहा गया कि मुसलमानों को सावधान हो जाना चाहिए क्यूंकि उन्हें कोरोना संक्रमित इंजेक्शन लगाया जा सकता है।

एक तरफ़ हम कोरोना से लड़ रहे हैं। हमारे डॉक्टर्स अपनी जान की परवाह किए बगैर अपने परिवार से दूर रहकर प्रोटेक्शन इक्यूपमेंट (पीपीई) के अभाव में भी कोरोना पीड़ितों को बचाने की जंग लड़ रहे हैं तो वहीं दूसरी तरफ़ हमारा समाज दूसरी ही बीमारी से ग्रसित होता जा रहा है, जहां विश्वास शक और प्रेम नफ़रत में बदल चुका हैं। असंवेदनशीलता अपने चरम पर है। इससे ज्यादा शर्मनाक और ख़तरनाक स्थिति और क्या हो सकती है कि कोई किसी पर यह कहते हुए थूककर चला जाए कि तुम ही कोरोना हो, सिर्फ इसलिए कि उसकी शक्ल थूकने वाले के समाज से मेल नहीं खाती या कोई किसी को केवल इसलिए पीट दे कि वह मुसलमान है और तबलीगी जमात में ढेरों मुस्लिम कोरोना पीड़ित निकले या कहीं डॉक्टरों पर इसलिए हमला हो जाता है कि चूंकि वे हिन्दू है और वे साज़िशन मुसलमानों को कोरोना संक्रमित इंजेक्शन लगा देंगे, क्योंकि ऐसी अफ़वाह है।

सचमुच पूरे विश्व में कोरोना इंसानों के शरीर पर अटैक कर रहा है लेकिन हमारे यहां इसने शरीर के साथ साथ दिमाग़ को भी बीमार बना दिया है। कोरोना की जंग तो हम जीत जाएंगे लेकिन तबाही की यह सुनामी हमारे लोगों के दिमाग़ में नफ़रत और शक का जो वायरस पैदा कर चुकी है उससे निपटना आसान नहीं।

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

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