NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
लचर पुलिस व्यवस्था और जजों की कमी के बीच कितना व्यावहारिक है 'आंध्र प्रदेश दिशा बिल’?
न्याय बहुत देर से हो तो भी न्याय नहीं रहता लेकिन तुरत-फुरत, जल्दबाज़ी में कर दिया जाए तो भी कई सवाल खड़े होते हैं। यही वजह है कि आंध्र प्रदेश दिशा बिल, 2019 पर भी सवाल उठ रहे हैं कि क्या इससे वाकई पीड़त महिलाओं को इंसाफ़ मिल पाएगा?
सोनिया यादव
14 Dec 2019
aandra pradesh bill
Image courtesy: Twitter

आंध्र प्रदेश विधानसभा ने शुक्रवार, 13 दिसंबर, को एक ऐतिहासिक बिल पास किया। इसे आंध्र प्रदेश दिशा बिल, 2019 (आंध्र प्रदेश आपराधिक कानून (संशोधन) अधिनियम 2019) नाम दिया गया है। इसके अनुसार औरतों के ख़िलाफ़ आपराधिक मामलों के निपटारे की समयसीमा को मौजूदा चार महीने से घटाकर 21 दिन कर दिया गया है। इस विधेयक को महिलाओं के खिलाफ जारी हिंसा को रोकने की दिशा में एक बड़ा कदम माना जा रहा है। लेकिन एक दूसरा पक्ष भी है जो इस बिल की व्यावाहरिकता पर कई सवाल खड़े कर रहा है।

क्या है आंध्र प्रदेश दिशा बिल, 2019?

हैदराबाद दुष्कर्म पीड़िता को दिए काल्पनिक नाम पर बने इस बिल के तहत दुष्कर्म और सामूहिक दुष्कर्म करने वाले अपराधियों को 21 दिनों के अंदर ट्रायल पूरा करके मौत की सजा दी जा सकेगी। वर्तमान में दुष्कर्म के आरोपी को एक निश्चित जेल की सजा दी जाती है जो बढ़कर उम्र कैद या मौत की सजा तक हो सकती है। दिशा विधेयक के तहत दुष्कर्म के मामलों में जहां पर्याप्त निर्णायक सबूत होंगे उनमें अपराधी को मौत की सजा दी जाएगी। यह प्रावधान भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 376 में संशोधन करके दिया गया है।

इस नए क़ानून के तहत ऐसे मामलों में जहां संज्ञान लेने लायक साक्ष्य उपलब्ध हों, उसकी जांच सात दिनों में और ट्रायल को 14 कार्यदिवसों में पूरा करना होगा। सारी प्रक्रियाओं को 21 दिन में पूरा करना होगा। निर्भया अधिनियम, 2013 और आपराधिक संशोधन अधिनियम, 2018 के अनुसार फैसला सुनाने की समयसीमा चार महीने है। इसके लिए दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 173 और धारा 309 में संशोधन किया गया और अधिनियम में अतिरिक्त धाराएं लागू की गईं।

इस बिल में आईपीसी की धारा 354(e) और 354 (f) और 354 (g) को जोड़ा गया है। सोशल मीडिया सेफ्टी के लिए कानून के तहत सेक्शन 354(e) के अनुसार अगर कोई शख़्स ई-मेल, सोशल मीडिया और किसी भी डिजिटल प्लेटफार्म पर कुछ ऐसी पोस्ट या तस्वीरें डालता है, जिससे किसी महिला के सम्मान को आघात पहुंचता है तो ये अपराध की श्रेणी में होगा। अगर कोई शख़्स ऐसा पहली बार कर रहा है तो दो साल की सज़ा और दूसरी बार चार साल की सज़ा का प्रावधान है। सोशल मीडिया के महिलाओं के उत्पीड़न को फिलहाल भारतीय दंड संहिता में कोई प्रावधान नहीं है। इसके लिए भारतीय दंड संहिता, 1860 में एक नई धारा 354(ई) को जोड़ा जाएगा।

8f485518b88b44e1bf5a0012de55e403_18.jpg

इसमें 354 (f) धारा में बाल यौन शोषण के दोषियों के लिए दस से 14 साल तक की सज़ा का प्रावधान है। अगर मामला बेहद गंभीर और अमानवीय है तो उम्र क़ैद की सज़ा भी दी जा सकती है। मौजूदा वक़्त में ऐसे अपराधों के लिए पॉक्सो एक्ट के तहत 3-5 साल तक के लिए जेल की सज़ा का प्रावधान रहा है। पॉक्सो अधिनियम, 2012 के तहत बच्चों के साथ छेड़छाड़/ यौन उत्पीड़न के मामलों में न्यूनतम सजा तीन साल से लेकर अधिकतम सात साल के कारावास तक होती है। बच्चों पर होने वाले यौन हमले के लिए भारतीय दंड संहिता 1860 में नई धारा 354 (एफ) और 354 (जी) को जोड़ा जाएगा।

इस बिल के तहत महिलाओं और बच्चों के अपराधियों के लिए एक रजिस्ट्री बनाई जाएगी। इससे पहले भारत सरकार ने नेशनल रजिस्ट्री ऑफ सेक्शुअल ऑफेंडर्स का एक डाटाबेस शुरू किया था जो डिजिटाइज्ड नहीं है और न ही लोग इसे देख सकते हैं। वहीं दिशा विधेयक में राज्य सरकार एक रजिस्टर बनाएगी जो इलेक्ट्रॉनिक प्लेटफार्म होगा और इसे वूमेन एंड चिल्ड्रन ऑफेंडर्स रजिस्ट्री नाम दिया गया है। यह रजिस्ट्री सार्वजनिक होगी और कानूनी एजेंसियां इसे देख सकेंगी।

दिशा विधेयक के अनुसार राज्य सरकार त्वरित न्याय के लिए हर जिले में एक विशेष अदालत बनाएगी। ये अदालतें विशेष रूप से महिलाओं और बच्चों के खिलाफ होने वाले अपराधों, बलात्कार, एसिड हमलों, घूरने, बर्बरता, महिलाओं का सोशल मीडिया के जरिए उत्पीड़न, यौन उत्पीड़न और पॉक्सो अधिनियम के तहत सभी मामलों से निपटेंगी। राज्य सरकार ने इसके लिए आंध्र प्रदेश स्पेशल कोर्ट फॉर वूमेन एंड चिल्ड्रन एक्ट, 2019 को प्रस्तावित किया है।

वर्तमान में, महिलाओं और बच्चों के खिलाफ दुष्कर्म के मामलों से संबंधित अपील मामलों के निपटान की अवधि छह महीने है। दिशा विधेयक के तहत दुष्कर्म के मामलों से संबंधित अपील मामलों का निपटान तीन महीने में किया जाएगा। जिसके लिए दंड प्रक्रिया संहिता 1973 की धारा 374 और 377 में संशोधन किए जा रहे हैं।

दिशा विधेयक के तहत सरकार हर जिले में विशेष पुलिस की टीमें बनाएगी जिन्हें 'जिला विशेष पुलिस बल' कहा जाएगा। महिलाओं और बच्चों से संबंधित अपराधों की जांच के लिए इसका नेतृत्व पुलिस उप अधीक्षक करेंगे। सरकार प्रत्येक विशेष अदालत में एक विशेष सरकारी वकील की भी नियुक्त करेगी।

आंध्र प्रदेश ऐसा पहला राज्य है जो इस तरह का बिल लाया है। भले ही इस बिल को महिला सुरक्षा के लिहाज़ से काफ़ी सख़्त और त्वरित बनाने की कोशिश कई गई है और कई लोग इसकी तारीफ़ कर रहे हो, लेकिन कुछ लोग मौजूदा हालात में इसकी व्यावहारिकता पर भी सवाल उठा रहे हैं।

इस बिल पर उठने वाले सवाल

इस बिल के संबंध में आंध्र प्रदेश बार काउंसिल के सदस्य मुपल्ला सुब्बाराव ने बीबीसी से कहा, ''बिना समस्या की जड़ को समझे बिना सिर्फ़ भावनाओं के आधार पर क़ानून बना देना कोई समझदारी की बात नहीं है। त्वरित न्याय को लेकर कई आयोगों और संसदीय समिति की ओर से सिफ़ारिशें मिलीं हैं। नेशनल लॉ कमीशन के अनुसार प्रति दस लाख की आबादी पर कम से कम 50 जज होने चाहिए। लेकिन मौजूदा समय में सिर्फ़ 13 हैं। कई पद खाली हैं। आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट में 24 जज होने चाहिए। लेकिन हैं सिर्फ़ 13। ऐसे में ये कैसे संभव होगा कि 21 दिन के भीतर फ़ैसला सुना दिया जाए?"

वे कहते हैं, "रेप के मामले में फॉरेंसिक लैब की रिपोर्ट आने में ही काफी वक़्त लग जाता है। इस वजह से चार्जशीट फ़ाइल करने में ही एक सप्ताह का वक़्त चाहिए होता है। ऐसे में ये संभव भी कैसे है? ऐसे में अच्छा तो यही होगा कि इस बिल पर एक बार फिर से विचार कर लिया जाए।"

दिशा बिल पर अपनी राय रखते हुए दिल्ली बार काउंसिल की सदस्य आस्था जैन ने न्यूज़क्लिक से बातचीत में बताया, ‘हमारी पुलिस व्यवस्था की हालत बहुत अच्छी नहीं है, इसी तरह न्यायपालिका में भी जजोंं की स्थिति अच्छी नहीं है। यहां जजों पर बहुत अतिरिक्त बोझ है। पुलिस और जुडिश्यरी दोनों में बड़ी संख्या में पद खाली हैं, करोड़ों मामले लंबित हैैं। ऐसे में क्या कुछ हो पाता है देखना होगा?’

उन्होंने आगे कहा, ‘ जांच का एक पूरा प्रोसेस होता है, जिसे आप जल्दबाज़ी में पूरा नहीं कर सकते हैं। कई बार पीड़ित और आरोपी के सैंपलों की जांच होती है। कपड़ों से लेकर मौका-ए-वारदात पर मिली एक-एक वस्तु का बारिकी से निरीक्षण होता है। ऐसे में ये कानून कैसे व्यावहारिक होगा ये देखना होगा। ऐसा नहीं होना चाहिए कि हम न्याय को कहीं जल्दबाज़ी में अनदेखा कर दें।'

images_1.jpg

महिला अधिकारों के संघर्षरत वृंदा सिंह कहती हैं, ‘हमें समस्या के हल की शुरूआत उसके जड़ से करने की जरूरत है। सबसे पहले समाज फिर पुलिस और न्याय की ओर देखना पड़ेगा, सिर्फ भावनाओं के वेग में हम कानून बनाकर जिम्मेदारियों से पल्ला नहीं झाड़ सकते। क्या आज जब कोई महिला मुसिबत में होती है तो उसे जरूरी समय पर मदद मिल पाती है, इसका जवाब नहीं है क्योंकि न तो समाज के लोग और न ही पुलिस व्यवस्था इतनी दुरूस्त है कि उसे सही समय पर सही सहायता मिल पाए। आपको हैरानी होगी की पुलिस के पास पर्याप्त स्टाफ नहीं है, सड़कों पर स्ट्रीट लाइट नहीं है। आप पुलिस के पास जाओ केस दर्ज करवानेे तो वहां जेंडर सेंसिटाइजेशन नाम की कोई चीज़ नहीं मिलती। ऐसे में आप किससे किस बात की उम्मीद करते हो।'

उन्होंने आगे कहा की इस बिल में ऑनर कीलिंग, घरेलू हिंसा, महिलाओं के अपहरण आदि बातों का कोई उल्लेख ही नहीं है, जिनके मामले कहीं अधिक हैं। हम हमेशा अपराध होने के बाद ही क्यों जागते हैं, अपराध की शुरुआत या उसकी सुगबुगाहट पर क्यों नहीं जागते? महिलाओं के ख़िलाफ़ होने वाले अपराधों से कैसे बचें, उन क़दमों का इस नए क़ानून में कोई ज़िक्र ही नहीं है।

इस मामले में अखिल भारतीय लोकतांत्रिक महिला संगठन की राष्ट्रीय सचिव डी रमा देवी का कहना हैं कि यह बेहद ज़रूरी है कि अपराध की गंभीरता के अनुसार ही दंड दिया जाए लेकिन इस बिल में इसके लिए ज़रूरी तत्व नज़र नहीं आते हैं। आज हकीकत ये है कि अगर कोई 100 नंबर डायल करता है तो उसे सुनकर प्रतिक्रिया देने के लिए भी पर्याप्त स्टाफ़ नहीं है। इस तरह के मुद्दों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। न्यायपालिका में रिक्तियों के मुद्दे के उल्लेख का भी मामला है। महिलाओं के अपहरण के मामले में आंध्र प्रदेश सूची में चौथे स्थान पर है। इनमें से किसी भी मुद्दे का इसमें कोई उल्लेख नहीं है।"

Andhra pradesh
Disha Bill 2019
State Assembly
crimes against women
violence against women
exploitation of women
sexual crimes
sexual harassment
police
Indian judiciary
Hyderabad Rape Case

Related Stories

हैदराबाद : मर्सिडीज़ गैंगरेप को क्या राजनीतिक कारणों से दबाया जा रहा है?

2019 में हुआ हैदराबाद का एनकाउंटर और पुलिसिया ताक़त की मनमानी

मायके और ससुराल दोनों घरों में महिलाओं को रहने का पूरा अधिकार

तेलंगाना एनकाउंटर की गुत्थी तो सुलझ गई लेकिन अब दोषियों पर कार्रवाई कब होगी?

यूपी : महिलाओं के ख़िलाफ़ बढ़ती हिंसा के विरोध में एकजुट हुए महिला संगठन

प्रधानमंत्री जी! पहले 4 करोड़ अंडरट्रायल कैदियों को न्याय जरूरी है! 

ज़मानत मिलने के बाद विधायक जिग्नेश मेवानी एक अन्य मामले में फिर गिरफ़्तार

मुद्दा: हमारी न्यायपालिका की सख़्ती और उदारता की कसौटी क्या है?

प्रत्यक्षदर्शियों की ज़ुबानी कैसे जहांगीरपुरी हनुमान जयंती जुलूस ने सांप्रदायिक रंग लिया

अदालत ने वरवर राव की स्थायी जमानत दिए जाने संबंधी याचिका ख़ारिज की


बाकी खबरें

  • Ramjas
    न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    दिल्ली: रामजस कॉलेज में हुई हिंसा, SFI ने ABVP पर लगाया मारपीट का आरोप, पुलिसिया कार्रवाई पर भी उठ रहे सवाल
    01 Jun 2022
    वामपंथी छात्र संगठन स्टूडेंट फेडरेशन ऑफ़ इण्डिया(SFI) ने दक्षिणपंथी छात्र संगठन पर हमले का आरोप लगाया है। इस मामले में पुलिस ने भी क़ानूनी कार्रवाई शुरू कर दी है। परन्तु छात्र संगठनों का आरोप है कि…
  • monsoon
    मोहम्मद इमरान खान
    बिहारः नदी के कटाव के डर से मानसून से पहले ही घर तोड़कर भागने लगे गांव के लोग
    01 Jun 2022
    पटना: मानसून अभी आया नहीं है लेकिन इस दौरान होने वाले नदी के कटाव की दहशत गांवों के लोगों में इस कदर है कि वे कड़ी मशक्कत से बनाए अपने घरों को तोड़ने से बाज नहीं आ रहे हैं। गरीबी स
  • Gyanvapi Masjid
    भाषा
    ज्ञानवापी मामले में अधिवक्ताओं हरिशंकर जैन एवं विष्णु जैन को पैरवी करने से हटाया गया
    01 Jun 2022
    उल्लेखनीय है कि अधिवक्ता हरिशंकर जैन और उनके पुत्र विष्णु जैन ज्ञानवापी श्रृंगार गौरी मामले की पैरवी कर रहे थे। इसके साथ ही पिता और पुत्र की जोड़ी हिंदुओं से जुड़े कई मुकदमों की पैरवी कर रही है।
  • sonia gandhi
    भाषा
    ईडी ने कांग्रेस नेता सोनिया गांधी, राहुल गांधी को धन शोधन के मामले में तलब किया
    01 Jun 2022
    ईडी ने कांग्रेस अध्यक्ष को आठ जून को पेश होने को कहा है। यह मामला पार्टी समर्थित ‘यंग इंडियन’ में कथित वित्तीय अनियमितता की जांच के सिलसिले में हाल में दर्ज किया गया था।
  • neoliberalism
    प्रभात पटनायक
    नवउदारवाद और मुद्रास्फीति-विरोधी नीति
    01 Jun 2022
    आम तौर पर नवउदारवादी व्यवस्था को प्रदत्त मानकर चला जाता है और इसी आधार पर खड़े होकर तर्क-वितर्क किए जाते हैं कि बेरोजगारी और मुद्रास्फीति में से किस पर अंकुश लगाने पर ध्यान केंद्रित किया जाना बेहतर…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License