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राजनीति
मुस्लिम विरोधी नारे: पुलिस ने 6 लोगों को हिरासत में लिया लेकिन उठ रहे है गंभीर सवाल- पुलिस क्यों बनी रही मूकदर्शक!
भारी जन दबाव के बाद पुलिस हरकत में आई है और इस मामले में बीजेपी नेता अश्वनी उपाध्याय समेत छह लोगो को हिरासत में लिया गया है।
न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
10 Aug 2021
मुस्लिम विरोधी नारे: पुलिस ने 6 लोगों को हिरासत में लिया लेकिन उठ रहे है गंभीर सवाल- पुलिस क्यों बनी रही मूकदर्शक!
फ़ोटो साभार: सोशल मीडिया

रविवार आठ अगस्त को देश की राजधानी में संसद से कुछ सौ मीटर की दूरी पर देश की संविधान की धज्जियाँ उड़ाई गई और इसमें सबसे बड़ी बात यह सब पुलिस की मौजूदगी में किया गया। सोशल मीडिया में एक वीडियो काफी प्रसारित हो रहा है, जिसमें जंतर-मंतर पर एक प्रदर्शन के दौरान कुछ लोग मुस्लिम विरोधी नारेबाजी करते दिखाई दे रहे हैं। दिल्ली पुलिस ने सोमवार को इस संबंध में अज्ञात लोगो के ख़िलाफ़ मामला दर्ज किया। जबकि वीडियो में सभी के चहरे साफ दिख रहे थे।

दिल्ली पुलिस का कहना है कि जंतर-मंतर पर रविवार को ‘भारत जोड़ो आंदोलन’ नामक संगठन द्वारा आयोजित प्रदर्शन में सैकड़ों लोग शामिल हुए थे और यह कथित नारेबाजी उसी कार्यक्रम से संबंधित है। सोशल मीडिया पर इस घटना की खूब निंदा हुई और लोगों ने पुलिस के ऊपर गंभीर सवाल उठाए। राजनीतिक दलों ने दिल्ली पुलिस आयुक्त को पत्र लिखा, वहीं वकीलों के समूह ने सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को पत्र लिखकर इस घटना पर संज्ञान लेने का आग्रह किया। बाद में पुलिस भी हरकत में आई उसने इस कार्यक्रम के आयोजक अधिवक्ता और बीजेपी नेता अश्वनी उपाध्याय समेत छह लोगो को हिरासत में ले लिया है और उन्हें गिरफ़्तार करने की तैयारी कर रही है। अधिकारियों ने मंगलवार को यह जानकारी दी।

जानकारी के मुताबिक, उपाध्याय के आलावा दीपक सिंह हिंदू, दीपक, विनीत क्रांति, प्रीत सिंह, विनोद शर्मा को भी हिरासत में लिया गया है।

पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार छह लोगों को दिल्ली-राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में विभिन्न इलाकों से हिरासत में लिया गया है। उन्होंने बताया कि घटना के संबंध में उनकी भूमिकाओं की पुष्टि की जा रही है, जिसके बाद आगे की कार्रवाई की जाएगी।

‘भारत जोड़ो आंदोलन’ की प्रवक्ता शिप्रा श्रीवास्तव ने बताया कि प्रदर्शन उपाध्याय के नेतृत्व में हुआ था। हालांकि उन्होंने मुस्लिम विरोधी नारे लगाने वालों से किसी प्रकार के संबंध से इनकार किया है।

श्रीवास्तव ने कहा, ‘‘औपनिवेशिक कानूनों के विरोध में आयोजित प्रदर्शन के दौरान 222 ब्रिटिश कानूनों को खत्म करने की मांग की गई थी। हमने वीडियो देखा है लेकिन यह नहीं पता कि वे कौन हैं। नारे लगाने वालों के खिलाफ पुलिस सख्त कार्रवाई करे।’’ उपाध्याय ने भी मुस्लिम विरोधी नारेबाजी की घटना में शामिल होने से इनकार किया।

उन्होंने कहा, “मैंने वीडियो की जांच के लिए दिल्ली पुलिस को शिकायत सौंपी है। अगर वीडियो प्रामाणिक है तो इसमें शामिल लोगों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जानी चाहिए।’’ उपाध्याय ने कहा, ‘‘मुझे नहीं पता कि वे कौन हैं। मैंने उन्हें कभी नहीं देखा, न ही मैं उनसे कभी मिला हूं और न ही उन्हें वहां बुलाया था। जब तक मैं वहां था, वे वहां नजर नहीं आए। अगर वीडियो फर्जी है, तो ‘भारत जोड़ो आंदोलन’ को बदनाम करने के लिए यह दुष्प्रचार किया जा रहा है।”

पुलिस उपायुक्त (नयी दिल्ली) दीपक यादव ने कहा, ‘‘हमें एक वीडियो मिला है और हम इसकी जांच कर रहे हैं। कानून की संबंधित धाराओं के तहत मामला दर्ज कर लिया गया है और जांच जारी है।’’

सूत्रों मुताबिक पुलिस अभी भी कई लोगो को ढूंढ रही है एक है पिंकी चौधरी जो हिंदू रक्षा दल अध्यक्ष हैं और वो मुसलमानों के ख़िलाफ़ भड़काऊ और ज़हरीले बयान देने के लिए जाने जाते हैं। इसके साथ ही वीडियो में जो शख्स नारा लगा रहा है वह उत्तम उपाध्याय भी अभी दिल्ली पुलिस की पहुँच से दूर है।

इसके साथ ही कई संगठनों ने पुलिस आयुक्त को तो कुछ ने सुप्रीम कोर्ट को पत्र लिखे है।

सीपीआई (एम) ने दिल्ली पुलिस आयुक्त से कार्रवाई की मांग की

सीपीआई (एम) की दिल्ली राज्य कमेटी के सचिव के.एम. तिवारी ने दिल्ली पुलिस कमिश्नर को पत्र लिखकर दिल्ली में साम्प्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने वाले अपराधियों को तुरंत गिरफ्तार कर कार्यवाही की मांग की है।

उन्होंने अपने बयान में कहा किसी को भी राजधानी में सांप्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने की इजाजत नहीं दी जानी चाहिए।

उन्होंने कहा कि अपने पहले के एक पत्र में हमने प्रेस में व्यापक रिपोर्ट के बाद ऐसे सांप्रदायिक नफरत फैलाने वाले टूल-किट के मास्टरमाइंड कपिल मिश्रा के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की मांग की थी। इस तरह के मामले फिर से आने के पीछे दिल्ली पुलिस की घोर निष्क्रियता का परिणाम है।

‘मुस्लिम विरोधी नारेबाजी’ को लेकर अल्पसंख्यक आयोग ने पुलिस को नोटिस जारी किया, कार्रवाई करने को कहा

राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग ने यहां जंतर-मंतर की घटना पर सोमवार को पुलिस को नोटिस जारी कर कहा कि इस घटना को लेकर सख्त कार्रवाई की जानी चाहिए।

आयोग के उपाध्यक्ष आतिफ रशीद के निर्देश पर इस संस्था ने नयी दिल्ली के पुलिस उपायुक्त को नोटिस जारी किया और कहा कि वह मंगलवार को आयोग के समक्ष उपस्थित होकर इस मामले का ब्योरा और की गई कार्रवाई की जानकारी दें।

रशीद ने कहा कि इस मामले में पुलिस को सख्त कार्रवाई करनी चाहिए। नोटिस में पुलिस उपायुक्त से सवाल किया गया है, ‘‘मुस्लिम विरोधी नारेबाजी करने वालों के खिलाफ क्या कार्रवाई की गई है? क्या इस मामले में कोई गिरफ्तारी हुई है और अगर हुई है तो आरोपी के खिलाफ किस धारा के तहत मामला दर्ज किया गया है?’’ आयोग ने यह भी पूछा, ‘‘किसकी अनुमति से इस तरह का कार्यक्रम आयोजित हुआ और भविष्य में ऐसे कार्यक्रम को रोकने के लिए क्या कदम उठाए गए हैं?’’

उधर, प्रमुख मुस्लिम संगठन जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने एक बयान में कहा कि उसके प्रमुख मौलाना महमूद मदनी ने गृहमंत्री अमित शाह और पुलिस आयुक्त राकेश अस्थाना को पत्र लिखकर इस मामले में सख्त कार्रवाई सुनिश्चित करने का आग्रह किया है। जमीयत के एक प्रतिनिधिमंडल ने पुलिस उपायुक्त से मुलाकात कर कार्रवाई की मांग की।

दिल्ली हाईकोर्ट महिला वकील फोरम ने जंतर-मंतर रैली में लगाए गए भड़काऊ नारे की निंदा की, कार्रवाई की मांग की

दिल्ली हाईकोर्ट महिला वकीलों के फोरम ने जंतर-मंतर की घटना की निंदा की और सुप्रीम कोर्ट के रजिस्ट्रार को एक पत्र भी लिखा।

फोरम ने यह भी कहा कि इस तरह के प्रकरण को हल्के में खारिज नहीं किया जाना चाहिए।

वकीलों के फोरम ने स्पष्ट किया कि इस तरह के बयान सीधे और स्पष्ट रूप से एक धार्मिक समुदाय के खिलाफ हिंसा का आह्वान करने के लिए जिम्मेदार हैं। 1994 के रवांडा नरसंहार का एक समानांतर संदर्भ भी दिया गया था, जिसे एक जातीय अल्पसंख्यक के खिलाफ इसी तरह के व्यवस्थित घृणास्पद भाषण से उकसाया गया था।

पत्र में, उन्होंने ये भी कहा कि रैली में लगाए गए नारे न केवल संविधान के प्रावधानों, बल्कि भारतीय दंड संहिता का भी उल्लंघन है। फोरम ने घटना को 'चौंकाने वाला' बताया और इसकी निंदा करते हुए तत्काल उचित कार्रवाई की मांग की ।

पूरा पत्र यहाँ पढ़े

AILAJ ने अदालत की निगरानी में जांच करने की मांग उठाई

इसी तरह एक अन्य वकील संगठन ऑल इण्डिया लॉयर एसोसिएशन फ़ॉर जस्टिस (AILAJ ) ने मुख्य न्यायधीश को पत्र लिखा और इस पर स्वतः संज्ञान लेकर उचित कार्रवाई करने का निर्देश देने को कहा।

AILAJ ने कहा एक पूरे धार्मिक समुदाय को खत्म करने का आह्वान करना एक अंतरराष्ट्रीय समझ से एक नरसंहार के अंतर्गत आता है। लेकिन पुलिस मूकदर्शक की तरह इस अपराध को देखती रही। इसलिए जरूरी है कि अदालत की निगरानी में जांच और अभियोजन (prosecution) हो।

इसके साथ ही AILAJ ने सभी कानूनी पेशेवरों से आह्वान किया कि नरसंहार के लिए हिंदुत्ववादी बहुसंख्यक संगठनों के हाथों हमारे देश को जिस गंभीर खतरे का सामना करना पड़ रहा है, उसे पहचानें। नफरत और सांप्रदायिक ध्रुवीकरण को नकारे और संविधान, धर्मनिरपेक्षता और सांप्रदायिक सद्भाव के लिए एक साथ खड़े हों।

पूरा पत्र यहां पढ़े

दिल्ली पुलिस पर उठ रहे गंभीर सवाल

ये पूरी घटना दिल्ली पुलिस पर गंभीर सवाल उठाती है। क्योंकि बिना पुलिस परमिशन के इतबी बड़ी भीड़ जंतर मंतर पहुँच गई और पुलिस को कानोकान ख़बर न हुई। ये किसी भी सामान्य व्यक्ति के लिए हज़म कर पाना मुश्किल है। क्योंकि हम आजकल देख रहे हैं कि पूरा जंतर मंतर और संसद मार्ग का इलाक़ा पुलिस छावनी में बदला हुआ है। वहां बिना पुलिस की मर्जी के परिंदा भी पर नहीं मार सकता। कर्यक्रम होना और यह कहना ये उसकी इज़ाजत से नहीं हुआ है। ये हास्यपद लगता है। क्योंकि हमने अभी चंद रोज पहले देखा कैसे 50 से 100 की तादद में बिजली कर्मचारी जंतर मंतर से थोड़ा दूर पुलिस की परमिशन से आंदोलन कर रहे थे लेकिन पुलिस ने उन्हें वहां से हटा दिया था। कल ही यानी सोमवार को दिल्ली में मज़दूर संगठन, छात्र, नौजवान और महिला संगठन राष्ट्रव्यापी प्रदर्शन के तहत मंडी हॉउस से जंतर मंतर जाना चाहते थे लेकिन पुलिस ने जाने नहीं दिया। किसान संसद में भी 200 किसानों को गिनकर जाने दिया गया और पत्रकारों तक को वहां पहुंचने में मुश्किल हुई, लेकिन अश्वनी उपाध्याय और पुष्पेंद्र कुलश्रेष्ठ कई दिनों से सोशल मीडया और दिल्ली में पोस्टरों के माध्यम से लोगों से जंतर मंतर आने की अपील कर रहे थे और उपाध्याय एक हुजूम के साथ पहुंचे भी। उन्होंने वहां मंच भी बनाया और साउंड सिस्टम भी लगाया। इसी दौरान वहां मुस्लिम विरोधी नारे भी लगे लेकिन पुलिस इन सबसे अनजान बनी रही। उसे सोशल मीडिया पर वायरल वीडियो से इस घटना की जानकारी मिली ये सुनकर हैरानी होती है। इससे पहले दिल्ली दंगों में भी पुलिस की भूमिका संदिग्ध रही थी। सबसे बड़ा सवाल यह है कि दिल्ली ने अभी एक साल पहले ही दंगे झेले उस स्थिति में सांप्रदायिक और ज़हरीले कार्यक्रम होने कैसे दिया?

खैर इसको लेकर सत्ता पक्ष में एक आपराधिक चुप्पी दिख रही है तो वहीं कई लोग और संगठन अपने अपने तरीके से आवाज़ उठा रहे हैं। 

(समाचार एजेंसी भाषा इनपुट के साथ)

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