NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
कृषि
भारत
राजनीति
अंतरराष्ट्रीय
अर्थव्यवस्था
सस्ते ईरानी सेबों की वजह से लड़खड़ा रहा है कश्मीर का सेब व्यापार
कश्मीर के प्रमुख सेब व्यापारियों के अनुसार उत्पादकों और व्यापारियों के पास सेब के 1.5 करोड़ से अधिक बक्से बिकने के लिए पड़े हुए हैं। लेकिन देश के प्रमुख फल बाजारों में ईरानी पैदावार की हालिया आवक के कारण कश्मीरी सेब की कोई मांग नहीं रह गई है।
अनीस ज़रगर
08 Jan 2022
seb
सस्ते ईरानी सेब के भारतीय बाजारों पर कब्जा करने के कारण कश्मीर के सेब उत्पादक किसान कगार पर हैं। प्रतिनिधि छवि। सौजन्य: ग्रेटर कश्मीर 

श्रीनगर: कश्मीर घाटी में 24 अरब रुपये से अधिक मूल्य के सेब अपना बाजार खोने के कगार पर हैं। सेब व्यापारियों का दावा है कि सस्ते ईरानी सेबों ने आ कर भारतीय बाजारों में धूम मचा दी है, जिससे उच्च गुणवत्ता वाले कश्मीरी सेब की मांग और कीमतों में भारी गिरावट आई है। 

कश्मीर के प्रमुख सेब व्यापारियों के अनुसार, उत्पादकों और व्यापारियों के पास बिक्री की बाट जोह रहे सेब के 1.5 करोड़ से अधिक बक्से पड़े हैं, लेकिन देश के प्रमुख फल बाजारों में ईरानी सेब की हालिया आवक के कारण हमारे सेब की कोई मांग नहीं है। कश्मीर में सेब कारोबारियों का कहना है कि घाटी की कोल्ड स्टोरेज इकाइयों में सेब के कई डिब्बे फरवरी के बाद ही भेजे जा सकेंगे। लेकिन सेब के सड़ने का खतरा रहता है।

श्रीनगर में कश्मीर वैली फ्रूट एसोसिएशन के अध्यक्ष बशीर अहमद बशीर ने न्यूज़क्लिक को बताया कि ईरानी सेब सबसे पहले पिछले साल आए, जिसका फल संघों और उत्पादकों ने विरोध किया था। बशीर कहते हैं, इस साल सेब की पैदावार अच्छी रही, लेकिन ईरान में भी ऐसा ही था। 

“चूंकि ईरान पर प्रतिबंध हैं, इसलिए उसके सेब कारोबारियों ने भारत का रुख किया है। हमने सरकार को पहले ही लिखा था कि अगर ईरानी सेब की आवक होती है,तो यह कश्मीर के सेब उद्योग को प्रभावित करेगी। प्रतिबंधों के कारण ईरानी सेब सस्ते दामों पर बेचे जाते हैं,”।

पिछले महीने से ईरानी सेब भारतीय बाजारों में थोक में आ गए हैं, जिससे कश्मीरी सेब की मांग में गिरावट आई है। बशीर कहते हैं कि कीमतों में 50 फीसदी की भारी कमी आई है। यह हमारे लिए मुश्किल हो गया है, हम बड़े पैमाने पर इससे नुकसान उठा रहे हैं, कुछ ऐसा जो सीए स्टोर्स में भी उपज को प्रभावित करेगा।

कश्मीर में सेब किसान मांग कर रहे हैं कि भारत सरकार ईरानी सेब को देश के बाजार में प्रवेश करने से रोके या कम से कम आयात कर बढ़ाए ताकि घाटी से सेब के उत्पादन को कुछ राहत मिले। 

उत्तरी कश्मीर में सोपोर फल मंडी लगभग 40 साल पहले स्थापित की गई थी। 5000 करोड़ रुपये के व्यापार के साथ, यह फल उत्पादन के मामले में एशिया की सबसे बड़ी फल मंडियों में से एक है।

सोपोर मंडी के एक सेब व्यापारी जहूर तांत्रे का कहना है कि वे हर साल चार करोड़ पेटी भारतीय बाजारों, बांग्लादेश और नेपाल के बाजारों में भेजते हैं। फिर भी, ईरानी सेब की चुनौती कुछ ऐसी है, जिससे वे तब तक नहीं निपट सकते जब तक कि सरकार इसमें हस्तक्षेप न करे। 

“ईरानी सेब न केवल हमारी वर्तमान उपज के लिए बल्कि आने वाले गर्मियों के महीनों के लिए ठंडे या सामान्य भंडारण में हमारे पास मौजूद हर चीज के लिए खतरा है। अगर मौजूदा रुझान जारी रहा तो हिमाचल प्रदेश के कश्मीरी किसानों और किसानों दोनों को गंभीर नुकसान का सामना करना पड़ेगा। हमारे सेब दुकानों में सड़ेंगे।

कश्मीर का सेब उद्योग 8000 करोड़ रुपये से अधिक मूल्य का है, जो इस क्षेत्र की अर्थव्यवस्था की रीढ़ माना जाता है, जिसमें 30 लाख से अधिक लोग प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से व्यापार में शामिल हैं। यह उद्योग जम्मू-कश्मीर के कुल सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 8 फीसदी योगदान देता है और 8.73 करोड़ व्यक्ति-दिवस कार्य प्रदान करता है। पिछले कुछ वर्षों में, सेब किसान जलवायु परिवर्तन, उथल-पुथल और फलों के राजनीतिकरण से जूझ रहे हैं। इसके साथ ही कुछ लोगों ने आरोप लगाया हालांकि आतंकवादी हमलों के अधिकतर शिकार किसान ही होते हैं, इस तथ्य के बावजूद सेब की नकदी फसल उग्रवाद की सहायता करती है। 

सोपोर मंडी के अध्यक्ष फैयाज अहमद का कहना है कि राजनीतिक उथल-पुथल और अन्य कारकों के कारण कश्मीर में सेब उद्योग को पिछले पांच वर्षों में एक के बाद एक कई तरह का नुकसान हुआ है। उन्होंने कहा “हमने इस साल बेहतर परिणाम की उम्मीद की थी। दुर्भाग्य से, इस साल, बिना करों के बाजार में प्रवेश करने वाले ईरानी सेब के आगमन ने हमारी समस्याओं को और बढ़ा दिया। ” 

श्रीनगर के एक सेब व्यापारी फिरदौस अहमद ने अधिकारियों से इस मामले में हस्तक्षेप करने की अपील करते हुए उम्मीद जताई है कि सरकार इस मुद्दे का समाधान करेगी और उद्योग को संकट से बचाएगी। 

“यह कुछ लोगों की बात नहीं है। इस धंधे पर लाखों लोग निर्भर हैं। इन लोगों की रोजी-रोटी इसी पर निर्भर करती है और अगर इसे कोई खतरा उत्पन्न होता है तो यह लोगों को आत्महत्या जैसे कठोर कदम अपनाने पर मजबूर कर देगा। हमें उम्मीद है कि प्रधानमंत्री इस मामले में हस्तक्षेप करेंगे, और इस उद्योग और इस पर आश्रित लोगों को बचाएंगे। 

अंग्रेजी में मूल रूप से लिखे गए लेख को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें

Kashmir's Apple Farmers on Brink as Cheaper Iranian Alternative Takes Over Indian Markets

kashmir apple industry
kashmiri apple vs irani apple
difficulity in kashmir apple industry
size of kashmir apple industry

Related Stories


बाकी खबरें

  • संदीपन तालुकदार
    वैज्ञानिकों ने कहा- धरती के 44% हिस्से को बायोडायवर्सिटी और इकोसिस्टम के की सुरक्षा के लिए संरक्षण की आवश्यकता है
    04 Jun 2022
    यह अध्ययन अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि दुनिया भर की सरकारें जैव विविधता संरक्षण के लिए अपने  लक्ष्य निर्धारित करना शुरू कर चुकी हैं, जो विशेषज्ञों को लगता है कि अगले दशक के लिए एजेंडा बनाएगा।
  • सोनिया यादव
    हैदराबाद : मर्सिडीज़ गैंगरेप को क्या राजनीतिक कारणों से दबाया जा रहा है?
    04 Jun 2022
    17 साल की नाबालिग़ से कथित गैंगरेप का मामला हाई-प्रोफ़ाइल होने की वजह से प्रदेश में एक राजनीतिक विवाद का कारण बन गया है।
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    छत्तीसगढ़ : दो सूत्रीय मांगों को लेकर बड़ी संख्या में मनरेगा कर्मियों ने इस्तीफ़ा दिया
    04 Jun 2022
    राज्य में बड़ी संख्या में मनरेगा कर्मियों ने इस्तीफ़ा दे दिया है। दो दिन पहले इन कर्मियों के महासंघ की ओर से मांग न मानने पर सामूहिक इस्तीफ़े का ऐलान किया गया था।
  • bulldozer politics
    न्यूज़क्लिक टीम
    वे डरते हैं...तमाम गोला-बारूद पुलिस-फ़ौज और बुलडोज़र के बावजूद!
    04 Jun 2022
    बुलडोज़र क्या है? सत्ता का यंत्र… ताक़त का नशा, जो कुचल देता है ग़रीबों के आशियाने... और यह कोई यह ऐरा-गैरा बुलडोज़र नहीं यह हिंदुत्व फ़ासीवादी बुलडोज़र है, इस्लामोफ़ोबिया के मंत्र से यह चलता है……
  • आज का कार्टून
    कार्टून क्लिक: उनकी ‘शाखा’, उनके ‘पौधे’
    04 Jun 2022
    यूं तो आरएसएस पौधे नहीं ‘शाखा’ लगाता है, लेकिन उसके छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) ने एक करोड़ पौधे लगाने का ऐलान किया है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License