NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
केजरीवाल जी का ‘रामराज्य’ क्या ‘हिन्दू राज्य’ का समानार्थी होगा?
1990 के बाद राम और उनसे जुड़े तमाम मिथकों का अनुवाद जिस तरह से राजनीति में हुआ है और उनके नाम का बलात दोहन करके सत्ता तक पहुँचने का मार्ग प्रशस्त हुआ है, उसमें आधुनिक हो सकने की न तो गुंजाइश ही रह गयी है और न ही मंशा।
सत्यम श्रीवास्तव
15 Mar 2021
केजरीवाल जी का ‘रामराज्य’ क्या ‘हिन्दू राज्य’ का समानार्थी होगा?

अगर रामराज्य एक ‘मिथकीय कल्पना’ या ‘यूटोपिया’ नहीं है तो हमें मान लेना चाहिए कि वह अब दक्षिण एशिया के उप-महाद्वीप माने जाने वाले भारतवर्ष नामक देश में स्थापित होने-होने को है। जिस गति से राज्यों के इस संघ में तमाम राज्य सरकारें और स्वयं संघ सरकार इस दिशा में काम कर रही है उससे लगता है कि 2022 में स्वतंत्र और संप्रभु देश के तौर पर भारत रामराज में रूपांतरित हो जाएगा।

बीते कुछ सालों में तमाम सरकारें विशेष रूप से जो राम का नाम लेकर सत्ता में आयीं हैं उनके काम काज और शासन पद्धति के बारे में लिखी गईं बातों के अनुसार अपना शासन चालने की प्रेरणा ग्रहण करने का भरसक प्रयास करते हुए दिखलाई पड़ रही हैं। यह बात अलहदा है कि रामराज की मिथकीय कल्पना जो सदियों से चली आ रही है उसका बहुत जतन और करीने से ‘हिंदुत्वीकरण’ ही नहीं बल्कि विकट ‘सांप्रदायीकरण’ कर दिया गया है।

एक केंद्रशासित प्रदेश और अर्द्ध राज्य दिल्ली की सरकार और उसके मुख्यमंत्री ने भी इसी प्रेरणा के वशीभूत बजट सत्र में यह संकल्प दोहराया कि वो रामराज्य से प्रेरणा लेकर काम कर रहे हैं। इसमें रामराज्य की अवधारणा का हालांकि लौकिक और कतिपय आधुनिक संस्करण पेश किया गया लेकिन 1990 के बाद राम और उनसे जुड़े तमाम मिथकों का अनुवाद जिस तरह से राजनीति में हुआ है और उनके नाम का बलात दोहन करके सत्ता तक पहुँचने का मार्ग प्रशस्त हुआ है, उसमें आधुनिक हो सकने की न तो गुंजाइश ही रह गयी है और न ही मंशा। इसलिए आधुनिक विज्ञान की तकनीकी शिक्षा से सम्पन्न दिल्ली के मुख्यमंत्री के इस संकल्प में राष्ट्रीय स्वयं संघ या भाजपा द्वारा आविष्कृत और ईज़ाद राम और उसके कार्य-व्यापार में रत्ती भर भी फर्क करना मुश्किल है।

रामराज के साथ ‘देशभक्ति’ का पैकेज आधिकारिक रूप से बजट में लाने की केजरीवाल जी ने बेहद चतुराई से बेशक भाजपा के पूरे प्लॉट को हड़पने की मंशा ज़ाहिर की है लेकिन इससे राजनैतिक वातावरण में चलने वाली उन अटकलों पर मुहर ही लगाई है कि ‘इंडिया अगेन्स्ट करप्शन’ से लेकर ‘अन्ना आंदोलन’ से होते हुए ‘आम आदमी पार्टी’ के गठन और उसके बाद दिल्ली की सत्ता पर पहुँचने तक की लंबी यात्रा का उद्गम ‘नागपुर’ से ही हुआ है।

कल तक जिन्हें इस बात में किन्तु-परंतु लगाना ज़रूरी लगता है अब यही संशय बोधक शब्द निरर्थक शब्द लगने लगे हैं और वो भी इस बात को लेकर तय हो चुके हैं कि ‘नाभिनाल-संबंधों’ का सबसे प्रामाणिक और सामयिक मुहावरा यही है।

दिल्ली विधानसभा के बजट सत्र में दिये अपने भाषण में अरविंद केजरीवाल ने ‘रामराज’ शब्द का इस्तेमाल 'तकिया कलाम’ की तरह किया। दिल्ली सरकार का बीते 6 सालों में किया गया काम रामराज की प्रेरणा से किया गया है और आगे जो भी किया जाएगा वो केवल और केवल रामराज की प्रेरणा से ही किया जाएगा।

हालांकि उन्होंने इसका ज़िक्र नहीं किया या शायद वो इसे विधानसभा जैसे आधिकारिक पटल पर कहने की हिम्मत उस तरह नहीं जुटा पाये जो हिम्मत उनकी पार्टी के संस्थापक सदस्यों में से एक काबिल सदस्य कपिल मिश्रा में है कि राम राज्य की प्रेरणा से पिछले वर्ष इन्हीं दिनों ‘देश के गद्दारों को सबक’ सिखाया गया और दिल्ली सरकार ने अगर इसमें प्रत्यक्ष रूप से भाग नहीं भी लिया हो लेकिन इस रामकाज में किसी प्रकार की कोई बाधा उत्पन्न भी नहीं होने दी।

रामकाज के लिए आतुर मुख्यमंत्री जी ने दिल्ली के बुजुर्गों से यह वादा ज़रूर किया है कि अयोध्या में जब श्री राम का भव्य मंदिर बनकर तैयार हो जाएगा तब वहाँ सभी को 'फ्री' में दर्शन कराने ले जाएँगे। हालांकि भाषण में उन्होंने यह नहीं बताया कि ये ‘मुफ्त स्कीम’ क्या दिल्ली के समस्त बुजुर्ग नागरिकों के लिए होगी या महज़ उनके लिए जो राममंदिर में जाना चाहते हैं और जिनकी आस्था राम में है या जो ईश्वर के सगुण रूप की पूजा करते हैं या नहीं करते? केजरीवाल जी का यही कौशल देखकर उनके उद्गम के बारे में लोग बातें करते हैं।  

इसके अलावा उन्होंने अपनी पार्टी के अंदर और सरकार चलाते हुए किसी के साथ भेदभाव न होने के लिए राम चरित से रूपक उठाते हुए भरे पूरे गर्व से यह कहा कि श्री राम ने सबरी जैसी ‘भीलनी’ के जूठे बेर खाये थे तो उनसे प्रेरणा लेते हुए हम भी किसी से किसी प्रकार का भेदभाव नहीं करते।

आधुनिक शिक्षा से दीक्षित केजरीवाल को यह एहसास भी हुआ है या नहीं कि जब राम ने भीलनी के हाथों बेर खाये थे और राम पर लिखे गए तमाम ग्रन्थों में इस घटना का भाव-विभोर चित्रण किया गया था तब उनके तसव्वुर में समानता, समता, न्याय, बराबरी और किसी भी प्रकार की ऊंच-नीच की धारणा से मुक्त एक संविधान नामक ग्रंथ नहीं था। तब अगर राम के लिए यह महानता का सबब रहा भी होगा लेकिन आज इक्कीसवीं सदी में उसी रूपक के सहारे आप होशोहवास में उसी गैर बराबरी की पुन: प्राण प्रतिष्ठा कर रहे हैं।

रामराज्य की कल्पना वाकई एक आदर्श कल्पना है लेकिन उसमें दिक्कत बस ये आ जाती है कि वह दैवीय शक्तियों से संचालित है इसलिए जब आदिकवि वाल्मीकि या गोस्वामी तुलसीदास ने राम राज्य की झांकी दिखलाई और उसका अतिशयोक्ति अलंकार का प्रयोग करते हुए व्याख्या की तब यह ध्यान नहीं रखा कि यह कल्पना व्यावहारिक रूप में मृत्युलोक के धरातल पर उतर नहीं पाएगी। वाल्मीकि ने कम लेकिन गोस्वामी तुलसीदास ने एक सम्पूर्ण-समर्पित भक्त कवि के रूप में राम राज्य की जो कल्पना की उसका अवलोकन किया जाना चाहिए –

आदि कवि वाल्मीकि ने भी रामराज का वर्णन किया है। वाल्मीकि रामायण में भरत जी रामराज्य के विलक्षण प्रभाव का उल्लेख करते हुए कहते हैं, "राघव! आपके राज्य पर अभिषिक्त हुए एक मास से अधिक समय हो गया। तब से सभी लोग निरोग दिखाई देते हैं। बूढ़े प्राणियों के पास भी मृत्यु नहीं फटकती है। स्त्रियां बिना कष्ट के प्रसव करती हैं। सभी मनुष्यों के शरीर हृष्ट–पुष्ट दिखाई देते हैं। राजन! पुरवासियों में बड़ा हर्ष छा रहा है। मेघ अमृत के समान जल गिराते हुए समय पर वर्षा करते हैं। हवा ऐसी चलती है कि इसका स्पर्श शीतल एवं सुखद जान पड़ता है। राजन नगर तथा जनपद के लोग इस पुरी में कहते हैं कि हमारे लिए चिरकाल तक ऐसे ही प्रभावशाली राजा रहें।"

वहीं तुसलीदास द्वारा की गयी कल्पना कुछ इस प्रकार है -

राम राज बैठे त्रैलोका। हरषित भए गए सब सोका।।

बयरु न कर काहू सन कोई। राम प्रताप विषमता खोई।।

दैहिक दैविक भौतिक तापा। राम राज नहिं काहुहि ब्यापा।।

अल्पमृत्यु नहिं कवनिउ पीरा। सब सुंदर सब बिरुज सरीरा।।

नहिं दरिद्र कोउ दुखी न दीना। नहिं कोउ अबुध न लच्छन हीना।।

सब गुनग्य पंडित सब ग्यानी। सब कृतग्य नहिं कपट सयानी।।

राम राज नभगेस सुनु सचराचर जग माहिं।

काल कर्म सुभाव गुन कृत दुख काहुहि नाहिं।।

(रा•च•मा• 7। 20। 7–8; 21। 1¸ 5–6¸ 8; 21)

(अर्थात, मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम के सिंहासन पर आसीन होते ही सर्वत्र हर्ष व्याप्त हो गया, सारे भय–शोक दूर हो गए एवं दैहिक, दैविक और भौतिक तापों से मुक्ति मिल गई। कोई भी अल्पमृत्यु, रोग–पीड़ा से ग्रस्त नहीं था, सभी स्वस्थ, बुद्धिमान, साक्षर, गुणज्ञ, ज्ञानी तथा कृतज्ञ थे।)।

मिथकीय कल्पनाओं में गोते खाने की बजाय और उसके माध्यम से भारत के संविधान (जिसकी शपथ लेकर विधानसभा में विराजमान में हैं) और आधुनिक लोकतन्त्र के रूप में स्थापित राज्य के संचालन की प्रेरणा के लिए इसी रामराज्य को महात्मा गांधी के दृष्टिकोण से भी देखा होता तो पूरे खम से वह कह पाते कि वो एक संविधान अनुमोदित धर्मनिरपेक्ष व समानता-न्याय- बहनापे/भाईचारे के स्तंभों पर खड़े एक लोकतान्त्रिक राज्य के मुख्यमंत्री के रूप में यह संकल्प ले रहे हैं। उन्हें एक बार महात्मा गांधी की चाहत के रामराज्य को भी ज़रूर पढ़ना चाहिए। ज़रूर इसके लिए उन्हें अपने भाषण की शुरुआती पंक्तियाँ बदलना पड़ेंगीं कि ‘वो सबसे पहले हनुमान जी के भक्त हैं, हनुमान जी राम के भक्त हैं और इसलिए राज्य का संचालन रामराज्य के अनुसार होगा’।

गांधी के रामराज्य को अपनाने से पहले गांधी की कही इस बात को भी स्वीकार करना पड़ेगा जो वो अपने रामराज्य की प्रस्तावना में ही कहते हैं कि – “मेरी कल्पना के राम कभी धरती पर आए थे या नहीं, यह उतना महत्वपूर्ण नहीं है। महत्वपूर्ण यह है कि रामराज्य का प्राचीन आदर्श निस्संदेह वास्तविक लोकतंत्र है।  ऐसा लोकतंत्र जहां पर सबसे सामान्य नागरिक को भी इंतजार और धन खर्च किए बिना शीघ्रता के न्याय मिलेगा।’’ गांधी ने पुरजोर ढंग से और बार-बार इस कल्पना में निहित संकीर्णता व मजहबी विशिष्टता बोध को स्पष्ट किया और उन्हें अंदाज़ा रहा कि इससे लोगों में भ्रम पैदा हो सकता है इसलिए उन्होंने एक नहीं कई बार यह कहा कि - 'मैं अपने मुस्लिम दोस्तों को सचेत करता हूं कि रामराज्य शब्द के मेरे प्रयोग को लेकर गलफहमी न पालें। मेरे रामराज्य का मतलब ‘हिंदू राज्य’ नहीं है। मेरे लिए रामराज्य का मतलब ईश्वरीय राज्य यानी ईश्वर का साम्राज्य है।  मेरे लिए राम और रहीम एक ही है और एक ही देवता हैं। मैं सच्चाई और नियमबद्धता के अलावा किसी अन्य ईश्वर को नहीं मानता।’ ये बात उन्होंने 1929 में कही।

1946 में हरिजन अखबार में उन्होंने एक संपादकीय लिखकर इस बात को फिर स्पष्ट किया कि वे रामराज्य के मुहावरे का प्रयोग क्यों करते हैं? और वह वास्तव में मुस्लिम और ईसाई भाइयों से इससे किसी किसी तरह का कोई भेद नहीं उत्पन्न करते। वे लिखते हैं कि ‘यह एक सुविधाजनक और जीवंत मुहावरा है जिसके विकल्प में अगर कोई दूसरा शब्द इस्तेमाल किया जाए तो वह देश के लाखों लोगों को इतना समझ में नहीं आएगा। जब मैं सीमांत प्रांत में जाता हूं या मुस्लिम बहुल सभा को संबोधित करता हूं तो मैं उन्हें अपनी बात का अर्थ समझाने के लिए ‘खुदाई राज’ शब्द का प्रयोग करता हूं। जब मेरी सभा में ईसाई बंधु होते हैं तो मैं उसे धरती पर ‘ईश्वर का राज्य’ कहता हूं।

हालांकि मौजूदा राजनैतिक परिदृश्य में आदर्श रामराज्य वाल्मीकि और तुलसी से कहीं ज़्यादा प्रासंगिक महात्मा गांधी की कल्पना का रामराज्य है लेकिन वह राजनैतिक दलों व सरकारों के लिए सबसे असुविधाजनक है। क्योंकि गांधी के लिए एक शब्द में ‘स्वतन्त्रता ही रामराज्य है’। आदर्श राजनीति और राज्य के संचालन की दिग्दर्शिका कही जाने वाली उनकी छोटी सी पुस्तक ‘हिन्द स्वराज’ में गांधी ने रामराज्य की कल्पना को व्यावहारिक रूप में अपनाए जाने की युक्तियाँ बतायीं थीं। जिस एक शब्द ने सभी को पागल किया हुआ है उस ‘विकास’ को भी रामराज्य के प्रारूप पर कैसे उतारा जा सकता है इसे लेकर भी समझाइशें दी थीं। लेकिन गांधी केजरीवाल जी को रास नहीं आएंगे क्योंकि वहाँ नीयत में गंभीर शुचिता दरकार है। बहरहाल। 

आज की राजनीति के लिए आसान हो गया है कि गांधी के उदार रामराज्य को संकीर्ण धार्मिक कुंजी में बदल दिया जाये। केजरीवाल जी द्वारा अपनाया गया रामराज्य क्या हिन्दू राज्य का समानार्थी ही होगा या इसमें देशभक्ति के मिश्रण से कुछ नये मायने भी पैदा होंगे?

(लेखक पिछले 15 सालों से सामाजिक आंदोलनों से जुड़े हैं। समसामयिक मुद्दों पर लिखते हैं। व्यक्त विचार निजी हैं।)

Arvind Kejriwal
Ram Rajya
hindu rashtra
Ram Mandir
ayodhya
Delhi Budget

Related Stories

मुंडका अग्निकांड: 'दोषी मालिक, अधिकारियों को सजा दो'

मुंडका अग्निकांड: ट्रेड यूनियनों का दिल्ली में प्रदर्शन, CM केजरीवाल से की मुआवज़ा बढ़ाने की मांग

PM की इतनी बेअदबी क्यों कर रहे हैं CM? आख़िर कौन है ज़िम्मेदार?

ख़बरों के आगे-पीछे: MCD के बाद क्या ख़त्म हो सकती है दिल्ली विधानसभा?

विचार: सांप्रदायिकता से संघर्ष को स्थगित रखना घातक

‘आप’ के मंत्री को बर्ख़ास्त करने से पंजाब में मचा हड़कंप

राम मंदिर के बाद, मथुरा-काशी पहुँचा राष्ट्रवादी सिलेबस 

मुंडका अग्निकांड के लिए क्या भाजपा और आप दोनों ज़िम्मेदार नहीं?

ख़बरों के आगे-पीछे: राष्ट्रपति के नाम पर चर्चा से लेकर ख़ाली होते विदेशी मुद्रा भंडार तक

मुंडका अग्निकांड: लापता लोगों के परिजन अनिश्चतता से व्याकुल, अपनों की तलाश में भटक रहे हैं दर-बदर


बाकी खबरें

  • संदीपन तालुकदार
    वैज्ञानिकों ने कहा- धरती के 44% हिस्से को बायोडायवर्सिटी और इकोसिस्टम के की सुरक्षा के लिए संरक्षण की आवश्यकता है
    04 Jun 2022
    यह अध्ययन अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि दुनिया भर की सरकारें जैव विविधता संरक्षण के लिए अपने  लक्ष्य निर्धारित करना शुरू कर चुकी हैं, जो विशेषज्ञों को लगता है कि अगले दशक के लिए एजेंडा बनाएगा।
  • सोनिया यादव
    हैदराबाद : मर्सिडीज़ गैंगरेप को क्या राजनीतिक कारणों से दबाया जा रहा है?
    04 Jun 2022
    17 साल की नाबालिग़ से कथित गैंगरेप का मामला हाई-प्रोफ़ाइल होने की वजह से प्रदेश में एक राजनीतिक विवाद का कारण बन गया है।
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    छत्तीसगढ़ : दो सूत्रीय मांगों को लेकर बड़ी संख्या में मनरेगा कर्मियों ने इस्तीफ़ा दिया
    04 Jun 2022
    राज्य में बड़ी संख्या में मनरेगा कर्मियों ने इस्तीफ़ा दे दिया है। दो दिन पहले इन कर्मियों के महासंघ की ओर से मांग न मानने पर सामूहिक इस्तीफ़े का ऐलान किया गया था।
  • bulldozer politics
    न्यूज़क्लिक टीम
    वे डरते हैं...तमाम गोला-बारूद पुलिस-फ़ौज और बुलडोज़र के बावजूद!
    04 Jun 2022
    बुलडोज़र क्या है? सत्ता का यंत्र… ताक़त का नशा, जो कुचल देता है ग़रीबों के आशियाने... और यह कोई यह ऐरा-गैरा बुलडोज़र नहीं यह हिंदुत्व फ़ासीवादी बुलडोज़र है, इस्लामोफ़ोबिया के मंत्र से यह चलता है……
  • आज का कार्टून
    कार्टून क्लिक: उनकी ‘शाखा’, उनके ‘पौधे’
    04 Jun 2022
    यूं तो आरएसएस पौधे नहीं ‘शाखा’ लगाता है, लेकिन उसके छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) ने एक करोड़ पौधे लगाने का ऐलान किया है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License