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भारत
राजनीति
सहायक प्रजनन प्रौद्योगिकी (विनियमन) विधेयक 2021 क्या है?
इस विधेयक का उद्देश्य सरोगेसी अधिनियम की धारा 15 के तहत एक राष्ट्रीय सहायक प्रजनन प्रौद्योगिकी और सरोगेसी बोर्ड की स्थापना करना है।
गौरी आनंद
10 Dec 2021
Translated by महेश कुमार
surrogacy

लोकसभा ने हाल ही में सहायक प्रजनन प्रौद्योगिकी विधेयक पारित किया है। गौरी आनंद लिखती हैं कि जल्द ही इसे सरोगेसी बिल के साथ राज्यसभा में पेश किया जाएगा, यह बिल एआरटी क्षेत्र में आवश्यक विनियमन लाने का रास्ता खोलता है, हालांकि विषमलैंगिकता इसकी पात्रता निर्धारित करती हैं और इस तरह विषम मूल्यों को लागू करना अभी जारी है। 

सहायक प्रजनन प्रौद्योगिकी (विनियमन) विधेयक 2021 (जिसे एआरटी विधेयक भी कहा जाता है) 1 दिसंबर को लोकसभा ने पारित कर दिया है। पहली बार इसे सितंबर 2020 में पेश किया गया था, यह बिल एआरटी क्लीनिक (यह आवश्यक सुविधाओं से लैस परिसर और राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग के साथ पंजीकृत चिकित्सकों द्वारा चिकित्सा को एआरटी से संबंधित प्रक्रियाओं को पूरा करने का प्रयास करता है) और उन्हे विनियमित करने का प्रयास करता है।) और बैंक (संगठन जो एआरटी क्लीनिक या उनके रोगियों को दान करदाताओं के शुक्राणु या वीर्य, अंडाणु की आपूर्ति करते हैं) और ऐसा लंबे समय से चल रहे अनियमित क्षेत्र में नैतिक अभ्यास सुनिश्चित करने के लिए किया जा रहा है। हालांकि आईसीएमआर ने 2005 में इन प्रथाओं के प्रति दिशानिर्देश तय किए थे, लेकिन इसके लिए विधायी समर्थन की कमी थी।

सरोगेसी (विनियमन) विधेयक, 2019, जिसे 2019 में लोकसभा में पारित किया गया था, को एक चयन समिति के पास भेजा गया था, जिसने सिफारिश की थी कि एआरटी विधेयक को पहले लाया जाए, ताकि प्रासंगिक तकनीकी पहलुओं को पूर्व वाले में शामिल किया जा सके।

एआरटी बिल एआरटी के "सभी तकनीकों पहलुओं को परिभाषित करता है जो मानव शरीर के बाहर शुक्राणु या अंडाणु को संभालने और युग्मक या भ्रूण को एक महिला की प्रजनन प्रणाली में स्थानांतरित करके गर्भ हासिल करने का प्रयास करता है।" भारत में एआरटी क्लीनिक और बैंक युग्मक दान, अंतर्गर्भाशयी गर्भाधान, इन विट्रो निषेचन, और इंट्रासाइटोप्लास्मिक शुक्राणु इंजेक्शन सहित अन्य सेवाएं प्रदान कर रहे हैं।

एआरटी प्रथाओं का विनियमन

विधेयक का मक़सद सरोगेसी अधिनियम की धारा 15 के तहत एक राष्ट्रीय सहायक प्रजनन प्रौद्योगिकी और सरोगेसी बोर्ड की स्थापना करना है। बोर्ड के गठन से संबंधित सरोगेसी अधिनियम के प्रावधान, कार्यालय की शर्तें, बैठकें, रिक्तियां, अयोग्यताएं, व्यक्तियों का अस्थायी जुड़ाव, उपकरणों का प्रमाणीकरण, और पात्रता एआरटी के संबंध में आवश्यक परिवर्तनों सहित लागू होगी। बोर्ड केंद्र सरकार को सलाह देगा और अधिनियम के कार्यान्वयन की समीक्षा और निगरानी करेगा, क्लीनिक और बैंकों के कर्मचारियों के प्रति आचार संहिता निर्धारित करेगा, बुनियादी ढांचे और उपकरण और श्रमशक्ति और क्लीनिक और बैंकों के अन्य पहलुओं के लिए न्यूनतम मानक निर्धारित करेगा, और उनके कामकाज़ तथा अधिनियम के तहत बनाए गए निकायों, और राष्ट्रीय रजिस्ट्री के कामकाज की निगरानी करेगा। राज्य स्तर पर राष्ट्रीय बोर्ड की सहायता के लिए राज्य एआरटी बोर्ड भी स्थापित किए जाएंगे।

विधेयक के तहत, प्रत्येक एआरटी क्लिनिक और बैंक को नेशनल रजिस्ट्री ऑफ बैंक्स एंड क्लिनिक ऑफ इंडिया के तहत पंजीकृत होना होगा। रजिस्ट्री का मक़सद भारत में एआरटी सेवाएं प्रदान करने वाली सभी सुविधाओं को एक केंद्रीय डेटाबेस के रूप में काम करना है, राज्य सरकारें पंजीकरण प्रक्रिया को सुविधाजनक बनाने के लिए अपने संबंधित राज्यों में संबंधित अधिकारियों की नियुक्ति करेंगी। पंजीकरण का हर पांच साल में नवीनीकरण किया जाएगा और यदि कोई संस्था विधेयक के प्रावधानों का उल्लंघन करती है तो उसे रद्द या निलंबित किया जा सकता है।

केंद्र और राज्य सरकारें उपयुक्त प्राधिकरण स्थापित करेंगी जिसमें एक अध्यक्ष शामिल होगा, जो स्वास्थ्य विभाग में संयुक्त सचिव के पद से ऊपर का अधिकारी होगा; एक उपाध्यक्ष, जो स्वास्थ्य विभाग में संयुक्त निदेशक के पद से ऊपर होगा; एक महिला संगठन का प्रतिनिधित्व करने वाली एक प्रतिष्ठित महिला; विधि विभाग के एक अधिकारी, और, एक प्रतिष्ठित पंजीकृत चिकित्सक इसका हिस्सा होंगे। प्राधिकरण एआरटी केंद्रों के पंजीकरण को अनुदान, निलंबित या रद्द करेगा; साथ ही मानकों को लागू करना और कानून के कार्यान्वयन की निगरानी करना; प्रावधानों के उल्लंघन के संबंध में शिकायतों की जांच करना, एआरटी के दुरुपयोग के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करना और स्वतंत्र जांच करेगा; और प्रौद्योगिकी और सामाजिक परिस्थितियों के विकास के साथ विनियमन में संशोधन के लिए राष्ट्रीय और राज्य बोर्डों को सिफारिश करेगा।

दान, आपूर्ति और सेवाओं की शर्तें

एआरटी बैंक एकमात्र ऐसे निकाय हैं जो युग्मक दाताओं की जांच करने, वीर्य एकत्र करने और संग्रहीत करने और अंडाणु प्रदान करने वालों के लिए अधिकृत हैं। वीर्य केवल 21 से 55 वर्ष की आयु के पुरुषों से लिए जा सकते हैं, और अंडाणु केवल 23 और 35 वर्ष की आयु के बीच की महिलाओं से लिए जा सकते हैं। एक महिला अपने जीवन में केवल एक बार अंडाणु दान कर सकती है, और दान किए गए अंडाणु की संख्या सात से अधिक नहीं हो सकती हैं। इसके अलावा, एक बैंक एक से अधिक बार कमीशनिंग जोड़े या दान पाने वाले एकल दाता के युग्मक की आपूर्ति नहीं कर सकता है। किसी भी युग्मक को दस वर्ष से अधिक की अवधि के लिए संग्रहीत नहीं किया जा सकता है, जिसके बाद इसे नष्ट किया जा सकता है या कमीशनिंग जोड़े या व्यक्ति की अनुमति से अनुसंधान के लिए दान किया जा सकता है।

एआरटी सेवाएं केवल एआरटी सेवाओं की मांग करने वाले पक्षों, साथ ही दाता की लिखित सूचित सहमति प्राप्त करने के बाद ही प्रदान की जा सकती हैं। प्रक्रिया के दौरान निर्दिष्ट नुकसान, क्षति, जटिलताओं, या दाता की मृत्यु को कवर करने के लिए कमीशनिंग जोड़े को एक बीमा कंपनी से अंडाणु दानकर्ता को बीमा कवरेज प्रदान करने की जरूरत होगी। भ्रूण के आरोपण से पहले आनुवंशिक रोगों की जांच के लिए एआरटी क्लीनिकों की जरूरत होती है, और वे पूर्व-निर्धारित लिंग के ज़रिए बच्चे को प्रदान करने की पेशकश नहीं कर सकते हैं। इसके अलावा, भारत के भीतर या बाहर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से युग्मक, युग्मज और भ्रूण, या उसके किसी भाग या उससे संबंधित जानकारी की बिक्री, स्थानांतरण या उपयोग निषिद्ध है, व्यक्तिगत उपयोग के मामलों को छोड़कर जहां व्यक्ति अपने स्वयं के भ्रूण और युग्मक को राष्ट्रीय बोर्ड की अनुमति से स्थानांतरित करना चाहते हैं। 

भ्रूण के गर्भाशय में आरोपण से पहले आनुवंशिक रोगों की जांच के लिए एआरटी क्लीनिकों की जरूरत होती है, और पूर्व-निर्धारित लिंग के आधार पर बच्चे को प्रदान करने की पेशकश नहीं कर सकते हैं।

बच्चे के अधिकार

एआरटी का इस्तेमाल कर पैदा हुए बच्चे को कमीशनिंग दंपत्ति या व्यक्ति का जैविक बच्चा माना जाता है और वह प्राकृतिक रूप से पैदा हुए बच्चे के समान अधिकारों और विशेषाधिकारों का हकदार होता है। दाता को उसके युग्मक से पैदा हुए बच्चों पर माता-पिता के सभी अधिकारों का त्याग करना होगा। 

अपराध और दंड

सेक्स सेलेक्टिव एआरटी का प्रावधान करने पर पांच से दस साल का कारावास या 10 से 25 लाख रुपये के बीच जुर्माना या दोनों प्रावधानों के साथ दंडनीय होगा।

विधेयक कई अन्य अपराधों के लिए भी प्रावधान करता है, जिसमें (i) एआरटी के माध्यम से पैदा हुए बच्चों को छोड़ना, या उनका शोषण करना, (ii) मानव भ्रूण या युग्मक को बेचना, खरीदना, धंधा करना, व्यापार करना या आयात करना, (iii) कमीशनिंग दंपत्ति, महिला का शोषण करना, या किसी भी रूप में युग्मक दाता, (v) मानव भ्रूण को नर या जानवर में स्थानांतरित करना, (vi) अनुसंधान के लिए भ्रूण या युग्मक बेचना, और (vii) दाताओं से युग्मक खरीदने के लिए बिचौलियों का इस्तेमाल दंडनीय होगा। 

अगर ये अपराध पहली बार किए जाते हैं तो अपराधी को पहली बार 5 से 10 लाख रुपए के बीच का जुर्माना देना होगा और उसके बाद के उल्लंघन के लिए आठ से बारह साल का कारावास और साथ ही 10 से 20 लाख के बीच का जुर्माना भरना होगा। 

इसके अलावा, कोई भी अदालत इस अधिनियम के तहत दंडनीय किसी भी अपराध का संज्ञान नहीं ले सकती है, सिवाय इसके कि राष्ट्रीय बोर्ड या राज्य बोर्ड या उनके द्वारा अधिकृत किसी अधिकारी ने शिकायत की है तो ही कोर्ट इस पर कार्यवाही हकदार होगा। 

खामियां 

जैसा कि लोकसभा में बहस में बताया गया है कि एआरटी बिल LGBTQI+ व्यक्तियों, लिव-इन जोड़ों और एकल पुरुष माता-पिता के प्रति भेदभाव करता है। यह विधेयक अपने मूल में, नवतेज सिंह जौहर में सुप्रीम कोर्ट के फैसले की भावना के खिलाफ जाता है, जो समान-लिंग वाले जोड़ों के साथ परिवार बढ़ाने के उनके अधिकार के साथ भेदभाव करता है। इस संबंध में, ऐसा प्रतीत होता है कि पितृसत्तात्मक और लिंगभेद या विषम मूल्यों ने सरोगेसी विधेयक और एआरटी विधेयक दोनों को प्रभावित किया है, एआरटी विधेयक एक कमीशनिंग जोड़े को "बांझ विवाहित जोड़े" के रूप में परिभाषित करता है और सरोगेसी विधेयक के तहत इसका फायदा उठाने के लिए भारतीय नागरिकों को कम से कम पांच विवाहित होना होगा वह भी बिना किसी जीवित संतान के। 

एआरटी के इस्तेमाल से पैदा हुए बच्चे को कमीशनिंग दंपत्ति या व्यक्ति का जैविक बच्चा माना जाता है और वह प्राकृतिक रूप से पैदा हुए बच्चे के समान अधिकारों और विशेषाधिकारों का हकदार होगा। 

जबकि विधेयक का मक़सद देश में प्रजनन प्रौद्योगिकी के नियमन में एक महत्वपूर्ण अंतर को भरना है, इसलिए सरकार को नागरिकों के साथ समान व्यवहार करने के लिए अपने संवैधानिक दायित्व को पूरा करना चाहिए और उन प्रावधानों को सुधारना चाहिए जो प्रभावी रूप से उन वर्गीकरणों को स्थापित करते हैं जिनका उद्देश्य तर्कसंगत संबंध नहीं है जिसे कानून के द्वारा हासिल करने की बात कही गई है। 

(गौरी आनंद एक पर्यावरण वकील हैं और द लीफलेट में शोध और संपादकीय टीम का हिस्सा हैं। व्यक्त किए गए विचार व्यक्तिगत हैं।)

Courtesy: The Leaflet

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Assisted Reproductive Technology Bill
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