NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
मुद्दा: विपक्ष शासित राज्य सरकारों को परेशान करने के लिए अब सुरक्षा बलों का इस्तेमाल?
पिछले कुछ समय से केंद्र सरकार द्वारा केंद्रीय सुरक्षा बलों का राजनैतिक इस्तेमाल किया जाने लगा है। अब केंद्रीय गृह मंत्रालय ने अपने एक नए और असाधारण आदेश के जरिए पंजाब और पश्चिम बंगाल में सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) द्वारा तलाशी और गिरफ्तारी करने के अधिकार क्षेत्र को बढ़ा दिया है। 
अनिल जैन
18 Oct 2021
BSF issue
प्रतीकात्मक तस्वीर। साभार: प्रभासाक्षी

केंद्र सरकार ने पिछले छह-सात वर्षों से राज्यों के अधिकारों में कटौती और विपक्ष शासित राज्य सरकारों के साथ टकराव पैदा करने का एक सुनियोजित सिलसिला चला रखा है। इस सिलसिले में विपक्ष शासित राज्य सरकारों को अस्थिर या परेशान करने के लिए राज्यपाल, चुनाव आयोग, प्रवर्तन निदेशालय (ईडी), आयकर, केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई), राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) आदि संवैधानिक संस्थाओं और केंद्रीय एजेंसियों का जिस तरह से बेजा इस्तेमाल किया जा रहा है, वह भी किसी से छिपा नहीं है। लेकिन पिछले कुछ समय से इस सिलसिले में केंद्रीय सुरक्षा बलों का इस्तेमाल भी किया जाने लगा है। इस सिलसिले को और आगे बढाते हुए अब केंद्रीय गृह मंत्रालय ने अपने एक नए और असाधारण आदेश के जरिए पंजाब और पश्चिम बंगाल में सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) द्वारा लोगों से पूछताछ करने, उनकी तलाशी लेने और गिरफ्तारी करने के अधिकार क्षेत्र को बढ़ा दिया है।

पंजाब में कांग्रेस की सरकार है और पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस की। ये दोनों राज्य भी दूसरे कई राज्यों की तरह सीमावर्ती राज्य हैं। पंजाब की पश्चिमी सीमा जहां पाकिस्तान से सटी हुई है, वहीं पश्चिम बंगाल की सीमाएं बांग्लादेश, नेपाल और भूटान से मिलती हैं। इन दोनों सरहदी सूबों में अभी तक बीएसएफ का निगरानी अधिकार क्षेत्र अंतरराष्ट्रीय सीमा के अंदर 15 किलोमीटर तक सीमित था, जिसे बढ़ाकर अब 50 किलोमीटर तक लागू कर दिया गया है।

हालांकि केंद्रीय गृह मंत्रालय का यह आदेश असम में भी लागू होगा, जहां भारतीय जनता पार्टी की सरकार है, लेकिन इसी आदेश में भाजपा शासित गुजरात में बीएसएफ के निगरानी अधिकार क्षेत्र को 80 किलोमीटर से घटाकर 50 किलोमीटर कर दिया है। गौरतलब है कि गुजरात भी सीमावर्ती राज्य है और उसकी उत्तर-पश्चिमी सीमा अंतरराष्ट्रीय है, जो कि पाकिस्तान से लगी हुई है। इस लिहाज से वह भी संवेदनशील राज्य है और वहां हाल ही में देश के चर्चित अडानी उद्योग समूह के निजी मुंद्रा बंदरगाह पर 3000 किलो हेरोइन पकड़ी गई थी, जिसके बारे में सरकार तो मौन है ही, कॉरपोरेट नियंत्रित मीडिया ने भी इस खबर का जिक्र तक करना मुनासिब नहीं समझा।

ये भी पढ़ें: चन्नी के चयन को हल्के में मत लीजिए !

गुजरात की तरह राजस्थान भी पाकिस्तान की सीमा से लगा राज्य है और वहां पहले से बीएसएफ का निगरानी अधिकार क्षेत्र  50 किलोमीटर तक है, जिसे नए आदेश में भी बरकरार रखा गया है। पूर्वोत्तर में मणिपुर, मिजोरम, त्रिपुरा, नगालैंड और मेघालय के पूरे इलाके में बीएसएफ के अधिकार क्षेत्र को भी पहले की तरह बनाए रखा गया है।

बहरहाल पंजाब और पश्चिम बंगाल के संदर्भ में केंद्र सरकार के नए आदेश से यह सवाल उठना लाजिमी है कि क्या वह केंद्रीय अर्धसैनिक बलों का भी राजनीतिकरण नहीं कर रही है? यह सवाल इसलिए उठता है, क्योंकि इसी साल पश्चिम बंगाल में हुए विधानसभा चुनाव के दौरान भी यह मुद्दा जोर-शोर से उठा था। उस चुनाव में केंद्रीय बलों की भारी संख्या में तैनाती और एक मतदान केंद्र पर केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) के जवानों की फायरिंग में कई लोगों के मारे जाने की घटना की खूब आलोचना हुई थी। वहां चुनाव में तो भाजपा नहीं जीत सकी थी लेकिन चुनाव के बाद उसने अपने जीते हुए सभी 75 उम्मीदवारों यानी विधायकों की सुरक्षा में सीआरपीएफ के जवान तैनात कर दिए थे। चुनाव के दौरान भी कई भाजपा उम्मीदवारों और चुनाव से पहले भाजपा में दूसरे दलों से आए कई नेताओं को सीआरपीएफ की सुरक्षा मुहैया कराई गई थी। अर्धसैनिक बलों के राजनीतिकरण की यह एक नई मिसाल थी।

इससे पहले सेना के राजनीतिक इस्तेमाल की शुरुआत तो खुद प्रधानमंत्री ने ही पिछले लोकसभा चुनाव के दौरान कर दी थी, जब उन्होंने पुलवामा कांड में मारे गए सेना के जवानों के चित्र अपनी चुनावी रैलियों के मंच पर लगवाए थे और उनके नाम पर वोट मांगे थे। चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ और तीनों सेनाओं के प्रमुखों की ओर से कश्मीर, पाकिस्तान और विवादास्पद रक्षा सौदों को लेकर राजनीतिक बयानबाजी का सिलसिला भी केंद्र में मोदी सरकार बनने के बाद ही शुरू हो गया था जो अब भी जारी है। यह और बात है कि चीनी सेना की भारतीय सीमाओं में घुसपैठ पर हमारी सेनाओं के प्रमुख बहुत कम बोलते हैं और प्रधानमंत्री तो बिल्कुल ही नहीं बोलते हैं।

बहरहाल अब केंद्र सरकार सीमा सुरक्षा के नाम पर राज्यों में बीएसएफ की भूमिका बढ़ा रही है। इसीलिए पंजाब और पश्चिम बंगाल की सरकारों ने केंद्र सरकार के इस फैसले पर आपत्ति जताते हुए इसे देश के संघीय ढांचे को बिगाड़ने वाला राजनीति से प्रेरित कदम करार दिया है। लेकिन लगता नहीं है कि केंद्र सरकार अपने कदम पीछे खिंचेगी।

ऐसा लग रहा है कि केंद्र सरकार ने पंजाब में राज्य सरकार और सत्तारूढ़ कांग्रेस पार्टी के अंदरुनी विवादों का फायदा उठाने के इरादे से राज्य में बीएसएफ की भूमिका बढ़ाई है। पंजाब की सीमा पाकिस्तान से लगती है और इस वजह से सीमा के अंदर 15 किलोमीटर तक बीएसएफ की गश्त और चौकसी चलती है। लेकिन केंद्र सरकार ने अब इसे बढ़ा कर 50 किलोमीटर कर दिया है। पंजाब के मुख्यमंत्री पद से हटाए गए कैप्टन अमरिंदर सिंह ने अपनी खुन्नस निकालने के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा का मुद्दा उठाया है। इस सिलसिले में वे मुख्यमंत्री पद से हटाए जाने के तत्काल बाद दिल्ली आकर केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल से मिले और उसके बाद केंद्र सरकार ने आनन फानन में पंजाब और पश्चिम बंगाल में बीएसएफ की निगरानी का दायरा बढ़ाने का ऐलान कर दिया। गौरतलब है कि पश्चिम बंगाल सरकार के साथ केंद्र का टकराव पहले से ही जारी है।

सवाल यह भी उठता है कि सीमा पर बीएसएफ जब 15 किलोमीटर तक सारी चौकसी के बावजूद पाकिस्तानी ड्रोन या हथियारों की आमद और नशीले पदार्थों की तस्करी नहीं रोक पा रही है तो अब 50 किलोमीटर तक कैसे रोकेगी? जाहिर है कि केंद्रीय गृह मंत्रालय के ताजा आदेश का सीधा मकसद बीएसएफ के जरिए राज्य की अंदरुनी सुरक्षा को नियंत्रित करना है। उसके इस फैसले से देश का संघीय ढांचा गड़बड़ाएगा और राज्य की पुलिस के साथ केंद्रीय सुरक्षा बलों का टकराव भी बढ़ेगा। हालांकि केंद्र सरकार ने कहने को तो और भी राज्यों में बीएसएफ की चौकसी का दायरा बढ़ाया-घटाया है लेकिन वह सब दिखावा है। असली मकसद पंजाब और पश्चिम बंगाल में क्रमश: कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस की सरकार को परेशान करना और उनके साथ टकराव बढ़ाना है।

पिछले छह-सात वर्षों के दौरान जो एक नई और खतरनाक प्रवृत्ति विकसित हुई, वह है सरकार, सत्तारूढ़ दल और मीडिया द्वारा सेना का अत्यधिक महिमामंडन। यह सही है कि हमारे सैन्य और अर्ध सैन्य बलों को अक्सर तरह-तरह की मुश्किल चुनौतियों से जूझना पड़ता है। इस नाते उनका सम्मान होना चाहिए लेकिन उनको किसी भी मामले में सवालों से परे मान लेना, दलीय राजनीतिक हितों को साधने के लिए उनका इस्तेमाल किया जाना और सैन्य नेतृत्व द्वारा राजनीतिक बयानबाजी करना तो एक तरह से लोकतांत्रिक व्यवस्था से सैन्यवादी राष्ट्रवाद की तरफ कदम बढ़ाने जैसा है।

केंद्र सरकार विपक्ष शासित राज्यों में जहां राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर केंद्रीय अर्ध सैनिक बलों का राजनीतिक हथियार के तौर पर इस्तेमाल कर रही है, वहीं भाजपा शासित राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में पुलिस का तो इस कदर राजनीतिकरण किया जा चुका है कि वह सत्तारूढ़ दल के मोर्चा संगठन के रूप में ही कार्य कर रही है।

पुलिस-प्रशासन के राजनीतिकरण की सबसे भद्दी मिसाल हाल के वर्षों में उत्तर प्रदेश में देखी गई है, जहां एनएसए यानी राष्ट्रीय सुरक्षा कानून का बेहताशा दुरुपयोग कर बेकुसूर लोगों को बिना मुकदमा चलाए जेल में डाला जा रहा है। इसी साल अप्रैल महीने में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने एनएसए के 120 मामलों में दायर हैबियस कार्पस यानी बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिकाओं की सुनवाई करते हुए 94 मामलों को खारिज कर उत्तर प्रदेश सरकार को कड़ी फटकार लगाई थी। अदालत ने इन मामलों के आरोपियों को रिहा करने का आदेश देते हुए कहा था कि ऐसा लगता है कि जिला मजिस्ट्रेटों ने ऐसे मामलों को मंजूरी देने में अपने दिमाग का इस्तेमाल नहीं किया और एनएसए के मामलों की समीक्षा के लिए बने सलाहकार बोर्ड के सामने भी इन मामलों को नहीं रखा गया।

केंद्र सरकार के मातहत काम करने वाली दिल्ली पुलिस ने भी पिछले कुछ सालों के दौरान जेएनयू और जामिया से लेकर शाहीन बाग तक और कोरोना काल में तब्लीगी जमात के लोगों को कोरोना फैलाने का जिम्मेदार ठहराने के मामले में भी केंद्र सरकार और सत्तारूढ़ दल की कठपुतली बनकर काम किया है। यही नहीं इन सारे मामलों में पुलिस की सांप्रदायिक और पक्षपातपूर्ण कार्रवाई का खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दिल्ली के रामलीला मैदान की एक सभा में सार्वजनिक तौर पर बचाव किया और पुलिस को शाबासी दी। यह और बात है कि बाद में दिल्ली पुलिस को इन मामलों में अदालतों की फटकार सुनना पड़ी और नीचा देखना पड़ा। इस सिलसिले में पिछले एक साल से दिल्ली की सीमाओं पर जारी किसान आंदोलन और दो साल पहले दिल्ली में हुए सांप्रदायिक दंगों के दौरान भी पुलिस की भूमिका को देखा जा सकता है। उन दंगों को लेकर हाल ही में विभिन्न अदालतों ने दिल्ली पुलिस को उसकी पक्षपातपूर्ण भूमिका के लिए कड़ी फटकार लगाई है।

इसके बावजूद न तो दिल्ली पुलिस के और न ही देश के किसी अन्य राज्य की पुलिस के रवैये मे कोई सुधार हुआ। यह सिलसिला लोकतंत्र के भीतर पुलिस को वर्दीधारी गुंडों का गिरोह बनाने वाला है। अगर देश में पुलिस के बेजा इस्तेमाल यह सिलसिला इसी तरह जारी रहा तो देश को पूरी तरह पुलिस स्टेट में तब्दील होने से नहीं रोका जा सकेगा और इंसाफ के सिलसिले की इस पहली कड़ी पर लोगों का जरा भी भरोसा नही रह जाएगा।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।) 

ये भी पढ़ें: बॉर्डर राज्यों में केंद्र ने बढ़ाया BSF का दायरा, पंजाब-पश्चिम बंगाल ने बताया राज्यों पर हमला

BJP
opposition
BSF
punjab
West Bengal
Modi Govt
Narendra modi
Amit Shah
mamta banerjee
Charanjit Singh Channi
Congress

Related Stories

राज्यपाल की जगह ममता होंगी राज्य संचालित विश्वविद्यालयों की कुलाधिपति, पश्चिम बंगाल कैबिनेट ने पारित किया प्रस्ताव

भाजपा के इस्लामोफ़ोबिया ने भारत को कहां पहुंचा दिया?

कश्मीर में हिंसा का दौर: कुछ ज़रूरी सवाल

सम्राट पृथ्वीराज: संघ द्वारा इतिहास के साथ खिलवाड़ की एक और कोशिश

तिरछी नज़र: सरकार जी के आठ वर्ष

कटाक्ष: मोदी जी का राज और कश्मीरी पंडित

हैदराबाद : मर्सिडीज़ गैंगरेप को क्या राजनीतिक कारणों से दबाया जा रहा है?

ग्राउंड रिपोर्टः पीएम मोदी का ‘क्योटो’, जहां कब्रिस्तान में सिसक रहीं कई फटेहाल ज़िंदगियां

धारा 370 को हटाना : केंद्र की रणनीति हर बार उल्टी पड़ती रहती है

मोहन भागवत का बयान, कश्मीर में जारी हमले और आर्यन खान को क्लीनचिट


बाकी खबरें

  • सौरभ शर्मा
    'नथिंग विल बी फॉरगॉटन' : जामिया छात्रों के संघर्ष की बात करती किताब
    09 May 2022
    वह जिनमें निराशा भर गई है, उनके लिए इस नई किताब ने उम्मीद जगाने का काम किया है।
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    ज्ञानवापी विवाद में नया मोड़, वादी राखी सिंह वापस लेने जा रही हैं केस, जानिए क्यों?  
    09 May 2022
    राखी सिंह विश्व वैदिक सनातन संघ से जुड़ी हैं। वह अपनी याचिका वापस लेने की तैयारी में है। इसको लेकर उन्होंने अर्जी डाल दी है, जिसे लेकर हड़कंप है। इसके अलावा कमिश्नर बदलने की याचिका पर सिविल जज (…
  • itihas ke panne
    न्यूज़क्लिक ब्यूरो
    क्या हिंदी को लेकर हठ देश की विविधता के विपरीत है ?
    08 May 2022
    पिछले महीने देश के गृह मंत्री अमित शाह ने बयान दिया कि अलग प्रदेशों के लोगों को भी एक दूसरे से हिंदी में बात करनी चाहिए। इसके बाद देश में हिंदी को लेकर विवाद फिर एक बार सामने आ गया है। कई विपक्ष के…
  • farmers
    न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    राम सेना और बजरंग दल को आतंकी संगठन घोषित करने की किसान संगठनों की मांग
    08 May 2022
    किसान संगठनों ने 9 मई को प्रदेशभर में सिवनी हत्याकांड और इसके साथ ही एमएसपी को लेकर अभियान शुरू करने का आह्वान किया।
  • kavita
    न्यूज़क्लिक डेस्क
    इतवार की कविता : माँओं के नाम कविताएं
    08 May 2022
    मदर्स डे के मौक़े पर हम पेश कर रहे हैं माँओं के नाम और माँओं की जानिब से लिखी कविताएं।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License