उत्तर प्रदेश के बदायूं में पचास साल की आंगनबाड़ी सहायिका के सामूहिक दुष्कर्म और हत्या मामले में फरार मुख्य आरोपी महंत सत्यनारायण को यूपी पुलिस ने बृहस्पतिवार, 7 जनवरी की देर रात गिरफ्तार कर लिया। पुलिस ने उस पर 50 हजार रुपये का इनाम घोषित किया था। हालांकि पुलिस की इस गिरफ्तारी को लेकर भी तमाम सवाल उठ रहे हैं। कहा जा रहा है कि पुजारी चार दिन से उसी गांव में अपने किसी शिष्य के यहाँ रह रहा था लेकिन पुलिस उसे ढूँढ़ नहीं पाई।
हैरानी की बात ये है कि भारी जन आक्रोश और महिला संगठनों के दबाव के बावजूद पुलिस सीधे तौर पर पुजारी सत्यनारायण को पकड़ नहीं पाई, बल्कि जब वो बाइक पर सवार होकर कहीं भागने की फ़िराक में था, उसी समय कुछ गाँववालों ने उसे पकड़कर पुलिस को सौंप दिया। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर पुजारी किसकी कृपा से अभी तक बचा हुआ था? सवाल सिर्फ एक नहीं है इस घटना ने यूपी पुलिस से लेकर योगी आदित्यनाथ सरकार और राष्ट्रीय महिला आयोग पर कई गंभीर सवाल खड़े किए हैं।
आरोपियों को बचाने का ट्रेंड
सबसे पहले बात बीजेपी के योगी आदित्यनाथ सरकार और पुलिस प्रशासन की। जाहिर है यूपी पुलिस सूबे की सरकार को रिपोर्ट करती है। ऐसे में कानून व्यवस्था से जुड़े हर मामले की जिम्मेदारी भी प्रदेश सरकार की बनती है। उन्नाव का माखी कांड हो या हाथरस का मामला और अब बदायूं। राज्य में सरकार भले ही ‘न्यूनतम अपराध’ और ‘बेहतर कानून व्यवस्था’ का दावा करती हो लेकिन हक़ीक़त में प्रदेश में महिलाओँ के खिलाफ अपराध की सूरत और पीड़िता के प्रति पुलिस के व्यवहार में कोई बदलाव नहीं आया है।
आपकों याद होगा उन्नाव मामले में यूपी पुलिस ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में आरोपी कुलदीप सिंह सेंगर को सम्मान देकर संबोधित किया था। जब पत्रकारों की ओर से इस पर टोका गया, तो पुलिस का कहना था कि विधायक कुलदीप सिंह सेंगर आरोपी हैं, दोषी नहीं। और इसलिए यूपी पुलिस ने सेंगर की गिरफ्तारी से अपना पल्ला भी झाड़ लिया था।
जब प्रेस कॉन्फ्रेंस में पत्रकारों ने पूछा था कि पॉक्सो एक्ट में पीड़िता के बयान के बाद आरोपी को गिरफ्तार करने का प्रावधान है तो इस मामले को अलग तरह से क्यों ट्रीट किया जा रहा है। इसके जवाब में तब के पुलिस महानिदेशक ओपी सिंह ने कहा था, “17 अगस्त को जब पहली बार इस मामले की शिकायत की थी तो उसमें विधायक जी का नाम नहीं था। ऐसे में आप लोग बताए कि उन्हें किस आधार पर रोका जा सकता है।”
महिला के चरित्र और दुष्कर्म पर सवाल
हाथरस मामले की बात करें तो खुद प्रदेश के एडीजी लॉ एंड ऑर्डर प्रशांत कुमार ने मीडिया स्टेटमेंट में कहा था कि युवती के साथ रेप नहीं हुआ। उन्होंने रेप की खबरों को भ्रामक बताकर सख्त कार्रवाई की बात कही थी।
एडीजी लॉ एंड ऑर्डर प्रशांत कुमार ने कहा था, “फॉरेंसिक साइंस लैब की रिपोर्ट से भी यह साफ जाहिर होता है कि उसके साथ बलात्कार नहीं हुआ। समाजिक सौहार्द को बिगाड़ने और जातीय हिंसा भड़काने के लिए कुछ लोग तथ्यों को गलत तरीके से पेश कर रहे हैं।”
इतना ही नहीं तमाम बीजेपी के प्रवक्ता और खुद आईटी सेल के हेड अमित मालवीय ने पीड़िता की पहचान तक उज़ागर कर दी थी, ये कहते हुए कि दलित युवती के साथ बलात्कार नहीं हुआ है। जो कानूनन गलत है, लेकिन इसके बावजूद न तो सरकार ने और न ही प्रशासन ने इस पर कोई कार्रवाई की।
शिकायत न लिखकर मामले को टरकाने का आरोप
बदायूं मामले में भी पीड़िता के बेटे ने आरोप लगाया है कि शिकायत के बावजूद पुलिस ने आरोपी महंत के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की। पुलिस बलात्कार की घटना को हादसा बताने की कोशिश में लगी रही।
महिला के परिजनों का आरोप है कि पुलिस पहले तो उन्हें टरकाती रही, और कुएं में गिरने को ही मौत की वजह बताती रही। दो दिन तक शव का पोस्टमार्टम भी नहीं कराया। जब यह मामला मीडिया में उछला, तब कहीं जाकर पुलिस ने आरोपियों के खिलाफ मामला दर्ज किया और उसके बाद 5 जनवरी को पोस्टमार्टम कराया गया, जिसमें बलात्कार और शरीर पर गंभीर चोटों की पुष्टि हुई।
पीड़ित को प्रताड़ित करने का ट्रेंड
अब जानते हैं राष्ट्रीय महिला आयोग को। वो आयोग जिस पर महिलाओं की सुरक्षा, सहायता और वेलफेयर का जिम्मा होता है। हालांकि आयोग के सदस्यों के बयान और भूमिका पर हमेशा से सवाल उठते रहे हैं। सदस्यों की योग्यता पर भी अक्सर विवाद सामने आते रहते हैं। हाल ही में बदायूं मामले इसकी सदस्या चंद्रमुखी देवी ने जो बयान दिया है, उसके बाद निश्चित ही पूरा महिला आयोग कठघरे में खड़ा है।
राष्ट्रीय महिला आयोग की सदस्या चंद्रमुखी देवी ने बदायूं गैंगरेप पीड़ित के परिजनों से मिलने के बाद एक विवादित बयान दिया। उन्होंने कहा कि पीड़ित महिला अगर शाम के वक्त नहीं गई होती या उसके साथ परिवार का कोई बच्चा साथ में होता तो शायद ऐसी घटना नहीं घटती।
महिलाओं को समय-असमय नहीं निकलना चाहिए!
चंद्रमुखी देवी ने मीडिया से बात करते हुए कहा, “इन मामलों को लेकर सरकार बहुत सख्त है लेकिन इसके बावजूद ऐसी घटनाएं हो जा रहीं हैं। और इसमें पुलिस की भूमिका सबसे दुखद है। मैं पुलिस की भूमिका से संतुष्ट नहीं हूं। ये बहुत वीभत्स घटना है। पूरा परिवार उस महिला पर आश्रित था। ये मानवता को शर्मसार करने वाली घटना है। लेकिन इसके साथ एक बात और कहना चाहती हूं। मैं बार-बार महिलाओं से कहती हूं कि कभी भी किसी के प्रभाव में महिला को समय-असमय नहीं पहुंचना चाहिए। सोचती हूं अगर शाम के समय वो महिला नहीं गई होती या परिवार का कोई बच्चा उसके साथ में होता तो शायद ऐसी घटना ही नहीं होती।”
महिला संगठनों ने चंद्रमुखी देवी को हटाने की मांग की
चंद्रमुखी देवी के इस बयान पर महिला संगठनों ने कड़ा विरोध दर्ज करवाया है। संगठनों का कहना है कि ऐसी पितृसत्तामक सोच रखनी वाली चंद्रमुखी देवी महिलाओं की सुरक्षा के लिए बने राष्ट्रीय महिला आयोग की सदस्य कैसे हो सकती है।
अखिल भारतीय प्रगतिशील महिला संगठन (एपवा), अखिल भारतीय जनवादी महिला संगठन (एडवा), नेशनल फेडरेशन ऑफ इंडियन वूमेन (एनएफआईडब्लू), प्रगतिशील महिला संगठन (पीएमएस) समेत कई अन्य संगठनों ने एक संयुक्त बयान जारी कर चंद्रमुखी देवी को तुरंत राष्ट्रीय महिला आयोग से निष्कासित करने की मांग की है।
चंद्रमुखी देवी को सोशल मीडिया पर भी लोगों ने आड़े हाथों लिया। कई लोगों ने उन्हें माफ़ी मांगने की सलाह दी तो कुछ ने कहा कि उन्हें जल्द से जल्द राष्ट्रीय महिला आयोग के सदस्य से हटा दिया जाना चाहिए।
आपको बता दें कि चंद्रमुखी देवी 26 नवंबर 2018 से राष्ट्रीय महिला आयोग की सदस्य हैं। इससे पहले वह बिहार राज्य महिला आयोग की सदस्य रह चुकी हैं। चंद्रमुखी 1995 में हुए अविभाजित बिहार के विधानसभा चुनाव में खगड़िया सीट से बीजेपी के टिकट पर चुनाव जीतकर पटना पहुंची थी।
महिला संगठनों का भारी विरोध, एपवा ने योगी सरकार से मांगा इस्तीफ़ा
गौरतलब है कि बात सिर्फ बदायूं मामले की नहीं है। हर उस मामले की है जिसमें पुलिस और सिस्टम की लापरवाई का कथित तौर पर एक ट्रेंड सेट होता दिखाई देता है। जहां पीड़ित के प्रति संवेदहीनता और प्रताड़ित करने का नया चलन चल पड़ा है। हाथरस की तरह ही महिला संगठनों ने आने वाले दिनों में बदायूं घटना को लेकर विरोध प्रदर्शन का ऐलान किया है। इस मामले में आंगनवाड़ी कर्मचारी पहले ही 7 जनवरी को प्रदेश व्यापी रोष व्यक्त कर चुके हैं।
अखिल भारतीय प्रगतिशील महिला संगठन ने शनिवार, 9 जनवरी को पूरे उत्तर प्रदेश में महिला सुरक्षा के मुद्दे को लेकर प्रदर्शन करने की घोषणा की है। इस प्रदर्शन में कुछ और संगठनों के शामिल होने की भी संभावना है।
महिला संगठनों ने योगी सरकार से इस्तीफ़े की मांग करते हुए कहा है कि मौजूदा सरकार कानून व्यवस्था के मामले में फेल साबित हुई है और लगातार अपराधियों को बचा रही है। प्रदेश में महिलाएं सुरक्षित नहीं हैं और ऐसी स्थिति में योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बने रहने का कोई हक़ नहीं है।