NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
कोर्ट दर कोर्ट: ज़मानत बरक़रार लेकिन यूएपीए को लेकर फ़ैसले का होगा परीक्षण
नताशा, देवांगना, आसिफ़ के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने भी हाईकोर्ट का ज़मानत का फ़ैसला क़ायम रखा है लेकिन यूएपीए को लेकर उसके फ़ैसले पर विचार करने की बात कही है।
न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
18 Jun 2021
कोर्ट दर कोर्ट: ज़मानत बरक़रार लेकिन यूएपीए को लेकर फ़ैसले का होगा परीक्षण

जेएनयू और जामिया के छात्र-एक्टिविस्ट नताशा नरवाल, देवांगना कलिता और आसिफ़ इक़बाल तन्हा की ज़मानत सुप्रीम कोर्ट ने भी बरक़रार रखी है। सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली हाईकोर्ट के जमानत देने के निर्णय पर रोक लगाने से इंकार कर दिया, हालांकि सुप्रीम कोर्ट, दिल्ली हाईकोर्ट के फ़ैसले का परीक्षण करने को तैयार हो गया है और तीनों एक्टिविस्ट को नोटिस जारी किया गया है।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा, 'यह मुद्दा बेहद महत्‍वपूर्ण है और इसका पूरे देश पर प्रभाव हो सकता है, हम इस मामले में नोटिस जारी करना चाहेंगे।'

सुप्रीम कोर्ट का अंतिम रुख कुछ भी हो, लेकिन सुप्रीम कोर्ट और दिल्ली हाईकोर्ट के फ़ैसलों से यूएपीए पर क़ानूनी और सार्वजनिक बहस का वक़्त तो आ ही गया है। साथ ही गृह मंत्रालय और गृह मंत्री अमित शाह से भी जवाब मांगने का समय है जो इस क़ानून के बड़े पैरोकार हैं और जो इसका और कड़ा संशोधित रूप देश के सामने लेकर आए।

तीनों छात्र-एक्टिविस्ट नताशा, देवांगना और आसिफ़ को 15 जून को जमानत देते हुए दिल्ली उच्च न्यायालय ने अपनी महत्वपूर्ण टिप्पणी में कहा था कि राज्य ने प्रदर्शन के अधिकार और आतंकी गतिविधि के बीच की रेखा को धुंधला कर दिया है और यदि इस तरह की मानसिकता मजबूत होती है तो यह ‘‘लोकतंत्र के लिए एक दुखद दिन होगा।’’

इसे पढ़ें:  दिल्ली दंगे: अदालत ने तीनों छात्र ऐक्टिविस्टों को तत्काल रिहा करने का दिया आदेश

इस फ़ैसले ने यूएपीए के तहत “आतंकवादी गतिविधि” की परिभाषा को ‘‘कुछ न कुछ अस्पष्ट’’ करार दिया और इसके ‘‘लापरवाह तरीके’’ से इस्तेमाल के ख़िलाफ़ चेतावनी देते हुए छात्र कार्यकर्ताओं को जमानत देने से इनकार करने के निचली अदालत के आदेशों को निरस्त कर दिया।

दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले से पता चलता है कि ये तीनों छात्र-एक्टिविस्ट पिछले एक साल से 'बिना सबूत' के  तिहाड़ जेल में बंद थे। और यही नहीं दिल्ली दंगों के मामले में ऐसे ही और न जाने कितने निर्दोष-बेगुनाह लोग अभी जेलों में बंद है। इसके अलावा भीमा-कोरेगांव सहित ऐसे कई मामलों में भी नागरिक और मानवाधिकार कार्यकर्ता जेल में बंद हैं। तभी सुप्रीम कोर्ट ने चिंता जताई है कि इसका असर पूरे देश पर पड़ेगा।

दिल्ली पुलिस और उसके आलाकमान को भी यही डर है कि दिल्ली हाईकोर्ट के फ़ैसले के आधार पर इसी मामले में पकड़े गए अन्य एक्टिविस्ट भी ज़मानत पर छूट सकते हैं। इसलिए वह तुरंत हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट भागे। हालांकि वह इन तीनों छात्र-एक्टिवस्ट की ज़मानत को रद्द नहीं करवा सके लेकिन अन्य मामलों में यही फ़ैसला मिसाल के तौर पर इस्तेमाल नहीं होगा, ऐसा फ़ैसला सुप्रीम कोर्ट से लेने में ज़रूर सफल रहे।

सुप्रीम कोर्ट का अंतिम फ़ैसला कुछ भी हो लेकिन जानकारों की नज़र में ऐसे मामलों में यूएपीए का प्रयोग न केवल इस क़ानून के औचित्य पर प्रश्नचिह्न लगाता है बल्कि सरकार की मंशा पर भी सवाल खड़े करता है कि वो अपने नागरिकों और राजनीतिक विरोधियों को किस तरह दुश्मन के तौर पर देख रही है। और विरोध और असहमति की हर आवाज़ को क़ानून की आड़ में कुचल देना चाहती है। इसलिए यही सही वक्त है कि यूएपीए के प्रयोग पर नये सिरे से बहस शुरू हो और ज़िम्मेदार अफ़सरों के साथ गृह मंत्रालय और गृह मंत्री अमित शाह से जवाब मांगा जाए।

इसे पढ़ें : एक साल के संघर्ष के बाद जेल से रिहा आसिफ़, देवांगना और नताशा; कहा संघर्ष जारी रहेगा

सुप्रीम कोर्ट में आज इस पूरे मसले पर क्या कुछ हुआ। क्या कहा गया, क्या समझा गया। आइए देखते हैं:-

यूएपीए को इस तरह से सीमित करने का देशव्यापी असर हो सकता है : शीर्ष अदालत

पीटीआई-भाषा की ओर से जारी ख़बर के अनुसार उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को कहा कि आतंकवाद रोधी कानून यूएपीए को इस तरह से सीमित करना एक महत्वपूर्ण मुद्दा है और इसके पूरे भारत पर असर हो सकते हैं। इसी के साथ न्यायालय ने यह स्पष्ट कर दिया कि तीन छात्र कार्यकर्ताओं को जमानत देने वाले उच्च न्यायालय के फैसलों को देश में अदालतें मिसाल के तौर पर दूसरे मामलों में ऐसी ही राहत के लिए इस्तेमाल नहीं करेंगी।

न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता और न्यायमूर्ति वी रामसुब्रमण्यम की अवकाशकालीन पीठ ने कहा कि हमारी ‘‘परेशानी’’ यह है कि उच्च न्यायालय ने जमानत के फैसले में पूरे यूएपीए पर चर्चा करते हुए ही 100 पृष्ठ लिखे हैं और शीर्ष अदालत को इसकी व्याख्या करनी होगी।

शीर्ष अदालत तीन छात्र कार्यकर्ताओं को जमानत पर रिहा करने के उच्च न्यायालय के 15 जून के फैसलों को चुनौती देने वाली दिल्ली पुलिस की अपीलों पर सुनवाई करने के लिए राजी हो गयी है। न्यायालय ने इन अपील पर जेएनयू छात्र नताशा नरवाल और देवांगना कालिता और जामिया छात्र आसिफ इकबाल तनहा को नोटिस जारी कर उनसे जवाब मांगे हैं।

तीनों आरोपियों को जमानत देने वाले उच्च न्यायालय के फैसलों पर रोक लगाने से इनकार करते हुए पीठ ने कहा कि किसी भी अदालत में कोई भी पक्ष इन फैसलों को मिसाल के तौर पर पेश नहीं करेगा। पीठ ने कहा, ‘‘यह स्पष्ट किया जाता है कि प्रतिवादी (नरवाल, कालिता और तनहा) को जमानत पर रिहा करने पर इस वक्त हस्तक्षेप नहीं किया जाएगा।’’

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने यह दलील दी कि उच्च न्यायालय ने तीन छात्र कार्यकर्ताओं को जमानत देते हुए पूरे गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) कानून (यूएपीए) को पलट दिया है। इस पर गौर करते हुए पीठ ने कहा, ‘‘यह मुद्दा महत्वपूर्ण है औ इसके पूरे भारत में असर हो सकते हैं। हम नोटिस जारी करना और दूसरे पक्ष को सुनना चाहेंगे। जिस तरीके से कानून की व्याख्या की गई है उस पर संभवत: उच्चतम न्यायालय को गौर करने की आवश्यकता होगी। इसलिए हम नोटिस जारी कर रहे हैं।’’

छात्र कार्यकर्ताओं की ओर से पेश हुए वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि इसमें कोई शक नहीं है कि उच्चतम न्यायालय को यूएपीए के असर और व्याख्या पर गौर करना चाहिए ताकि इस मुद्दे पर शीर्ष अदालत से फैसला आए।

न्यायालय ने कहा, ‘‘कई सवाल हैं जो इसलिए खड़े हुए क्योंकि उच्च न्यायालय में यूएपीए की वैधता को चुनौती नहीं दी गई थी। ये जमानत अर्जियां थी।’’ न्यायालय ने इन छात्र कार्यकर्ताओं को नोटिस जारी किये और कहा कि इस मामले पर 19 जुलाई को शुरू हो रहे हफ्ते पर सुनवाई की जाएगी।

सुनवाई की शुरुआत में मेहता ने उच्च न्यायालय के फैसलों का उल्लेख किया और कहा, ‘‘पूरे यूएपीए को सिरे से उलट दिया गया है।’’ उन्होंने दलील दी कि इन फैसलों के बाद तकनीकी रूप से निचली अदालत को अपने आदेश में ये टिप्पणियां रखनी होगी और मामले में आरोपियों को बरी करना होगा।

मेहता ने कहा कि दंगों के दौरान 53 लोगों की मौत हुई और 700 से अधिक घायल हो गए। ये दंगे ऐसे समय में हुए जब अमेरिका के राष्ट्रपति और अन्य प्रतिष्ठित लोग यहां आए हुए थे।

उन्होंने कहा, ‘‘उच्च न्यायालय ने व्यापक टिप्पणियां की है। वे जमानत पर बाहर हैं, उन्हें बाहर रहने दीजिए लेकिन कृपया फैसलों पर रोक लगाइए। उच्चतम न्यायालय द्वारा रोक लगाने के अपने मायने हैं।’’

प्रदर्शन के अधिकार के संबंध में उच्च न्यायालय के फैसलों के कुछ पैराग्राफ को पढ़ते हुए मेहता ने कहा, ‘‘अगर हम इस फैसले पर चले तो पूर्व प्रधानमंत्री की हत्या करने वाली महिला भी प्रदर्शन कर रही थी। कृपया इन आदेशों पर रोक लगाएं।’’

सिब्बल ने कहा कि छात्र कार्यकर्ताओं के पास मामले में बहुत दलीलें हैं। पीठ ने अपीलों पर नोटिस जारी करते हुए कहा कि अगर कोई विरोधी दलील है तो उसे चार हफ्तों के भीतर पेश किया जाए।


 

UAPA
Delhi riots case
Natasha Narwal
Devangana kalita
Asif Iqbal Tanha
Delhi High court

Related Stories

दिल्ली उच्च न्यायालय ने क़ुतुब मीनार परिसर के पास मस्जिद में नमाज़ रोकने के ख़िलाफ़ याचिका को तत्काल सूचीबद्ध करने से इनकार किया

विशेष: कौन लौटाएगा अब्दुल सुब्हान के आठ साल, कौन लौटाएगा वो पहली सी ज़िंदगी

बग्गा मामला: उच्च न्यायालय ने दिल्ली पुलिस से पंजाब पुलिस की याचिका पर जवाब मांगा

मैरिटल रेप : दिल्ली हाई कोर्ट के बंटे हुए फ़ैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती, क्या अब ख़त्म होगा न्याय का इंतज़ार!

दिल्ली दंगा : अदालत ने ख़ालिद की ज़मानत पर सुनवाई टाली, इमाम की याचिका पर पुलिस का रुख़ पूछा

RTI क़ानून, हिंदू-राष्ट्र और मनरेगा पर क्या कहती हैं अरुणा रॉय? 

कश्मीर यूनिवर्सिटी के पीएचडी स्कॉलर को 2011 में लिखे लेख के लिए ग़िरफ़्तार किया गया

4 साल से जेल में बंद पत्रकार आसिफ़ सुल्तान पर ज़मानत के बाद लगाया गया पीएसए

गाँधी पर देशद्रोह का मामला चलने के सौ साल, क़ानून का ग़लत इस्तेमाल जारी

दिल्ली दंगों के दो साल: इंसाफ़ के लिए भटकते पीड़ित, तारीख़ पर मिलती तारीख़


बाकी खबरें

  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    डिजीपब पत्रकार और फ़ैक्ट चेकर ज़ुबैर के साथ आया, यूपी पुलिस की FIR की निंदा
    04 Jun 2022
    ऑल्ट न्यूज के सह-संस्थापक मोहम्मद ज़ुबैर पर एक ट्वीट के लिए मामला दर्ज किया गया है जिसमें उन्होंने तीन हिंदुत्व नेताओं को नफ़रत फैलाने वाले के रूप में बताया था।
  • india ki baat
    न्यूज़क्लिक टीम
    मोहन भागवत का बयान, कश्मीर में जारी हमले और आर्यन खान को क्लीनचिट
    03 Jun 2022
    India की बात के इस एपिसोड में वरिष्ठ पत्रकार उर्मिलेश, अभिसार शर्मा और भाषा सिंह बात कर रहे हैं मोहन भागवत के बयान, कश्मीर में जारी हमले और आर्यन खान को मिली क्लीनचिट के बारे में।
  • GDP
    न्यूज़क्लिक टीम
    GDP से आम आदमी के जीवन में क्या नफ़ा-नुक़सान?
    03 Jun 2022
    हर साल GDP के आंकड़े आते हैं लेकिन GDP से आम आदमी के जीवन में क्या नफा-नुकसान हुआ, इसका पता नहीं चलता.
  • Aadhaar Fraud
    न्यूज़क्लिक टीम
    आधार की धोखाधड़ी से नागरिकों को कैसे बचाया जाए?
    03 Jun 2022
    भुगतान धोखाधड़ी में वृद्धि और हाल के सरकारी के पल पल बदलते बयान भारत में आधार प्रणाली के काम करने या न करने की खामियों को उजागर कर रहे हैं। न्यूज़क्लिक केके इस विशेष कार्यक्रम के दूसरे भाग में,…
  • कैथरिन डेविसन
    गर्म लहर से भारत में जच्चा-बच्चा की सेहत पर खतरा
    03 Jun 2022
    बढ़ते तापमान के चलते समय से पहले किसी बेबी का जन्म हो सकता है या वह मरा हुआ पैदा हो सकता है। विशेषज्ञों का कहना है कि गर्भावस्था के दौरान कड़ी गर्मी से होने वाले जोखिम के बारे में लोगों की जागरूकता…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License