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राजनीति
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अमेरिका
बिडेन के रक्षा मंत्री और विदेश मंत्री यानी नई बोतल में पुरानी शराब!
सुसान राइस और मिशेल फ्लौरनोय के कैबिनेट मंत्रियों के तौर पर उनकी विशेषज्ञता वाले क्षेत्रों में संभावित प्रोन्नति वस्तुतः इस पहलू को रेखांकित करता है कि बिडेन के “सामान्य हालात” बहाल करने के वायदे का आशय नई बोतल में पुरानी शराब से है।
एम. के. भद्रकुमार
17 Nov 2020
बिडेन
14 अप्रैल, 2015 को व्हाइट हाउस, वाशिंगटन डीसी में एक बैठक के बाद अमेरिकी उप-राष्ट्रपति जो बिडेन (बायें) और एनएसए सुसान राइस।

अमेरिकी मीडिया में ऐसी अनेकों खबरें आ रही हैं कि अमेरिकी राष्ट्रपति पद पर चुने गए जो बिडेन इन दिनों अपने कैबिनेट मंत्रियों के चुनाव में व्यस्त हैं। अधिकांश रिपोर्टों में इस बात का उल्लेख किया जा रहा है कि संयुक्त राष्ट्र की पूर्व अमेरिकी राजदूत और बराक ओबामा प्रशासन में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार रहीं सुसान राइस, बिडेन की विदेश मंत्री होने जा रही हैं। इसी तरह यह खबर भी है कि अमेरिकी रक्षा मंत्री के तौर पर बिडेन की पसंद मिशेल फ्लौरनोय के होने की संभावना है, जो पूर्व में बिल क्लिंटन और बराक ओबामा प्रशासन में वरिष्ठ रक्षा सलाहकार के तौर पर कार्य कर चुकी हैं।

आज के गार्जियन समाचार-पत्र ने भी कुछ इसी तर्ज पर एक लीड स्टोरी प्रकाशित की है। सच कहूँ तो इन खबरों को पढ़कर दिल डूब सा रहा है। ऐसा नहीं है कि ये दोनों महिलाएं बौद्धिक तौर पर प्रखर नहीं हैं, या इनका पर्याप्त पेशेवराना रुख नहीं है। दोनों ही अपने-आप में परिपूर्ण सख्शियत होने के साथ-साथ उच्च-शिक्षित, स्पष्टवादी और राजकाज में बेहद अनुभवी हैं।

राइस ने अपनी पढ़ाई स्टैनफोर्ड से की है और अपनी पीएचडी उन्होंने रोड्स स्कॉलर के बतौर ऑक्सफ़ोर्ड से पूरी की है। फ्लौरनॉय हार्वर्ड में थीं और न्यूटन-टैटम स्कॉलर के बतौर वे ऑक्सफ़ोर्ड से दीक्षित हैं। समस्या लेकिन कहीं और ही मौजूद है।

दुखद पहलू यह है कि कैबिनेट मंत्रियों के तौर पर अपनी विशेषज्ञता वाले क्षेत्रों में उच्च पदों पर आसीन होना वस्तुतः इस तथ्य को रेखांकित करता है कि बिडेन जिसे “सामान्य स्थिति” बहाल करने का वायदा कर रहे हैं, असल में इसका अर्थ नई बोतल में पुरानी शराब जैसा होने जा रहा है। राइस और फ्लौरनॉय दोनों को ही अमेरिकी विदेश और सुरक्षा नीतियों के प्रक्षेपवक्र के मामले में डोनाल्ड ट्रम्प के राष्ट्रपति काल से पहले वाले दौर से बेहद करीब से चिन्हित किया जाता है।

फ्लौरनॉय, सेंटर फॉर अ न्यू अमेरिकन सिक्यूरिटी नामक थिंक टैंक की सह-संस्थापक रही हैं, जिसे सैन्य मामलों में महारत हासिल है और जिसके दानदाताओं में अमेरिका के चुनिन्दा सैन्य-औद्योगिक ढाँचे और वाल स्ट्रीट शामिल हैं- जिनमें नार्थरॉप ग्रुम्मन एयरोस्पेस सिस्टम्स, एयरबस ग्रुप, द बोइंग कंपनी, शेवरॉन कॉर्पोरेशन, लॉकहीड मार्टिन कॉर्पोरेशन, रेथियॉन कंपनी, बीएई सिस्टम्स, बीपी अमेरिका, एक्सॉन मोबिल कॉर्पोरेशन – और दिलचस्प तौर पर इसमें वाशिंगटन डीसी स्थित ताईपेई आर्थिक और सांस्कृतिक प्रतिनिधि कार्यालय तक शामिल है।

फ्लौरने अमेरिकी हितों की रक्षा को लेकर सैन्य बल के उपयोग के प्रति दृढ मत रखती हैं - उनके शब्दों में “जब दांव पर लगे हित अति-महत्वपूर्ण होते हैं... हमें चाहिए कि इसके बचाव के लिए हमें कुछ भी कर गुजरने से गुरेज नहीं करना चाहिए, यदि जरूरत पड़े तो इसमें एकतरफा सैन्य शक्ति के इस्तेमाल को भी शामिल कर सकते हैं।”

कोई आश्चर्य वाली बात नहीं कि वे वेस्टएक्सेक एडवाइजर्स नामक रणनीतिक परामर्श संगठन की सह-संस्थापक भी हैं। इसके पास मौजूद सरकार के विशाल डेटाबेस, सैन्य, वेंचर कैपिटलिस्ट और कॉर्पोरेट समूहों के शीर्ष पर मौजूद लोगों के पते-ठिकाने की जानकारियों का धन्यवाद, जिसकी बदौलत इसे बड़े पेंटागन कॉन्ट्रैक्ट से कंपनियों को बड़े ठेके दिलवाने के तौर पर जबर्दस्त धंधा करने में कामयाबी हासिल हुई। खासकर ओबामा प्रशासन के एक अन्य दिग्गज टोनी ब्लिंकेन, जो खुद भी उप-राष्ट्रपति बिडेन के करीबी सहयोगी थे, जिन्हें बिडेन के राष्ट्रपति कार्यकाल के लिए संभावित एनएसए के त्तौर पर उद्धृत नहीं किया जा रहा है, वे भी वेस्टएक्सेक एडवाइजर्स के सह-संस्थापकों में से एक हैं। 

फ्लौरनी और राइस एक ही डाल की पंक्षी की तरह हैं जो सरकार, बिजनेस एवं थिंक टैंक के बीच में मजे से विचरण करती रही हैं। लेकिन यह भी सच है कि अमेरिका में यह कोई असामान्य बात नहीं मानी जाती, जहाँ सार्वजनिक जीवन का अर्थ आकर्षक कैरियर से है, जहाँ राजनेताओं को अच्छा जीवनयापन जीने की मनाही नहीं है और ज्यादातर लोग करोड़पतियों में शुमार हो जाते हैं।

फ्लौरनी और राइस दोनों ही 2003 में ईराक पर अमेरिकी हमले की प्रबल समर्थक रही हैं। (उसी प्रकार बिडेन भी थे।) इनमें से एक भी गहरे-निहित-विश्वास वाला या प्रबल धारणा रखता हो, इसको लेकर निश्चित तौर पर नहीं कहा जा सकता है। दोनों ही टेफ़लोन व्यक्तित्व की धनी हैं। सद्दाम हुसैन के इराक को लेकर राइस की ओर से दिए गए कुछ उद्धरण निम्नलिखित हैं:

“मैं समझती हूँ कि इराक और सद्दाम हुसैन के खतरे के बारे में संयुक्त राज्य अमेरिकी सरकार का पहले बुश प्रशासन के समय से ही रुख स्पष्ट रहा है। संयुक्त राज्य अमेरिका की नीति कई, कई वर्षों पहले से क्लिंटन प्रशासन के समय से ही शासन में बदलाव का रहा है। इसलिए सवाल सिर्फ इसकी टाइमिंग और रणनीति को लेकर है... हम इसे और पिछले प्रस्तावों को लागू कर सकें, इसको लेकर हमें आवश्यक तौर पर एक और [यूएन सिक्यूरिटी] काउंसिल के प्रस्ताव की जरूरत नहीं है।” (एनपीआर, 11 नवंबर, 2002)

“यह स्पष्ट है कि इराक एक बड़ा खतरा बन गया है। यह स्पष्ट है कि इसके सामूहिक विनाश के हथियारों से सख्ती से निपटने की जरूरत है, और हम इसी रास्ते का अनुसरण कर रहे हैं। मैं समझती हूँ कि असल मुद्दा यह है कि क्या हमें सैन्य पक्ष जिसे हम निश्चित ही अपना रहे हैं, के साथ-साथ क्या हम कूटनीतिक पहलूओं को भी हवा में रख सकते हैं और इनमें से किसी को भी नहीं छोड़ सकते हैं, यहाँ तक कि जब हम आगे की ओर कदम बढ़ा रहे हों।” (एनपीआर, 20 दिसम्बर, 2002)

“मैं समझती हूँ कि वे [तत्कालीन विदेश मंत्री कोलिन पॉवेल] इस बात को साबित कर चुके हैं कि इराक के पास ये हथियार मौजूद हैं और वह उसे छिपा रहा है, और मुझे नहीं लगता कि कई जागरूक लोगों को इस बारे में कोई शक है।” (एनपीआर, 6 फरवरी, 2003)

2016 में डोनाल्ड ट्रम्प के राष्ट्रपति चुने जाते वक्त उनके खिलाफ “रुसी मिलीभगत” के बढ़ते मामलों में ओबामा के व्हाइट हाउस के अंतिम चरण के दौरान राइस की भी अस्पष्ट भूमिका रही थी। अपने राष्ट्रपतित्व काल की तीन तिमाहियों तक ट्रम्प इस विवाद में उलझे रहे थे। फॉक्स न्यूज़ के टकर कार्लसन के अनुसार राइस और ओबामा व्यक्तिगत तौर पर इस षड्यंत्र को रचने में शामिल थे। 

ओबामा ने 2013 में राइस को तकरीबन विदेश मंत्री के तौर पर चुन लिया था, लेकिन यह देखते हुए उन्होंने अपने कदम वापस पीछे खींच लिए थे कि सीनेट की सुनवाई के दौरान इस बात की पूरी संभावना है कि सितंबर 2012 में बेन्घाज़ी, लीबिया में अमेरिकी कूटनीतिक परिसर और सीआईए एनेक्स में हुए आतंकी हमले के दौरान अमेरिकी राजदूत एवं तीन अन्य लोगों के मारे जाने का मसला विस्फोटक स्वरुप ले सकता है। 

बेहद ईमानदारी के साथ राइस ने ओबामा को लिखित रूप में अपना संदेश भेजा था “यदि मुझे नामित किया जाता है तो मैं इस बारे में आश्वस्त हूँ कि इसको लेकर चलने वाली पुष्टि की प्रक्रिया बेहद दीर्घकालीन, विघटनकारी और खर्चीली साबित होने वाली है- आपके लिए और हमारी बेहद अहम राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय प्राथमिकताओं के लिहाज से.... इसलिये मैं विनम्रतापूर्वक अनुरोध करती हूँ कि आप इस वक्त मेरी उम्मीदवारी को लेकर विचार न करें।” 

यह तय है कि यदि बिडेन उन्हें नामांकित करते हैं तो रिपब्लिकन सीनेट, राइस का पीछा छोड़ने नहीं जा रहे हैं। लेकिन यदि राइस किसी तरह सीनेट की मंजूरी हासिल कर पाने में कामयाब हो जाती हैं, तो वे किस प्रकार की विदेश मंत्री होने जा रही हैं? संक्षेप में कहें तो रूस वैगन को घेर कर रखने वाला है, जबकि इजराइल और ईरान दोनों के पास ही प्रसन्न होने की अपनी-अपनी वजहें होंगी।

राइस खुले तौर पर रूस के प्रति आलोचनात्मक रुख रखती आई हैं और उन्होंने ट्रम्प पर मास्को के प्रति कथित निकटता और राष्ट्रपति पुतिन के प्रति प्रशंसा भाव को लेकर हमले किये हैं। वे बिडेन के अमेरिका के एक नंबर के खतरे के रूप में रूस के चरित्रीकरण को पूरी तरह से साझा करती हैं।

एनएसए पद पर रहते हुए राइस का रिकॉर्ड इजराइल के प्रति प्रतिरोध वाला रहा था। उन्होंने 2015 के ईरान परमाणु समझौते पर चल रही प्रगति के बारे में इजराइल को अँधेरे में रखा था, और उन्होंने वेस्ट बैंक क्षेत्र में कब्जे को लेकर इजराइल को चेताया था। लेकिन वे इस बात को ध्यान में रखेंगी कि बिडेन ने इजराइल के लिए “अटूट” समर्थन की कसम खाई है, जिसे वे बेशकीमती द्विपक्षीय अमेरिकी सहयोगी के तौर पर मानते हैं। वैसे ब्लिंकेन भी “इजराइल-समर्थक” के तौर पर जाने जाते हैं, जिन्होंने हाल ही में स्पष्ट तौर पर कहा था कि बिडेन “इजराइल को किसी भी राजनीतिक फैसलों, जो इसे बनाते हैं के तहत सैन्य सहायता को नहीं बाँधने जा रहे हैं, किसी भी सूरत में, पूर्ण विराम।”

निस्संदेह राइस अवश्य ही ईरान परमाणु समझौते को एक बार फिर से शुरू करने की बिडेन की योजना को लेकर उत्साहित होंगी। इसके साथ-साथ वे बिडेन की सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस और वास्तविक शासक मोहम्मद बिन सलमान द्वारा अपने असंतुष्ट पत्रकार जमाल खशोगी की हत्या के प्रति उनकी आंतरिक घृणा को साझा करती हैं। लेकिन यह किन रूपों में देखने को मिलेगा, यह देखना अभी बाकी है क्योंकि राइस को एक रणनीतिक जरूरत के लिहाज से मध्य पूर्व में अमेरिकी सैन्य उपस्थिति को जारी रखने की भी दरकार होगी।

राइस ने न्यूयॉर्क टाइम्स के अपने एक ऑप-एड में लिखा है कि अमेरिका और तालिबान के बीच दोहा समझौता “एक गहरे त्रुटिपूर्ण समझौते के तौर पर था जिसमें भले ही शांति कायम रखने की संभावनाएं मौजूद हैं लेकिन इसे हासिल कर पाने की उम्मीद बेहद क्षीण है। संक्षेप में कहें तो संयुक्त राज्य अमेरिका ने इसमें बहुत कुछ दे डाला है, और बदले में अपेक्षाकृत कम हाथ आया है।” 

राइस ने चेतावनी देते हुए कहा है “अफगानिस्तान में संयुक्त राज्य अमेरिका के पास किसी भी प्रकार की सैन्य या आतंकवाद विरोधी शक्ति बची नहीं रहने वाली है, जो कि अमेरिका की सुरक्षा को प्रभावी तौर पर तालिबान के हाथ सौंपने जैसा होगा।” यह कमोबेश बिडेन के खुद के द्रष्टिकोण को प्रतिध्वनित करने जैसा है, जो अफगानिस्तान से क्रमबद्ध तरीके से सैन्य टुकड़ियों की वापसी के पक्ष में हैं, ताकि इस बात को सुनिश्चित किया जा सके कि देश एक बार फिर से आतंकी समूहों के लिए बारी-बारी से खुलने वाला द्वार न बन जाये।

क्या यह बात अर्थवान नहीं हो जाती कि ट्रम्प एक मीडिया नेटवर्क तैयार करने के बारे में विचार कर रहे हैं ताकि एक बार फिर से 2024 में राष्ट्रपति पद की दौड़ में शामिल हो सकें? ट्रम्प के बाद के दौर में बिडेन की “सामान्य स्थिति” को बहाल करने के वायदे का अर्थ हुआ उन्हीं पुराने राजनीतिज्ञों की पुनर्वापसी की तैयारी, जो अफगानिस्तान, इराक और सीरिया में “अंतहीन युद्धों” के लिए जिम्मेदार हैं? जिन्होंने आज तक सत्ता की चौखट पर कॉर्पोरेट इलीट का प्रतिनिधित्व किया है, जिनके अंदर ना ही अमेरिका की राजनीतिक अर्थव्यवस्था में किसी भी प्रकार के वास्तविक ढांचागत बदलाव को लेकर कोई प्रतिबद्धता दिखती है और न ही इसको लेकर कोई साहस बचा है। यह सिर्फ अमेरिका में आने वाले वर्षों में नए सिरे से जोशोखरोश के साथ ट्रम्पवाद के मार्ग को ही प्रशस्त करता है। 

यदि बिडेन विदेश मंत्री के तौर पर राइस को चुनते हैं तो चीन को इससे बड़ी राहत की साँस मिलने वाली है। बीजिंग उनसे भली भांति परिचित है, क्योंकि रिश्तों को आपसी सम्बन्धों से चयनात्मक प्रतिस्पर्धा के ढांचे में ढालने में उनकी खुद की भूमिका रही है, जो कि ट्रम्प युग के बाद की चीन की नीतियों के साथ चल सकती है।

भारतीय प्रेक्षकों के लिए जो बिडेन की चीन नीति को लेकर बेहद आसक्त हैं, मैं उनके लिए यू ट्यूब पर राइस के मौखिक इतिहास को देखने की सिफारिश करूँगा, जिसमें उन्होंने एनएसए के तौर पर अपने अनुभवों को साझा किया है। इसमें उन्होंने बताया है कि किस प्रकार अमेरिका और चीन अपने रणनीतिक प्रतिद्वंदिता के बावजूद प्रभावी तरीके से समन्वय को बनाये रख सकते हैं और कैसे इबोला से लड़ने में चीन ने अमेरिका को वास्तविक तौर पर मदद पहुँचाने का काम किया था।

सबसे दिलचस्प बात यह है कि यह रिकॉर्डिंग इस साल के अप्रैल महीने में की गई है जब अमेरिका में “वुहान वायरस” के बीच में ट्रम्प का चीन के साथ व्यापार और तकनीक को लेकर युद्ध जारी था। साफ़ शब्दों में कहें तो राइस ने बीजिंग के साथ उत्पादक संबंधों पर जोर दिया है, जबकि संभवतः अमेरिका के कई विदेश नीति के विशेषज्ञों और कानून निर्माताओं की और अधिक चीनी-संशयवादी धारणाओं को साझा किया है। 

इस लेख को मूल अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें

Biden’s ‘Normalcy’ Means Return of ‘Ancien Régime’

Joe Biden
Susan Rice
US-China

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