NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
आंदोलन
भारत
राजनीति
बिहार: 6 दलित बच्चियों के ज़हर खाने का मुद्दा ऐपवा ने उठाया, अंबेडकर जयंती पर राज्यव्यापी विरोध दिवस मनाया
संगठन ने रफीगंज में 6 दालित बच्चियों के ज़हर खाने के मामले में पीड़ित परिजनों को पूरा इंसाफ दिलाने के संघर्ष को और भी व्यापक बनाने तथा असली मुजरिमों को सज़ा दिलाने का संकल्प लिया।
अनिल अंशुमन
15 Apr 2022
bihar

सचमुच मीडिया और पुलिस द्वारा रफीगंज की 6 दलित बच्चियों द्वारा सामूहिक ढंग से ज़हर खाने की हृदयविदारक घटना को फ़क़त ‘प्रेम प्रसंग’ से जुड़ा मामला बताया जाना, बॉलीवुड की घिसी पिटी फार्मूला फिल्म की कहानी जैसी ही लगती है। जिसके शोर में मामले की असलियत पर पर्दा डालने की पुरजोर कवायद जारी है। इस कांड में अब तक 4 दलित बच्चियों की मौत भी हो चुकी है।

अखिल भारतीय प्रगतिशील महिला एसोसिएशन और भाकपा-माले ने इस मामले को मुखरता के साथ उठाते हुए बिहार में भाजपा-जदयू की डबल इंजन सरकार के सुशासन में दलित एवं महिलाओं पर बढ़ते सामंती अत्याचार-दमन के विरुद्ध संगठित प्रतिवाद का आह्वान किया है।

14 अप्रैल को बाबा साहेब अंबेडकर की जयंती पर 6 दलित बच्चियों के ज़हर खाने की घटना के विरोध में राज्यव्यापी विरोध प्रदर्शन करते हुए इस कांड में सामंती ताक़तों की संलिप्तता की आशंका जताते हुए पुलिस की संदिग्ध भूमिका पर भी सवाल उठाये गए। राजधानी पटना से लेकर प्रदेश के कई जिलों व इलाकों में ऐपवा-भाकपा माले के संयुक्त विरोध प्रदर्शन कार्यक्रमों के माध्यम से इस कांड की उच्च स्तरीय जांच कराने तथा स्थानीय पुलिस थाना प्रभारी को निलंबित करने की मांग की गयी। ये कांड घटित होने वाली दलित बस्ती में छाए भय और आतंक का माहौल ख़त्म किये जाने तथा पीड़ित परिवारों को मुआवज़ा देने की भी मांग उठायी गयी।

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार गत 8 अप्रैल को बिहार के औरंगाबाद जिला स्थित रफिगंज़ प्रखंड के कसमा थाना अंतर्गत चिरैला गांव की 6 नाबालिग दलित बच्चियों (सभी सहेलियां) द्वारा एक साथ जहर खा लेने का मामला प्रकाश में आया था। सुर्ख़ियों के साथ सभी अख़बारों और चैनलों ने एक स्वर से स्थानीय पुलिस के बयान को ही दोहारते हुए अपनी ख़बरें दी हैं। जिसमें बताया कि उक्त दलित टोले की एक बच्ची द्वारा दिए गए शादी के प्रस्ताव को उसके तथाकथित प्रेमी ने ठुकरा दिया तो उसने व उसकी पांच सहेलियों ने गाँव से सटे बधार में जाकर एक साथ यह कहते हुए ज़हर की गोली खाली कि - 'ठीक है अब ऊपर जाकर ही मिलन होगा'। इसके खाने के बाद हालत बिगड़ने लगी।

आनन फानन में ज़हर की गोली खानेवाली सभी दलित बच्चियों को गंभीर हालत में आसपास के निजी व गया स्थित सरकारी अस्पताल में ले जाया गया। जिसमें से दो की मौत दूसरे ही दिन हो गयी तथा शेष दो की मौत बाद में हो गयी। बची हुई शेष दो बच्चियां अभी भी पूरी तरह से स्वास्थ्य नहीं हो पायीं हैं।

गया जिला पुलिस-प्रशासन बिना किसी गहन छानबीन के ही मीडिया के जरिये दलित बच्चियों के ज़हर खाने की घटना को ‘प्रेम प्रसंग’ से जुड़ा मामला बताकर एक बच्ची के तथाकथित प्रेमी को गिरफ्तार करने की बात कही है।

इस घटना पर त्वरित संज्ञान लेते हुए अखिल भारतीय प्रगतिशील महिला एसोसिएशन तथा भाकपा-माले ने घटना के दूसरे ही दिन यानी 9 अप्रैल को संयुक्त जांच टीम को रफीगंज स्थित चिरैला गांव के दलित टोले में भेजा। 13 अप्रैल को पटना में आयोजित प्रेस वार्ता के माध्यम से ऐपवा ने मीडिया के समक्ष जांच टीम के सदस्यों की उपस्थिति में जांच टीम की रिपोर्ट को रखा।

प्रेस वार्ता को संबोधित करते हुए ऐपवा की राष्ट्रीय महासचिव मीना तिवारी ने बताया कि ‘6 दलित बच्चियों के एक साथ ज़हर खा लेने का मामला पूरी तरह से संदिग्ध है। सभी जानते हैं कि कोई भी दवा दुकानदार किसी भी महिला को चूहे मारने तक की दवा नहीं देता है तो फिर बच्चियों को ज़हर की गोली किसने दे दी। घटना में जीवित बची हुई दोनों बच्चियां भी काफी डरी और सहमी हुई पायीं गयीं। जो सबके सामने कुछ भी बोलने से साफ़ इंकार करती रहीं। इसलिए हमारा मानना और पूरा संदेह है कि बच्चियों को जबरदस्ती ज़हर की गोली खिलाई गयी है। एक बच्ची की मोबाइल घटना के बाद से गायब है। उसके नंबर पर जांच टीम के सदस्यों ने बात करना चाहा तो उधर से भद्दी-गन्दी गालियां दी गयीं। इसकी सूचना स्थानीय पुलिस को भी है लेकिन उसने अभी तक बच्ची के उस गायब मोबाइल को बरामद कर सच्चाई पता लगाने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई है। जिससे हमारा शक और भी गहरा हो रहा है कि स्थानीय पुलिस मामले की लिपा पोती करने का काम कर रही है ताकि असली मुजरिमों का चेहरा सामने नहीं आ सके।'

जांच टीम की प्रमुख सदस्य व गया जिला ऐपवा नेता रीता वर्णवाल ने मीडिया को वहाx की वस्तुस्थिति की जानकारी देते हुए बताया कि हम लोगों ने वहां जाकर ये साफ़ देखा कि किस तरह से पूरा दलित टोला भयावाह आतंक के साए में जी रहा है। गांव में बसे 15 दलित परिवारों का कोई स्त्री या पुरुष हमसे कुछ भी बोलने को तैयार नहीं दिखा। जिन घरों की बच्चियों की ज़हर खाने से मौत हो गयी थी, उनके परिजन काफी डरे हुए थे। मृतक बच्चियों के घरों की कुछेक महिलाओं से जब हमलोगों ने जिद कर पूछा तो वे बताने लगीं कि ‘प्रेम प्रसंग’ का मामला पूरी तरह से गलत है तभी वहां खड़ी एक महिला ने सख्ती से चुप कराते हुए कहा कि - क्या बाकी सबों को भी मरवा दोगी।

जांच टीम के सदस्यों ने यह भी ध्यान दिलाया कि पूछताछ के दौरान जहां, दलित टोला का हर निवासी कुछ भी बताने से साफ़ बचता रहा, वहीँ, उसी गांव के सवर्ण टोले के लोग काफी बढ़ चढ़कर घटना के संबंध में जानकारी देते हुए पाए गये।

जांच टीम के सदस्यों ने पूरी दृढ़ता के साथ इस मामले को मीडिया व पुलिस द्वारा बिना किसी गहन छानबीन के ‘प्रेम प्रसंग’ से जोड़ने को खारिज कर दिया। इस प्रकरण में स्थानीय पुलिस की संदिग्ध भूमिका पर सवाल उठाते हुए इसके पीछे की गहरी साजिश पर लिपा पोती करने का आरोप लगाया। जिसके लिए स्थानीय थाना प्रभारी को तत्काल मुअत्तल करने की मांग की।

14 अप्रैल के राज्यव्यापी विरोध दिवस अभियान के तहत राजधानी स्थिंत कारगिल चौक पर आयोजित प्रातिवाद सभा को ऐपवा की कई केंद्रीय नेताओं के अलावा भाकपा-माले बिहार विधायक दल नेता महबूब आलम एवं विधायक महानंद समेत कई वरिष्ठ महिला अधिकार आंदोलनकारियों ने भी संबोधित किया। बाबा साहेब की जयंती मनाने को सियासी ढोंग बताते हुए बिहार में दलित, अल्पसंख्यक और महिलाओं पर बढ़ते अत्याचार व हमलों के लिए भाजपा-जदयू शासन को जिम्मेवार ठहराया। रफीगंज में 6 दालित बच्चियों के ज़हर खाने के मामले में पीड़ित परिजनों को पूरा इंसाफ दिलाने के संघर्ष को और भी व्यापक बनाने तथा असली मुजरिमों को सज़ा दिलाने का संकल्प लिया।

Bihar
Ambedkar Jayanti
AIPWA
Dalits
Minor Dalit Girls
CPI-ML

Related Stories

बिहार : जीएनएम छात्राएं हॉस्टल और पढ़ाई की मांग को लेकर अनिश्चितकालीन धरने पर

विचारों की लड़ाई: पीतल से बना अंबेडकर सिक्का बनाम लोहे से बना स्टैच्यू ऑफ़ यूनिटी

दलितों पर बढ़ते अत्याचार, मोदी सरकार का न्यू नॉर्मल!

बिहार : नीतीश सरकार के ‘बुलडोज़र राज’ के खिलाफ गरीबों ने खोला मोर्चा!   

मुद्दा: आख़िर कब तक मरते रहेंगे सीवरों में हम सफ़ाई कर्मचारी?

#Stop Killing Us : सफ़ाई कर्मचारी आंदोलन का मैला प्रथा के ख़िलाफ़ अभियान

सिवनी मॉब लिंचिंग के खिलाफ सड़कों पर उतरे आदिवासी, गरमाई राजनीति, दाहोद में गरजे राहुल

पटना : जीएनएम विरोध को लेकर दो नर्सों का तबादला, हॉस्टल ख़ाली करने के आदेश

बिहार: विधानसभा स्पीकर और नीतीश सरकार की मनमानी के ख़िलाफ़ भाकपा माले का राज्यव्यापी विरोध

बिहार में आम हड़ताल का दिखा असर, किसान-मज़दूर-कर्मचारियों ने दिखाई एकजुटता


बाकी खबरें

  • सरोजिनी बिष्ट
    विधानसभा घेरने की तैयारी में उत्तर प्रदेश की आशाएं, जानिये क्या हैं इनके मुद्दे? 
    17 May 2022
    ये आशायें लखनऊ में "उत्तर प्रदेश आशा वर्कर्स यूनियन- (AICCTU, ऐक्टू) के बैनर तले एकत्रित हुईं थीं।
  • जितेन्द्र कुमार
    बिहार में विकास की जाति क्या है? क्या ख़ास जातियों वाले ज़िलों में ही किया जा रहा विकास? 
    17 May 2022
    बिहार में एक कहावत बड़ी प्रसिद्ध है, इसे लगभग हर बार चुनाव के समय दुहराया जाता है: ‘रोम पोप का, मधेपुरा गोप का और दरभंगा ठोप का’ (मतलब रोम में पोप का वर्चस्व है, मधेपुरा में यादवों का वर्चस्व है और…
  • असद रिज़वी
    लखनऊः नफ़रत के ख़िलाफ़ प्रेम और सद्भावना का महिलाएं दे रहीं संदेश
    17 May 2022
    एडवा से जुड़ी महिलाएं घर-घर जाकर सांप्रदायिकता और नफ़रत से दूर रहने की लोगों से अपील कर रही हैं।
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    कोरोना अपडेट: देश में 43 फ़ीसदी से ज़्यादा नए मामले दिल्ली एनसीआर से सामने आए 
    17 May 2022
    देश में क़रीब एक महीने बाद कोरोना के 2 हज़ार से कम यानी 1,569 नए मामले सामने आए हैं | इसमें से 43 फीसदी से ज्यादा यानी 663 मामले दिल्ली एनसीआर से सामने आए हैं। 
  • एम. के. भद्रकुमार
    श्रीलंका की मौजूदा स्थिति ख़तरे से भरी
    17 May 2022
    यहां ख़तरा इस बात को लेकर है कि जिस तरह के राजनीतिक परिदृश्य सामने आ रहे हैं, उनसे आर्थिक बहाली की संभावनाएं कमज़ोर होंगी।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License