NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
बिहार चुनाव : इधर रोजगार ना बा
यह समझते हुए कि बेरोज़गारी सभी को प्रभावित करती है, आरजेडी, कांग्रेस और वामपंथी दल बेरोज़गारी, लॉकडाउन के दौरान राज्य में हुए विपरीत-प्रवास और सरकार द्वारा काम देने में नाकामी के मुद्दों को लगातार उठा रहे हैं।
मोहम्मद इमरान खान
23 Oct 2020
बिहार

संदेश (बिहार): रंजीत कुमार कहते हैं, "बिहार में रोज़गार ना बा। हमनी के बाहर जाये के पड़ी जिये खातिर। इस युवा के शब्द उस हकीकत को बयां करते हैं जिसमें बेरोज़गारी और निराशा ने लोगों, खासकर युवाओं को, रोज़ी-रोटी के लिए प्रवास करने पर मजबूर किया है। 

रंजीत, भोजपुर जिले में कोइलवार प्रखंड के धनदिहा गांव के रहने वाले हैं। वह बाहर नहीं जाना चाहते, लेकिन उनके पास कोई विकल्प भी नहीं है। वह कहते हैं, "लॉकडाउन के दौरान अपने चार साथियों के साथ मैं घर वापस आ गया था। करीब़ 6 महीने गुजर चुके हैं। अब तक मेरे पास कोई रोज़गार नहीं है। अब कोई भी आशा नहीं है, क्योंकि अपने वायदे के मुताबिक़ हमें रोज़गार उपलब्ध करवाने में नीतीश नाकाम रहे हैं।"

jobs1.jpeg

लॉकडाउन के पहले रंजीत, गुजरात के राजकोट की एक टाइल्स फैक्ट्री में काम करते थे। वे आगे कहते हैं, "हम खुशनसीब हैं कि हमारा परिवार हमें रोटी दे रहा है। वोटिंग के बाद मुझे काम की जगह पर वापस जाना होगा, क्योंकि फैक्ट्री मालिक ने हमसे काम पर वापस आने के लिए कहा है।" 

रंजीत को सरकार की प्रवासी मज़दूरों की मदद करने में असफलता पर नाराज़गी है। उन्होंने कहा, "राज्य सरकार के पास हमें प्रदेश में ही काम देने का एक बड़ा मौका था। लेकिन वह नाकाम रही है।"

उसी गांव के रहने वाले एक दूसरे युवा दीपक कुमार कहते हैं कि जब सरकार विकास की बात करती है, तो वह झूठ बोल रही होती है। वह कहते हैं, "कोई भी आजीविका के लिए अपने घर को छोड़ना नहीं चाहता, पर हालात उसे ऐसा करने पर मजबूर करते हैं। हम यहां काम कर बिहार के विकास में योगदान देना चाहते हैं। लॉकडाउन की शुरुआत में कई लोगों को मनरेगा स्कीम के तहत काम दिया गया था। लेकिन अब वह भी मौजूद नहीं है। कई गांव वाले काम करने के लिए तैयार हैं, लेकिन स्थानीय अधिकारियों ने उन्हें मनरेगा के तहत काम देने में अक्षमता दिखाई है।"

jobs2.jpeg

भोजपुर जिले में आने वाला यह गांव संदेश विधानसभा के अंतर्गत आता है। वहां आरजेडी कैंडिडेट किरण देवी और जेडीयू प्रत्याशी विजेंद्र यादव के बीच सीधा मुकाबला है। किरण देवी, उस विधायक की पत्नी हैं, जो पिछले साल से एक रेप मामले में आरोपी बनने के बाद से अब तक फरार हैं। दोनों यादव हैं और अपने जाति के सदस्यों के वोट पर नज़र बनाए हुए हैं। उनकी जाति के लोगों की विधानसभा में बड़ी संख्या है। 

माना जा रहा है कि आरजेडी के कैंडिडेट को जेडीयू के कैंडिडेट पर बढ़त हासिल है। क्योंकि "कम्यूनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (मार्क्सिस्ट-लेनिनिस्ट) लिबरेशन" महागठबंधन का हिस्सा है। पार्टी का विधानसभा के कुछ ग्रामीण इलाकों में दलितों और पिछड़ा वर्ग के बीच बड़ा प्रभाव है। 

वहीं बीजेपी की सहयोगी रही लोकजनशक्ति पार्टी ने जेडीयू के खिलाफ अपना प्रत्याशी उतारा है, जिससे सीट का संघर्ष त्रिकोणीय हो गया है।

दूसरी विधानसभा सीटों की तरह भोजपुर में भी मुख्यमंत्री के खिलाफ़ मजबूत एंटी-इंकम्बेंसी देखी जा रही है। इसकी एक बड़ी वज़ह राज्य में बढ़ती बेरोज़गारी है। असंतोष को महसूस करते हुए, महागठबंधन के मुख्यमंत्री प्रत्याशी तेजस्वी यादव ने सत्ता मे आने की स्थिति में दस लाख नौकरियों का वायदा किया है। यह एक अहम वजह है कि तेजस्वी की रैली में बड़ी संख्या में युवा देखे जा रहे हैं।

यह समझते हुए कि बेरोज़गारी सभी को प्रभावित करती है, आरजेडी, कांग्रेस और वामपंथी दल बेरोज़गारी, विपरीत-प्रवास और सरकार द्वारा काम देने में असफलता के मुद्दे को लगातार उठा रहे हैं।

"सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इक्नॉमी" का अनुमान है कि फरवरी, 2019 के बाद, पिछले 20 महीनों में बिहार में बेरोज़गारी दर दस फ़ीसदी से ज़्यादा हो चली है। यह राज्य द्वारा अब तक देखा गया सबसे लंबा बेरोज़गारी चक्र है।

यह केवल युवाओं की ही बात नहीं है। पास के गांव से आने वाले अधेड़ उम्र के शिवलखन राय कहते हैं कि वह होली के त्योहार के दौरान वापस आए थे, तभी से वे बेरोज़गार हैं। वह कहते हैं, "सरकार हमें भूल चुकी है। मैं अब हैदराबाद वापस जाने की तैयारी कर रहा हूं। वहां मैं एक डायरी फैक्ट्री में काम कर रहा था।"

वह आगे कहते हैं, "मैं कभी रोज-रोटी कमाने के लिए बाहर जाना नहीं चाहता था। हमें आशा थी कि राज्य सरकार नौकरियों के अवसर पैदा करेगी। लेकिन यह सिर्फ़ एक जुमला साबित हुआ।"

लॉकडाउन के दौरान अपने गांव वापस लौटने वाले जितेंद्र चौधरी सरकार द्वारा मदद ना किए जाने से नाराज हैं। वह कहते हैं, "मैं सूरत की एक कपड़ा फैक्ट्री में काम करता था, लेकिन लॉकडाउन के चलते वह बंद हो गई, जिससे मुझे वापस आना पड़ा। सरकार ने तो यह तक पूछने की ज़हमत नहीं उठाई कि हम किस हालत में हैं।"

एक दूसरे युवा कमलेश कुमार कहते हैं कि सरकार द्वारा काम देने के वायदे सिर्फ़ मीडिया के लिए की गई घोषणाएं थीं। वह कहते हैं, "रोज़गार की कमी बिहार में किसी भी मुद्दे से ज़्यादा बड़ा मुद्दा है। हम रोज़ी-रोटी के लिए बाहर क्यों जाएं? यह 2005 से नीतीश कुमार की अगुवाई में चल रहे NDA के कथित विकास मॉडल की असफलता है।"

कमलेश का कहना है कि वे कभी भविष्य में बीजेपी के लिए वोट नहीं करेंगे। वह कहते हैं, "इस बार तेजस्वी यादव ने वायदा किया है कि अगर वो सत्ता में आते हैं, तो पहली ही कैबिनेट मीटिंग में दस लाख नौकरियों पारित करेंगे। इस बार हम उन्हें मौका देंगे।"

कुल्हाड़िया गांव के रहने वाले मनीष कुमार सिंह कहते हैं कि बेरोज़गारी पिछले पांच साल में बद से बदतर हुई है। उनका कहना है कि कौशल युक्त युवाओं और पेशेवर डिग्रीधारकों के लिए इंडस्ट्री-फैक्ट्री ना होने के चलते नौकरियों के अवसर लगभग ना के बराबर हैं।

jobs3.jpeg

मनीष कुमार सिंह। फ़ोटो : मोहम्मद इमरान ख़ान

भडवार गांव के रहने वाले गुल्लु कुमार कहते हैं कि NDA सरकार नौकरियां पैदा करने में नाकाम रही है। वह कहते हैं, "मैं अपना इंटरमीडिएट परीक्षा पास कर चुका हूं और काम कर अपने माता-पिता की मदद करना चाहता हूं। अब मुझे भी पैसा कमाने के लिए प्रवास करना होगा।"

गुल्लु बताते हैं कि कुछ युवाओं ने अलग-अलग सरकारी नौकरियों के दो से तीन साल पहले परीक्षा फॉर्म भरे थे। वे अब भी लिखित परीक्षा होने का इंतज़ार कर रहे हैं, क्योंकि भर्ती की प्रक्रिया काफ़ी धीमी है।

आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक़, अप्रैल और मई में, बिना तैयारी और प्रबंधन के लगाए गए लॉकडाउन की वज़ह से 21 लाख प्रवासी मज़दूर बिहार वापस लौट चुके हैं। 

अचानक लागू किए गए लॉकडाउन के चलते, ज़्यादातर प्रवासी मज़दूर अपनी नौकरियां खो चुके हैं। यहां तक कि कई लोगों को उनका बकाया भत्ता तक नहीं मिल पाया। कई लोग पैदल घर लौटे। कुछ ने तो 1500 किलोमीटर का तक सफर किया। घर वापस लौटते हुए खाना और पानी ना मिलने, यहां तक कि थकने से भी कई मज़दूरों की रास्ते में मौत हो गई।

इस लेख को मूल अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें।

Bihar Elections: Idhar Rojgar Na Ba

Bihar
unemployment
Bihar Elections
Bihar Assembly Elections
Bihar Jobs
COVID-19
Lockdown
Migrant Labour

Related Stories

बिहार: पांच लोगों की हत्या या आत्महत्या? क़र्ज़ में डूबा था परिवार

डरावना आर्थिक संकट: न तो ख़रीदने की ताक़त, न कोई नौकरी, और उस पर बढ़ती कीमतें

कोरोना अपडेट: देश में कोरोना ने फिर पकड़ी रफ़्तार, 24 घंटों में 4,518 दर्ज़ किए गए 

कोरोना अपडेट: देश में 24 घंटों में 3,962 नए मामले, 26 लोगों की मौत

बिहार : जीएनएम छात्राएं हॉस्टल और पढ़ाई की मांग को लेकर अनिश्चितकालीन धरने पर

मंडल राजनीति का तीसरा अवतार जाति आधारित गणना, कमंडल की राजनीति पर लग सकती है लगाम 

आर्थिक रिकवरी के वहम का शिकार है मोदी सरकार

कोरोना अपडेट: देश में 84 दिन बाद 4 हज़ार से ज़्यादा नए मामले दर्ज 

उत्तर प्रदेश: "सरकार हमें नियुक्ति दे या मुक्ति दे"  इच्छामृत्यु की माँग करते हजारों बेरोजगार युवा

कोरोना अपडेट: देश में कोरोना के मामलों में 35 फ़ीसदी की बढ़ोतरी, 24 घंटों में दर्ज हुए 3,712 मामले 


बाकी खबरें

  • एजाज़ अशरफ़
    दलितों में वे भी शामिल हैं जो जाति के बावजूद असमानता का विरोध करते हैं : मार्टिन मैकवान
    12 May 2022
    जाने-माने एक्टिविस्ट बताते हैं कि कैसे वे इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि किसी दलित को जाति से नहीं बल्कि उसके कर्म और आस्था से परिभाषित किया जाना चाहिए।
  • न्यूज़क्लिक टीम
    कोरोना अपडेट: देश में 24 घंटों में 2,827 नए मामले, 24 मरीज़ों की मौत
    12 May 2022
    देश की राजधानी दिल्ली में आज कोरोना के एक हज़ार से कम यानी 970 नए मामले दर्ज किए गए है, जबकि इस दौरान 1,230 लोगों की ठीक किया जा चूका है |
  • सबरंग इंडिया
    सिवनी मॉब लिंचिंग के खिलाफ सड़कों पर उतरे आदिवासी, गरमाई राजनीति, दाहोद में गरजे राहुल
    12 May 2022
    सिवनी मॉब लिंचिंग के खिलाफ एमपी के आदिवासी सड़कों पर उतर आए और कलेक्टर कार्यालय के घेराव के साथ निर्णायक आंदोलन का आगाज करते हुए, आरोपियों के घरों पर बुलडोजर चलाए जाने की मांग की।
  • Buldozer
    महेश कुमार
    बागपत: भड़ल गांव में दलितों की चमड़ा इकाइयों पर चला बुलडोज़र, मुआवज़ा और कार्रवाई की मांग
    11 May 2022
    जब दलित समुदाय के लोगों ने कार्रवाई का विरोध किया तो पुलिस ने उन पर लाठीचार्ज कर दिया। प्रशासन की इस कार्रवाई से इलाके के दलित समुदाय में गुस्सा है।
  • Professor Ravikant
    न्यूज़क्लिक टीम
    संघियों के निशाने पर प्रोफेसर: वजह बता रहे हैं स्वयं डा. रविकांत
    11 May 2022
    लखनऊ यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर रविकांत के खिलाफ आरएसएस से सम्बद्ध अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ABVP) के कार्यकर्ता हाथ धोकर क्यों पड़े हैं? विश्वविद्यालय परिसरों, मीडिया और समाज में लोगों की…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License