NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
बिहार चुनाव: आर्थिक मुद्दे उठाने से महागठबंधन का बढ़ता असर
‘फ़रवरी 2005 के चुनावों में जिस तरह लोजपा 29 सीटों पर जीत दर्ज कर खेल बिगाड़ने वाली पार्टी बन गयी थी, भाजपा उसे एक बार फिर दोहराने की कोशिश कर रही है। खंडित जनादेश के चलते अक्टूबर 2005 में फिर से होने वाले चुनावों ने बिहार की राजनीति में लालू प्रसाद के ज़बरदस्त असर को कम कर दिया था...’
तारिक़ अनवर
25 Oct 2020
बिहार चुनाव

पटना: देश की नज़र बिहार चुनावों में आज़माये जा रहे दांव-पेच की राजनीतिक क़वायद पर है। कोविड-19 महामारी की मार के बाद पहली बार जनता न सिर्फ़ सोशल इंजीनियरिंग, बल्कि राजनीतिक दलों की संभावनाओं को तय करने वाले काल्याणकारी कार्य की एक अहम राजनीतिक सच्चाई को आत्मसात कर सकती है।

जिस समय राज्य आगामी चुनावों (28 अक्टूबर से शुरू होने वाले) के लिए कमर कस रहा था, तो 'ग्राउंड ज़ीरो' से जनमत सर्वेक्षण करने वाले और रिपोर्टिंग करने वाले पत्रकार भविष्यवाणी कर रहे थे कि संख्यात्मक रूप से महत्वपूर्ण मतदाताओं,यानी अति पिछड़ा वर्ग (ईबीसी) और महादलित समुदाय को अगर एक साथ जोड़कर देखा जाये, तो मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) को महागठबंधन (ग्रैंड एलायंस) पर बढ़त मिलेगी।

समाजवादी दिग्गज नेता, कर्पूरी ठाकुर ने अन्य पिछड़ा वर्ग (वर्गों) के भीतर से ईबीसी श्रेणी का निर्माण किया था, नीतीश कुमार ने 2007 में उसी सूत्र को समसामयिक बना दिया था। उन्होंने इस श्रेणी में कहार, धानुक, पटवा, बिन्द, मल्लाह, नूनिया, अमात, साव, पनेरी, तेली, सोनार, लोहार, कुम्हार, तांती, धानुक कुर्मी, कोइरी, कच्छी, मुराओ और कुछ मुस्लिम उप-जातियों जैसे नये जाति समूहों को शामिल कर लिया था।

यादवों और कुर्मियों जैसे प्रमुख पिछड़ी जातियों को छोड़कर मुस्लिम उप-जातियों सहित सभी ओबीसी समुदायों को ईबीसी सूची में शामिल कर लिया गया। हालांकि ओबीसी समुदाय के सदस्य राज्य की कुल आबादी का तक़रीबन 17% हिस्सा हैं, जबकि ईबीसी क़रीब 26% हैं। उन्होंने अनुसूचित जातियों के समुदायों के भीतर से "महादलित" भी बनाये, और दोनों को मिलाकर इनकी कुल आबादी, बिहार की आबादी का 16% है।

चुनाव प्रचार शुरू होने के बाद महागठबंधन ने बिहार में बेरोज़गारी, उद्योगों के एक-एक करके बंद होते जाने और प्रवासी मज़दूरों के सामूहिक पलायन को जनमत का मुद्दा बना दिया। यह सब आरजेडी नेता और महागठबंधन के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार,तेजस्वी यादव के उस वादे के साथ शुरू हुआ, जिसमें उन्होंने कहा कि अगर उनकी सरकार बिहार में सत्ता में आयी, तो दस लाख सरकारी नौकरियां दी जायेंगी।

ऐसा लगता है कि सत्तारूढ़ उस राजग गठबंधन के ख़िलाफ़ यह रणनीति अच्छी तरह से काम कर रही है, जो पहले से ही एक मज़बूत सत्ता-विरोधी भावना का सामना कर रहा है। उस ईबीसी-महादलित वोटों पर मुख्यमंत्री, नीतीश कुमार की पकड़ कमजोर हो गयी है, जिसका एक अच्छा-ख़ासा हिस्सा इस समय विपक्ष के गठबंधन का समर्थन करता दिख रहा है।

इसके अलावा, बहु-चर्चित एम-वाई (मुस्लिम-यादव) समीकरण की मज़बूती राजद-कांग्रेस-वाम गठबंधन के लिए एक महत्वपूर्ण समर्थन आधार के रूप में उभर रहा है। ईबीसी और दलित समुदायों का अतिरिक्त समर्थन से गठबंधन को और फ़ायदा पहुंचेगा।

लोक जनशक्ति पार्टी (LJP) के अकेले चुनाव लड़ने और जेडी-यू के उम्मीदवारों के ख़िलाफ़ अपना उम्मीदवार उतारने के फ़ैसले से मुख्यमंत्री के दलित आधार को नुकसान पहुंचेगा और इससे नीतीश कुमार की संभावनाओं का प्रभावित होना तय है।

एक अघोषित गठबंधन

राजनीतिक विश्लेषकों और ज़मीन पर आकलन करने वाले पत्रकारों के मुताबिक़, जेडी-यू के डूबने और बीजेपी का एनडीए में अपनी स्थिति मज़बूत करने की संभावना के साथ महागठबंधन को बहुमत के निशान (122 सीटों) से कहीं ज़्यादा सीटें मिल सकती हैं।

विशेषज्ञों का मानना है कि भाजपा चाहती भी यही है, क्योंकि उसका एकमात्र मक़सद राज्य में अपनी मौजूदगी बढ़ाकर जेडी-यू से छुटकारा पाना प्रतीत होता है। भगवा पार्टी ने अपनी नाकामी के लिए मतदाताओं के बीच सीएम नीतीश कुमार को सफलतापूर्वक बदनाम कर दिया है।

जिस नीतीश कुमार को उनकी सरकार के पहले 10 वर्षों में सड़क निर्माण,बिजली की आपूर्ति सुनिश्चित करने और राज्य में क़ानून और व्यवस्था की स्थिति में सुधार के लिए श्रेय दिया जाना चाहिए, उसी नीतीश कुमार को राज्य के हर इलाक़े और वर्ग के लोग अपनी अपेक्षाओं पर खरे नहीं उतरने के लिए ज़िम्मेदार मानते हैं। इसके लिए कोई भी भाजपा पर सवाल नहीं उठा रहा है। यहां तक कि जब कोई पूछता भी है कि भाजपा को बिहार सरकार की इस नाकामी के लिए ज़िम्मेदार क्यों नहीं होना चाहिए, तो लोग,ख़ास तौर पर "उच्च जातियों" के लोग यह तर्क देते हुए भगवा पार्टी के बचाव में आ जाते हैं कि नीतीश ने हमेशा भाजपा को "नीचा दिखाया" और केंद्रीय योजनाओं को लागू ही नहीं किया।

एसोसिएशन फ़ॉर स्टडी एंड एक्शन से जुड़े राजनीतिक विश्लेषक, अनिल कुमार रॉय ने न्यूज़क्लिक को बताया,“यह सच है कि महागठबंधन की स्थिति अब तक मज़बूत है और तेजस्वी यादव ने बेरोज़गारी, प्रवासन, प्रवासी मज़दूरों के बड़े पैमाने पर पलायन और उद्योग-धंधों के ख़ात्मे को चुनावी बहस बनाने में सफल रहे हैं, जिसका जवाब एनडीए को देना मुश्किल हो रहा है।" वह इस बात से सहमत दिखते हैं कि भाजपा सरकार बनाने के लिए चुनाव नहीं लड़ रही है, बल्कि भविष्य के लिए ख़ुद को मज़बूत बना सकती है।

उन्होंने विस्तार से बताते हुए कहा, “नीतीश कुमार को छोड़ देने से उस भाजपा को मदद ही मिलेगी, जिसे पहले से ही ‘उच्च जातियों’ का समर्थन हासिल है। वीआईपी और हम (HAM) के साथ हाथ मिला लेने से भाजपा को ईबीसी और महादलित समुदायों के बीच एक समर्थन आधार तलाशने में मदद मिलेगी। बीजेपी नेताओं को पता है कि जेडी-यू के कमज़ोर पड़ने पर उनकी पार्टी सरकार नहीं बना पायेगी। इस तथ्य को जानने के बावजूद, यह सुनिश्चित करने के सभी प्रयास किया जा रहे हैं कि जेडी-यू को सीटों का अच्छा-ख़ासा हिस्सा न मिले। इससे साफ़ पता चलता है कि बीजेपी की नज़र भविष्य पर है, न कि इस चुनाव पर।” 

वह आगे कहते हैं कि बेरोज़गारी को एक चुनावी मुद्दा बनाने से साफ़ तौर पर नतीजे प्रभावित होते दिख रहे हैं और लगता है कि महागठबंधन एक अच्छी स्थिति में है।

पीरियॉडिक लेबर फ़ोर्स की तरफ़ से कराये गये एक सर्वेक्षण के मुताबिक़, बिहार में बेरोज़गारी की दर 2018/19 में कथित तौर पर 10.2% दर्ज की गयी थी, जो कि राष्ट्रीय औसत, 5.8% से तक़रीबन दोगुना है। यही सर्वेक्षण बताता है कि बिहार में वेतनभोगी लोगों का राष्ट्रीय औसत, 23.8% के मुक़ाबले महज़ 10.4% ही था।

2011-12 में बिहार में वेतनभोगी लोगों की संख्या 5.8% थी; जबकि वेतनभोगी रोज़गार की संख्या 13.1% थी। हालांकि, 2018-19 में यह घटकर 10.4% रह गया। हर साल होने वाले पलायन का सबसे ज़्यादा प्रतिशत के साथ बिहार देश में सबसे ऊपर है।

सरकारी डेटा दिखाता है कि बिहार में राष्ट्रीय स्तर पर 17% के मुक़ाबले  2018-19 में 15-29 आयु वर्ग के तक़रीबन 31% लोग बेरोज़गार थे। सेंटर फ़ॉर मॉनिटरिंग द इंडियन इकोनॉमी (CMIE) की ओर से एकदम हाल में किये गये रोज़गार सर्वेक्षणों से पता चलता है कि जहां भारत का बुरा हाल है, वहीं बिहार का हाल बदतर है।

2011 की जनगणना के मुताबिक़, बिहार के 32.3% प्रतिशत लोग नौकरी और रोज़गार के लिए देश के अन्य हिस्सों में चले गये, उसके बाद ओडिशा का नंबर आता है,जिसकी आबादी का 31.5% लोग पलायन कर गये।

अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में पढ़ा रहे और मशहूर स्तंभकार,प्रोफ़ेसर मोहम्मद सज्जाद का विश्लेषण भी कमोबेश ऐसा ही है। उनका भी यही अनुमान है कि विपक्षी गठबंधन को कई ईबीसी और महादलित समुदायों से मौन वोट मिलने की संभावना है।

वह दूसरी संभावना भी जताते हैं कि एक ऐसी त्रिशंकु विधानसभा भी सामने आ सकती है, जिसमें किसी भी पार्टी के पास बहुमत न हो। उन्होंने बताया कि लोजपा का राष्ट्रीय स्तर के गठबंधन सहयोगी की बाज़ी पलट देने और नाक रगड़वाले का इतिहास रहा है।

प्रोफ़ेसर सज्जाद कहते हैं,“फ़रवरी 2005 के चुनावों में जिस तरह लोजपा 29 सीटों पर जीत दर्ज कर खेल बिगाड़ने वाली पार्टी बन गयी थी, भाजपा उसे एक बार फिर दोहराने की कोशिश कर रही है। खंडित जनादेश के कारण अक्टूबर 2005 में फिर से होने वाले चुनावों ने बिहार की राजनीति में लालू प्रसाद के ज़बरदस्त असर को कम कर दिया था।” उसी दौर में लोजपा ने केंद्र में कांग्रेस के नेतृत्व वाले सत्तारूढ़ गठबंधन, यानी संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) का हिस्सा बने रहने के लिए राजद के ख़िलाफ़ चुनाव लड़ने का फ़ैसला किया था।

लोजपा ने सभी 178 राजद उम्मीदवारों के ख़िलाफ़ अपने उम्मीदवार खड़े किये थे, लेकिन ख़ुद को कांग्रेस के ख़िलाफ़ खड़ा नहीं किया था। उन चुनावों में आख़िरकार एक खंडित जनादेश मिला था, राजद सबसे बड़ी पार्टी बनकर तो उभरी थी,लेकिन वह बहुमत से दूर थी।

कहा जाता है कि रेल मंत्रालय की खींचतान के चलते लोजपा ने यह रुख़ अख़्तियार किया था। 2004 में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाले एनडीए की सरकार के जाने के बाद सत्तासीन हुई यूपीए सरकार के दौरान रामविलास पासवान और लालू प्रसाद, दोनों ही यही पोर्टफ़ोलियो चाहते थे। लेकिन, प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने उस समय लालू प्रसाद यादव का चुनाव इस पोर्टफ़ोलियो के लिए किया था। उसी सरकार में रामविलास पासवान को रसायन और उर्वरक पोर्टफ़ोलियो दिया गया। उन्होंने मौक़े का इंतज़ार किया था, ताकि वह एक ज़ोरदार कोशिश करें और 2005 के चुनावों में इसे हासिल कर सकें।

प्रोफ़ेसर सज्जाद का कहना है कि ठीक उसी तरह, ग़रीब समर्थक पार्टियों के एक हो जाने से महागठबंधन को फ़ायदा मिल सकता है। वह कहते हैं, “यह तो वक़्त ही बतायेगा कि यह गठबंधन, महागठबंधन के लिए वोटों में तब्दील होता है या नहीं। अगर ऐसा होता है, तो राजद-कांग्रेस-वाम गठबंधन निश्चित रूप से नयी सरकार बनाने में सक्षम होगा। पिछले 15 वर्षों से लगातार शासन करने के बावजूद जेडी-यू, लालू-राबड़ी के दौर की याद दिलाकर वोट मांगने की कोशिश कर रही है। यह निश्चित रूप से लोगों, ख़ासकर उन नौजवानों को लुभाने वाली बात तो नहीं ही है, जिनके लिए सत्तारूढ़ व्यवस्था नौकरी के अवसर पैदा करने में नाकाम रही है।”

नौजवानों को नौकरियों की ज़रूरत है और महागठबंधन इस बाबत यह कहते हुए कामयाब रहा है कि बिहार सरकार के पास तक़रीबन 4.5 लाख ख़ाली पद हैं, जो भरे नहीं गए हैं। वह यह भी कहते हैं कि महागठबंधन को कांग्रेस के कारण भूमिहार वोटों का एक हिस्सा मिल सकता है, क्योंकि यह समुदाय सोचता है कि अगर जेडी-यू डूब जाती है तो भाजपा उन्हें उचित हिस्सा नहीं देगी।

इसके साथ ही दोनों विश्लेषक इस बात पर सहमत हैं कि विपक्ष अन्य मामलों को नहीं उठा पा रहा है, जिन्हें उसे उठाना चाहिए था। रॉय कहते हैं, “लोकतंत्र के वजूद को लेकर न्यायपालिका और सरकारी संस्थानों की स्वतंत्रता जैसे बड़े मुद्दे विपक्ष की तरफ़ से नहीं उठाये जा रहे हैं।”  प्रोफ़ेसर सज्जाद का कहना है कि सरकार द्वारा ज़मीन, शराब, पत्थर और बालू माफ़िया जैसे मुद्दों को विपक्ष की तरफ़ से सामने नहीं रखा जा रहा है।

बिहार में तीन चरणों का चुनाव 28 अक्टूबर से शुरू होगा, जब 71 निर्वाचन क्षेत्रों में मतदान होगा। दूसरे चरण में 94 विधानसभा सीटों पर मतदान होगा,जबकि तीसरे और अंतिम चरण में 78 सीटें हैं। वोटों की गिनती 10 नवंबर को होगी।

बिहार विधानसभा का कार्यकाल 29 नवंबर को ख़त्म हो रहा है।

मतदाता अनुसूची के मुताबिक़, राज्य में 7.29 करोड़ मतदाता हैं, जिनमें 3.85 करोड़ पुरुष और 3.4 करोड़ महिला मतदाता और 1.6 लाख सर्विस मतदाता हैं।

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें

Bihar Elections: Mahagathbandhan Effects Gains By Raising Economic Issues

Bihar
Bihar Elections
Bihar Election Results
RJD
Congress
JDU BJP
Nitish Kumar
LALU YADAV
Tejashwi Yadav
RAM VILAS PASWAN

Related Stories

बिहार: पांच लोगों की हत्या या आत्महत्या? क़र्ज़ में डूबा था परिवार

बिहार : जीएनएम छात्राएं हॉस्टल और पढ़ाई की मांग को लेकर अनिश्चितकालीन धरने पर

मंडल राजनीति का तीसरा अवतार जाति आधारित गणना, कमंडल की राजनीति पर लग सकती है लगाम 

हार्दिक पटेल भाजपा में शामिल, कहा प्रधानमंत्री का छोटा सिपाही बनकर काम करूंगा

राज्यसभा सांसद बनने के लिए मीडिया टाइकून बन रहे हैं मोहरा!

ED के निशाने पर सोनिया-राहुल, राज्यसभा चुनावों से ऐन पहले क्यों!

बिहारः नदी के कटाव के डर से मानसून से पहले ही घर तोड़कर भागने लगे गांव के लोग

ईडी ने कांग्रेस नेता सोनिया गांधी, राहुल गांधी को धन शोधन के मामले में तलब किया

राज्यसभा चुनाव: टिकट बंटवारे में दिग्गजों की ‘तपस्या’ ज़ाया, क़रीबियों पर विश्वास

मूसेवाला की हत्या को लेकर ग्रामीणों ने किया प्रदर्शन, कांग्रेस ने इसे ‘राजनीतिक हत्या’ बताया


बाकी खबरें

  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    दिल्ली उच्च न्यायालय ने क़ुतुब मीनार परिसर के पास मस्जिद में नमाज़ रोकने के ख़िलाफ़ याचिका को तत्काल सूचीबद्ध करने से इनकार किया
    06 Jun 2022
    वक्फ की ओर से प्रस्तुत अधिवक्ता ने कोर्ट को बताया कि यह एक जीवंत मस्जिद है, जो कि एक राजपत्रित वक्फ संपत्ति भी है, जहां लोग नियमित रूप से नमाज अदा कर रहे थे। हालांकि, अचानक 15 मई को भारतीय पुरातत्व…
  • भाषा
    उत्तरकाशी हादसा: मध्य प्रदेश के 26 श्रद्धालुओं की मौत,  वायुसेना के विमान से पहुंचाए जाएंगे मृतकों के शव
    06 Jun 2022
    घटनास्थल का निरीक्षण करने के बाद शिवराज ने कहा कि मृतकों के शव जल्दी उनके घर पहुंचाने के लिए उन्होंने रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह से वायुसेना का विमान उपलब्ध कराने का अनुरोध किया था, जो स्वीकार कर लिया…
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    आजमगढ़ उप-चुनाव: भाजपा के निरहुआ के सामने होंगे धर्मेंद्र यादव
    06 Jun 2022
    23 जून को उपचुनाव होने हैं, ऐसे में तमाम नामों की अटकलों के बाद समाजवादी पार्टी ने धर्मेंद्र यादव पर फाइनल मुहर लगा दी है। वहीं धर्मेंद्र के सामने भोजपुरी सुपरस्टार भाजपा के टिकट पर मैदान में हैं।
  • भाषा
    ब्रिटेन के प्रधानमंत्री जॉनसन ‘पार्टीगेट’ मामले को लेकर अविश्वास प्रस्ताव का करेंगे सामना
    06 Jun 2022
    समिति द्वारा प्राप्त अविश्वास संबंधी पत्रों के प्रभारी सर ग्राहम ब्रैडी ने बताया कि ‘टोरी’ संसदीय दल के 54 सांसद (15 प्रतिशत) इसकी मांग कर रहे हैं और सोमवार शाम ‘हाउस ऑफ कॉमन्स’ में इसे रखा जाएगा।
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    कोरोना अपडेट: देश में कोरोना ने फिर पकड़ी रफ़्तार, 24 घंटों में 4,518 दर्ज़ किए गए 
    06 Jun 2022
    देश में कोरोना के मामलों में आज क़रीब 6 फ़ीसदी की बढ़ोतरी हुई है और क़रीब ढाई महीने बाद एक्टिव मामलों की संख्या बढ़कर 25 हज़ार से ज़्यादा 25,782 हो गयी है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License