NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
नज़रिया
समाज
भारत
राजनीति
क्या बिहार उपचुनाव के बाद फिर जाग सकती है नीतीश कुमार की 'अंतरात्मा'!
बिहार विधानसभा की दो सीटों के लिए 30 अक्टूबर को उपचुनाव हो रहे हैं। ये दो सीटें हैं- कुशेश्वरस्थान और तारापुर। दोनों ही सीटें जद(यू) के खाते में थीं। सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या जद(यू) अपनी दोनों सीटें बचा पाएगी?
शशि शेखर
20 Oct 2021
Nitish kumar
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार

कुशेश्वरस्थान और तारापुर में एनडीए की तरफ से जद(यू) के ही उम्मीदवार मैदान में हैं. भाजपा को कुछ ख़ास लेना-देना नहीं है। राजद पूरा जोर लगा रहा है। इतना कि कांग्रेस को भी अपना उम्मीदवार उतारना पड़ा है। और तो और चिराग पासवान ने भी अपने उम्मीदवार उतार दिए हैं। अब खबर ये है की पशुपति कुमार पारस, नीतीश कुमार के समर्थन में उनके साथ कम से कम तीन दिन तक हेलीकाप्टर में बैठ कर जद(यू) उम्मीदवारों के समर्थन में रैली करेंगे। मोटे तौर पर बिहार में 14 फीसदी दलित वोट हैं, जिसमें एक बड़ी हिस्सेदारी, करीब 5 फीसदी पासवान वोटों की है। जिस पर चिराग पासवान और पशुपति कुमार पारस, दोनों दावा जता रहे हैं।

लोजपा टूट चुकी है। पशुपति पारस केंद्र में मंत्री बन चुके हैं और एनडीए के समर्थन में हैं। चिराग भाजपा से अलग नहीं हैं, लेकिन बिहार में नीतीश कुमार के खिलाफ हैं।2020 के विधान सभा चुनाव में चिराग पासवान के निर्णय की वजह से ही जद(यू) को कम सीटों पर संतोष करना पड़ा था। जिन 33 सीटों पर जद(यू) की हार हुई थी, वहाँ चिराग पासवान ने अपने उम्मीदवार खड़े किए थे और उनके उम्मीदवारों को उससे कहीं अधिक वोट मिला था। जितने से जद(यू) के उम्मीदवार हार गए थे। अन्यथा, बिहार में एनडीए जद(यू) समेत दो-तिहाई बहुमत हासिल कर सकती थी। उस हार का दुःख अभी तक नीतीश कुमार भूले नही होंगे और यही वजह रही कि न चाहते हुए भी भाजपा खुद को चिराग से दूर दिखाती है। लेकिन, भाजपा का चिराग मोह अभी ख़त्म हुआ नहीं है। बल्कि, मौजूदा उपचुनाव से यह साबित हो जाएगा कि पासवान-दलित वोट पर किसका दावा सही है। पशुपति कुमार पारस का या चिराग पासवान का।

ये भी पढ़ें: बिहार में भी दिखा रेल रोको आंदोलन का असर, वाम दलों ने बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया

ऐसी सूरत में, नीतीश कुमार को दोनों ही सीटें जीतनी ही होंगी। अगर वे एक भी सीट हारते हैं, तो उनका लॉस 100 परसेंट माना जाएगा, साथ ही एक बार फिर ये साबित हो जाएगा कि एनडीए भले ही सरकार में साथ है, लेकिन भीतर ही भीतर भाजपा, नीतीश कुमार की पार्टी की कब्र खोदने में जुटी हुई है।

और अगर चिराग पासवान, पशुपति पारस से अधिक दलित वोट शेयर पा लेते हैं तो फिर भाजपा को अपनी रणनीति पर फिर से विचार करना पड़ सकता है।फिर, भाजपा के लिए चिराग को दरकिनार करना आसान नहीं होगा. लेकिन, तब नीतीश कुमार क्या करेंगे? क्या वे एनडीए में चिराग का बने रहना स्वीकार करे पाएंगे। 2020 और मौजूदा उपचुनाव के परिणाम (अगर वे एक सीट भी हारते है) को देखते हुए नीतीश कुमार के लिए चिराग पासवान को एनडीए में स्वीकार कर पाना लगभग नामुमकिन होगा। ऐसी सूरत में अगर नीतीश कुमार की अंतरात्मा जाग जाए, तो कोई आश्चर्य नहीं होनी चाहिए।

पेगासस, जाति जनगणना और जनसंख्या नियंत्रण क़ानून 

इन तीन मुद्दों पर नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव की केमिस्ट्री कमाल की दिखी है। एक साथ दिल्ली जा कर जाति जनगणना के मुद्दे पर आवाज उठाना कोई आम घटना नहीं थी। जाति जनगणना एक ऐसा मुद्दा है, जिस पर नीतीश कुमात तेजस्वी यादव से अलग राय रख सकने की स्थिति में नहीं है। पेगासस पर भी नीतीश कुमार ने मुखर आवाज उठाई थी और उत्तर प्रदेश में योगी सरकार के जनसंख्या नियंत्रण क़ानून को ले कर भी सीधे-सीधे आलोचना की थी। इस तरह से देखें तो पिछले कुछ समय के दौरान, नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव, एक ही वैचारिक धरातल पर खड़े दिख रहे हैं। रह गया सवाल एनडीए सरकार का तो नीतीश कुमार भलीभांति जानते हैं कि भाजपा अब उन्हें अपना बिग बी मानने को कतई तैयार नहीं है। 2020 के विधान सभा चुनाव में जिस तरह से राजद सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर उभर कर सामने आई और जिस तरह से नीतीश कुमार की पार्टी की लुटिया डुबोने का काम भाजपा वालों ने चिराग पासवान के साथ मिल कर किया। उसकी टीस आज भी नीतीश कुमार के मन में है। रही-सही कसर अब विधान सभा की इन दो सीटों के उपचुनाव नतीजों से पूरी हो सकती है। यदि, नीतीश कुमार एक भी सीट हारते हैं तो उनके लिए यह साफ़ सन्देश होगा कि न तो पशुपति पारस अपना वोट ट्रान्सफर करा पाए, न ही भाजपा वालों ने उनका साथ दिया। ऐसे में, नीतीश कुमार की अंतरात्मा सोई रह जाएगी, कहना मुश्किल है।

पीएम मैटेरियल का शिगूफा यूं ही नहीं  

नीतीश कुमार के खासमखास उपेन्द्र कुशवाहा से लेकर कई नेता कह चुके हैं कि नीतीश कुमार पीएम मैटेरियल हैं। अब पीएम मैटेरियल होना और पीएम होना, दो बातें हैं। सवाल है कि बिहार का मुख्यमंत्री रहते हुए नीतीश कुमार कैसे और किस आधार पर पीएम पद की दावेदारी जता पाएंगे। 2024 का लोकसभा चुनाव निश्चित तौर पर एक अलग रंग-ढंग के साथ होने जा रहा है। कांग्रेस जहां खुद को मजबूत कर रही है, वहीं ममता बनर्जी पश्चिम बंगाल में खुद को स्थापित कर चुकी हैं। मुलायम सिंह यादव और लालू प्रसाद यादव अस्वस्थ हो चले हैं। ऐसे में उत्तर भारत से रह गए नीतीश कुमार, जो पीएम पद के स्वाभाविक दावेदार बन सकते हैं। लेकिन, फिर सवाल वही कि क्या एनडीए के सीएम रहते हुए ये दावेदारी कर पाना संभव होगा। कतई नहीं. तब, एक ही रास्ता बचेगा, रास्ता ये कि नीतीश कुमार एनडीए से अलग हो जाएं और तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री बना कर बदले में उनसे पीएम पद की दावेदारी के लिए समर्थन हासिल करें। तो क्या ऐसा हो पाना असंभव है? बिलकुल नहीं, अगर उपचुनाव के नतीजे राजद के पक्ष में जाते हैं तो नीतीश कुमार के लिए ऐसा फैसला करना और भी आसान और शायद जरूरी भी हो जाएगा।

बहरहाल, राजनीति संभावनाओं का खेल है। संभावनाएं क्या गुल खिलाती हैं, इसका इंतज़ार कीजिये। लेकिन, बिहार विधान सभा के उपचुनाव निश्चित ही बिहार की राजनीति में कुछेक बदलाव ला कर रहेंगे।

ये भी पढ़ें: कश्मीर में प्रवासी मज़दूरों की हत्या के ख़िलाफ़ 20 अक्टूबर को बिहार में विरोध प्रदर्शन

Bihar
Bihar government
Nitish Kumar
nitish sarkar
nitish goernement
Chirag Paswan

Related Stories

इस आग को किसी भी तरह बुझाना ही होगा - क्योंकि, यह सब की बात है दो चार दस की बात नहीं

ख़बरों के आगे-पीछे: राष्ट्रीय पार्टी के दर्ज़े के पास पहुँची आप पार्टी से लेकर मोदी की ‘भगवा टोपी’ तक

विचार-विश्लेषण: विपक्ष शासित राज्यों में समानांतर सरकार चला रहे हैं राज्यपाल

परीक्षकों पर सवाल उठाने की परंपरा सही नहीं है नीतीश जी!

खोज़ ख़बर: गंगा मइया भी पटी लाशों से, अब तो मुंह खोलो PM

बिहार में सुशासन नहीं, गड़बड़ियों की है बहार!

बिहार में क्रिकेट टूर्नामेंट की संस्कृति अगर पनप सकती है तो पुस्तकालयों की क्यों नहीं?

स्मृतिशेष: गणेश शंकर विद्यार्थी एक प्रतिबद्ध कम्युनिस्ट

राजनीति भले ही नई हो, क़ीमत तो अवाम ही चुकाएगी

नज़रिया: तेजस्वी इसलिए हारे क्योंकि वे अपनी यूएसपी भूल गए थे...!


बाकी खबरें

  • नाइश हसन
    मेरे मुसलमान होने की पीड़ा...!
    18 Apr 2022
    जब तक आप कोई घाव न दिखा पाएं तब तक आप की पीड़ा को बहुत कम आंकता है ये समाज, लेकिन कुछ तकलीफ़ों में हम आप कोई घाव नहीं दिखा सकते फिर भी भीतर की दुनिया के हज़ार टुकड़े हो चुके होते हैं।
  • लाल बहादुर सिंह
    किसान-आंदोलन के पुनर्जीवन की तैयारियां तेज़
    18 Apr 2022
    किसानों पर कारपोरेटपरस्त  'सुधारों ' के अगले डोज़ की तलवार लटक रही है। जाहिर है, हाल ही में हुए UP व अन्य विधानसभा चुनावों की तरह आने वाले चुनाव भी भाजपा अगर जीती तो कृषि के कारपोरेटीकरण को रोकना…
  • सुबोध वर्मा
    भारत की राष्ट्रीय संपत्तियों का अधिग्रहण कौन कर रहा है?
    18 Apr 2022
    कुछ वैश्विक पेंशन फंड़, जिनका मक़सद जल्द और स्थिर लाभ कमाना है,  ने कथित तौर पर लगभग 1 लाख करोड़ रुपये की संपत्ति को लीज़ पर ले लिया है।
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    कोरोना अपडेट: देश में 24 घंटों में कोरोना के 2,183 नए मामले, 214 मरीज़ों की मौत हुई
    18 Apr 2022
    देश की राजधानी दिल्ली में कोरोना के मामले बढ़ते जा रहे हैं। दिल्ली में पिछले 24 घंटों में कोरोना के 517 नए मामले सामने आए है |
  • भाषा
    दिल्ली में सीएनजी में सब्सिडी की मांग को लेकर ऑटो, टैक्सी संगठनों की हड़ताल
    18 Apr 2022
    दिल्ली में ऑटो, टैक्सी और कैब चालकों के विभिन्न संगठन ईंधन की बढ़ती कीमतों के मद्देनजर सीएनजी में सब्सिडी और भाढ़े की दरों में बदलाव की मांग को लेकर सोमवार को हड़ताल पर हैं।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License