NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
खेल
भारत
राजनीति
बेदी का सवाल जेटली पर नहीं, देश के सबसे ताकतवर व्यवस्था पर है
खेल में जब मिलावट कर दी जाती है तो वह विद्रूप व कसैला हो जाता है। लेकिन जिस तरीके से फिरोजशाह कोटला ग्राउंड में अरुण जेटली की प्रतिमा स्थापित की जा रही है, वह स्वाभिमानी खिलाड़ियों के लिए जले पर नमक छिड़कने जैसा है।
जितेन्द्र कुमार
27 Dec 2020
बेदी

बचपन से सुनते आ रहे हैं कि क्रिकेट अनिश्चितताओं का खेल है। लेकिन यह खेल अनिश्चितताओं का तभी रह जाता है जब खेल हो। खेल में जब मिलावट कर दी जाती है तो वह विद्रूप व कसैला हो जाता है। लेकिन जिस तरीके से फिरोजशाह कोटला ग्राउंड में अरुण जेटली की प्रतिमा स्थापित की जा रही है, वह स्वाभिमानी खिलाड़ियों के लिए जले पर नमक छिड़कने जैसा है।

डीडीसीए के इसी फैसले के खिलाफ महान स्पिनर व भारत के पूर्व कप्तान ने कहा है कि कोटला में अरुण जेटली की प्रतिमा लगाना उन्हें गंवारा नहीं है, इसलिए उनके नाम पर बने स्टैंड से उनका नाम हटा दिया जाए।

डीडीसीए के अध्यक्ष, जो संजोग से अरुण जेटली के बेटे रोहण जेटली ही हैं- को लिखी अपनी लंबी चिठ्ठी में बेदी ने आगे कहा है, “जब आप गूगल करते हैं तो आपको पता चलता है कि अरुण जेटली के कार्यकाल में किस तरह पैसे व संसाधन का दुरुपयोग हुआ था।”

बिशन सिंह बेदी ने यह भी लिखा है, “मुझे बताया गया है कि स्वर्गीय अरुण जेटली योग्य नेता थे इसलिए उन्हें संसद में याद करना चाहिए न कि क्रिकेट स्टेडियम में। आप मेरी बातों का गांठ बांध लीजिएः विफलताओं को पट्टिका व प्रतिमाओं के साथ नहीं मनाया जाना चाहिए, बल्कि उसे जितना जल्दी हो भुला देना चाहिए।”

अपनी चिठ्ठी में बेदी ने लिखा है, “अध्यक्षजी, अगर आप दुनिया के किसी भी क्रिकेट स्टेडियम को देखेगें तो आपको पता चलेगा कि कोटला ग्राउंड की हालत कितनी बदतर है। …आपको जानना चाहिए कि लॉर्ड्स पर डब्लू जी ग्रेस की प्रतिमा लगी है, ओवल में सर जैक हॉब्स की प्रतिमा है तो एससीजी पर डॉन ब्रेडमैन की, सर गैरी सोबर्स बारबाडोस में स्थापित हैं तो शेन वार्न की मेलबोर्न क्रिकेट ग्राउंड पर विराजित हैं…। ये प्रतिमाएं वहां इसलिए लगाई गई हैं कि जब बच्चे इन स्टेडियम में जाते हैं तो वे उन जादूई प्रतिमा को देखकर प्रेरणा लेते हैं। खेल के अखाड़े में सिर्फ खिलाड़ियों को ही रोल मॉडल बनाना चाहिए।”

अरुण जेटली के जिंदा रहते ही बीजेपी के ही सांसद व पूर्व क्रिकेटर कीर्ति झा आजाद ने अरुण जेटली पर भ्रष्टाचार व अनियमितता के गभीर आरोप भी लगाए थे, लेकिन कीर्ति आजाद को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया और अरुण जेटली का बाल भी बांका नहीं हुआ।  लेकिन इसमें कोई शक नहीं था कि जब कीर्ति आजाद अरुण जेटली पर आरोप लगा रहे थे तो उन्हें पूरी तरह पता था कि वह क्या कर रहे हैं! 

अरुण जेटली का मीडिया पर कितना दबदबा था (वामपंथी पत्रकारों व कुछ गिन-चुने बड़े पत्रकारों को छोड़कर) इसका अंदाजा उनके मृत्यु के बाद अखबारों में मिले उनको कवरेज और उनको याद किए जाने के तरीकों के बारे में पढ़कर जाना जा सकता है।  सबसे बेचैन करनेवाली प्रतिक्रियाएं मुख्यधारा के बड़े-बड़े पत्रकारों से आई थी जो वर्षों से झंडा गाड़े हुए हैं। एक ट्वीट टाइम्स नाउ की एंकर नविका कुमार ने किया- उनके जीवन से रोशनी चली गई, अब वे हर सुबह किससे फोन पर बात करेंगी, किससे सीख लेंगी। नविका कुमार के मामले में जेटली से उनका सारा रिश्ता उनके पत्रकारिता में होने के चलते यानी उनके पेशे के चलते स्थापित हुआ है लिहाजा इसे स्वाभाविक पारिवारिक रिश्ता नहीं कहा जा सकता, यह म्युचुअल लेन-देन पर आधारित रिश्ता है।

24 अगस्त को हुई उनके मृत्यु के बाद 25 अगस्त को ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ ने ‘फायरफाइटर गोज़ डाउन फाइटिंग’ (आग बुझानेवाला लड़ते हुए गुजर गया) शीर्षक से सात कॉलम का लीड लगाया जिसे रवीश तिवारी व लिज मैथ्यू ने लिखा था। ‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ ने भी इसे छह कॉलम दिया था जिसका हेडिंग था- ‘ए शार्प माइंड एंड लार्ज सोल’ (तीक्ष्ण दिमाग व बड़े दिलवाला)। सभी अखबारों ने (मूलतःअंग्रेजी के, टेलीग्राफ को छोड़कर) अरुण जेटली को ‘महामानव’ के रूप में ही याद किया। लगभग हर अखबार ने लिखा कि अरुण जेटली दिल्ली में मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मेंटर रहे। अखबारों ने तफ्सील से लिखा कि जब 2002  के दंगे के बाद अटल बिहारी वाजपेयी मोदी को गुजरात के मुख्यमंत्री पद से हटाना चाहते थे तो मुख्य रणनीतिकार के रूप में अरुण जेटली ने ही लालकृष्ण आडवाणी और वेंकैया नायडू के साथ मिलकर वाजपेयी की घेराबंदी की थी और मोदी की मुख्यमंत्री की कुर्सी को सुरक्षित बनाए रखा। उसी दिन ‘इंडियन एक्सप्रेस’ में कूमी कपूर ने ‘ए मैन ऑफ ओपन हर्ट एंड माइंड, जेटली हैड फ्रेंड्स एक्रॉस डिवाइड’ में लिखा था कि जब 2010 में अमित शाह संकट में थे और उन्हें गुजरात से तड़ीपार कर दिया गया था तो कैसे वह संसद भवन में अरुण जेटली के कमरे के एक कोने में बैठे रहते थे।

खैर, इसका बहुत मतलब नहीं है कि हम सभी घटनाओं के विस्तार में जाएं। लेकिन सवाल सिर्फ यह है कि पत्रकारिता के सारे के सारे ‘हू इज हू’ लिख रहे थे कि मोदीजी को गुजरात दंगे में अभयदान दिलानेवाले अरुण जेटली ही थे। मोदीजी के नेतृत्व में तीसरी बार गुजरात विधानसभा का चुनाव जीतने के बाद जब लोकसभा चुनाव में नेतृत्व करने की बात आई तब कैसे-कैसे षडयंत्र किए गए यह जानने के लिए जनचौक पर अनिल जैन का लेख जरूर पढ़ा जाना चाहिए। लेकिन 25 अगस्त 2019 के इंडियन एक्सप्रेस में नितिन गडकरी ने भी अरुण जेटली को श्रद्धा सुमन अर्पित करते हुए लिखा- ‘ही हेल्प्ड बीजेपी सेट द नैरेटिव’। इसमें गडकरी ने दिल खोलकर अरुण जेटली की तारीफ की थी कि पार्टी अध्यक्ष बनने के बाद दिल्ली में अरुण जेटली ने किस रूप में उनकी मदद की। गडकरी ने अपने पूरे लेख में एक बार भी इस बात का जिक्र नहीं किया कि कैसे उन्हें पार्टी अध्यक्ष पद से हटाया गया। जबकि इस षडयंत्र के आर्किटेक्ट अरुण जेटली ही थे। अगर अंदरूनी कहानियों पर यकीन किया जाए तो कहा जाता है कि जब रात के दस बजे नितिन गडकरी आसन्न संकट से निजात पाने के लिए अरुण जेटली के निजी आवास पर गए तो वहीं उनके अध्यक्ष पद के इस्तीफे का मजमून तैयारहुआ। इसे जेटलीजी की वकील बेटी ने तैयार किया और वहीं पर नितिन गडकरी ने पार्टी केअध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया। मतलब यह कि जब नितिन गडकरी अरुण जेटली के घर पहुंचे थे तो अध्यक्ष थे और उनके घर से निकल रहे थे तो पूर्व अध्यक्ष हो गए थे! लेकिन एक शब्द उस घटना पर गडकरी ने नहीं कहा!

किसी भी लेखक ने अपने श्रद्धांजलि लेख में यह सवाल नहीं उठाया था कि जेटली के चलते कितने पत्रकारों को नौकरी से हाथ धोना पड़ा। इस बात का भी कहीं जिक्र नहीं है कि मजीठिया वाले मामले में देश के इतने बड़े वकील ने कभी कुछ कहा। हां, एक मंत्री के रूप में उनका यह बयान बार-बार आता रहा कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा हर बार विधायिका के मामले में इस तरह की दखलअंदाजी लोकतंत्र के लिए ठीक नहीं है।

अब जबकि देश से गिने-चुने बेहतरीन क्रिकेटरों में से एक बिशन सिंह बेदी ने अरुण जेटली के प्रतिमा लगाए जाने के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद कर दी है,  यह भी हो सकता है कि बीजेपी-आरएसएस की ट्रॉल आर्मी बिशन सिंह बेदी को खालिस्तानी से लेकर न जाने क्या-क्या साबित करने की कोशिश करेगें और उनके समर्थकों में बिशन सिंह बेदी खालिस्तानी के रूप में ही जना दिए जाएगें, सबसे दुखद यह है कि हमारे देश में क्रिकेट के बड़े-बड़े स्टार हैं, जिन्हें इसी खेल ने जनता के आंखों का तारा बना दिया, चाहे गावस्कर, कपिलदेव, वेंगसरकर, तेंदुलकर, सहवाग, कुंबले या भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड के अध्यक्ष सौरभ गांगुली हो या फिर धोनी हो, किसी ने भी खेल की मर्यादा के पक्ष में आवाज उठाना मुनासिब नहीं समझा है! इसका कारण शायद यह है कि अरुण जेटली ने हर पावरफुल संस्थान को अपनी सुविधा से नियंत्रित या कम से कम साधने की कला में महारत हासिल कर ली थी। खिलाड़िओं में यह भय भी व्याप्त है कि अगर अरुण जेटली की प्रतिमा लगाए जाने के खिलाफ अगर कुछ बोल दिया तो सरकार इसका बदला अलग तरह से न ले! परिणामस्वरुप बिशन सिंह बेदी इतने महत्व की बात उठा रहे हैं और इतने महारथियों में से एक भी उनके पक्ष में बोलने का साहस नहीं कर पा रहा है। और बीजेपी व इस सरकार का यही ‘जलवा व प्रताप’ है जो सबके मुंह पर पट्टी चिपकाने के लिए बाध्य कर दिया है। ऐसे समय में बिशन सिंह बेदी अकेले वह नायक है जिसका स्वागत किया जाना चाहिए। इस घटना से हमें यह भी पता चलता है कि सभी नायक, नायक नहीं होते बल्कि वही लोग नायकत्व को प्राप्त करते हैं जिनमें ईमानदारी होती है!

(जितेन्द्र कुमार स्वतंत्र लेखक-पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

Bishan Singh Bedi
Arun Jaitley
Feroz Shah Kotla Stadium
Bedi vs Jaitley
DDCA
BJP
Modi government

Related Stories

त्रिपुरा के अखबार के खिलाफ भाजपाई हिंसा

नये इंडिया को सोना मिला- धन्यवाद मोदी जी!

खेल: ये भाजपा सरकार सिर्फ जीत का श्रेय लेना जानती है?

किसानों के समर्थन में ‘भारत बंद’ सफल, बीजेपी शासित राज्यों में भी रहा असर, कई नेता हिरासत में या नज़रबंद रहे


बाकी खबरें

  • Yeti Narasimhanand
    न्यूज़क्लिक टीम
    यति नरसिंहानंद : सुप्रीम कोर्ट और संविधान को गाली देने वाला 'महंत'
    23 Apr 2022
    यति नरसिंहानंद और अ(संतों) का गैंग हिंदुत्व नेता यति नरसिंहानंद गिरी ने दूसरी बार अपने ज़मानत आदेश का उल्लंघन करते हुए ऊना धर्म संसद में मुसलमानों के ख़िलाफ़ नफ़रती बयान दिए हैं। क्या है यति नरसिंहानंद…
  • विजय विनीत
    BHU : बनारस का शिवकुमार अब नहीं लौट पाएगा, लंका पुलिस ने कबूला कि वह तलाब में डूबकर मर गया
    22 Apr 2022
    आरोप है कि उनके बेटे की मौत तालाब में डूबने से नहीं, बल्कि थाने में बेरहमी से की गई मारपीट और शोषण से हुई थी। हत्या के बाद लंका थाना पुलिस शव ठिकाने लगा दिया। कहानी गढ़ दी कि वह थाने से भाग गया और…
  • कारलिन वान हाउवेलिंगन
    कांच की खिड़कियों से हर साल मरते हैं अरबों पक्षी, वैज्ञानिक इस समस्या से निजात पाने के लिए कर रहे हैं काम
    22 Apr 2022
    पर्यावरण संरक्षण की दिशा में काम करने वाले लोग, सरकारों और इमारतों के मालिकों को इमारतों में उन बदलावों को करने के लिए राजी करने की कोशिश कर रहे हैं, जिनके ज़रिए पक्षियों को इन इमारतों में टकराने से…
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    छत्तीसगढ़ :दो सूत्रीय मांगों को लेकर 17 दिनों से हड़ताल पर मनरेगा कर्मी
    22 Apr 2022
    मनरेगा महासंघ के बैनर तले वे 4 अप्रैल से हड़ताल कर रहे हैं। पूरे छत्तीसगढ़ के 15 हज़ार कर्मचारी हड़ताल पर हैं फिर भी सरकार कोई सुध नहीं ले रही है।
  • ईशिता मुखोपाध्याय
    भारत में छात्र और युवा गंभीर राजकीय दमन का सामना कर रहे हैं 
    22 Apr 2022
    राज्य के पास छात्रों और युवाओं के लिए शिक्षा और नौकरियों के संबंध में देने के लिए कुछ भी नहीं हैं। ऊपर से, अगर छात्र इसका विरोध करने के लिए लामबंद होते हैं, तो उन्हें आक्रामक राजनीतिक बदले की…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License