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सीईएल कर्मचारियों का निजीकरण के ख़िलाफ़ संघर्ष जारी, सरकार की मंशा पर गंभीर सवाल!
“घर चलाने के लिए, आप अपने घर का सामान नहीं बेचते हैं। इसके बजाय आप वैकल्पिक उपायों की तलाश करते हैं, लेकिन ये सरकार अपने खर्चे चलाने के लिए देश की बहुमूल्य संपत्ति को बेच रही है।"
मुकुंद झा, रवि कौशल
12 Apr 2021
सीईएल कर्मचारियों का निजीकरण के ख़िलाफ़ संघर्ष जारी, सरकार की मंशा पर गंभीर सवाल!

दिल्ली से सटे हुए साहिबाबाद स्थित सेंट्रल इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (सीईएल) के कर्मचारी 15 मार्च से विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। कर्मचारी विनिवेश की प्रक्रिया का विरोध कर रहे हैं। पिछले कुछ सालों में केंद्र सरकार लगातार सार्वजनिक कंपनियों को निजी हाथो में सौंप रही है। इसी क्रम में अब सरकार ने सीईएल नीलाम करने का पूरा मन बना लिया है। इसके लिए उन्होंने निजी कंपनियों से आवेदन भी मांगने शुरू कर दिया है।

ये कंपनी अभी विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी मंत्रालय के अधीन है और सार्वजनिक क्षेत्र उपक्रम (पीएसयू) की तरह काम कर रही है। सरकार के इस निर्णय से यहाँ काम कर रहे हज़ारों श्रमिकों की आजीविका पर संकट गहराता नज़र आ रहा है। वो सभी इसके ख़िलाफ़ प्रदर्शन कर रहे हैं।

सीईएल कर्मचारी और यूनियन नेता बीरेंद्र कुमार शुरुआत से इस आंदोलन का हिस्सा हैं। उनसे न्यूज़क्लिक ने पूछा कि कर्मचारी विरोध क्यों कर रहे हैं? उन्होंने कहा “घर चलाने के लिए, आप अपने घर का सामान नहीं बेचते हैं। इसके बजाय आप वैकल्पिक उपायों की तलाश करते हैं, लेकिन ये सरकार अपने खर्चे चलाने के लिए देश की बहुमूल्य संपत्ति को बेच रही है।"

सरकार द्वारा विनिवेश के तहत सरकार कंपनी में अपने 100% शेयर बेचने के फैसले के बाद से ही साहिबाबाद में सीईएल के विशाल परिसर के गेट पर कर्मचारी काम को बिना अवरुद्ध किए हुए हैं प्रदर्शन कर रहे हैं। इसका नेतृत्व भारतीय ट्रेड यूनियनों के केंद्र (सीटू) से संबद्ध स्थायी कर्मचारी की यूनियन कर रही है।

रोजाना कुछ लोगो बारी बारी से इस धरने में शामिल होते हैं जबकि बाकी कर्मचारी अपना काम करते हैं लेकिन लंच के समय और छुट्टी हो जाने के बाद कंपनी में काम करने वाले अधिकतर कर्मचारी बाहर आकर गेट मीटिंग करते हैं। जहां कर्मचारी सरकार के खिलाफ नारेबाज़ी करते हैं और यूनियन के नेता उपस्थित भीड़ को संबोधित भी करते हैं।

1974 में स्थापित सीईएल का लक्ष्य भारतीय प्रयोगशालाओं और शोध संस्थानों द्वारा विकसित स्वदेशी तकनीकों के आधार पर उत्पाद तैयार करना है। हालाँकि अब ये शोध का भी काम कर रही है। यह मुख्यतः सौर ऊर्जा, रेलवे सिग्नलिंग, रक्षा इलेक्ट्रॉनिक्स और समन्वित सुरक्षा और निगरानी (इंटीग्रेटेड सिक्योरिटी एंड सर्विलेंस)- इन चार क्षेत्रों में काम करती है।

सीईएल वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान विभाग, विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय (Department of Scientific and Industrial Research, Ministry of Science and Technology) के तहत एक पूर्ण स्वामित्व वाली सरकारी कंपनी है। यह सैन्य जरूरतों के लिए रडार, रेडम और बुलेट प्रूफ कवच जैसे महत्वपूर्ण उपकरणों के उत्पादन में माहिर है। इस वर्ष के अपने बजट भाषण में, वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने इसे उन कंपनियों में से एक के रूप में चिह्नित किया, जिन्हे बेचकर सरकार अपना विनिवेश का लक्ष्य 2.1 लाख करोड़ रुपये हासिल करेगी।

लेकिन कर्मचारी इसपर सवाल उठा रहे है उनका कहना है उन्होंने (सरकार) खुद कहा था रणनीतिक क्षेत्र की कंपनियों का निजीकरण नहीं होगा,लेकिन सीईएल को बेचने पर क्यों आमादा है? जबकि हम सेना और देश की सुरक्षा से जुड़े कई उत्पाद बनाते हैं।

प्रेम राज सीईएल के कर्मचारी हैं, वे कहते है “समस्या यह है कि बिक्री के बारे में निर्णय लेने वाले लोग एक बार भी कारखाने का दौरा नहीं करते हैं। अगर वे परिसर का दौरा करते, तो उन्हें हमारे काम का महत्व पता चलता। हम पिछले सात वर्षों से लगातार 337 करोड़ रुपये के उच्चतम कारोबार के साथ मुनाफा कमा रहे हैं, उस समय भी जब कोई भी अपने घरों (महामारी की अवधि) के बाहर कदम रखने की हिम्मत नहीं करता था, तब भी हमने उत्पादन किया और गत वित्त वर्ष में इतिहास का सबसे अधिकतम लाभ कमाया है।"

यूनियन नेताओ ने कहा, “हम सरकार में हर अधिकारी को बार बार बता रहे हैं कि यह एक रणनीतिक कंपनी है और इस तरह की महत्वपूर्ण क्षेत्र में निजी निवेश खोलना देश के हितों के लिए अच्छा नहीं है। फिर भी, DIPAM (डिपार्टमेंट ऑफ इन्वेस्टमेंट एंड प्राइवेट एसेट मैनेजमेंट) और उसके सचिव इसपर ध्यान नहीं दिया। यही नहीं, उन्होंने हमारी चिंताओं को दरकिनार करते हुए ईओआई में शर्तों को भी कमज़ोर कर दिया है।"

उन्होंने गर्व के साथ कंपनी के उत्पाद पोर्टफोलियो को दिखाया, जो सिग्नलिंग के लिए सैन्य और रेलवे में इस्तेमाल किए जाने वाले उत्पादों की एक श्रृंखला दिखाता है और कंपनी को 1977 में देश में पहली बार विकसित सौर सेल और 1978 में पहली बार सौर पैनल बनाने का श्रेय दिया जाता है। कंपनी ने 1985 में CSIR-CEERI, पिलानी के साथ भारत का पहला स्वदेशी रूप से डिज़ाइन किया गया रंगीन टीवी भी बनाया था।

सीईएल कर्मचारी यूनियन के कार्यकारी अध्यक्ष संजय कुमार कहते है "हमने कई ऐसे उत्पाद बनाए जो पहले सरकार विदेशों से आयात करती थी, वो भी काफ़ी अधिक दामों पर लेकिन हमने उसे कई गुना सस्ते दर पर और बेहतर गुणवत्ता के साथ उत्पादन किया है। इसमें देश के सेना और सुरक्षा से जुड़े कई उत्पाद हैं। हमारे द्वारा ही बनाए गए सिग्नलिंग सिस्टम के बाद से ही देश में मानवीय भूल कम हुई और हादसों में भारी गिरावट आई है। "

कंपनी के कर्मचारियों का कहना है कि सरकार ने अपनी हिस्सेदारी बेचने के लिए अपनी शर्तों को कम कर दिया। सीईएल एक्जिक्यूटिव्स एसोसिएशन के अध्यक्ष हरीश वर्मा ने दोहराया कि सरकार बिक्री के लिए अपने नियम का पालन नहीं कर रही है।

हरीश बताते है “सितंबर 2018 में जारी किए गए पहले एक्सप्रेशन ऑफ इंटरेस्ट में, यह उल्लेख किया गया था कि बोली लगाने वाले को पांच साल के लिए अपनी संपूर्णता में कारोबार जारी रखना होगा यानी उत्पादन के स्वरूप में कोई कटौती नहीं होगी। इसी तरह, बोली लगाने वाली कंपनी को पिछले पांच वर्षों से मुनाफा कमाने वाला होना चाहिए था। इस बार, इस शब्द को पूरी तरह से गायब कर दिया गया है। इसका प्रभावी रूप से मतलब है कि कोई भी, भले ही उसे ऐसे व्यवसाय चलाने का अनुभव हो या न हो, वह इसके लिए बोली लगा सकता है।

उन्होंने कहा आस-पास के सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों से हमारा अनुभव जिनका पहले निजीकरण किया गया था, वो आज पूरी तरह बंद पड़ी है। क्यों? क्योंकि बताते हैं कि बोली लगाने वालों को कार्यबल को बनाए रखने में कोई दिलचस्पी नहीं थी। इसपर उन्होंने सवाल किया और कहा कंपनी में अभी लगभग 900 से 1000 कर्मचारी हैं। कौन उन्हें काम देगा? ”

कुछ देर रुककर वर्मा ने कहा, “हमारी सबसे बड़ी चिंता यह है कि अन्य सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों को बोली लगाने के अवसर से वंचित क्यों किया जा रहा है। सरकार प्रबंधन के नियंत्रण को बनाए रखते हुए भी पैसा उत्पन्न कर सकती थी। ”

सरकार ने 49% से अधिक सरकारी स्वामित्व वाली किसी कंपनी को बोली लगाने की अनुमति नहीं दी है, इसका मतलब सरकार इसे सिर्फ कुछ निजी पूंजीपतियों को देना चाहती है।

टीके थॉमस कर्मचारी यूनियन के उपाध्यक्ष है, जिन्होंने 2018 में 69 दिनों का लंबा संघर्ष का नेतृत्व किया था जब पहली बार ईआईओ जारी की गई थी और कर्मचारियों ने मुखर रूप से इसका विरोध किया था। जिसके बाद किसी भी खरीदार ने इसे खरीदने की इच्छा ही नहीं जताई थी।

न्यूज़क्लिक से बात करते हुए, थॉमस ने कहा कि नया EOI कंपनी के पोर्टफोलियो को बहुत कम कर देता है क्योंकि इसने सितंबर 2018 से इसमें कई महत्वपूर्ण उत्पाद जोड़े हैं। “हमने रेडम का उत्पादन शुरू किया जो मिसाइलों में उपयोग किया जाता है। इसी तरह, हम भारत के चुनाव आयोग के लिए दूरस्थ मतदान मशीनों पर शोध कर रहे हैं जिसे हैक नहीं किया जा सकता है। इससे उन सभी लोगों को मदद मिलेगी जो वोट देने के अपने अधिकार का उपयोग करने में विफल रहते हैं क्योंकि वे अपने घर से कही दूर रहते है। प्रारंभिक सूचना ज्ञापन में ऐसी किसी भी परियोजना का उल्लेख ही नहीं किया गया है।

उन्होंने आगे रणनीतिक रक्षा उत्पादन में कंपनी की भूमिका पर प्रकाश डालते हुए कहा "2018 और 2019 के बीच हमने डीआरडीओ, इसरो, आदि जैसे रक्षा प्रयोगशालाओं के साथ कई रणनीतिक महत्वपूर्ण टीओटी (प्रौद्योगिकी हस्तांतरण) किया है, लेकिन वे कंपनी के पोर्टफोलियो में शामिल नहीं हैं। सीईएल ने इन परियोजनाओं में पूंजी निवेश किया है और सिलिका रेडोम जैसे तैयार उत्पादों की आपूर्ति शुरू कर दी है। इसका भी कोई उल्लेख ईओआई में नहीं है। यह सीईएल के रणनीतिक महत्व और रक्षा उत्पादन में उनके मूल्य को कम करने का एक स्पष्ट प्रयास है।

उन्होंने एक बड़ी बात बताते हुए कहा इन सभी बिन्दुओं को जानबूझकर छोड़ा गया क्योंकि इन महत्वपूर्ण परियोजनाओं को छोड़ने से, नए खरीदार के पास इन परियोजनाओं को जारी रखने का कोई दायित्व नहीं होगा, और यह इन परियोजनाओं में सीईएल के योगदान की स्वीकार्यता से इनकार करने के लिए स्वतंत्र होगा। यह रक्षा प्रयोगशालाओं के भरोसे का एक स्पष्ट विश्वासघात होगा ”

यह पूछे जाने पर कि क्या सरकार उन सभी रणनीतिक उत्पादों के बारे में जानती है जो कंपनी का उत्पादन करती है, थॉमस ने कहा, “भले ही विनिवेश परियोजना नीति आयोग की सिफारिश के साथ शुरू हुई थी, लेकिन बाद में वो पीछे हट गई और कंपनी को बचाने के लिए अन्य तरीकों का सुझाव दिया था। ”

स्थायी वित्त समिति द्वारा किए गए प्रस्तावों पर चर्चा के लिए एक बैठक के बाद, वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान विभाग के सचिव शेखर मंडे ने नीति आयोग के सदस्य वीके सारस्वत को लिखा, "उस बैठक के दौरान, रूपांतरण के लिए एक सुझाव दिया गया था। सीईएल, एक सार्वजनिक क्षेत्र का उपक्रम - जो रणनीतिक क्षेत्र में काम करता है और पिछले कुछ वर्षों से लाभ में है। राष्ट्र के लिए सीईएल की रणनीतिक प्रासंगिकता और लगातार विकसित होते भूराजनीतिक गतिशीलता को देखते हुए, डीएसआईआर को प्रस्तावित विनिवेश से सीईएल को बचाने के लिए पहल करनी चाहिए। ”

हालांकि, विनिवेश पर सचिवों की कोर ग्रुप (CGD),की मीटिंग के चर्चा के मिनट्स जो न्यूज़क्लिक ने प्राप्त किए हैं, जिसके मुताबिक DIPAM पूरी तरह से नीति आयोग द्वारा प्रस्ताव की अनदेखी के साथ आगे बढ़े। ब्योरे के मुताबिक , “सचिव, डीआईपीएएम ने कहा कि सचिव, डीएसआईआर ने वाइस चेयरमैन, नीति आयोग से अनुरोध किया था कि वह सीईएल के चालू रणनीतिक बिक्री और उसके रणनीतिक महत्व का हवाला देते हुए सीएलई की रणनीतिक बिक्री पर रोक लगाए। "

दिल्ली सीटू के महासचिव, अनुराग सक्सेना ने कर्मचारियों को संबोधित करने के दौरान सुझाव दिया कि विभिन्न सार्वजनिक उपक्रमों के कर्मचारियों को एक साथ आना अनिवार्य है क्योंकि निजीकरण अब एक सार्वभौमिक आक्रमण बन गया है।

जब हमने कर्मचारियों से पूछा कि सरकार ऐसा क्यों कर रही है? क्योंकि उनके मुताबिक तो कंपनी शानदार काम कर रही है। इसपर कर्मचरियों ने कहा कि सरकार केवल अपने कुछ चहेते बिजनेसमैन के फ़ायदे के लिए ऐसा कर रही है। कर्मचारियों ने सवाल किया निजीकरण अगर इतना अच्छा है तो जो निजी बैंक डूब रहे है उनका विलय सरकारी बैंको में क्यों कर रहे हैं।

सरकार से नाराज़ इन श्रमिकों ने कहा है कि जिस भूमि पर कंपनी का कब्ज़ा है वह क़रीब 1000 करोड़ रुपए से अधिक की है। चूंकि सरकार का लक्ष्य पीएसयू का निजीकरण करना है ऐसे में उक्त भूमि की क़ीमत को कम करने के प्रयास किए जा रहे हैं, कई लोगों को इस बात का भय है कि कॉर्पोरेट हितों के लाभ के लिए यह किया जा रहा है।

कर्मचारियों को दूसरा बड़ा संदेह है कि सरकार के पूंजीपति दोस्त की नज़र कंपनी की बहुमूल्य संपदा पर है, सीईएल के पास दिल्ली के नजदीक औद्योगिक क्षेत्र में मुख्य सड़क के पास करीब 50 एकड़ की जमीन है। कर्मचारियों को डर है कि जो निजी कंपनी अभी इसे खरीदेगी बाद में वो इसे बंद कर देगी और फिर यहां शॉपिंग मॉल या कुछ और बना लिया जाएगा।

प्रदर्शन कर रहे है कर्मचारियों ने प्रधानमंत्री, यूपी सीएम योगी आदित्यनाथ और केंद्रीय विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी मंत्रालय को पत्र लिखा है, हालांकि इसका कोई फायदा नहीं हुआ है। इस विरोध से पीछे हटने से इंकार करते हुए कंपनी के कर्मचारियों का कहना है कि वे सड़कों पर आंदोलन करेंगे और आम जनता को अपने इस आंदोलन में शामिल करेंगे।  

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