कुछ कहावतें अपने भाव और अर्थ के चलते दुनियाभर में मशहूर हो जाती हैं , अंग्रेजी में ऐसी ही एक कहावत है जिसका दुनिया की हर भाषा में इस्तेमाल हुआ , '' When Rome was burning, Nero was playing flute'' . इसी को हिंदी में कहा गया " जब रोम जल रहा था , तो नीरो सुख और चैन की बाँसुरी बजा रहा था।" हालांकि ऐतिहासिक विमर्श बताते हैं कि नीरो के वक्त में बांसुरी थी ही नहीं , बांसुरी का आविष्कार सातवीं शताब्दी में जाकर हुआ था , नीरो एक दूसरा वाद्य यंत्र ज़रूर यूज करता था , लेकिन यह बहस अलग। इस कहावत के भाव को समझें तो ये कहावत उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर एकदम फिट बैठती है। नीरो की असंवेदनशीलता और भाजपा के मुख्यमंत्री की असंवेदनशीलता को अगर एक पैमाने पर रखकर मापें तो कम नहीं निकलेगी।
बीते दिनों देशभर में कृष्ण जन्माष्टमी मनाई गई , हिंदू धर्म के अनुसार इस दिन कृष्ण का जन्म हुआ। इस दिन पूरे देश में कृष्ण के बाल अवतार की पूजा की गई , दूध-दही-शहद से स्नान कराया गया , लेकिन जिस धरती पर कृष्ण ने जन्म लिया , उसी मथुरा में इलाज के अभाव में दर्जनों बच्चे दम तोड़ रहे हैं , अस्पतालों में बिस्तर नहीं है , डॉक्टर नहीं हैं , दवाइयां नहीं हैं , लेकिन सरकार है कि भव्य कृष्ण जन्माष्टमी मनाकर जनता को बहलाने में लगी हुई है।
मथुरा पहुंचे प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ मथुरा के हर गांव की हालत ऐसी है कि प्रत्येक गांव में डेंगू के मरीज निकल आएंगे , मथुरा के फरह ब्लॉक में स्थित कोह नामक गांव में अभी तक 11 लोगों ने डेंगू और वायरल फीवर से अपनी जान गंवा दी है , इसी तरह गोवर्धन ब्लॉक के जचौंदा गांव में तीन लोगों ने डेंगू के चलते दम तोड़ दी , उनमें एक डेढ़ साल का मासूम तो ऐसा था जो अपनी ननिहाल (ग्राम जचौंदा) आया था लेकिन वहीं बुखार का शिकार हो गया और मौत हो गई।
दूसरी तरफ प्रदेश के मुखिया योगी आदित्यनाथ कृष्ण जन्माष्टमी के दिन मथुरा आते हैं , सड़कें सजाई जाती हैं , चौराहों पर चाइनीज झालरें लगाई जाती हैं , मंदिरों को सजाया जाता है। ऐसे लगता है जैसे इस जिले में रोम उतर आया है।
मुख्यमंत्री के भव्य स्वागत का इंतजाम किया गया। लेकिन इस दौरान मुख्यमंत्री योगी मथुरा में चल रही महामारी पर एक शब्द नहीं बोले। वे बोले तो कृष्ण जन्माष्टमी पर भी अपनी सांप्रदायिक राजनीति करने से नहीं चूके , कृष्ण जन्म पर भी उन्होंने जनता को हिन्दू-मुसलमान में बांटने की राजनीति की । उन्होंने कहा '' आज होड़ लगी है , पहले आपके त्योहारों में कोई मंत्री , मुख्यमंत्री , विधायक नहीं आता था , भारतीय जनता पार्टी के प्रतिनिधियों को छोड़ दें तो शेष दलों के लोग दूर भागते थे , इकतरफा चलता था , हिन्दू त्योहारों में कोई नहीं आता था , कोई सहभागी नहीं बनता था , अलग से बंदिशें लगती थीं , लाइट नहीं रहती थी , बिजली नहीं रहती थी , साफ-सफाई नहीं रहती थी , सुरक्षा का प्रबंध नहीं होता था , अब ऐसी कोई बंदिश नहीं है '' ।
प्रदेश के मुखिया अपने चिर-परिचित अंदाज में जनता के बीच धर्म के नाम पर राजनीति करते रहे और भोली-भाली जनता पीछे से ' वंशी वारे (वाले) की जय" ' के नारे लगाती रही। लेकिन कृष्ण जन्म मनाने वाले मुख्यमंत्री ने इस बात का एक बार भी जवाब नहीं दिया कि मथुरा में दर्जनों बच्चे अस्पतालों में दम तोड़ रहे हैं उसके लिए उनकी भाजपा सरकार ने क्या किया। सवाल ये नहीं है कि कृष्ण जन्माष्टमी पर कौन आया , सवाल ये है कि मथुरा में अस्पताल किसने बनवाया , किसने दवाओं का इंतजाम किया , किसने डॉक्टरों की तैनाती की , किसने एंबुलेंस दिलवाईं। मंदिर में घंटा बजाने से गरीब जनता का इलाज नहीं होता , सड़कों पर झालर लगा देने से बच्चों की जान नहीं बचती।
राज्य के मुख्यमंत्री का काम गरीब जनता को मुफ्त इलाज देना है , शिक्षा देना है , रोजगार देना है , मठों वाला काम करने के लिए लाखों साधु और हजारों आश्रम हैं , मथुरा में ही इतने मंदिर और साधु हैं कि पूरी दुनिया में नहीं हैं , लेकिन यहां सरकारी अस्पताल केवल दो हैं , जिनमें से एक भी अस्पताल में एक ईंट योगी शासन में नहीं लगाई। इनमें से एक यानी वृन्दावन स्थित सौ सैयां (सौ बिस्तरों वाला) अस्पताल पूर्व मुख्यमंत्री मायावती ने बनवाया था , दूसरा मथुरा शहर में स्थित जिला अस्पताल है। इनमें कोई योगदान योगी सरकार का नहीं है , सिवाय सड़कों के नाम बदलने के।
ग्राम जचौंदा के विजय राघव ने न्यूज़क्लिक से बातचीत में बताया ''15 अगस्त से ही गांव में वायरल बुखार को लेकर हल्ला होने लगा था , 25 तारीख को जाकर प्रशासन की नींद टूटी। 25 अगस्त को कुछ डॉक्टर आए , लेकिन मात्र 12 लोगों की सैंपलिंग ली , उसमें से ही 8 लोग डेंगू संक्रमित निकल आए , इतने अधिक मरीज होने के बावजूद अगले दिन कोई सैंपलिंग नहीं की गई , जब चारों ओर अख़बारों में हमारे गांव के बारे में हल्ला मचने लग गया , तब जाकर 28 अगस्त को डीएम गांव आए , उस समय 18 लोगों की सैंपलिंग की गई , उसमें से आधे यानी 9 लोग डेंगू पॉजिटिव निकल आए। अभी तक गांव में तीन लोगों की डेंगू से मौत हो गई है। डेंगू के छह-सात मरीज हर रोज निकल रहे हैं , अभी तक तकरीबन 300 से अधिक लोग डेंगू से पीड़ित हो चुके हैं , जबकि गाँव की कुल जनसँख्या मात्र 18 सौ है , 28 तारीख को कुछ सैंपल लिए हैं और अभी तक रिपोर्ट नहीं आई ( 4 सितंबर तक) , जबकि डेंगू की रिपोर्ट एक घंटे के भीतर आ सकती है। ''
गांव जचौंदा में पहुंचे मथुरा जिलाधिकारी कोह गांव के पास रहने वाले सतेंद्र चौहान जो भाभा एटॉमिक रिसर्च में रिसर्च स्कॉलर भी हैं , फिलहाल कृष्ण जन्माष्टमी पर गांव गए हुए हैं , उन्होंने न्यूजक्लिक को बताया '' अभी भी गांव के करीब सौ लोग अस्पतालों में हैं , गांव में अस्थायी अस्पताल बनाने की बात कही गई थी , कुछ चारपाई बिछा दी गई हैं , उन्हीं को अस्पताल का नाम दे दिया गया , कोई डॉक्टर वहां नहीं है , सिर्फ स्टाफ के दो लोग रहते हैं , जो दवाई देते रहते हैं। सब लोग किसान हैं , कुछ को मलेरिया है , कुछ को वायरल है , अस्पतालों में दो-दो लाख रुपये देकर आ रहे हैं , कर्ज ले रहे हैं , खेत और जेवरात गिरवी रख रहे हैं , गरीब आदमी जैसे-तैसे इलाज करवा रहा है। ''
कोह गांव में बनाया गया अस्थायी अस्पताल डेंगू और वायरल फीवर से केवल मथुरा में ही निर्दोष जनता की जानें नहीं जा रही हैं , न्यूज़क्लिक पर ही फिरोजाबाद और बनारस में डेंगू के कहर को लेकर रिपोर्ट हुईं हैं ।
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ये कोरोना का पीक नहीं है , बावजूद इसके गरीब जनता को बुखार जैसी सामान्य बीमारियों का भी इलाज नहीं मिल पा रहा है। लेकिन प्रदेश की सरकार और उसके मुखिया का पूरा फोकस मंदिरों , सरोवरों , आरतियों और घंटारियों में लगा हुआ है। अयोध्या जाते हैं तो भव्य दीपोत्सव करवा देते हैं , मथुरा आते हैं तो आरती कर आते हैं , फिर पूछते हैं।। आज होड़ लगी है , पहले आपके त्योहारों में कोई मंत्री , मुख्यमंत्री , विधायक नहीं आता था। ''